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{दानवीर [[कर्ण]] का अंतिम दान क्या था?
 
|type="()"}
 
-सोने का कवच
 
+सोने का दाँत
 
-सोने के कुण्डल
 
-सोने के सिक्के
 
||[[कर्ण]] [[महाभारत]] के प्रसिद्ध योद्धा, [[अर्जुन]] का प्रतिद्वंदी और युद्ध के अंतिम दिनों में [[कौरव|कौरवों]] की सेना का सेनापति था। कर्ण [[कुंती]] के कुमारी अवस्था में उत्पन्न हुआ था। जब कर्ण रणक्षेत्र में घायल पड़ा था तब अर्जुन और [[श्रीकृष्ण]] दोनों ब्राह्मण के रूप में उसके पास पहुँचे। घायल होने के बाद भी कर्ण ने ब्राह्मणों को प्रणाम किया और वहाँ आने का उद्देश्य पूछा। श्रीकृष्ण बोले- 'राजन! आपकी जय हो। हम यहाँ भिक्षा लेने आए हैं। कृपया हमारी इच्छा पूर्ण करें।' कर्ण थोड़ा लज्जित होकर बोला- 'ब्राह्मण देव! मैं रणक्षेत्र में घायल पड़ा हूँ। मेरे सभी सैनिक मारे जा चुके हैं। मृत्यु मेरी प्रतीक्षा कर रही है। इस अवस्था में भला मैं आपको क्या दे सकता हूँ?' इससे ब्राह्मण निराश होकर लौटने लगे। तब कर्ण ने अपने दो सोने के दाँतों को निकट पड़े पत्थर से तोड़ा और बोले- 'ब्राह्मण देव! मैंने सर्वदा स्वर्ण (सोने) का ही दान किया है। इसलिए आप इन स्वर्णयुक्त दाँतों को स्वीकार करें।'{{point}}अधिक जानकारी के लिए देखें:- [[कर्ण]]
 
  
{[[महाभारत|महाभारत युद्ध]] के पश्चात जो महारथी जीवित बचे उनकी संख्या कितनी थी?
 
|type="()"}
 
+18
 
-20
 
-17
 
-19
 
||[[महाभारत]] [[हिन्दू|हिन्दुओं]] का प्रमुख काव्य [[ग्रंथ]] है, जो [[हिन्दू धर्म]] के उन धर्म-ग्रन्थों का समूह है, जिनकी मान्यता श्रुति से नीची श्रेणी की हैं और जो मानवों द्वारा उत्पन्न थे। कभी-कभी सिर्फ़ 'भारत' कहा जाने वाला यह काव्य-ग्रंथ [[भारत]] का अनुपम, धार्मिक, पौराणिक, ऐतिहासिक और दार्शनिक ग्रंथ है। यह हिन्दू धर्म के मुख्यतम ग्रंथों में से एक है। यह विश्व का सबसे लंबा साहित्यिक ग्रंथ है, हालाँकि इसे [[साहित्य]] की सबसे अनुपम कृतियों में से एक माना जाता है, किन्तु आज भी यह प्रत्येक भारतीय के लिये एक अनुकरणीय स्रोत है।{{point}}अधिक जानकारी के लिए देखें:- [[महाभारत]]
 
 
 
{निम्नलिखित में से कौन [[जरासंध]] का बहनोई था?
 
|type="()"}
 
-[[अक्रूर]]
 
+[[कंस]]
 
-[[चाणूर]]
 
-[[कालयवन]]
 
||[[पुराण|पुराणों]] के अनुसार [[कंस]] [[वृष्णि संघ|अन्धक-वृष्णि]] संघ के गण मुख्य [[उग्रसेन राजा|उग्रसेन]] का पुत्र था। इसमें स्वच्छन्द शासकीय या अधिनायकवादी प्रवृत्तियाँ जागृत हुई और पिता को अपदस्थ करके वह स्वयं राजा बन बैठा। अपनी निरंकुश प्रवृत्तियों के कारण कंस का चित्रण राक्षस के रूप में हुआ है। कंस की शक्ति का प्रधान कारण यह था कि उसे [[आर्यावर्त]] के तत्कालीन सर्वप्रतापी राजा [[जरासंध]] का सहारा प्राप्त था। वह जरासंध पौरव वंश का था और [[मगध]] के विशाल साम्राज्य का शासक था। उसने अनेक प्रदेशों के राजाओं से मैत्री-संबंध स्थापित कर लिये थे, जिनके द्वारा उसे अपनी शक्ति बढ़ाने में बड़ी सहायता मिली। कंस को जरासंध ने '[[अस्ति]]' और 'प्राप्ति' नामक अपनी दो लड़कियाँ ब्याह दीं और इस प्रकार उससे अपना घनिष्ट संबंध-जोड़ लिया।{{point}}अधिक जानकारी के लिए देखें:- [[कंस]]
 
 
{[[कर्ण]] को पालने वाली माता का नाम क्या था?
 
|type="()"}
 
-[[कुंती]]
 
-[[माद्री]]
 
-[[सुदेष्णा]]
 
+[[राधा (अधिरथ पत्नी)|राधा]]
 
||[[कुंती]]] की सेवा से प्रसन्न [[दुर्वासा ऋषि]] ने उसे एक मंत्र दिया था जिससे वह किसी का भी आह्वान करके उसे अपने पास बुला सकती थी। उत्सुकतावश कुंती ने [[सूर्य देवता|सूर्य]] का आह्वान किया और उसके सहवास से [[कर्ण]] गर्भ में आ गया। लोकलाज से शिशु को उसने एक पिटारी में रखकर नदी में बहा दिया। वह पिटारी सूत [[अधिरथ]] और उसकी पत्नी [[राधा (अधिरथ पत्नी)|राधा]] को मिली और उन्होंने पुत्रवत बालक का लालन-पालन किया। इसी कारण कर्ण को 'सूत-पुत्र और 'राधेय' भी कहा गया है। इनके अतिरिक्त कर्ण को 'वसुषेण' तथा 'वैकर्तन' नाम से भी जाना जाता है।{{point}}अधिक जानकारी के लिए देखें:- [[कर्ण]]
 
 
{[[दुर्योधन]] के मामा [[शकुनि]] के राज्य का नाम क्या था?
 
|type="()"}
 
-[[कोसल]]
 
+[[गांधार]]
 
-[[सिंधु]]
 
-[[चेदि महाजनपद]]
 
||[[शकुनि]] [[महाभारत]] का मुख्य पात्र है। 'महाभारत' में शकुनि [[सुबल|सुबलराज]] का पुत्र, [[गान्धारी]] का भाई और [[कौरव|कौरवों]] के मामा [[गांधार]] का राजा के रूप में चित्रित हुआ है। शकुनि प्रकृति से अत्यन्त दुष्ट था। [[दुर्योधन]] ने शकुनि को अपना मन्त्री नियुक्त कर लिया था। [[पाण्डव|पाण्डवों]] को शकुनि ने अनेक कष्ट दिये। [[भीम (पांडव)|भीम]] को इसने अनेक अवसरों पर परेशान किया।{{point}}अधिक जानकारी के लिए देखें:- [[शकुनि]]
 
 
 
 
 
{[[नकुल]] किसका विशेषज्ञ था?
 
|type="()"}
 
-[[हाथी]]
 
-[[ऊँट]]
 
+[[घोड़ा]]
 
-[[गाय]]
 
||[[नकुल]] पाँच [[पांडव|पांडवों]] में से एक थे। पांडवों में नकुल और [[सहदेव]], दोनों [[माद्री|माता माद्री]] के असमान जुड़वा पुत्र थे, जिनका जन्म दैवीय चिकित्सकों '[[अश्विनीकुमार]]' के वरदान स्वरूप हुआ था, जो स्वयं भी समान जुड़वा बंधु थे। नकुल सुन्दर, धर्मशास्त्र, नीति तथा पशु-चिकित्सा में दक्ष थे। [[अज्ञातवास]] में नकुल [[विराट]] के यहाँ 'ग्रंथिक' नाम से [[गाय]] चराने और घोड़ों की देखभाल का कार्य करते रहे थे। [[द्रौपदी]] से इनका भी [[विवाह]] हुआ था। इनकी स्त्री करेणुमती, चेदिराज की कन्या थी।{{point}}अधिक जानकारी के लिए देखें:- [[नकुल]]
 
 
{[[सूर्य]] के [[उत्तरायण]] होने की प्रतीक्षा करके किसने अपना प्राण त्याग किया था?
 
|type="()"}
 
+[[भीष्म]]
 
-[[द्रोणाचार्य|द्रोण]]
 
-[[जयद्रथ]]
 
-[[द्रुपद]]
 
||[[भीष्म]] [[महाभारत]] के प्रमुख पात्र हैं। ये महाराजा [[शान्तनु|शांतनु]] के पुत्र थे। इनका वास्तविक नाम देवव्रत था। राजा शांतनु के बड़े बेटे भीष्म आठ [[वसु|वसुओं]] में से थे। अपने पिता को दिये गये वचन के कारण इन्होंने आजीवन [[ब्रह्मचर्य]] का व्रत लिया था। इन्हें इच्छामृत्यु का वरदान प्राप्त था। अठारह दिनों के युद्ध में दस दिनों तक अकेले घमासान युद्ध करके भीष्म ने [[पाण्डव]] पक्ष को व्याकुल कर दिया और अन्त में [[शिखण्डी]] के माध्यम से अपनी मृत्यु का उपाय स्वयं बताकर [[महाभारत]] के इस अद्भुत योद्धा ने शरशय्या पर शयन किया। भीष्म ने सबको उपदेश दिया तथा अट्ठावन दिन तक शर-शैय्या पर पड़े रहने के बाद महाप्रयाण किया। [[सूर्य]] के [[उत्तरायण]] होने पर पीताम्बरधारी [[श्रीकृष्ण]] की छवि को अपनी आँखों में बसाकर महात्मा भीष्म ने अपने नश्वर शरीर का त्याग किया था।{{point}}अधिक जानकारी के लिए देखें:- [[भीष्म]]
 
 
{[[अर्जुन]] ने [[जयद्रथ]] को कब तक मार देने की प्रतिज्ञा की थी?
 
|type="()"}
 
+सूर्यास्त से पूर्व
 
-मध्याह्न के पूर्व
 
-सूर्यास्त से पश्चात
 
-इनमें से कोई नहीं
 
||[[महाभारत]] का भयंकर युद्ध चल रहा था। लड़ते-लड़ते [[अर्जुन]] रणक्षेत्र से दूर चले गए थे। अर्जुन की अनुपस्थिति में [[पाण्डव|पाण्डवों]] को पराजित करने के लिए [[द्रोणाचार्य]] ने [[चक्रव्यूह]] की रचना की। अर्जुन-पुत्र [[अभिमन्यु]] चक्रव्यूह भेदने के लिए उसमें घुस गया। उसने कुशलतापूर्वक चक्रव्यूह के छः चरण भेद लिए, लेकिन सातवें चरण में उसे [[दुर्योधन]], [[जयद्रथ]] आदि सात महारथियों ने घेर लिया और उस पर टूट पड़े। जयद्रथ ने पीछे से निहत्थे अभिमन्यु पर ज़ोरदार प्रहार किया। वह वार इतना तीव्र था कि अभिमन्यु उसे सहन नहीं कर सका और वीरगति को प्राप्त हो गया। अभिमन्यु की मृत्यु का समाचार सुनकर अर्जुन क्रोध से पागल हो उठा। उसने प्रतिज्ञा की कि यदि अगले दिन सूर्यास्त से पहले उसने जयद्रथ का वध नहीं किया तो वह आत्मदाह कर लेगा।{{point}}अधिक जानकारी के लिए देखें:- [[जयद्रथ]]
 
 
{[[कर्ण]] को अमोघ शक्ति किसने प्रदान की थी?
 
|type="()"}
 
-[[वरुण देवता|वरुण]]
 
-[[अग्नि देव]]
 
-[[सूर्य देव]]
 
+[[इन्द्र]]
 
||[[कर्ण]] की दानवीरता के अनेक सन्दर्भ मिलते हैं। उनकी दानशीलता की ख्याति सुनकर [[इन्द्र]] उनके पास [[कुण्डल]] और कवच माँगने गये थे। कर्ण ने अपने पिता [[सूर्य देवता|सूर्य]] के द्वारा इन्द्र की प्रवंचना का रहस्य जानते हुए भी उनको कुण्डल और कवच दे दिये। इन्द्र ने उसके बदले में एक बार प्रयोग के लिए अपनी अमोघ शक्ति दे दी थी। उससे किसी का वध अवश्यम्भावी था। कर्ण उस शक्ति का प्रयोग अर्जुन पर करना चाहते थे किन्तु दुर्योधन के निर्देश पर उन्होंने उसका प्रयोग [[भीम (पांडव)|भीम]] के पुत्र [[घटोत्कच]] पर किया था।{{point}}अधिक जानकारी के लिए देखें:- [[कर्ण]]
 
 
{निम्नलिखित में से [[बलराम]] की पत्नी कौन थीं?
 
|type="()"}
 
+[[रेवती (बलराम की पत्नी)|रेवती]]
 
-[[जाम्बवती]]
 
-[[तारा (बालि की पत्नी)|तारा]]
 
-[[रूमा]]
 
||[[रेवती (बलराम की पत्नी)|रेवती]] [[रेवत]] की कन्या और [[बलराम]] की पत्नी थीं। रेवत [[कुकुद्मी]] अपने सौ भाइयों में सबसे बड़े थे। महाराज रेवत अपनी पुत्री रेवती को लेकर [[ब्रह्मा]] के पास गये। वह उसके योग्य वर की खोज में थे। उस समय हाहा, हूहू नामक दो [[गंधर्व]] गान प्रस्तुत कर रहे थे। गान समाप्त होने के उपरांत उन्होंने [[ब्रह्मा]] से इच्छित प्रश्न पूछा। ब्रह्मा ने कहा, "यह गान जो तुम्हें अल्पकालिक लगा, वह चतुर्युग तक चला। जिन वरों की तुम चर्चा कर रहे हो, उनके पुत्र-पौत्र भी अब जीवित नहीं हैं। तुम [[विष्णु]] के साथ इसका पाणिग्रहण कर दो। वह बलराम के रूप में अवतरित हैं।" राजा रेवती को लेकर [[पृथ्वी]] पर गये। विभिन्न नगर जैसे छोड़ गये थे, वैसे अब शेष नहीं थे। मनुष्यों की लम्बाई बहुत कम हो गयी थी। बलराम ने रेवती से विवाह कर लिया। उसे लंबा देखकर हलधर (बलराम) ने अपने हल की नोक से दबाकर उसकी लंबाई कम कर दी।{{point}}अधिक जानकारी के लिए देखें:- [[रेवती (बलराम की पत्नी)|रेवती]], [[कुकुद्मी]]
 
 
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11:50, 17 दिसम्बर 2017 का अवतरण