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'''स्थान: एंटरटेनमेन्ट सोसाइटी ऑफ़ गोआ, पणजी, गोवा'''</div>
 
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मैं वहाँ पीछे बैठा सुन रहा था। डॉ. साहब यहाँ बोल रहे थे और वो बता रहे थे, कि हिन्दी के सम्बन्ध में कुछ नहीं हो पा रहा है। सरकार की कुछ आलोचना हो रही थी और सरकारी अधिकारियों की भी आलोचना हो रही थी। इस संबंध में मेरे विचार थोड़े से भिन्न हैं... अलग है। वो क्यों हैं कैसे हैं वो मैं आपको बताता हूँ। हमने एक वेबसाइट बनाई है 'भारत कोश'। इसमें स्थिति अब यह है कि 20 हज़ार से ज़्यादा पन्ने हैं, आठ हजार से अधिक लेख हैं इसमें<ref>यह 10 जनवरी 2011 से पहले की स्थिति थी आज यह {{NUMBEROFPAGES}} और {{NUMBEROFARTICLES}} है।</ref> और ये सभी हिन्दी में हैं। ये अव्यावसायिक मिशन है, शैक्षिक मिशन है, इसमें किसी प्रकार का कोई शुल्क आपको नहीं देना होता और संपादन सुविधा भी उपलब्ध है। <br />
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मैं वहाँ पीछे बैठा सुन रहा था। डॉ. साहब यहाँ बोल रहे थे और वो बता रहे थे, कि हिन्दी के सम्बन्ध में कुछ नहीं हो पा रहा है। सरकार की कुछ आलोचना हो रही थी और सरकारी अधिकारियों की भी आलोचना हो रही थी। इस संबंध में मेरे विचार थोड़े से भिन्न हैं... अलग है। वो क्यों हैं कैसे हैं वो मैं आपको बताता हूँ। हमने एक वेबसाइट बनाई है 'भारत कोश'। इसमें स्थिति अब यह है कि 20 हज़ार से ज़्यादा पन्ने हैं, आठ हज़ार से अधिक लेख हैं इसमें<ref>यह 10 जनवरी 2011 से पहले की स्थिति थी आज यह {{NUMBEROFPAGES}} और {{NUMBEROFARTICLES}} है।</ref> और ये सभी हिन्दी में हैं। ये अव्यावसायिक मिशन है, शैक्षिक मिशन है, इसमें किसी प्रकार का कोई शुल्क आपको नहीं देना होता और संपादन सुविधा भी उपलब्ध है। <br />
 
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पहले मैं आपको एक तस्वीर दिखाना चाहता हूँ...  
 
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08:25, 12 मार्च 2012 का अवतरण

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भारतकोश प्रस्तुतिकरण

भारतकोश प्रशासक आदित्य चौधरी प्रस्तुति देते हुए

(यहाँ प्रस्तुति को जस का तस दिया जा रहा है। यह प्रस्तुति की रिकार्डिंग का लिखा हुआ संस्करण मात्र है)

अखिल भारतीय राजभाषा संगोष्ठी

दिनांक: 10 जनवरी, 2011
प्रस्तुति: आदित्य चौधरी (प्रशासक भारतकोश)

स्थान: एंटरटेनमेन्ट सोसाइटी ऑफ़ गोआ, पणजी, गोवा

मैं वहाँ पीछे बैठा सुन रहा था। डॉ. साहब यहाँ बोल रहे थे और वो बता रहे थे, कि हिन्दी के सम्बन्ध में कुछ नहीं हो पा रहा है। सरकार की कुछ आलोचना हो रही थी और सरकारी अधिकारियों की भी आलोचना हो रही थी। इस संबंध में मेरे विचार थोड़े से भिन्न हैं... अलग है। वो क्यों हैं कैसे हैं वो मैं आपको बताता हूँ। हमने एक वेबसाइट बनाई है 'भारत कोश'। इसमें स्थिति अब यह है कि 20 हज़ार से ज़्यादा पन्ने हैं, आठ हज़ार से अधिक लेख हैं इसमें[1] और ये सभी हिन्दी में हैं। ये अव्यावसायिक मिशन है, शैक्षिक मिशन है, इसमें किसी प्रकार का कोई शुल्क आपको नहीं देना होता और संपादन सुविधा भी उपलब्ध है।

Goa-Presentaion-Bharatkosh-2.JPG

पहले मैं आपको एक तस्वीर दिखाना चाहता हूँ...

ये एक चेहरा है, एक तस्वीर है। कुछ दिन पहले 'टाइम्स ऑफ़ इंडिया' में एक समाचार आया था। यह मिश्री देवी है हरियाणा की। इन्होंने एक करिश्मा किया है, कमाल किया है। इनके दस बच्चे हैं जिनमें पाँच लड़कियाँ और पाँच लड़के। इन्होंने उनको पाला, पढ़ाया और यहाँ तक पढ़ाया कि एक बेटे को हरियाणा में आई.ए.एस. ऑफ़िसर बना दिया और तरीक़ा क्या था इनका पालने का, कि खेतों में जब कटाई होती और अनाज रह जाता है खेत में पीछे, उसका एक-एक दाना चुन के गेहूँ का-सरसों का। उन दानों को इकठ्ठा करके यह बाज़ार ले जाती थीं और ये अपाहिज भी हैं। ये अपने बच्चों को उच्च शिक्षा दिलवाती थीं। इन्हें सर्वोत्तम माँ का पुरस्कार मिला है, भारत सरकार की ओर से। आपको शायद जानकारी होगी... ?

अनिता भटनागर जैन[2]: इनके बेटे मेरे बैचमेट हैं।

आदित्य चौधरी: देखिए कमाल हो गया... मैं तो ख़ैर व्यक्तिगत रूप से नहीं जानता।

अनिता भटनागर जैन: नहीं! मैं मिली नहीं हूँ लेकिन मुझे पता चला था कि इनको पुरस्कार मिला है।

आदित्य चौधरी: जो मैं कह रहा हूँ वो सही है ?

अनिता भटनागर जैन: जी !"

... तो इस तरह की जो चीज़े उनसे हमको प्रेरणा मिलती है। इन्होंने किसी सरकारी अधिकारी से कोई शिक़ायत नहीं की। इन्होंने जाकर किसी सरकारी योजना, किसी मंत्री की आलोचना नहीं की; कि हमारी कोई मदद नहीं कर रहा, हमारे लिए कोई कुछ नहीं कर रहा। इन्होंने जो करना था सो कर ही दिखाया। इन्हें अपने बेटे को आई.ए.एस. बनाना था सो बना ही डाला।

ऐसा ही कुछ 'भारत कोश' के साथ हम लोग कर रहे हैं। हमारी छोटी सी टीम है उस टीम में अधिकतर छात्र हैं 18-18, 20-20 साल के जो धुंआधार लगे हुए हैं। एक बार इस वेबसाइट को देखियेगा तसल्ली होगी। आपको ये छोटे-छोटे छात्र जो पीछे बैठे हुए है, ऐसे ही छात्र उस पर काम रहे हैं, और उससे लाभ भी उठा रहे हैं।

भारतकोश क्यों

भारत कोश बनाने की ज़रूरत क्यों पैदा हुई ? तमाम वेबसाइट हैं इंटरनेट पर लेकिन भारत कोश बनाने की क्या आवश्यकता थी ?

तो ये वो सारी आवश्यकताएँ ये थी कि इंटरनेट पर जो जानकारी हैं वो या तो अंग्रेज़ी भाषा में हैं या ज़्यादातर वेबसाइट या अलग-अलग ब्लॉग हैं जिनमें थोड़ी-थोड़ी अलग-अलग विषयों की जानकारियाँ हैं। वो भले हिन्दी में हैं लेकिन अलग-अलग हैं, इकठ्ठा एक जगह नहीं हैं या फिर विदेशी वेबसाइटों पर हैं... विदेशी वेबसाइटों के बारे में आपका अनुभव कैसा है मुझे नहीं पता लेकिन मेरा जो अनुभव है वो अच्छा नहीं है। यह भारत के मानचित्र को भी पूरा नहीं दिखाते कभी कश्मीर को कटा दिखा देते हैं तो कभी अरुणाचल प्रदेश को ग़ायब कर देते हैं। इससे हमको सन्तोष नहीं होता, अच्छा नहीं लगता... और क्यों लगे ?

इसलिए भारत कोश की तैयारी की... और इसे हमने आगे बढ़ाया। दूसरा ये कि आप बहुत सी वेबसाइट देखें उनमें इतिहास के मामले बड़े गड़बड़ कर दिये जाते हैं बड़े ग़लत तथ्य दिए जाते हैं जिनसे हमें एतराज़ होता हैं। 1857 का जो प्रथम स्वतंत्रता संग्राम था उसको विद्रोह लिखते हैं। हमारे घर में कोई घुस रहा है और हम उसे घर में से निकालने की कोशिश कर रहें हैं और हमें अपराधी लिखा जा रहा है... आउट लॉ, जो गेज़ॅटियर हैं अंग्रेज़ों के, जो उनके इतिहास हैं, उनमें हमारे स्वतंत्रता सेनानियों का नाम अपराधी की तरह दर्ज हैं। और वो आज भी वेबसाइटों पर उपलब्ध हैं। मैं किसी वेबसाइट का नाम नहीं ले रहा। आपने कभी न कभी कोई न कोई ऐसी वेबसाइट ज़रूर देखी होगी। 1857 का ज़िक्र मैंने इसलिए किया, क्योंकि 1857 के प्रथम स्वतंत्रता संग्राम में मेरे ग्रेट ग्रांड फ़ादर...मेरे परपितामह को अंग्रेज़ों ने फाँसी दी थी। उनका नाम भी एक अपराधी की तरह दर्ज हैं गेज़ॅटियर में लेकिन हमें जब स्वतंत्रता मिली... इसके बाद अब वो स्वतंत्रता सेनानियों की तरह इतिहास में पढ़ाये जाते हैं बाबा देवकरण... चौधरी देवकरण सिंह।

Goa-Presentation-002.jpg

तो यह बातें ऐसी थी कि जिन्होंने हमें मज़बूर किया कि हम अपनी ये वेबसाइट बनाएँ। सारे विषयों को अपने तरीक़े से अपनी भाषा में उपलब्ध करायें, उसका कारण... जब आज़ादी की बात आ गयी तो मैं आपको बताऊँ... लॉर्ड माउंटबेटेन जब भारत को आज़ादी देने आये थे तो गांधीजी से उनका बार-बार एक ही सवाल होता था, क्या आप चला पायेंगे इस देश को जिस देश को दो सौ साल में अंग्रेज़ों ने तैयार किया है। ये सारी रेल की पटरियाँ, ये सारा विकास, ये सारा सिस्टम, हमारा दिया हुआ है। हम सारी दुनिया पर शासन करना जानते हैं, इसलिए भारत पर भी शासन कर रहे हैं... आपको कोई अनुभव नहीं है। आप विद्रोह तो कर सकते हैं, आप क्रांति कर सकते हैं, आन्दोलन चला सकते हैं, लेकिन भारत को चला सकते हैं? तो गांधीजी ने कहा था जैसा भी होगा ज़्यादा से ज़्यादा यह होगा कि हम अपने देश को बर्बाद कर देंगे। हम इसे नहीं चला पायेंगे, हमारे सिस्टम फेल हो जायेंगे, लेकिन चलाना हमें ही है। हम ही चलायेंगे जैसा भी चलायेंगे, आप जाइये।

तो इसलिए मेरा कहना आप से यही है कि हम उतने प्रोफ़ेशनल न सही... उतनी बड़ी हमें जानकारी न सही... जैसे भी कर रहे हैं बहुत सीमित साधनों में कर रहे हैं... तो अपनी वेबसाइट तो हम ही चलायेंगे... हम ही बनायेंगे। हम यह नहीं कर सकते, यह छूट नहीं दे सकते कि दूसरे हमें पढ़ायें कि हमारे भारत की संस्कृति क्या है... दूसरे हमें पढ़ायें कि हमारा इतिहास क्या है। इसलिए हमने यह वेबसाइट बनाई है।


भारतकोश पुस्तकालय

2006 में काम शुरू कर दिया था... ये पुस्तकालय है... हमारे घर में ही कार्यालय बना रखा है हमने। 2006 में ये टंकण, टाइपिंग वग़ैरा सब शुरू हो गया था, अनुवाद का कार्य शुरू हो गया था और उसके बाद... क्योंकि यह भारत का मामला था, बहुत विशाल, बहुत व्यापक तो इसलिए डर लगता था कि इतनी बड़ी वेबसाइट बना पायेंगे कि नहीं, बना पाएंगे तो अपने क्षेत्र... मैं मथुरा का रहने वाला हूँ... ब्रज का तो ब्रजडिस्कवरी एक वेबसाइट बना ली, वो बड़ी सफल रही। उसके बाद फिर हिम्मत आ गयी। फिर ये काम भारतकोश का शुरू कर दिया।


भारतकोश आँकड़े

यह भारतकोश के आँकड़े हैं- 20 हज़ार से ज़्यादा पृष्ठ हैं, आठ हज़ार से ज़्यादा लेख हैं, 3 हज़ार से ज़्यादा चित्र हैं[3] और आप वेबसाइट को देखेंगे तभी होगा ये मेरे प्रस्तुतीकरण से कोई नतीजा निकलने वाला नहीं है।

अनिता भटनागर जैन: सबको पता चल रहा है, आपके प्रस्तुतिकरण से लाभ हो रहा है।

आदित्य चौधरी: मैं उल्टा सीधा जो कुछ भी कह रहा हूँ मुझे तो पता नहीं। असल में सब बहुत सिस्टमेटिक तरीक़े से यहाँ अपना प्रस्तुतीकरण कर रहे थे मैं तो ऐसे कर रहा हूँ जैसे एक किसान का बेटा कर सकता है।

प्रांगणों की एक झलक
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जीवनी और साहित्य प्रांगण
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इतिहास प्रांगण
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भारत गणराज्य प्रांगण
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पर्यटन प्रांगण
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भाषा और लिपि प्रांगण
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विज्ञान, खेल, भूगोल के प्रांगण
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धर्म, दर्शन, कला और संस्कृति के प्रांगण

भारत कोश पर हमने छोटे सब-पोर्टल भी बना दिये। इन्हें हमने प्रांगण नाम भी दिया है। हिन्दी के विद्वान बतायेंगे कि इसका सही अनुवाद क्या है? इसमें हमने तमाम इतिहास की, भूगोल की एक तरह से 12-13 वेबसाइटें और जोड़ दी हैं। इन्हें आप देख सकते और इनके लक्ष्य भी हैं। इसमें चार सौ पन्ने इसी वर्ष हमें और जोड़ देने है... हमारी टीम इसमें और जोड़ देगी।

ये भारत गणराज्य का पोर्टल या प्रांगण है। इसमें भारत के राज्यों के बारे में उनके राष्ट्रीय चिह्न, उनकी राजनीति और इन सब चीजों के बारे में हमने दिया है। विस्तार में आप देख सकते हैं, पढ़ सकते हैं। और पांच सौ नये पन्ने का हमारा लक्ष्य इसी वर्ष में है।

यह पर्यटन है, पर्यटन में आप चाहें... अगर आप गोवा में नहीं घूमे हों तो अभी तक... तो आप भारत कोश पर ढूंढ सकते हैं गोवा को। आराम से... बहुत अच्छी जानकारी आपको गोवा के बारे में मिल जायेगी। मैं निश्चित रूप से कह सकता हूँ आपसे... इसमें भी तीन हज़ार पन्नों का लक्ष्य है इस वर्ष।

भाषा लिपि का मामला आ गया... भाषा लिपि के बारे में आप... इसमें आप हिन्दी को देखें। हिन्दी के बारे में आपको इस पर अच्छी जानकारी मिलेगी, कहाँ से इसका विकास हुआ। कैसे-कैसे इसकी वर्तनी बदली, कैसे-कैसे देवनागरी का विकास हुआ, आप देख सकते है इसमें। हिन्दी भाषा के सम्बन्ध में, मैं ये चाहता हूँ... हिन्दी संस्थान के साथ भारत कोश का एक भाई चारे का पुल जैसा बन जाये, एक औपचारिक जैसा कुछ ऐसा हो जाये जिससे कि काम वो भी वही कर रहे हैं हम भी वही कर रहे हैं। ऐसी बहुत सी चीजें हो सकती हैं जिससे हमें लाभ हो जाये। इसमें विचार करियेगा।

दूसरा यहाँ बात हो रही थी हिन्दी के शब्दों कि जैसे कि विजय जी ने कहा था। बहुत से शब्द ऐसे हैं जिनके बारे में विचार करना है। उन्हें ऐसे का ऐसे ही ले लिया जाये या उनका क्या किया जाये। उसके लिये मेरा कहना यही है कि अंग्रेज़ी की जो वॉकबलरी है, उसका जो शब्द कोश है वो विश्व में सबसे बड़ा शब्दकोश है, जहाँ तक मैं जानता हूँ। उसका कारण ये है कि वो सारी भाषाओं के शब्दों को अपनी डिक्शनरी में...वॉकबलरी में, जोड़ देते हैं, अभी जैसे पहले से बहुत से शब्द जुड़े हुए हैं मंत्र, गुरु, अवतार... अवतार तो फ़िल्म भी आ गई... अवतार हमारे हैं... फ़िल्म वो बना रहे हैं... तो अभी क़रीब 40-45 शब्द पिछ्ले साल और जोड़ दिये उन्होंने। जिनमें एक शब्द जोड़ा उन्होंने ‘जय हो’

उपस्थित श्रोतागण में से: धोती जोड़ा है, हर प्रांत में धोती का प्रयोग हो रहा है इसलिए उन्होंने जोड़ लिया है।

''आदित्य चौधरी: जी... आप भारतकोश पर संपादन का कार्य शुरू करिये

तो इस तरीक़े के बहुत से शब्द वो जोड़े ले रहे हैं। हम इसमें कभी-कभी संकोच कर रहे हैं। अब कुछ समस्या मेरे सामने आ जाती हैं इसमें... भारतकोश से संबंधित... उसके लिए तमाम डिक्शनरी कंसर्ल्ट करनी पड़ती है और समांतर कोश अरविन्द जी का... वो भी देखना पड़ता है लेकिन कुछ ऐसी दिक़्क़त हैं जिनके लिए मैं क्या करूँ ? जैसे- एक शब्द है अंग्रेज़ी में déjà vu... मैं इस हॉल में आया... मुझे ऐसा लगा कि पहले भी मैं कभी यहाँ आया हूँ। किसी को मैंने देखा, लगा कि मैंने पहले भी कहीं देखा है या शायद पहले भी कहीं देखा है... ये शायद पहले भी घटा है...। ये परिस्थिति... ये सिचुएशन जो है ये 'déjà vu' है। इसके लिए अंग्रेज़ी में कोई शब्द ही नहीं था। तो ये फ़्रेंच वर्ड इन्होंने... फ़्रांसीसी भाषा का शब्द déjà vu इन्होंने अंग्रेज़ी में ले लिया। इसका उल्टा है 'jamais vu'... jamais vu वो कि ये मैंने कभी नहीं देखा। एक वैज्ञानिक तथ्य ये है कि अगर किसी शब्द को हम 32 बार लिखें तो 33 वीं बार लिखने पर ग़लती होने की संभावना हो जाती है। आप 32 बार तक उसे लिखते रहें तब तक ये चलता रहता है। कारण ये है कि जैसे आप कार चलाते हैं, तो कहते हैं ना कि जब कार चलाना सीख जाता है उससे एक्सीडेंट होने की संभावना ज़्यादा होती है, ऐसे ही हमारे जो बहुत ज़्यादा देखे हुए चेहरे हैं उन्हें हम भूल जाते हैं। जैसे अपनी माँ का चेहरा। कोई भी दुनिया में ऐसा पेंटर नहीं है... ये मैं कोई अपनी कहीं बात नहीं कह रहा हूँ, मैं आपको एक वैज्ञानिक तथ्य बता रहा हूँ... कोई ऐसा पेंटर नहीं हैं दुनिया में जो बिना फ़ोटो देखे अपनी माँ का चित्र बना दे, क्योंकि माँ हमारे लिए कोई चेहरा है ही नहीं... वो इतना ज़्यादा अपना है। ये टर्म है jamais vu। इसकी हिन्दी क्या लिखूँ? हमें déjà vu और jamais vu जैसे जो बहुत से शब्द वे लेने ही लेने चाहिए हिन्दी में, इसमें दिक़्क़त क्या है... और ये अंग्रेज़ी तो नहीं, ये फ़्रासीसी है अगर ये अंग्रेज़ी भी हो तब भी क्या है...? तो यह बात मेरी है... हम इस तरह के प्रयोग भारत कोश पर अभी तक नहीं कर रहे हैं क्योंकि हमारी कोई बातचीत नहीं हुई... और मैं आपको मज़ेदार बात यह बताऊँ कि हमारे भारत कोश में कोई हिन्दी विद्वान नहीं है।

यह भूगोल, विज्ञान, खेल और प्रौद्योगिकी इसके सम्बन्ध में, कुछ दर्शन, संस्कृति और कला इसके पन्ने हैं। धर्म के सम्बन्ध में आप देख सकते हैं। आपको दर्शन तो शायद भारत कोश के अलावा और कहीं किसी वेबसाइट पर नहीं मिलेंगे। सांख्य दर्शन, वैशेषिक दर्शन इनको कौन पढ़ता, कौन देखता है चार्वाक को कौन देख रहा है। आप देखें, यह आपको भारत कोश पर मिलेंगे। और जोड़े जा रहे हैं, उसमें आप अपने सुझाव दे सकते हैं, ये जोड़ो - वो जोड़ो, हम कर सकते हैं। इसका 3500 नये पन्नों का लक्ष्य है।


भारत कोश पर संपादन की सुविधा उपलब्ध है। भारत कोश पर कुछ विशेष क्षेत्रों पर संपादन कर पाएँ और उनके संपादन को कोई और दूसरा छेड़े नहीं, यह व्यवस्था हम कर सकते हैं, अगर हमारा सामंजस्य इस तरीक़े का हिन्दी संस्थान के साथ बन जाता है। शिक्षा के सम्बन्ध में बहुत शुभ समाचार मैं आपको देना चाहता हूँ। अभी यहाँ कई बार ज़िक्र चला था कि हिन्दी को हमें बचाना हैं, हिन्दी ख़त्म हो रही है, यह ग़लत बात है, इस तरह की बातें हैं ऐसा कुछ भी नहीं। हिन्दी रोज़ाना बढ़ रही है उसका सबूत मैं आपको दे रहा हूँ।

संपादन और शिक्षा

यहाँ आई.आई टी. के बैठे हुए है आप, अभी जो 2009 में हिन्दी भाषी क्षेत्रों से लगभग 4,800 छात्रों ने आई.आई टी. पास किया हैं परीक्षा उत्तीर्ण की, उनमें 184 छात्रों ने हिन्दी माध्यम चुना। लेकिन अगले साल कमाल हो गया, अगले साल कमाल यह हुआ कि यह संख्या 3 गुनी बढ़ गई, 554 हो गई। 4 प्रतिशत से 11 प्रतिशत पर पहुँच गई। एक साल में 3-3 गुने बढ़ रहे हैं। अरे 200 साल अंग्रेज़ी थोपी गई है हमारे ऊपर 200 साल। तो कुछ समय दीजिए दुबारा से हिन्दी को आने का, हिन्दी आएगी, आ रही है, और छा जाएगी। लेकिन, कुछ छोटी-छोटी चीज़ें हमें शायद सरकार की भी तरफ से करनी पड़े। मेरा यह सुझाव है जैसे मान लीजिए, यह बोतल इसमें अंग्रेज़ी में लिखा हुआ है, हमें चीज़े ऐसी चुननी पड़ेंगी जिनका सीधा सम्बन्ध है हमसे, जैसे यह बोतल है जिस पर अंग्रेज़ी में लिखा हुआ है। यह सब कुछ हिन्दी में होना चाहिए ऊपर या कोंकणी में हो, यहाँ की भाषा में, या बंगाली में हो मद्रासी में हो, कहीं की भाषा में हो। लेकिन नीचे वो हो अंग्रेज़ी फिर सब जब इसी नाम से मांगेंगे। उन्हें वॉशिंग मशीन हिन्दी नाम से मिलेगी। उन्हें टी.वी. हिन्दी के नाम से मिलेगा, उन्हें ये सब हिन्दी के नाम से मिलेगा। तो ज़ल्दी फैलाव होगा यह सब। भारत कोश पर हमने सामान्य ज्ञान की भी सुविधा शुरू कर दी है, सामान्य ज्ञान में जो वस्तुनिष्ठ प्रश्न होते हैं उनकी प्रश्नावलियाँ बना दी जिससे कि जो छात्र हैं, उनको सुविधा मिले। जो कॉम्पटीशन में जाते हैं, जो आई.ए.एस. का एग्जाम देने जाते हैं, जो बैकों में एग्जाम देने जाते हैं, जो इस तरह की परीक्षा देने जाते हैं। उन्हें तमाम किताबें मोटी-मोटी जो तीन-तीन चार-चार हज़ार रुपये के वॉल्यूम आते हैं और जो महंगी कोचिंग होती है, उससे हम निजात लेना चाहते हैं। जल्दी ऐसी कोशिश हमारी होगी। हमें अगर कहीं से प्रोत्साहन मिलता है तो हमारी तेजी बढ़ जायेगी काम करने की। वरना हमारी जो मिश्री देवी हैं उन्हीं की तरह हम कर रहे हैं।

तुलना एवं खोज विकल्प

"गूगल बैंच मार्क" में हम सबसे आगे चल रहे हैं। यह अच्छी खबर है, और तुलना में हम सबसे आगे हैं। खोज के तमाम विकल्प दे रखे हैं। आप किस-किस तरीक़े से एक्सॅस कर सकते हैं वेबसाइट को। वेबसाइट पर आप देखें तो ज़्यादा आपको अच्छा लगेगा।


भारतडिस्कवरी का लक्ष्य

ये हमारे लक्ष्य हैं इस वर्ष के। एक तो इंटरनेट के माध्यम से हम प्रचार- प्रसार करना चाह रहे हैं। दूसरा ये कि वर्ड टू वर्ड इसका उदाहरण दिया है आपको जो चीज बहुत क़रीब होती है। आज हमारे सबसे ज़्यादा क़रीब मोबाइल फ़ोन है और मोबाइल फ़ोन के प्रचार-प्रसार के लिए कहीं कोई संगोष्ठी भी नहीं करना पड़ती। रिक्शा वालों के पास भी, मजदूरों के पास भी, मोबाइल फ़ोन सबके पास है। तो हिन्दी का प्रचार मोबाइल फ़ोन के माध्यम से करने का लक्ष्य हमारा है। मुझे वो सबसे ज़्यादा सही लगा। मैनें जिससे भी चर्चा की, उसे यह बात बहुत सही लगी। मोबाइल फ़ोन से हम हिन्दी का बहुत सही तरीक़े से प्रचार-प्रसार कर सकते हैं। और भारत डिस्कवरी के जो विषय हैं, जिसमें हम भारतकोश बनाये हुए हैं। उसमें भारत की सारी भाषाओं के ज्ञान कोश बनाने का हमारा इरादा है। सारी भाषाएं जितनी भी हैं। जिनमें यूनीकोड उपलब्ध है जैसा आप ने बताया कि यूनीकोड का प्रचार-प्रसार होना चाहिए, तो यूनीकोड जिसमें उपलब्ध है जिस भाषा के लिए और नहीं होगा तो कोशिश करेंगे उपलब्ध कराने की। तो हम इस लक्ष्य को लेकर के चल रहे हैं। और भारत के 6,38,365 गाँव की जानकारी मुझे है। उन सभी का अपना पन्ना भारत कोश पर होगा। ये जनगणना का कार्यक्रम अभी समाप्त हुआ जा रहा है तो मेरे ख्याल से अगस्त- सितम्बर, से अपना काम शुरू कर देंगे और दिसम्बर तक कुछ न कुछ बढ़िया कर दिखायेंगे। इसमें थोड़ा सा यह है कि सरकार से कुछ हमें अगर जानकारियाँ मिल जाती हैं, अगर कुछ प्रोत्साहन मिलता है, यह सब कुछ मिलता तो हमारा काम बहुत जल्दी और बढ़िया तरीक़े से हो जाएगा। हर गांव का पन्ना जिसे आप ग्राम स्तर पर ही, तहसील स्तर पर, आप उसे संपादित कर सकते हैं। अपने गांव का फोटो खीचों और उसी समय अपलोड कर दो। कोई रोकने टोकने वाला नहीं है। इसमें चाहे तो सरकार हर ज़िले स्तर पर या तहसील स्तर पर कोई अधिकारी नियुक्त कर सकते हैं जिसके पास हम अपना विशेष पासवर्ड दे सकते हैं, वो उसे ऐडिट कराले या गांव का जो सेक्रेटरी (सचिव) है वो कितना इंटरनेट जानता है वो मैं नहीं जानता लेकिन कुछ न कुछ होकर रहेगा।


भारत कोश टीम

यह भारत कोश टीम है, यहाँ वीडियो रिकॉर्ड़िग हो रही है। ये 18-18, 20-20 साल के लोग है। बच्चे हैं छोटे, मैं चाहता हूँ कि इनके योगदान के लिए एक बार आप ताली बजा दें। यह वीडियो रिकॉर्डिग देखेंगे तो खुश हो जाएंगे। हम जो कुछ भी देते हैं उसे ये छात्रवति कहते है क्योंकि यह आधे वक़्त पढ़ाई करते और आधे वक़्त भारत कोश पर काम करते हैं। भारत कोश के बारे में, मैं जितना कह चुका, जितना कहना चाहा था उतना लगभग मैं कह चुका। बस एक बात, एक बात और कहना चाहूगा कि जैसे नेताजी सुभाष चन्द्र बोस ने कहा था कि तुम मुझे ख़ून दो मैं तुम्हें आज़ादी दूँगा। मैं कह रहा हूँ कि तुम मुझे बूंद दो, मैं तुम्हें महासागर दूँगा। मैं खून की बूंद नहीं मांग रहा, ये मैं शब्दों की बूंद मांग रहा हूँ। छोटे-छोटे संपादन, कहीं आपको लगे कि भारत कोश में अर्द्ध विराम की कमी है, तो लगा दीजिए, कहीं नुक्ता नहीं है तो लगा दीजिए या बता दीजिए।

यह ज्ञान का हिन्दी महासागर है। आप लोग इसको आगे बढ़ायें मेरे ख्याल में आज के ज़माने में ये सन् 2011 में हमारे लिए कितनी शर्म की बात है, कि हमारी अपनी ऐसी वेबसाइट नहीं हैं जिसमें भारत की सारी जानकारी हासिल हो।

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और फिर क्या-क्या काम हो रहे हैं, भारत कोश पर यह बताऊँ आपको, विदेशों में करवाचौथ के प्रिंटआउट को निकाल कर दीवार पर लगा के फिर उसमें से कथा पढ़ते हैं, करवाचौथ की, फिर पूजा होती है। अहोई अष्टमी का व्रत रखा जा रहा है, फोटो देख कर ये सचमुच हुआ मुझे बताया तो मुझे बड़ा आश्चर्य हुआ और अभी हमारे ऑफ़िस में ही एक है वेबडिजाइनर उन्होंने अपने दोस्त को बताया कि इस पर हमने सामान्य ज्ञान का नया-नया शुरू किया है। इसे ज़रा करके देखो तो वहाँ छात्रों ने शुरू कर दिया अपने-अपने कम्प्यूटर पर। उनके टीचर आये वो बड़े नाराज़ हो गये। कम्प्यूटर की क्लास कर रहे हो कि वेबसाइट खोल कर बैठे हुए हो। जब वो स्टाफ़ रूम में बच्चे उनसे कुछ पूछने पहुँचे तो पता चला कि वो भी सामान्य ज्ञान की प्रश्नोत्तरी हल कर रहे हैं हमारी वेबसाइट पर। दो दिन बाद उन्होंने बताया कि रात को मैं यह करता हूँ। तो ऐसी बातें हैं आगे आने वाली जिसके लिए हम कुछ कर जाएँ तो यह अच्छा रहेगा। आपका इतना समय मैं लिया मेरे ख्याल में जितना मुझे सुबह बताया उससे ज़्यादा ही खींच लिया। और एक बात की मैं यहाँ तारीफ़ करना चाहूँगा अनीता जी की, कि अभी आपके डॉ. साहब यहाँ बैठे थे जो उन्होंने उसमें कहा था अपने भाषण में कहा था शायद ही कोई हिन्दी यहाँ पूरी एक साथ बोले, विजय जी ने भी कहा था। लेकिन जब किसी बात पर शायद चौंके आपने खड़े होकर सारी बातें शुरू की थीं वो पूरा जितना भी वक़्त यहाँ लिया खड़ा हो के, वो पूरा हिन्दी था। उसमें केवल एक शब्द अंग्रेज़ी का आया था रिपोर्ट।

अनीता भटनागर- रिपोर्ट को तो हिन्दी में सम्मिलित कर चुके हैं

.... बहुत-बहुत धन्यवाद



टीका टिप्पणी और संदर्भ

  1. यह 10 जनवरी 2011 से पहले की स्थिति थी आज यह 1,94,101 और 62,237 है।
  2. संयुक्त सचिव मानव संसाधन मंत्रालय भारत सरकार
  3. यह 10 जनवरी 2011 से पहले की स्थिति थी आज यह 1,94,101 और 62,237 है।

प्रस्तुतिकरण का विडियो

प्रथम भाग

द्वितीय भाग

तृतीय भाग


टीका टिप्पणी और संदर्भ


बाहरी कड़ियाँ

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