"जश्न मनाया जाय -आदित्य चौधरी" के अवतरणों में अंतर
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<div style="text-align:center; direction: ltr; margin-left: 1em;"><font color=#003333 size=5>जश्न मनाया जाय <small>-आदित्य चौधरी</small></font></div> | <div style="text-align:center; direction: ltr; margin-left: 1em;"><font color=#003333 size=5>जश्न मनाया जाय <small>-आदित्य चौधरी</small></font></div> | ||
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− | <poem style="background:#fff; border:1px solid #000; border-radius:5px; padding:10px; font-size:16px; color:#000;"> | ||
उनकी ख़्वाहिश, कि इक जश्न मनाया जाय | उनकी ख़्वाहिश, कि इक जश्न मनाया जाय | ||
छोड़कर मुझको हर इक दोस्त बुलाया जाय | छोड़कर मुझको हर इक दोस्त बुलाया जाय | ||
− | रौनक़-ए-बज़्म<ref>बज़्म= सभा | + | रौनक़-ए-बज़्म के लायक़ मेरी हस्ती ही नहीं<ref>बज़्म= सभा, महफ़िल</ref> |
यही हर बार मुझे याद दिलाया जाय | यही हर बार मुझे याद दिलाया जाय | ||
पंक्ति 26: | पंक्ति 23: | ||
कहीं जो भूल से भी ज़िक्र मेरा आता हो | कहीं जो भूल से भी ज़िक्र मेरा आता हो | ||
− | यही ताकीद<ref>ताकीद = कोई बात ज़ोर देकर कहना | + | यही ताकीद कि मक़्ता ही न गाया जाय<ref>ताकीद = कोई बात ज़ोर देकर कहना</ref><ref>ग़ज़ल के आखरी शेर को जिसमें शायर का नाम अथवा उपनाम हो उसे ‘मक़्ता’ कहते हैं।</ref> |
मेरे वो ख़ाब में ना आएँ बस इसी के लिए | मेरे वो ख़ाब में ना आएँ बस इसी के लिए | ||
पंक्ति 35: | पंक्ति 32: | ||
क़ब्र मेरी हो, जिस पे उनका लिखा पत्थर हो | क़ब्र मेरी हो, जिस पे उनका लिखा पत्थर हो | ||
− | + | मेरा वजूद ही दुनिया से मिटाया जाय | |
उनकी ख़्वाहिश, कि इक जश्न मनाया जाय | उनकी ख़्वाहिश, कि इक जश्न मनाया जाय | ||
छोड़कर मुझको हर इक दोस्त बुलाया जाय | छोड़कर मुझको हर इक दोस्त बुलाया जाय | ||
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11:21, 9 जुलाई 2017 के समय का अवतरण
जश्न मनाया जाय -आदित्य चौधरी
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उनकी ख़्वाहिश, कि इक जश्न मनाया जाय |
टीका टिप्पणी और संदर्भ