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14:24, 20 फ़रवरी 2011 का अवतरण

  • सप्त ऋषियों का सामूहिक नाम है।
  • पांचरात्र शास्त्र सात चित्रशिखण्डी ऋषियों द्वारा संकलित हैं, जो संहिताओं का पूर्ववर्ती एवं उनका पथप्रदर्शक है।
  • इन ऋषियों ने वेदों का निष्कर्ष निकालकर पांचरात्र नाम का शास्त्र तैयार किया।
  • ये सप्तर्षि स्वायम्भुव मन्वन्तर के मरीचि, अंगिरा, अत्रि, पुलस्त्य, पुलह, क्रतु और वसिष्ठ हैं।
  • इस शास्त्र में धर्म, अर्थ, काम एवं मोक्ष चारों महापुरुषों का विवेचन है।
  • ऋग्वेद, यजुर्वेद, सामवेद तथा अंगिरा ऋषि के अथर्ववेद के आधार पर इस ग्रन्थ में प्रवृत्ति और निवृत्ति मार्गों की चर्चा है। दोनों मार्गों का यह आधारस्तम्भ है।
  • नारायण का कथन है- 'हरिभक्त वसुराज उपरिचर इस ग्रन्थ को बृहस्पति से सीखेगा और उसके अनुसार चलेगा, परन्तु इसके पश्चात यह ग्रन्थ नष्ट हो जाएगा।'
  • चित्रशिखण्डी ऋषियों का यह ग्रन्थ आजकल उपलब्ध नहीं है।


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टीका टिप्पणी और संदर्भ

  • पुस्तक हिन्दू धर्म कोश से पेज संख्या 266 | डॉ. राजबली पाण्डेय |उत्तर प्रदेश हिन्दी संस्थान (हिन्दी समिति प्रभाग) |राजर्षि पुरुषोत्तमदास टंडन हिन्दी भवन महात्मा गाँधी मार्ग, लखनऊ