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− | उत्तर भारतीय ग्रामीण क्षेत्रों में आज भी यह परंपरा है कि घर पर किसी विशिष्ट आगंतुक के आने पर रोटी सब्जी दाल चावल जैसा सामान्य भोजन न बनाकर अतिथि के सम्मान में पूरी कचौरी आदि विशेष भोजन बनाया जाता है। इसे आम बोलचाल में पक्की रसोई कहा जाता है। कच्ची और पक्की रसोई से जुड़ा एक रोचक संस्मरण [[विनोबा भावे|विनोबा जी]] के सहयोगी गौतम बजाज के सौजन्य से सुनने को मिला जब वे [[हरदोई]] सी. एस. एन. कालेज में एक विचार गोष्ठी को सम्बोधित करने आये थे। उन्होंने यह | + | उत्तर भारतीय ग्रामीण क्षेत्रों में आज भी यह परंपरा है कि घर पर किसी विशिष्ट आगंतुक के आने पर रोटी सब्जी दाल चावल जैसा सामान्य भोजन न बनाकर अतिथि के सम्मान में पूरी कचौरी आदि विशेष भोजन बनाया जाता है। इसे आम बोलचाल में पक्की रसोई कहा जाता है। कच्ची और पक्की रसोई से जुड़ा एक रोचक संस्मरण [[विनोबा भावे|विनोबा जी]] के सहयोगी गौतम बजाज के सौजन्य से सुनने को मिला जब वे [[हरदोई]] सी. एस. एन. कालेज में एक विचार गोष्ठी को सम्बोधित करने आये थे। उन्होंने यह क़िस्सा कुछ इस प्रकार बताया:- |
[[सरदार पटेल]] एक बार संत विनोवा जी के आश्रम गये जहां उन्हें भोजन भी ग्रहण करना था। आश्रम की रसोई में [[उत्तर भारत]] के किसी गांव से आया कोई साधक भोजन व्यवस्था से जुड़ा था। सरदार पटेल को आश्रम का विशिष्ठ अतिथि जानकर उनके सम्मान में साधक ने सरदार जी से पूछा लिये कि आप के लिये रसोई पक्की अथवा कच्ची। सरदार पटेल इसका अर्थ न समझ सके तो साधक से इसका अभिप्राय पूछा तो साधक ने अपने आशय को कुछ और स्पष्ठ करते हुये कहा कि वे कच्चा खाना खायेगे अथवा पक्का यह सुनकर सरदार जी ने तपाक से उत्तर दिया कि कच्चा क्यों खायेंगे पक्का ही खायेंगे। खाना बनने के बाद जब पटेल जी की थाली में पूरी कचौरी जैसी चीजें आयीं तो सरदार पटेल ने सादी रोटी और दाल मांगी तो वह साधक उनके सामने आकर खड़ा हो गया और उन्हें बताया गया कि उन्हीं के निर्देशन पर ही तो पक्की रसोई बनायी गयी थी। इस घटना के बाद ही पटेल उत्तर भारत की कच्ची और पक्की रसोई के फ़र्क़ को समझ पाये। | [[सरदार पटेल]] एक बार संत विनोवा जी के आश्रम गये जहां उन्हें भोजन भी ग्रहण करना था। आश्रम की रसोई में [[उत्तर भारत]] के किसी गांव से आया कोई साधक भोजन व्यवस्था से जुड़ा था। सरदार पटेल को आश्रम का विशिष्ठ अतिथि जानकर उनके सम्मान में साधक ने सरदार जी से पूछा लिये कि आप के लिये रसोई पक्की अथवा कच्ची। सरदार पटेल इसका अर्थ न समझ सके तो साधक से इसका अभिप्राय पूछा तो साधक ने अपने आशय को कुछ और स्पष्ठ करते हुये कहा कि वे कच्चा खाना खायेगे अथवा पक्का यह सुनकर सरदार जी ने तपाक से उत्तर दिया कि कच्चा क्यों खायेंगे पक्का ही खायेंगे। खाना बनने के बाद जब पटेल जी की थाली में पूरी कचौरी जैसी चीजें आयीं तो सरदार पटेल ने सादी रोटी और दाल मांगी तो वह साधक उनके सामने आकर खड़ा हो गया और उन्हें बताया गया कि उन्हीं के निर्देशन पर ही तो पक्की रसोई बनायी गयी थी। इस घटना के बाद ही पटेल उत्तर भारत की कच्ची और पक्की रसोई के फ़र्क़ को समझ पाये। |
13:59, 9 मई 2021 के समय का अवतरण
कच्ची पक्की का फ़र्क़ -सरदार पटेल
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विवरण | सरदार पटेल |
भाषा | हिंदी |
देश | भारत |
मूल शीर्षक | प्रेरक प्रसंग |
उप शीर्षक | सरदार पटेल के प्रेरक प्रसंग |
संकलनकर्ता | अशोक कुमार शुक्ला |
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उत्तर भारतीय ग्रामीण क्षेत्रों में आज भी यह परंपरा है कि घर पर किसी विशिष्ट आगंतुक के आने पर रोटी सब्जी दाल चावल जैसा सामान्य भोजन न बनाकर अतिथि के सम्मान में पूरी कचौरी आदि विशेष भोजन बनाया जाता है। इसे आम बोलचाल में पक्की रसोई कहा जाता है। कच्ची और पक्की रसोई से जुड़ा एक रोचक संस्मरण विनोबा जी के सहयोगी गौतम बजाज के सौजन्य से सुनने को मिला जब वे हरदोई सी. एस. एन. कालेज में एक विचार गोष्ठी को सम्बोधित करने आये थे। उन्होंने यह क़िस्सा कुछ इस प्रकार बताया:-
सरदार पटेल एक बार संत विनोवा जी के आश्रम गये जहां उन्हें भोजन भी ग्रहण करना था। आश्रम की रसोई में उत्तर भारत के किसी गांव से आया कोई साधक भोजन व्यवस्था से जुड़ा था। सरदार पटेल को आश्रम का विशिष्ठ अतिथि जानकर उनके सम्मान में साधक ने सरदार जी से पूछा लिये कि आप के लिये रसोई पक्की अथवा कच्ची। सरदार पटेल इसका अर्थ न समझ सके तो साधक से इसका अभिप्राय पूछा तो साधक ने अपने आशय को कुछ और स्पष्ठ करते हुये कहा कि वे कच्चा खाना खायेगे अथवा पक्का यह सुनकर सरदार जी ने तपाक से उत्तर दिया कि कच्चा क्यों खायेंगे पक्का ही खायेंगे। खाना बनने के बाद जब पटेल जी की थाली में पूरी कचौरी जैसी चीजें आयीं तो सरदार पटेल ने सादी रोटी और दाल मांगी तो वह साधक उनके सामने आकर खड़ा हो गया और उन्हें बताया गया कि उन्हीं के निर्देशन पर ही तो पक्की रसोई बनायी गयी थी। इस घटना के बाद ही पटेल उत्तर भारत की कच्ची और पक्की रसोई के फ़र्क़ को समझ पाये।
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