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[[चित्र:Makhan.jpg|300px|right|thumb|माखन]]
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'''अभिप्रेरण''' ([[अंग्रेज़ी]]: ''Motivation'') का अर्थ है, किसी व्यक्ति के लक्ष्योन्मुख (goal-oriented) व्यवहार को सक्रिय या उर्जान्वित करना है। अभिप्रेरण दो तरह का होता है - आन्तरिक (intrinsic) या वाह्य (extrinsic)। अभिप्रेरण के बहुत से सिद्धान्त है। हमारे व्यवहार किसी-न-किसी आवश्यकता की पूर्ति के लिए होते है। हम जो कुछ करते है उनके पीछे कोई न कोई प्रयोजन होता है। अभिप्रेरण हमारे सभी कार्यों का आवश्यक आधार है। हमारी शारीरिक और मानसिक आवश्यकताएँ अभिप्रेरण के रूप में हमारे विभिन्न प्रकार के व्यवहारों को प्रेरित करती है।
'''माखन''' अथवा 'मक्खन' एक दुग्ध-उत्पाद है, जिसे ताजा [[दही]], खमीरीकृत क्रीम या [[दूध]] को मथ कर बनाया जाता है। [[हिन्दी]] में इसे 'दधिज' या 'माखन' भी कहा जाता है। यह दूध, दही आदि को मथकर उसमें से निकाला जाने वाला एक प्रसिद्ध स्निग्ध सार पदार्थ है। जिसे तपाकर [[घी]] बनाया जाता है। माखन और [[मिश्री]] [[श्रीकृष्ण|भगवान श्रीकृष्ण]] को सबसे प्रिय माना जाता है।
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==बनाने की विधि==
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अभिप्रेरण के विकास में मूल कारण हमारी शारीरिक आवश्यकताएँ, जैसे भूख और प्यास, होती है। लेकिन आयु और अनुभव में वृद्धि के साथ-साथ हमारी शारीरिक आवश्यकताएँ सामाजिक और सांस्कृतिक अर्थ ग्रहण कर लेती है। इनके साथ हमारे भावों और विचारों, रुचियों और अभिवृत्तियों का संबंध हो जाता है। इस प्रकार अभिप्रेरण का आरंभ में जो पार्थिव आधार था वह कालांतर में [[आयु]] और अनुभव में वृद्धि के फलस्वरूप सामाजिक और सांस्कृतिक रूप धारण कर लेता है। पशु जगत में अभिप्रेरण का मूल आधार शारीरिक आवश्यकताएँ होती है। लेकिन मानवजगत में सामाजिक और सांस्कृतिक परिस्थितियाँ अभिप्रेरण का स्रोत बन जाती है।
[[दूध]] उबाल कर ठंडा होने के बाद उसको फ्रिज में रख दिया जाता है। दूध के ठंडे होने पर उसके ऊपर मलाई की मोटी परत बन जाती है। [[दूध]] से इस मलाई को निकालकर किसी प्याले या डिब्बे में रख दिया जाता है। मलाई भरे प्याले को ढक कर फ्रीजर में रख दिया जाता है। इस तरह मलाई एकत्रित होने पर एक [[सप्ताह]] या 10 दिन में या जब प्याला भर जाये या जब भी आप माखन निकालना चाहें, तब 4-5 घंटे पहले मलाई के प्याले को फ्रीजर से निकाल कर बाहर रख दिया जाता है। मलाई को कमरे के [[तापमान]] पर आने के बाद मिक्सर के बड़े जार या फूड प्रोसेसर के बड़े जार में डालिये। 4 कप मलाई में, [[गर्मी]] के दिन में 1/2 या 1 कप ठंडा पानी डाल दीजिये। मिक्सी चलाइये कुछ ही मिनिट में माखन ऊपर जमा हो जाता है और [[मठ्ठा]] मिक्सर में नीचे रह जाता है। अगर ऐसा न हो तो मिक्सी को और चलाइये, माखन ऊपर इकठ्ठा हो जाने पर, मिक्सी बन्द कर दीजिये। मठ्ठे में थोड़ा सा [[दही]] डालकर रख दिया जाये तो बिल्कुल दही की तरह खट्टा होकर जम जाता है। उसे कढ़ी या सब्जी बनाने के काम में लिया जा सकता है।<ref name="घर में माखन बनायें">{{cite web |url=http://nishamadhulika.com/592-how-to-make-home-made-butter.html |title=माखन |accessmonthday=1 जून |accessyear= 2016|last= |first= |authorlink= |format= |publisher=निशामधुलिका|language=हिंदी}}</ref>
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==प्रकार==
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==== आवश्यक अंग ====
'''भैंस के दूध का माखन''' - भैंस के दूध का माखन वात तथा कफ कारक, भारी और दाह, पित्त तथा थकावट को दूर करने वाला है और मेढ़ तथा वीर्य बढ़ाने वाला होता है।<br />
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अभिप्रेरण का आवश्यक अंग प्रयोजन (मोटिव) है। वस्तुत: प्रयोजन के क्रियात्मक रूप (फ़ेनामेनन) को ही अभिप्रेरण कहते है। प्रयोजन कई प्रकार के होते है, लेकिन स्थूल रूप से उन्हें शारीरिक और मनोवैज्ञानिक कोटियों में बाँट सकते है। अवगम (लर्निग) द्वारा प्रयोजन में संशोधन होता है। बालक की शिक्षा-दीक्षा उसके शारीरिक प्रयोजनों को वांछित सामाजिक और सांस्कृतिक प्रयोजनों का रूप प्रदान करती है। इन्हीं प्रयोजनों के आधार पर किसी व्यक्ति का अभिप्रेरण बनता है। यह कथन ठीक है कि बिना प्रयोजनों के अभिप्रेरण का अस्तित्त्व ही नहीं होता। व्यक्ति किस दिशा में, किस सीमा तक, कितनी शक्ति के साथ प्रयास करेगा, रुचि लेगा और प्रेरित होगा, यह उसके प्रयोजनों पर निर्भर है। अभिप्रेरण में व्यक्ति के विभिन्न प्रयोजन क्रियाशील होकर उसके कार्यों और व्यवहारों को दिशा प्रदान करते है। अभिप्रेरण का संबंध व्यक्ति के जीवनमूल्यों और विश्वासों से भी होता है। व्यक्ति ज्यों-ज्यों विकसित होता है त्यों-त्यों वह अपने जीवनमूल्यों और विश्वासों में अभिप्रेरित होता है। शिक्षा द्वारा व्यक्ति में वांछित जीवनमूल्यों और विश्वासों के प्रति सम्मान पैदा किया जाता है। यही जीवनमूल्य और विश्वास व्यक्ति के अभिप्रेरण के आवश्यक अंग बन जाते है। इस प्रकार अभिप्रेरण शारीरिक और मानसिक प्रयोजनों का क्रियाशील रूप है। इसका सामाजिक और सांस्कृतिक आधार होता है और इसमें व्यक्ति के जीवनमूल्यों और विश्वासों का महत्वपूर्ण स्थान है।<ref>सं.ग्रं.---यंग : मोटिवेशन ऑव बिहेवियर; मैक्लैंड : स्टडीज इन मोटिवेशन; मैसलो : मोटिवेशन ऐंड पर्सनालिटी।</ref><ref>{{cite web |url=http://bharatkhoj.org/india/%E0%A4%85%E0%A4%AD%E0%A4%BF%E0%A4%AA%E0%A5%8D%E0%A4%B0%E0%A5%87%E0%A4%B0%E0%A4%A3 |title=अभिप्रेरण|accessmonthday=09 फरवरी |accessyear=2017 |last= |first= |authorlink= |format= |publisher=भारतखोज |language= हिंदी}}</ref>
'''ताजा माखन''' - ताजा माखन मधुर, ग्राही, शीतल, हलका, नेत्रों को हितकारी, रक्त पित्त नाशक, तनिक कसैला और तनिक अम्ल रसयुक्त (खट्टा) होता है।<br />
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'''बासी माखन''' - खारा, चटपटा और खट्टा हो जाने से वमन, बवासीर, चर्म रोग, कफ प्रकोप, भारी और मोटापा करने वाला होता है अतः बासी माखन सेवन योग्य नहीं।<ref name="माखन से बने मुलायम और मजबूत">{{cite web |url=http://hindi.webdunia.com/healthy-food/%E0%A4%AE%E0%A4%95%E0%A5%8D%E0%A4%96%E0%A4%A8-%E0%A4%B8%E0%A5%87-%E0%A4%AC%E0%A4%A8%E0%A5%87-%E0%A4%AE%E0%A5%81%E0%A4%B2%E0%A4%BE%E0%A4%AF%E0%A4%AE-%E0%A4%94%E0%A4%B0-%E0%A4%AE%E0%A4%9C%E0%A4%AC%E0%A5%82%E0%A4%A4-108111500045_1.htm |title=माखन |accessmonthday=1 जून |accessyear= 2016|last= |first= |authorlink= |format= |publisher=webduniya|language=हिंदी}}</ref>
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==माखन सेवन के लाभ==
 
;आँखों के लिये
 
[[आंख|आंखों]] में जलन हो रही हो या फिर दर्द [[गाय]] के दूध से बने माखन को आंखों पर लगाने से आंखों की जलन शांत हो जाती है। और आंखों को राहत भी मिलती है।
 
;बुखार में राहत
 
यदि बुखार की समस्या हो या पुराना बुखार हो तो एैसे में माखन खाने से फायदा मिलता है या फिर माखन में [[शहद]] मिलाकर खाने से भी बुखार में राहत मिलती है।
 
;दिल संबंधी रोग
 
दिल संबंधी बीमारीयों के लिए माखन फायदेमंद होता है। हाल ही में हुए एक शोध में यह बात सामने आई है कि माखन खाने से दिल की बीमारी का खतरा कम रहता है। जिसके कारण हार्ट अटैक की संभावना कम हो जाती है। माखन में विटामिन ए, डी और के,  के अलावा सेलेनियम और आयोडीन जैसे तत्व होते हैं जो दिल को बीमारीयों से बचाते हैं।
 
;थायराइड में माखन से लाभ
 
माखन में [[विटामिन ए]] और आयोडीन की प्रचूर मात्रा होती है जिस वजह से यह थायराइड ग्लैंड में हो रही समस्या को दूर करता है। थायराइड के मरीजों को नियमित रूप से माखन का सेवन करते रहना चाहिए।
 
;हड्डियों के लिए
 
माखन में कैल्शियम और विटामिन्स के साथ मिनिरल्स भी पूरी मात्रा में रहते हैं जो हड्डियों को मजबूत और शक्तिशाली बनाते हैं। जो लोग आस्टियोपोरोसि की समस्या से परेशान हों वे माखन का सेवन जरूर करें। माखन दांतों को भी मजबूत बनाता है।
 
;कैंसर से दूर रखे
 
कैंसर से बचने के लिए माखन का सेवन जरूर करना चाहिए। माखन में फैटी एसिड कौंजुलेटेड लिनोलेक होता है जो शरीर को कैंसर से बचाता है। जो लोग नियमित माखन का सेवन करते हैं उनको कैंसर की संभावन बेहद कम रहती है।
 
;टेंशन दूर करता है
 
जब भी टेंशन हो या आपका मूड खराब हो तो माखन का सेवन करें। माखन में मौजूद सेलीनियम दिमाग की नसों में जाकर काम करता है और उसे बेहतर बनाता है।
 
;त्वचा के लिये
 
माखन एंटीआक्सीडेंट युक्त होता है जो त्वचा सबंधी परेशानियों को दूर करता है। माखन को चेहरे पर लगाने से त्वचा में निखार आता है और दाग धब्बे भी धीरे-धीरे साफ होने लगते हैं।
 
;दमा
 
जिन लोगों को दमे की समस्या हो वे भी माखन का सेवन करें। माखन में पौष्टिक गुण होते हैं जो फेफड़ों की तकलीफ को दूर करते हैं। जिस वजह से दमा के रोगी ठीक रहते हैं।
 
;प्रजनन क्षमता
 
पुरूषों के लिए माखन बेहद फायदेमंद होता है क्योंकि यह शरीर में गर्मी को बढ़ाता है जिससे पुरूषों में मेल और फीमेल हार्मोन्स बढ़ते हैं। प्रजनन क्षमता को बढ़ाने के लिए माखन का सेवन जरूर करें।
 
;बवासीर
 
बवासीर यानी पाइल्स से ग्रसित लोगों को गाय के दूध से बने माखन में तिलों का मिलाकर रोज खाना चाहिए। या [[शहद]] व खड़ी [[शक्कर]] को माखन के साथ मिलाकर सेवन करना चाहिए। यह खूनी बवासीर को ठीक कर देती है।<ref name="माखन के फायदे व गुण">{{cite web |url=http://www.vedicvatica.com/makhan-ke-fayde/301 |title=माखन |accessmonthday=1 जून |accessyear= 2016|last= |first= |authorlink= |format= |publisher=vedicvatica|language=हिंदी}}</ref>
 
==श्रीकृष्ण को प्रिय==
 
जब भी [[श्रीकृष्ण|भगवान श्रीकृष्ण]] के जीवन चरित्र का ध्यान किया जाता है, तो उनका बाल रूप मन को आंनद और प्रेम से भर देता है। खासतौर पर बालगोपाल द्वारा माखन खाने का प्रसंग मन में वात्सल्य भाव पैदा करता है। इस चर्चा में माखन के साथ मिश्री का भी वर्णन आता है। वास्तव में बालकृष्ण के माखन के साथ मिश्री खाने के पीछे व्यावहारिक संदेश है। भगवान श्रीकृष्ण ने पूरे जीवन हर रिश्ते के प्रति प्रेम और समर्पण से सभी का मन मोह लिया। इसी कारण वह मन को मोहने वाले '''मनमोहन''' नाम से भी प्रसिद्ध हुए।
 
==माखन संग मिश्री==
 
जहां तक मिश्री को माखन के साथ खाने की बात है, तो इसका अर्थ यह है कि माखन जीवन और व्यवहार में प्रेम को अपनाने का संदेश देता है। लेकिन माखन का स्वाद फीका भी होता है। उसके साथ मीठी मिश्री खाने का अर्थ है कि जीवन में प्रेम को अपनाएँ, लेकिन वह प्रेम फीका यानि दिखावे से भरा न हो, बल्कि वह प्रेम में भावना और समर्पण की मिठास से भरा हो। ऐसा होने पर ही जीवन के वास्तविक आनंद और सुख पाया जा सकता है। यही है माखन संग मिश्री के मीठे संयोग का अर्थ।<ref name="श्रीराजीव दीक्षित">{{cite web |url=http://religion.bhaskar.com/news/rochak-baatein-mishri-1320220.html |title=माखन |accessmonthday=1 मई |accessyear= 2016|last= |first= |authorlink= |format= |publisher=जीवन मंत्र|language=हिंदी}}</ref>
 
;मुहावरे के रूप में प्रयोग
 
हिन्दी व्याकरण में 'माखन' शब्द का प्रयोग मुहावरे के रूप में भी किया जाता है। इससे सम्बंधित मुहावरा 'मक्खन लगाना' है, जिसका शाब्दिक अर्थ है- किसी को मक्खन लगाना बहुत अधिक चापलूसी करना।
 
  
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==टीका टिप्पणी और संदर्भ==
 
==टीका टिप्पणी और संदर्भ==
 
<references/>
 
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==संबंधित लेख==
 
==संबंधित लेख==
{{खान-पान}}
 
[[Category:खान पान]]
 
 
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11:01, 9 फ़रवरी 2017 के समय का अवतरण

अभिप्रेरण (अंग्रेज़ी: Motivation) का अर्थ है, किसी व्यक्ति के लक्ष्योन्मुख (goal-oriented) व्यवहार को सक्रिय या उर्जान्वित करना है। अभिप्रेरण दो तरह का होता है - आन्तरिक (intrinsic) या वाह्य (extrinsic)। अभिप्रेरण के बहुत से सिद्धान्त है। हमारे व्यवहार किसी-न-किसी आवश्यकता की पूर्ति के लिए होते है। हम जो कुछ करते है उनके पीछे कोई न कोई प्रयोजन होता है। अभिप्रेरण हमारे सभी कार्यों का आवश्यक आधार है। हमारी शारीरिक और मानसिक आवश्यकताएँ अभिप्रेरण के रूप में हमारे विभिन्न प्रकार के व्यवहारों को प्रेरित करती है।

अभिप्रेरण के विकास में मूल कारण हमारी शारीरिक आवश्यकताएँ, जैसे भूख और प्यास, होती है। लेकिन आयु और अनुभव में वृद्धि के साथ-साथ हमारी शारीरिक आवश्यकताएँ सामाजिक और सांस्कृतिक अर्थ ग्रहण कर लेती है। इनके साथ हमारे भावों और विचारों, रुचियों और अभिवृत्तियों का संबंध हो जाता है। इस प्रकार अभिप्रेरण का आरंभ में जो पार्थिव आधार था वह कालांतर में आयु और अनुभव में वृद्धि के फलस्वरूप सामाजिक और सांस्कृतिक रूप धारण कर लेता है। पशु जगत में अभिप्रेरण का मूल आधार शारीरिक आवश्यकताएँ होती है। लेकिन मानवजगत में सामाजिक और सांस्कृतिक परिस्थितियाँ अभिप्रेरण का स्रोत बन जाती है।

आवश्यक अंग

अभिप्रेरण का आवश्यक अंग प्रयोजन (मोटिव) है। वस्तुत: प्रयोजन के क्रियात्मक रूप (फ़ेनामेनन) को ही अभिप्रेरण कहते है। प्रयोजन कई प्रकार के होते है, लेकिन स्थूल रूप से उन्हें शारीरिक और मनोवैज्ञानिक कोटियों में बाँट सकते है। अवगम (लर्निग) द्वारा प्रयोजन में संशोधन होता है। बालक की शिक्षा-दीक्षा उसके शारीरिक प्रयोजनों को वांछित सामाजिक और सांस्कृतिक प्रयोजनों का रूप प्रदान करती है। इन्हीं प्रयोजनों के आधार पर किसी व्यक्ति का अभिप्रेरण बनता है। यह कथन ठीक है कि बिना प्रयोजनों के अभिप्रेरण का अस्तित्त्व ही नहीं होता। व्यक्ति किस दिशा में, किस सीमा तक, कितनी शक्ति के साथ प्रयास करेगा, रुचि लेगा और प्रेरित होगा, यह उसके प्रयोजनों पर निर्भर है। अभिप्रेरण में व्यक्ति के विभिन्न प्रयोजन क्रियाशील होकर उसके कार्यों और व्यवहारों को दिशा प्रदान करते है। अभिप्रेरण का संबंध व्यक्ति के जीवनमूल्यों और विश्वासों से भी होता है। व्यक्ति ज्यों-ज्यों विकसित होता है त्यों-त्यों वह अपने जीवनमूल्यों और विश्वासों में अभिप्रेरित होता है। शिक्षा द्वारा व्यक्ति में वांछित जीवनमूल्यों और विश्वासों के प्रति सम्मान पैदा किया जाता है। यही जीवनमूल्य और विश्वास व्यक्ति के अभिप्रेरण के आवश्यक अंग बन जाते है। इस प्रकार अभिप्रेरण शारीरिक और मानसिक प्रयोजनों का क्रियाशील रूप है। इसका सामाजिक और सांस्कृतिक आधार होता है और इसमें व्यक्ति के जीवनमूल्यों और विश्वासों का महत्वपूर्ण स्थान है।[1][2]


टीका टिप्पणी और संदर्भ

  1. सं.ग्रं.---यंग : मोटिवेशन ऑव बिहेवियर; मैक्लैंड : स्टडीज इन मोटिवेशन; मैसलो : मोटिवेशन ऐंड पर्सनालिटी।
  2. अभिप्रेरण (हिंदी) भारतखोज। अभिगमन तिथि: 09 फरवरी, 2017।

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