"नटवर लाल" के अवतरणों में अंतर

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*नटवर लाल (वास्तविक नाम- '''मिथिलेश कुमार श्रीवास्तव''') [[भारत]] के प्रमुख ठगों में से एक था। नटवर लाल की बहुत सी ठगी घटनाओं ने बिहार, [[उत्तर प्रदेश]], [[मध्य प्रदेश]] और [[दिल्ली]] के पुलिस प्रशासन को वर्षों परेशान रखा।
 
*मिथिलेश कुमार ठगी का बेताज बादशाह था। उसके नाम पर देश-विदेश में अनेक ठग हुए, लेकिन उसका कोई सच्चा शार्गिद नहीं बन पाया। इस महाठग के नाम पर देश-विदेश में अनेक फ़िल्में भी बनीं।<ref name="chd">{{cite web |url=http://www.chauthiduniya.com/2010/07/kab-our-kaise-hui-natvar-lal-ki-maot-rahasya-barkarar.html |title=कब और कैसे हुई नटवर लाल की मौत, रहस्य बरक़रार|accessmonthday=[[23 अप्रॅल]] |accessyear=[[2011]] |last= |first= |authorlink= |format=एच.टी.एम.एल |publisher=चौथी दुनिया |language=[[हिन्दी]]}}</ref>
 
*चालाकी और ठगी को ललित कला बना देने वाला यह शख्स अब इस दुनिया में नहीं है लेकिन उस पर बहुत सारी किताबें लिखी गई और एक फ़िल्म बनी–‘मि. नटवर लाल’ जिसमें मुख्य भूमिका [[अमिताभ बच्चन]] ने निभाई थी।
 
==व्यक्तिगत परिचय==
 
 
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* नटवर लाल के वकील नन्दलाल जायसवाल के अनुसार वह [[2009]] में 97 वर्ष की अवस्था में मर चुका है, लेकिन उसके भाई गंगा प्रसाद श्रीवास्तव के अनुसार वह [[1996]] में ही मर गया।   
 
* नटवर लाल के वकील नन्दलाल जायसवाल के अनुसार वह [[2009]] में 97 वर्ष की अवस्था में मर चुका है, लेकिन उसके भाई गंगा प्रसाद श्रीवास्तव के अनुसार वह [[1996]] में ही मर गया।   
 
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====जन्म====
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*'''नटवर लाल''' (वास्तविक नाम- मिथिलेश कुमार श्रीवास्तव) [[भारत]] के प्रमुख ठगों में से एक था। नटवर लाल की बहुत सी ठगी घटनाओं ने बिहार, [[उत्तर प्रदेश]], [[मध्य प्रदेश]] और [[दिल्ली]] के पुलिस प्रशासन को वर्षों परेशान रखा।
[[बिहार]] के सीवान ज़िले के [[जीरादेयू]] गाँव से 2 किमी दूर बंगरा गाँव में नटवर लाल का जन्म हुआ। नटवर लाल 52 से ज्यादा ज्ञात नामों में से एक था। उसे ठगी के जिन मामलों में सजा हो चुकी थी, वह अगर पूरी काटता तो 117 साल की थी। नटवर लाल के 30 मामलों में तो सजा हो ही नहीं पाई थी। आठ राज्यों की पुलिस ने उस पर इनाम घोषित किया था। बिहार का सिवान जिले में नटवर लाल का भी जन्म हुआ था। नटवर लाल हमेशा बहुत नाटकीय तरीक़े से अपराध करता था। उससे भी ज़्यादा नाटकीय तरीक़े से पकड़ा जाता था और उससे भी ज्यादा नाटकीय तरीक़े से फ़रार होता था।
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*नटवर लाल के अनुसार वह विदेशियों को तीन बार [[ताजमहल]], दो बार [[लाल क़िला दिल्ली|लाल क़िला]] और एक बार [[राष्ट्रपति भवन]] को बेच चुका था।
====पुश्तैनी घर====
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*मिथिलेश कुमार ठगी का बेताज बादशाह था। उसके नाम पर देश-विदेश में अनेक ठग हुए, लेकिन उसका कोई सच्चा शार्गिद नहीं बन पाया। इस महाठग के नाम पर देश-विदेश में अनेक फ़िल्में भी बनीं।<ref name="chd">{{cite web |url=http://www.chauthiduniya.com/2010/07/kab-our-kaise-hui-natvar-lal-ki-maot-rahasya-barkarar.html |title=कब और कैसे हुई नटवर लाल की मौत, रहस्य बरक़रार|accessmonthday=[[23 अप्रॅल]] |accessyear=[[2011]] |last= |first= |authorlink= |format=एच.टी.एम.एल |publisher=चौथी दुनिया |language=[[हिन्दी]]}}</ref>
लगभग बारह सौ बीघा ज़मीन पर बसे बंगरा गांव के मध्य में नटवर लाल का पुश्तैनी घर था। गांववालों का कहना है कि क़रीब 20 साल पहले कुर्की-जब्ती के दौरान पुलिस ने उनके पुश्तैनी घर को खंडहर बना दिया। आज इस घर की केवल एक-डेढ़ कट्ठा ज़मीन ही शेष बची है, जहाँ अगल-बगल के लोग गोबर फेंकते हैं। नटवर लाल के साथ पले-बढ़े गोरख राजभर बताते हैं कि आज भी बुजुर्गों से गांव की चौपालों पर नटवर लाल के किस्से सुनने के लिए जवान और बच्चे उत्सुक रहते हैं।  
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*चालाकी और ठगी को ललित कला बना देने वाला यह शख्स अब इस दुनिया में नहीं है लेकिन उस पर बहुत सारी किताबें लिखी गई और एक फ़िल्म बनी–‘मि. नटवर लाल’ जिसमें मुख्य भूमिका [[अमिताभ बच्चन]] ने निभाई थी।
====एक रोचक तथ्य====
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====जन्म और गाँव====
एक बार की बात है, स्वतंत्र [[भारत]] के प्रथम [[राष्ट्रपति]] [[डॉ. राजेंद्र प्रसाद]] अपने गांव जीरादेई आए हुए थे। सूचना पाकर नटवर लाल भी उनसे मुलाकात करने पहुंच गए। राजेंद्र बाबू का एक हस्ताक्षर देखकर नटवर लाल ने हूबहू पांच हस्ताक्षर करके उनके सामने रख दिए। यह देखकर राजेंद्र बाबू आश्चर्यचकित रह गए। इतना ही नहीं, नटवर लाल ने उनसे कहा कि भइया, इजाजत दें तो मैं भारत का विदेशी कर्ज़ चुकता करके उन देशों पर ही भारत का दोगुना कर्ज़ लाद दूँ।  इस पर समझाते हुए राजेंद्र बाबू ने कहा, '''…ई सब काम तू छोड़ दे, चलअ तोहरा के कवनो नौकरी लगा देब…''' पर नटवर लाल को नौकरी कहाँ रास आनी थी। वह हंसते हुए प्रणाम करके चलता बना।<ref name="chd"/>
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[[बिहार]] के सीवान ज़िले के [[जीरादेयू]] गाँव से 2 किमी दूर बंगरा गाँव में नटवर लाल का जन्म हुआ।  
====व्यक्तित्व====
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लगभग बारह सौ बीघा ज़मीन पर बसे बंगरा गांव के मध्य में नटवर लाल का पुश्तैनी घर था। गांववालों का कहना है कि क़रीब 20 साल पहले कुर्की-जब्ती के दौरान पुलिस ने उनके पुश्तैनी घर को खंडहर बना दिया। आज इस घर की केवल एक-डेढ़ कट्ठा ज़मीन ही शेष बची है, जहाँ अगल-बगल के लोग गोबर फेंकते हैं। नटवर लाल के साथ पले-बढ़े गोरख राजभर बताते हैं कि आज भी बुजुर्गों से गांव की चौपालों पर नटवर लाल के किस्से सुनने के लिए जवान और बच्चे उत्सुक रहते हैं।
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====रॉबिन हुड 'ठग'====  
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नटवर लाल को अपने किए पर कोई शर्म नहीं थी। वह अपने आपको रॉबिन हुड मानता था, कहता था कि मैं अमीरों से लूट कर गरीबों को देता हूँ। उसने कहा कि मैंने कभी हथियार का इस्तेमाल नहीं किया। लोगों से बहाने बनाकर पैसे मांगे और लोग पैसे दे गए। इसमें मेरा क्या कसूर है? नटवर लाल 52 से ज्यादा ज्ञात नामों में से एक था। उसे ठगी के जिन मामलों में सजा हो चुकी थी, वह अगर पूरी काटता तो 117 साल की थी। नटवर लाल के 30 मामलों में तो सजा हो ही नहीं पाई थी। आठ राज्यों की पुलिस ने उस पर इनाम घोषित किया था। बिहार का सिवान जिले में नटवर लाल का भी जन्म हुआ था। नटवर लाल हमेशा बहुत नाटकीय तरीक़े से अपराध करता था। उससे भी ज़्यादा नाटकीय तरीक़े से पकड़ा जाता था और उससे भी ज्यादा नाटकीय तरीक़े से फ़रार होता था।
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====मशहूर इमारतों का सौदा====
 
नटवर लाल ज्यादा पढ़ा लिखा नहीं था। काम चलाऊ [[अंग्रेज़ी]] बोल लेता था, लोग कहते हैं कि एक जमाने में वह पटवारी रह चुका था। जितनी अंग्रेज़ी वह बोल लेता था, उतनी ही उसका काम चलाने के लिए काफ़ी थी। उसके शिकारों में ज्यादातर या तो मध्यम दर्जे के सरकारी कर्मचारी होते थे या फिर छोटे शहरों के बड़े इरादों वाले व्यापारी, जिन्हें नटवर लाल [[ताजमहल]] बेचने का वायदा भी कर देता था। वायदा करने की शैली कुछ ऐसी होती थी कि उस वायदे पर लोग ऐतबार भी कर लेते थे। खुद नटवर लाल ने एक बार भरी अदालत में कहा था कि सर अपनी बात करने की स्टाइल ही कुछ ऐसी है कि अगर 10 मिनट आप बात करने दें तो आप वही फैसला देंगे जो मैं कहूँगा।  
 
नटवर लाल ज्यादा पढ़ा लिखा नहीं था। काम चलाऊ [[अंग्रेज़ी]] बोल लेता था, लोग कहते हैं कि एक जमाने में वह पटवारी रह चुका था। जितनी अंग्रेज़ी वह बोल लेता था, उतनी ही उसका काम चलाने के लिए काफ़ी थी। उसके शिकारों में ज्यादातर या तो मध्यम दर्जे के सरकारी कर्मचारी होते थे या फिर छोटे शहरों के बड़े इरादों वाले व्यापारी, जिन्हें नटवर लाल [[ताजमहल]] बेचने का वायदा भी कर देता था। वायदा करने की शैली कुछ ऐसी होती थी कि उस वायदे पर लोग ऐतबार भी कर लेते थे। खुद नटवर लाल ने एक बार भरी अदालत में कहा था कि सर अपनी बात करने की स्टाइल ही कुछ ऐसी है कि अगर 10 मिनट आप बात करने दें तो आप वही फैसला देंगे जो मैं कहूँगा।  
नटवर लाल को अपने किए पर कोई शर्म नहीं थी। वह अपने आपको रॉबिन हुड मानता था, कहता था कि मैं अमीरों से लूट कर गरीबों को देता हूँ। उसने कहा कि मैंने कभी हथियार का इस्तेमाल नहीं किया। लोगों से बहाने बनाकर पैसे मांगे और लोग पैसे दे गए। इसमें मेरा क्या कसूर है?
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====राष्ट्रपति डॉ. राजेंद्र प्रसाद को चोंकाया====
====शातिर दिमाग====
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नटवर [[राष्ट्रपति]] [[डॉ. राजेंद्र प्रसाद]] के पैत्रिक गाँव के पास का ही रहने वाला था। एक बार की बात है, स्वतंत्र [[भारत]] के प्रथम [[राष्ट्रपति]] [[डॉ. राजेंद्र प्रसाद]] अपने गांव जीरादेई आए हुए थे। सूचना पाकर नटवर लाल भी उनसे मुलाकात करने पहुंच गए। राजेंद्र बाबू का एक हस्ताक्षर देखकर नटवर लाल ने हूबहू पांच हस्ताक्षर करके उनके सामने रख दिए। यह देखकर राजेंद्र बाबू आश्चर्यचकित रह गए। इतना ही नहीं, नटवर लाल ने उनसे कहा कि भइया, इजाजत दें तो मैं भारत का विदेशी कर्ज़ चुकता करके उन देशों पर ही भारत का दोगुना कर्ज़ लाद दूँ।  इस पर समझाते हुए राजेंद्र बाबू ने कहा, '''…ई सब काम तू छोड़ दे, चलउ तोहरा के कउनो नौकरी लगा देब…''' पर नटवर लाल को नौकरी कहाँ रास आनी थी। वह हंसते हुए प्रणाम करके चलता बना।<ref name="chd"/>
नटवर लाल बेहद शातिर दिमाग था। लगभग 75 साल की उम्र में [[दिल्ली]] की [[तिहाड़ जेल]] से कानपुर के एक मामले में पेशी के लिए उत्तर प्रदेश पुलिस के दो जवान और एक हवलदार उसे लेने आए थे। पुरानी दिल्ली रेलवे स्टेशन से लखनऊ मेल में उन्हें बैठना था। स्टेशन पर खासी भीड़ थी, पहरेदार मौजूद और नटवर लाल बैंच पर बैठा था। उसने सिपाही से कहा कि बेटा बाहर से दवाई की गोली ला दो। मेरे पास पैसा नहीं हैं लेकिन जब रिश्तेदार मिलने आएंगे तो दे दूंगा। यह बात अलग है कि उसके [[परिवार]] और रिश्तेदारों के बारे में सिर्फ़ इतना पता है कि परिवार ने उसे कुटुंब से निकाल दिया था, [[पत्नी]] की बहुत पहले मृत्यु हो गई थी और संतान कोई थी नहीं। सिपाही दवाई लेने गया, अब कुल दो पहरेदार मौजूद थे। इनमें से एक को नटवर लाल ने पानी लेने के लिए भेज दिया। हवलदार बचा तो उससे कहा कि भैया तुम वर्दी में हो और मुझे बाथरूम जाना है। तुम रस्सी पकड़े रहोगे तो मुझे जल्दी अंदर जाने देंगे क्योंकि मुझसे खड़ा नहीं हुआ जा रहा। उस भीड़ भाड़ में नटवर लाल ने कब हाथ से रस्सी निकाली, कब भीड़ में शामिल हुआ और कब गायब हो गया, यह किसी को पता नहीं। तीनों पुलिस वाले निलंबित हुए और '''नटवर लाल साठवीं बार फरार हो गया।''' <br />
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====75 साल की उम्र में फ़रार====
====अंतिम समय====
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लगभग 75 साल की उम्र में [[दिल्ली]] की [[तिहाड़ जेल]] से कानपुर के एक मामले में पेशी के लिए उत्तर प्रदेश पुलिस के दो जवान और एक हवलदार उसे लेने आए थे। पुरानी दिल्ली रेलवे स्टेशन से लखनऊ मेल में उन्हें बैठना था। स्टेशन पर खासी भीड़ थी, पहरेदार मौजूद और नटवर लाल बैंच पर बैठा था। उसने सिपाही से कहा कि बेटा बाहर से दवाई की गोली ला दो। मेरे पास पैसा नहीं हैं लेकिन जब रिश्तेदार मिलने आएंगे तो दे दूंगा। यह बात अलग है कि उसके [[परिवार]] और रिश्तेदारों के बारे में सिर्फ़ इतना पता है कि परिवार ने उसे कुटुंब से निकाल दिया था, [[पत्नी]] की बहुत पहले मृत्यु हो गई थी और संतान कोई थी नहीं। सिपाही दवाई लेने गया, अब कुल दो पहरेदार मौजूद थे। इनमें से एक को नटवर लाल ने पानी लेने के लिए भेज दिया। हवलदार बचा तो उससे कहा कि भैया तुम वर्दी में हो और मुझे बाथरूम जाना है। तुम रस्सी पकड़े रहोगे तो मुझे जल्दी अंदर जाने देंगे क्योंकि मुझसे खड़ा नहीं हुआ जा रहा। उस भीड़ भाड़ में नटवर लाल ने कब हाथ से रस्सी निकाली, कब भीड़ में शामिल हुआ और कब गायब हो गया, यह किसी को पता नहीं। तीनों पुलिस वाले निलंबित हुए और '''नटवर लाल साठवीं बार फरार हो गया।'''  
आखिरी बार नटवर लाल [[बिहार]] के दरभंगा रेलवे स्टेशन पर देखा गया था। पुलिस में पुराने थानेदार ने जो सिपाही के जमाने से नटवर लाल को जानता था, उसे पहचान लिया। नटवर लाल ने भी देख लिया कि उसे पहचान लिया गया है। सिपाही अपने साथियों को लेने थाने के भीतर गया और नटवर लाल गायब था। यह बात अलग है कि पास खड़ी मालगाड़ी के डिब्बे से नटवर लाल के उतारे हुए कपड़े मिले और गार्ड की यूनीफॉर्म गायब थी। इसके बाद नटवर लाल का नाम [[2004]] में तब सामने आया, जब उसने अपनी वसीयतनुमा फ़ाइल एक वकील को सौंपी। बलरामपुर के अस्पताल में भर्ती हुआ और इसके बाद एक दिन अस्पताल छोड़ कर चला गया। डॉक्टरों का कहना था कि जिस हालत में वह था, उसमें उसके तीन चार दिन से ज्यादा बचने की गुंजाइश नहीं थी।  नटवर लाल के जो ज्ञात अपराध हैं, अगर सबको मिला लिया जाए तो भी यह रकम 50 लाख तक नहीं पहुंचती।
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====अन्तिम कारनामा====
 
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आखिरी बार नटवर लाल बिहार के दरभंगा रेलवे स्टेशन पर देखा गया था। पुलिस में पुराने थानेदार ने जो सिपाही के जमाने से नटवर लाल को जानता था, उसे पहचान लिया। नटवर लाल ने भी देख लिया कि उसे पहचान लिया गया है। सिपाही अपने साथियों को लेने थाने के भीतर गया और नटवर लाल गायब था। यह बात अलग है कि पास खड़ी मालगाड़ी के डिब्बे से नटवर लाल के उतारे हुए कपड़े मिले और गार्ड की यूनीफॉर्म गायब थी।  
==मौत का रहस्य बरक़रार==
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*इसके बाद नटवर लाल का नाम [[2004]] में तब सामने आया, जब उसने अपनी वसीयतनुमा फ़ाइल एक वकील को सौंपी। बलरामपुर के अस्पताल में भर्ती हुआ और इसके बाद एक दिन अस्पताल छोड़ कर चला गया। डॉक्टरों का कहना था कि जिस हालत में वह था, उसमें उसके तीन चार दिन से ज्यादा बचने की गुंजाइश नहीं थी।  नटवर लाल के जो ज्ञात अपराध हैं, अगर सबको मिला लिया जाए तो भी यह रकम 50 लाख तक नहीं पहुंचती।  
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====मौत का रहस्य बरक़रार====
 
बताया जाता है कि अंतिम बार वर्ष [[1996]] में जब वह ग़िरफ्तार हुआ था, तब उन्हें [[कानपुर]] जेल में रखा गया था। वृद्धावस्था के कारण जेल में बीमार होने के बाद इलाज के लिए अदालत के आदेश पर उसे एम्स ले जाया गया। उसके साथ एक डॉक्टर, दो हवलदार और एक सफाईकर्मी था, लेकिन वापसी के दौरान नई दिल्ली रेलवे स्टेशन पर नटवर लाल पुलिसकर्मियों को झांसा देकर नौ दो ग्यारह हो गया। तबसे उसकी कोई खबर पुलिस नहीं जुटा पाई है। सच्चाई यह है कि अब पुलिस के पास भी उनके निधन का कोई पुख्ता सबूत नहीं है, जिसके कारण उनकी ठगी के मामलों की फ़ाइलें अभी भी लंबित और खुली बताई जाती हैं।<ref name="chd"/>
 
बताया जाता है कि अंतिम बार वर्ष [[1996]] में जब वह ग़िरफ्तार हुआ था, तब उन्हें [[कानपुर]] जेल में रखा गया था। वृद्धावस्था के कारण जेल में बीमार होने के बाद इलाज के लिए अदालत के आदेश पर उसे एम्स ले जाया गया। उसके साथ एक डॉक्टर, दो हवलदार और एक सफाईकर्मी था, लेकिन वापसी के दौरान नई दिल्ली रेलवे स्टेशन पर नटवर लाल पुलिसकर्मियों को झांसा देकर नौ दो ग्यारह हो गया। तबसे उसकी कोई खबर पुलिस नहीं जुटा पाई है। सच्चाई यह है कि अब पुलिस के पास भी उनके निधन का कोई पुख्ता सबूत नहीं है, जिसके कारण उनकी ठगी के मामलों की फ़ाइलें अभी भी लंबित और खुली बताई जाती हैं।<ref name="chd"/>
  

13:52, 10 मई 2011 का अवतरण

नटवर लाल की जीवनी के मुख्य बिन्दु
  • नटवर लाल का वास्तविक नाम मिथिलेश कुमार श्रीवास्तव है, जिसका जन्म बिहार राज्य के सिवान ज़िले में हुआ था।
  • नटवर लाल आठ राज्यों की पुलिस के लिए वांछित (वांटेड) है, जिस पर 100 से अधिक मामले दर्ज़ हैं।
  • नटवर लाल के अनुसार वह विदेशियों को तीन बार ताजमहल, दो बार लाल क़िला और एक बार राष्ट्रपति भवन को बेच चुका था।
  • नटवर लाल के वकील नन्दलाल जायसवाल के अनुसार वह 2009 में 97 वर्ष की अवस्था में मर चुका है, लेकिन उसके भाई गंगा प्रसाद श्रीवास्तव के अनुसार वह 1996 में ही मर गया।
  • नटवर लाल (वास्तविक नाम- मिथिलेश कुमार श्रीवास्तव) भारत के प्रमुख ठगों में से एक था। नटवर लाल की बहुत सी ठगी घटनाओं ने बिहार, उत्तर प्रदेश, मध्य प्रदेश और दिल्ली के पुलिस प्रशासन को वर्षों परेशान रखा।
  • नटवर लाल के अनुसार वह विदेशियों को तीन बार ताजमहल, दो बार लाल क़िला और एक बार राष्ट्रपति भवन को बेच चुका था।
  • मिथिलेश कुमार ठगी का बेताज बादशाह था। उसके नाम पर देश-विदेश में अनेक ठग हुए, लेकिन उसका कोई सच्चा शार्गिद नहीं बन पाया। इस महाठग के नाम पर देश-विदेश में अनेक फ़िल्में भी बनीं।[1]
  • चालाकी और ठगी को ललित कला बना देने वाला यह शख्स अब इस दुनिया में नहीं है लेकिन उस पर बहुत सारी किताबें लिखी गई और एक फ़िल्म बनी–‘मि. नटवर लाल’ जिसमें मुख्य भूमिका अमिताभ बच्चन ने निभाई थी।

जन्म और गाँव

बिहार के सीवान ज़िले के जीरादेयू गाँव से 2 किमी दूर बंगरा गाँव में नटवर लाल का जन्म हुआ।

लगभग बारह सौ बीघा ज़मीन पर बसे बंगरा गांव के मध्य में नटवर लाल का पुश्तैनी घर था। गांववालों का कहना है कि क़रीब 20 साल पहले कुर्की-जब्ती के दौरान पुलिस ने उनके पुश्तैनी घर को खंडहर बना दिया। आज इस घर की केवल एक-डेढ़ कट्ठा ज़मीन ही शेष बची है, जहाँ अगल-बगल के लोग गोबर फेंकते हैं। नटवर लाल के साथ पले-बढ़े गोरख राजभर बताते हैं कि आज भी बुजुर्गों से गांव की चौपालों पर नटवर लाल के किस्से सुनने के लिए जवान और बच्चे उत्सुक रहते हैं।

रॉबिन हुड 'ठग'

नटवर लाल को अपने किए पर कोई शर्म नहीं थी। वह अपने आपको रॉबिन हुड मानता था, कहता था कि मैं अमीरों से लूट कर गरीबों को देता हूँ। उसने कहा कि मैंने कभी हथियार का इस्तेमाल नहीं किया। लोगों से बहाने बनाकर पैसे मांगे और लोग पैसे दे गए। इसमें मेरा क्या कसूर है? नटवर लाल 52 से ज्यादा ज्ञात नामों में से एक था। उसे ठगी के जिन मामलों में सजा हो चुकी थी, वह अगर पूरी काटता तो 117 साल की थी। नटवर लाल के 30 मामलों में तो सजा हो ही नहीं पाई थी। आठ राज्यों की पुलिस ने उस पर इनाम घोषित किया था। बिहार का सिवान जिले में नटवर लाल का भी जन्म हुआ था। नटवर लाल हमेशा बहुत नाटकीय तरीक़े से अपराध करता था। उससे भी ज़्यादा नाटकीय तरीक़े से पकड़ा जाता था और उससे भी ज्यादा नाटकीय तरीक़े से फ़रार होता था।

मशहूर इमारतों का सौदा

नटवर लाल ज्यादा पढ़ा लिखा नहीं था। काम चलाऊ अंग्रेज़ी बोल लेता था, लोग कहते हैं कि एक जमाने में वह पटवारी रह चुका था। जितनी अंग्रेज़ी वह बोल लेता था, उतनी ही उसका काम चलाने के लिए काफ़ी थी। उसके शिकारों में ज्यादातर या तो मध्यम दर्जे के सरकारी कर्मचारी होते थे या फिर छोटे शहरों के बड़े इरादों वाले व्यापारी, जिन्हें नटवर लाल ताजमहल बेचने का वायदा भी कर देता था। वायदा करने की शैली कुछ ऐसी होती थी कि उस वायदे पर लोग ऐतबार भी कर लेते थे। खुद नटवर लाल ने एक बार भरी अदालत में कहा था कि सर अपनी बात करने की स्टाइल ही कुछ ऐसी है कि अगर 10 मिनट आप बात करने दें तो आप वही फैसला देंगे जो मैं कहूँगा।

राष्ट्रपति डॉ. राजेंद्र प्रसाद को चोंकाया

नटवर राष्ट्रपति डॉ. राजेंद्र प्रसाद के पैत्रिक गाँव के पास का ही रहने वाला था। एक बार की बात है, स्वतंत्र भारत के प्रथम राष्ट्रपति डॉ. राजेंद्र प्रसाद अपने गांव जीरादेई आए हुए थे। सूचना पाकर नटवर लाल भी उनसे मुलाकात करने पहुंच गए। राजेंद्र बाबू का एक हस्ताक्षर देखकर नटवर लाल ने हूबहू पांच हस्ताक्षर करके उनके सामने रख दिए। यह देखकर राजेंद्र बाबू आश्चर्यचकित रह गए। इतना ही नहीं, नटवर लाल ने उनसे कहा कि भइया, इजाजत दें तो मैं भारत का विदेशी कर्ज़ चुकता करके उन देशों पर ही भारत का दोगुना कर्ज़ लाद दूँ। इस पर समझाते हुए राजेंद्र बाबू ने कहा, …ई सब काम तू छोड़ दे, चलउ तोहरा के कउनो नौकरी लगा देब… पर नटवर लाल को नौकरी कहाँ रास आनी थी। वह हंसते हुए प्रणाम करके चलता बना।[1]

75 साल की उम्र में फ़रार

लगभग 75 साल की उम्र में दिल्ली की तिहाड़ जेल से कानपुर के एक मामले में पेशी के लिए उत्तर प्रदेश पुलिस के दो जवान और एक हवलदार उसे लेने आए थे। पुरानी दिल्ली रेलवे स्टेशन से लखनऊ मेल में उन्हें बैठना था। स्टेशन पर खासी भीड़ थी, पहरेदार मौजूद और नटवर लाल बैंच पर बैठा था। उसने सिपाही से कहा कि बेटा बाहर से दवाई की गोली ला दो। मेरे पास पैसा नहीं हैं लेकिन जब रिश्तेदार मिलने आएंगे तो दे दूंगा। यह बात अलग है कि उसके परिवार और रिश्तेदारों के बारे में सिर्फ़ इतना पता है कि परिवार ने उसे कुटुंब से निकाल दिया था, पत्नी की बहुत पहले मृत्यु हो गई थी और संतान कोई थी नहीं। सिपाही दवाई लेने गया, अब कुल दो पहरेदार मौजूद थे। इनमें से एक को नटवर लाल ने पानी लेने के लिए भेज दिया। हवलदार बचा तो उससे कहा कि भैया तुम वर्दी में हो और मुझे बाथरूम जाना है। तुम रस्सी पकड़े रहोगे तो मुझे जल्दी अंदर जाने देंगे क्योंकि मुझसे खड़ा नहीं हुआ जा रहा। उस भीड़ भाड़ में नटवर लाल ने कब हाथ से रस्सी निकाली, कब भीड़ में शामिल हुआ और कब गायब हो गया, यह किसी को पता नहीं। तीनों पुलिस वाले निलंबित हुए और नटवर लाल साठवीं बार फरार हो गया।

अन्तिम कारनामा

आखिरी बार नटवर लाल बिहार के दरभंगा रेलवे स्टेशन पर देखा गया था। पुलिस में पुराने थानेदार ने जो सिपाही के जमाने से नटवर लाल को जानता था, उसे पहचान लिया। नटवर लाल ने भी देख लिया कि उसे पहचान लिया गया है। सिपाही अपने साथियों को लेने थाने के भीतर गया और नटवर लाल गायब था। यह बात अलग है कि पास खड़ी मालगाड़ी के डिब्बे से नटवर लाल के उतारे हुए कपड़े मिले और गार्ड की यूनीफॉर्म गायब थी।

  • इसके बाद नटवर लाल का नाम 2004 में तब सामने आया, जब उसने अपनी वसीयतनुमा फ़ाइल एक वकील को सौंपी। बलरामपुर के अस्पताल में भर्ती हुआ और इसके बाद एक दिन अस्पताल छोड़ कर चला गया। डॉक्टरों का कहना था कि जिस हालत में वह था, उसमें उसके तीन चार दिन से ज्यादा बचने की गुंजाइश नहीं थी। नटवर लाल के जो ज्ञात अपराध हैं, अगर सबको मिला लिया जाए तो भी यह रकम 50 लाख तक नहीं पहुंचती।

मौत का रहस्य बरक़रार

बताया जाता है कि अंतिम बार वर्ष 1996 में जब वह ग़िरफ्तार हुआ था, तब उन्हें कानपुर जेल में रखा गया था। वृद्धावस्था के कारण जेल में बीमार होने के बाद इलाज के लिए अदालत के आदेश पर उसे एम्स ले जाया गया। उसके साथ एक डॉक्टर, दो हवलदार और एक सफाईकर्मी था, लेकिन वापसी के दौरान नई दिल्ली रेलवे स्टेशन पर नटवर लाल पुलिसकर्मियों को झांसा देकर नौ दो ग्यारह हो गया। तबसे उसकी कोई खबर पुलिस नहीं जुटा पाई है। सच्चाई यह है कि अब पुलिस के पास भी उनके निधन का कोई पुख्ता सबूत नहीं है, जिसके कारण उनकी ठगी के मामलों की फ़ाइलें अभी भी लंबित और खुली बताई जाती हैं।[1]


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टीका टिप्पणी और संदर्भ

  1. 1.0 1.1 1.2 कब और कैसे हुई नटवर लाल की मौत, रहस्य बरक़रार (हिन्दी) (एच.टी.एम.एल) चौथी दुनिया। अभिगमन तिथि: 23 अप्रॅल, 2011