जश्न मनाया जाय -आदित्य चौधरी

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जश्न मनाया जाय -आदित्य चौधरी

उनकी ख़्वाहिश, कि इक जश्न मनाया जाय
छोड़कर मुझको हर इक दोस्त बुलाया जाय

रौनक़-ए-बज़्म के लायक़ मेरी हस्ती ही नहीं
यही हर बार मुझे याद दिलाया जाय

कभी जो शाम से बेचैन उनकी तबीयत हो
किसी मेरे ही ख़त को पढ़ के सुनाया जाय

कहीं जो भूल से भी ज़िक्र मेरा आता हो
यही ताकीद कि मक़्ता ही न गाया जाय

मेरे वो ख़ाब में ना आएँ बस इसी के लिए
ताउम्र मुझे अब न सुलाया जाए

कभी सुकून से गुज़रा था जहाँ वक़्त मेरा
उसी जगह मुझे हर रोज़ रुलाया जाए

क़ब्र मेरी हो, जिस पे उनका लिखा पत्थर हो
उन्ही का ज़िक्र हो जब मेरा जनाज़ा जाए