"आदित्य चौधरी -फ़ेसबुक पोस्ट जुलाई-दिसम्बर 2016" के अवतरणों में अंतर
गोविन्द राम (चर्चा | योगदान) |
आदित्य चौधरी (चर्चा | योगदान) छो (Text replacement - "मुताबिक" to "मुताबिक़") |
||
(3 सदस्यों द्वारा किये गये बीच के 6 अवतरण नहीं दर्शाए गए) | |||
पंक्ति 5: | पंक्ति 5: | ||
| | | | ||
{| width=100% class="bharattable" | {| width=100% class="bharattable" | ||
− | |||
− | |||
− | |||
− | |||
|- | |- | ||
− | | | + | | |
+ | ; दिनांक- 29 दिसम्बर, 2016 | ||
<poem> | <poem> | ||
|| चलो जाने दो || | || चलो जाने दो || | ||
पंक्ति 47: | पंक्ति 44: | ||
ये ‘चलो जाने दो’ कोई मामूली ‘चलो जाने दो’ नहीं है बल्कि ये हमारे देश के पिछड़ेपन की एक मुख्य वजह है। हम लोग सरकार, नेता, अधिकारी और अन्य भी बहुतों की ग़लत बात को बड़ी सहनशीलता से झेलते हैं। बिजली,पानी,सड़क,सुरक्षा,स्वास्थ्य और शिक्षा जैसे मसलों पर भी हम चुप रहते हैं। रिश्वत, ग़लत क़ानून, पुलिस ज़्यादती आदि को सहकर भी चुप रहते हैं। कोई भी नेता ज़रा सा सपना दिखाकर हमें बहका लेता है और हम बहक जाते हैं जब उसकी असली मंशा पता चलती है तब तक बहुत देर हो चुकी होती है लेकिन फिर भी हम यही सोचकर चुप हो जाते हैं कि चलो जाने दो... | ये ‘चलो जाने दो’ कोई मामूली ‘चलो जाने दो’ नहीं है बल्कि ये हमारे देश के पिछड़ेपन की एक मुख्य वजह है। हम लोग सरकार, नेता, अधिकारी और अन्य भी बहुतों की ग़लत बात को बड़ी सहनशीलता से झेलते हैं। बिजली,पानी,सड़क,सुरक्षा,स्वास्थ्य और शिक्षा जैसे मसलों पर भी हम चुप रहते हैं। रिश्वत, ग़लत क़ानून, पुलिस ज़्यादती आदि को सहकर भी चुप रहते हैं। कोई भी नेता ज़रा सा सपना दिखाकर हमें बहका लेता है और हम बहक जाते हैं जब उसकी असली मंशा पता चलती है तब तक बहुत देर हो चुकी होती है लेकिन फिर भी हम यही सोचकर चुप हो जाते हैं कि चलो जाने दो... | ||
</poem> | </poem> | ||
− | |||
− | |||
|- | |- | ||
| | | | ||
+ | ; दिनांक- 23 दिसम्बर, 2016 | ||
<poem> | <poem> | ||
“अरे छोटूऽऽऽ! जल्दी से सॉस बनाने का सामान ले आ, सॉस बनानी है…” | “अरे छोटूऽऽऽ! जल्दी से सॉस बनाने का सामान ले आ, सॉस बनानी है…” | ||
पंक्ति 66: | पंक्ति 62: | ||
मैं तो दंग रह गया। ढाबे वाले का ‘कॉन्फ़िडेंस’ देखकर। कितने आत्मविश्वास के साथ वो नक़ली टमॅटो कॅचप बना रहा था। मज़ेदार बात ये है कि मैं दिल्ली जाते वक़्त मैं अक्सर उसी के ढाबे पर रुकता था और उसी सॉस के साथ कटलेट्स खाता था। | मैं तो दंग रह गया। ढाबे वाले का ‘कॉन्फ़िडेंस’ देखकर। कितने आत्मविश्वास के साथ वो नक़ली टमॅटो कॅचप बना रहा था। मज़ेदार बात ये है कि मैं दिल्ली जाते वक़्त मैं अक्सर उसी के ढाबे पर रुकता था और उसी सॉस के साथ कटलेट्स खाता था। | ||
</poem> | </poem> | ||
− | |||
− | |||
|- | |- | ||
| | | | ||
+ | ; दिनांक- 22 दिसम्बर, 2016 | ||
<poem> | <poem> | ||
वैसे तो आजकल सब नोटबंदी से जुड़ी बातों और कामों में ही व्यस्त हैं लेकिन एक बहुत गंभीर मसला है जिस पर ग़ौर किया जाना चाहिए- | वैसे तो आजकल सब नोटबंदी से जुड़ी बातों और कामों में ही व्यस्त हैं लेकिन एक बहुत गंभीर मसला है जिस पर ग़ौर किया जाना चाहिए- | ||
पंक्ति 79: | पंक्ति 74: | ||
तो आइए इस दुनिया के बारे में बात करें… इस दुनिया में कई दुनिया हैं। जेम्स वॉट से पहले और उसके बाद। पेट्रोलियम से पहले और उसके बाद। बिजली से पहले और उसके बाद। न्यूटन से पहले और उसके बाद। आइन्सटाइन से पहले और उसके बाद। कंप्यूटर से पहले और उसके बाद। इंटरनेट से पहले और उसके बाद। स्मार्ट फ़ोन से पहले और उसके बाद। | तो आइए इस दुनिया के बारे में बात करें… इस दुनिया में कई दुनिया हैं। जेम्स वॉट से पहले और उसके बाद। पेट्रोलियम से पहले और उसके बाद। बिजली से पहले और उसके बाद। न्यूटन से पहले और उसके बाद। आइन्सटाइन से पहले और उसके बाद। कंप्यूटर से पहले और उसके बाद। इंटरनेट से पहले और उसके बाद। स्मार्ट फ़ोन से पहले और उसके बाद। | ||
− | हम पेट्रोल, बिजली, न्यूटन, आइन्सटाइन, कंप्यूटर, इंटरनेट और स्मार्टफ़ोन की दुनिया में रह रहे हैं। ऐसा नहीं है कि इसमें भारत का योगदान नहीं है। असल में बहुत सी भारतीय खोजों के बल पर ये नई दुनिया टिकी है। जिसमें प्राचीन काल के पिंगल, पाणिनी, | + | हम पेट्रोल, बिजली, न्यूटन, आइन्सटाइन, कंप्यूटर, इंटरनेट और स्मार्टफ़ोन की दुनिया में रह रहे हैं। ऐसा नहीं है कि इसमें भारत का योगदान नहीं है। असल में बहुत सी भारतीय खोजों के बल पर ये नई दुनिया टिकी है। जिसमें प्राचीन काल के पिंगल, पाणिनी, आर्यभट और कणाद के नाम प्रमुख हैं। जिन्होंने अणु, पाई, बाइनरी और खगोलीय खोज कीं और आधुनिक काल के जगदीश चंद्र बसु, सी.वी. रमण, हरगोविन्द खुराना आदि के नाम प्रमुख हैं। बहुत सारी खोजें हुईं और उनके तरह-तरह के नतीजे समाज के सामने आए। एक नतीजा पर्यावरण को ख़तरे के रूप में आया। |
पर्यावरण अब कोई ऐसा मुद्दा नहीं रह गया है जिस पर कि बार-बार बहस की जाय। पर्यावरण अब एक ऐसी आपत्कालिक स्थिति है जिससे निपटने के प्रयास युद्धस्तर पर करने की आवश्यकता है। जिस तरह जापान, हिरोशिमा-नागासाकी के बम के बाद की विभीषिका से उबरा। चीन बाढ़ और सूखा की स्थिति से उबरा। उसी तरह भारत को इस प्रदूषण की चुनौती से लड़कर उबरना होगा वरना आज की दुनिया में जो जन्म ले रहा है उसका कल कैसा हो सकता है यह सभी समझदार व्यक्ति अच्छी तरह समझते हैं। | पर्यावरण अब कोई ऐसा मुद्दा नहीं रह गया है जिस पर कि बार-बार बहस की जाय। पर्यावरण अब एक ऐसी आपत्कालिक स्थिति है जिससे निपटने के प्रयास युद्धस्तर पर करने की आवश्यकता है। जिस तरह जापान, हिरोशिमा-नागासाकी के बम के बाद की विभीषिका से उबरा। चीन बाढ़ और सूखा की स्थिति से उबरा। उसी तरह भारत को इस प्रदूषण की चुनौती से लड़कर उबरना होगा वरना आज की दुनिया में जो जन्म ले रहा है उसका कल कैसा हो सकता है यह सभी समझदार व्यक्ति अच्छी तरह समझते हैं। | ||
− | प्रदूषण के | + | प्रदूषण के जगत् के महानायक बिजली, पेट्रोलियम, डिटरजेंट और पेस्टीसाइड्स हैं लेकिन इनके बिना विकास संभव नहीं माना जाता। जहाँ तक आधुनिक विचारधारा का संबंध है यही माना जाता है। प्लास्टिक और मिनरल वॉटर की ख़ाली बोतलें और नदियों-तालाबों में घुलता डिटरजेंट और पेस्टीसाइड्स एक ख़ौफ़नाक अजेय दैत्य बनकर सामने खड़ा है। विशेषज्ञ बता रहे हैं कि दिल्ली में रहने वालों की उम्र में पिछले दिनों के प्रदूषण से 3 से 5 साल कम हो गए याने वे अपनी सामान्य उम्र से कम जीएँगे। |
क्या तरीक़ा है इस प्रदूषण से लड़ने का और इसे हराने का ? | क्या तरीक़ा है इस प्रदूषण से लड़ने का और इसे हराने का ? | ||
पंक्ति 97: | पंक्ति 92: | ||
© आदित्य चौधरी | © आदित्य चौधरी | ||
</poem> | </poem> | ||
− | |||
− | |||
|- | |- | ||
| | | | ||
+ | ; दिनांक- 26 नवम्बर, 2016 | ||
<poem> | <poem> | ||
+ | [[चित्र:Ratan-Tata-on-demonitization.jpg|250px|right]] | ||
भारत के प्रमुख उद्योगपति श्री रतन टाटा द्वारा सरकार के नाम पत्र का हिन्दी भावार्थ प्रस्तुत है- | भारत के प्रमुख उद्योगपति श्री रतन टाटा द्वारा सरकार के नाम पत्र का हिन्दी भावार्थ प्रस्तुत है- | ||
पंक्ति 108: | पंक्ति 103: | ||
हालांकि सरकार अपनी तरफ से नए करंसी नोटों की कमी पूरी करने की पूरी कोशिश कर रही है किंतु ग़रीब जनता के लिये विशेष राहत के उपाय उपलब्ध कराने चाहिए, जैसे कि राष्ट्रीय आपदा के समय किये जाते हैं। जिससे उनकी रोज़मर्रा की ज़रूरतें पूरी हो सकें और छोटे अस्पतालों में आपात्कालीन स्वास्थ्य देखभाल और इलाज हो सके। ऐसे राहत उपाय इस ग़रीब जनता द्वारा ख़ूब सराहे जाएँगे क्योंकि इस से यह भी साबित होगा कि इस महत्वपूर्ण विमुद्रीकरण की संक्रान्ति के समय में सरकार आम आदमी के बारे में भी चिंता करती है और उनकी ज़रूरतों को भूली नहीं है। | हालांकि सरकार अपनी तरफ से नए करंसी नोटों की कमी पूरी करने की पूरी कोशिश कर रही है किंतु ग़रीब जनता के लिये विशेष राहत के उपाय उपलब्ध कराने चाहिए, जैसे कि राष्ट्रीय आपदा के समय किये जाते हैं। जिससे उनकी रोज़मर्रा की ज़रूरतें पूरी हो सकें और छोटे अस्पतालों में आपात्कालीन स्वास्थ्य देखभाल और इलाज हो सके। ऐसे राहत उपाय इस ग़रीब जनता द्वारा ख़ूब सराहे जाएँगे क्योंकि इस से यह भी साबित होगा कि इस महत्वपूर्ण विमुद्रीकरण की संक्रान्ति के समय में सरकार आम आदमी के बारे में भी चिंता करती है और उनकी ज़रूरतों को भूली नहीं है। | ||
</poem> | </poem> | ||
+ | |- | ||
| | | | ||
− | + | ; दिनांक- 6 अक्टूबर, 2016 | |
− | |||
− | |||
<poem> | <poem> | ||
यूँ तो हम अपनी परम्परा और प्राचीनता की दुहाई देते हैं लेकिन अपने त्योहारों तक के नाम और उच्चारण में लापरवाही बरतते हैं जिससे अर्थ का अनर्थ हो जाता है। | यूँ तो हम अपनी परम्परा और प्राचीनता की दुहाई देते हैं लेकिन अपने त्योहारों तक के नाम और उच्चारण में लापरवाही बरतते हैं जिससे अर्थ का अनर्थ हो जाता है। | ||
पंक्ति 119: | पंक्ति 113: | ||
सही यह है "पावन व्रतोत्सव नवरात्र की शुभकामनाएँ" | सही यह है "पावन व्रतोत्सव नवरात्र की शुभकामनाएँ" | ||
</poem> | </poem> | ||
− | |||
− | |||
|- | |- | ||
| | | | ||
+ | ;दिनांक- 4 अक्टूबर, 2016 | ||
<poem> | <poem> | ||
− | भारत-पाकिस्तान की दुश्मनी को लेकर काफ़ी लिखा और बोला जा रहा है। सर्जिकल स्ट्राइक के बाद पूरे भारत में एक जोश और संतुष्टि का माहौल बना है। इस | + | भारत-पाकिस्तान की दुश्मनी को लेकर काफ़ी लिखा और बोला जा रहा है। सर्जिकल स्ट्राइक के बाद पूरे भारत में एक जोश और संतुष्टि का माहौल बना है। इस कार्रवाई के बाद पाकिस्तान लगभग चुप है, जिसका कारण है कि इस सर्जिकल स्ट्राइक को अंतरराष्ट्रीय नियमों और क़ानून के मुताबिक़़ हॉट पर्सुइट (Hot pursuit) की मान्यता प्राप्त होना। |
− | हॉट पर्सुइट याने ‘किसी आधिकारिक सशस्त्र दल (जैसे सेना या पुलिस) द्वारा अपराधियों का अपराध करते ही त्वरित पीछा करना। इस पीछा करने और अपराधियों के ख़िलाफ़ | + | हॉट पर्सुइट याने ‘किसी आधिकारिक सशस्त्र दल (जैसे सेना या पुलिस) द्वारा अपराधियों का अपराध करते ही त्वरित पीछा करना। इस पीछा करने और अपराधियों के ख़िलाफ़ कार्रवाई करने में देश या राज्य की सीमा पार कर जाने को अंतरराष्ट्री सीमा उल्लंघन नहीं माना जाता है। इसमें सामान्य रूप से किसी स्वीकृति या सूचना की भी आवश्यकता नहीं होती और इसे अंतरराष्ट्रीय स्तर पर मान्यता प्राप्त है। |
इस मुद्दे पर कुछ विवाद भी सामने आए हैं। जिनमें से एक मुद्दा है नदियों के पानी का। विश्व भर में जलसंधियों के आधार पर नदियों के जल का बँटवारा होता है। जिसे भंग नहीं किया जा सकता, लेकिन अब ऐसा होना मुमकिन है। प्रसिद्ध वैज्ञानिक अल्बर्ट आइन्सटाइन ने कहा था कि भविष्य में युद्धों के कारण जल-विवाद ही होंगे। अब यह सामने आने लगा है। नदियों के पानी बंटवारे का विवाद हमारे देश में राज्यों के आपसी विवाद का कारण भी है। जैसे फ़िलहाल में कावेरी का विवाद। | इस मुद्दे पर कुछ विवाद भी सामने आए हैं। जिनमें से एक मुद्दा है नदियों के पानी का। विश्व भर में जलसंधियों के आधार पर नदियों के जल का बँटवारा होता है। जिसे भंग नहीं किया जा सकता, लेकिन अब ऐसा होना मुमकिन है। प्रसिद्ध वैज्ञानिक अल्बर्ट आइन्सटाइन ने कहा था कि भविष्य में युद्धों के कारण जल-विवाद ही होंगे। अब यह सामने आने लगा है। नदियों के पानी बंटवारे का विवाद हमारे देश में राज्यों के आपसी विवाद का कारण भी है। जैसे फ़िलहाल में कावेरी का विवाद। | ||
एक बात हमें अच्छी तरह समझ लेनी चाहिए कि चीन और पाकिस्तान से चाहे रिश्ते कितने भी मधुर हो जाएँ, नदियों के जल का विवाद होना अवश्यम्-भावी है। ब्रह्मपुत्र के पानी को लेकर इस समय चीन जो कुछ कर रहा है उसकी वजह पाकिस्तान नहीं है। पाकिस्तान पर तो वह बेवजह एहसान दिखा रहा है। ब्रह्मपुत्र के पानी को लेकर तो चीन के इरादे बहुत पहले से ही नेक नहीं हैं। | एक बात हमें अच्छी तरह समझ लेनी चाहिए कि चीन और पाकिस्तान से चाहे रिश्ते कितने भी मधुर हो जाएँ, नदियों के जल का विवाद होना अवश्यम्-भावी है। ब्रह्मपुत्र के पानी को लेकर इस समय चीन जो कुछ कर रहा है उसकी वजह पाकिस्तान नहीं है। पाकिस्तान पर तो वह बेवजह एहसान दिखा रहा है। ब्रह्मपुत्र के पानी को लेकर तो चीन के इरादे बहुत पहले से ही नेक नहीं हैं। | ||
पंक्ति 136: | पंक्ति 129: | ||
ऐसी बात नहीं है कि मुझे पाकिस्तान का कभी भी कुछ भी पसंद नहीं रहा। मेरे भी पसंदीदा शायर कुछ पाकिस्तानी रहे हैं जैसे फ़ैज़ अहमद फ़ैज़ और अहमद फ़राज़। ग़ज़ल गायकों में मेंहदी हसन मेरे पसंदीदा हैं लेकिन पाकिस्तान के किसी शायर की ग़ज़ल पसंद करना एक अलग बात है और फ़िल्मी और टीवी कलाकारों को भारत में बिठाकर उसकी करोड़ों-अरबों की कमाई करवाना एक बिल्कुल अलग बात है। | ऐसी बात नहीं है कि मुझे पाकिस्तान का कभी भी कुछ भी पसंद नहीं रहा। मेरे भी पसंदीदा शायर कुछ पाकिस्तानी रहे हैं जैसे फ़ैज़ अहमद फ़ैज़ और अहमद फ़राज़। ग़ज़ल गायकों में मेंहदी हसन मेरे पसंदीदा हैं लेकिन पाकिस्तान के किसी शायर की ग़ज़ल पसंद करना एक अलग बात है और फ़िल्मी और टीवी कलाकारों को भारत में बिठाकर उसकी करोड़ों-अरबों की कमाई करवाना एक बिल्कुल अलग बात है। | ||
</poem> | </poem> | ||
− | |||
− | |||
|- | |- | ||
| | | | ||
+ | ;दिनांक- 1 अक्टूबर, 2016 | ||
+ | [[चित्र:Aditya-Chaudhary-Delhi-Akadami.jpg|right|200px]] | ||
<poem> | <poem> | ||
हिन्दी अकादमी दिल्ली में मेरे व्याख्यान का एक अंश यहाँ प्रस्तुत है ताकि सनद रहे कि मैं कहीं भी मौजूद होता हूँ तो ब्रज को नहीं भूलता… | हिन्दी अकादमी दिल्ली में मेरे व्याख्यान का एक अंश यहाँ प्रस्तुत है ताकि सनद रहे कि मैं कहीं भी मौजूद होता हूँ तो ब्रज को नहीं भूलता… | ||
पंक्ति 146: | पंक्ति 139: | ||
शायद आप नहीं जानते होंगे कि ब्रजभाषा अकादमी राजस्थान में तो है पर उत्तर प्रदेश में नहीं… | शायद आप नहीं जानते होंगे कि ब्रजभाषा अकादमी राजस्थान में तो है पर उत्तर प्रदेश में नहीं… | ||
</poem> | </poem> | ||
− | |||
− | |||
|- | |- | ||
| | | | ||
+ | ;दिनांक- 28 अगस्त, 2016 | ||
<poem> | <poem> | ||
− | ओलंपिक मेडल जीतने के बाद जो करोड़ों रुपए की बरसात खिलाड़ियों पर होती है, वह पैसा अगर उन कोच को दिया जाए जिन्होंने उस खिलाड़ी को बनाया तो ज़्यादा बेहतर नतीजे सामने आ सकते हैं। 10 सिंधु मिलकर एक | + | ओलंपिक मेडल जीतने के बाद जो करोड़ों रुपए की बरसात खिलाड़ियों पर होती है, वह पैसा अगर उन कोच को दिया जाए जिन्होंने उस खिलाड़ी को बनाया तो ज़्यादा बेहतर नतीजे सामने आ सकते हैं। 10 सिंधु मिलकर एक पुलेला गोपीचंद नहीं बना सकतीं हैं जबकि एक पुलेला गोपीचंद 10 सिंधु बना सकता है... |
</poem> | </poem> | ||
− | |||
− | |||
|- | |- | ||
| | | | ||
+ | ;दिनांक- 17 अगस्त, 2016 | ||
+ | [[चित्र:Aditya-Chaudhary-Facebook-post-3.jpg|right|200px]] | ||
<poem> | <poem> | ||
किसी व्यक्ति का सही मूल्याँकन उसके जीवन के किसी कालखंड से नहीं बल्कि उसके पूरे जीवनकाल से होता है। | किसी व्यक्ति का सही मूल्याँकन उसके जीवन के किसी कालखंड से नहीं बल्कि उसके पूरे जीवनकाल से होता है। | ||
</poem> | </poem> | ||
− | |||
− | |||
|- | |- | ||
| | | | ||
+ | ;दिनांक- 14 अगस्त, 2016 | ||
<poem> | <poem> | ||
एक विदेशी पत्रकार ने एक आधुनिक नेता का इंटरव्यू लिया | एक विदेशी पत्रकार ने एक आधुनिक नेता का इंटरव्यू लिया | ||
पंक्ति 182: | पंक्ति 173: | ||
पत्रकार ने मौन धारण कर लिया और वापस चला गया। | पत्रकार ने मौन धारण कर लिया और वापस चला गया। | ||
</poem> | </poem> | ||
− | | | + | |- |
− | | | + | | |
+ | ;दिनांक- 28 जुलाई, 2016 | ||
+ | <poem> | ||
+ | सुसेवायाम् | ||
+ | परम पिता श्रीमंत प्रजापति ब्रह्मा जी महाराज | ||
+ | |||
+ | सिरी पत्री जोग लिखी मथुरा से ब्रह्मलोक कूँ | ||
+ | हमारी सबकी राम-राम आप सब को मिले। | ||
+ | अपरंच समाचार ये है कि यहाँ सब कुशल है और आपके यहाँ तो सब कुशल होगा ही… | ||
+ | |||
+ | यहाँ मौसम बरसात का है झमाझम चौमासे चल रहे हैं तो फिर थोड़ी बहुत तबियत भी ‘नासाज’ चलती है। बाक़ी सब आपकी ‘किरपा’ से ठीक-ठाक और सकुशल है। पिछले दिनों घनघनाती बारिश आई। घरों-चौबारों में तो बच्चे काग़ज़ की नाव चलाने लगे, गाँवों में कच्चे घर गिर गए, शहर में पक्के घरों की छत टपकने लगीं और अब आपसे क्या छुपाना, हमारा भी घर पुराना है तो उसकी छत भी टपकी। हमारे यहाँ कहते हैं ‘जितना नाहर (शेर) का डर नहीं है जितना कि टपके का डर है’। ख़ैर आप तो बादलों से ऊपर रहते हैं आपको क्या पता कि बारिश क्या है और ‘टपका’ क्या है। | ||
+ | |||
+ | बरसात से किसान की फ़सल बहुत ही अच्छी होने की संभावना बन रही है ब्रह्मा जी! । सब आपकी माया है… कहीं धूप कहीं छाया है। | ||
+ | बाक़ी सब आपकी किरपा है। सबकुछ ठीक-ठाक चल रहा है, कुशल मंगल है। वैसे तो आपको पता ही होगा लेकिन फिर भी बता दूँ कि एक देश है फ्रांस वहाँ एक ट्रक ने जानबूझ कर सैकड़ों लोग कुचल डाले… उस दृश्य को देखकर दिल तो क्या पत्थर का पहाड़ भी पिघल जाता। मगर आपके ब्रह्मलोक में तो न ही सड़कें हैं और न ही ट्रक तो आपको इसका कोई अनुभव नहीं होगा। जब आपको कभी दर्द हुआ ही नहीं तो समझेंगे क्या प्रजापति जी! हमारे यहाँ कहते हैं कि ‘जाके पैर न फटी बिबाई वो कहा जाने पीर पराई’ फिर भी हम तो आपसे ही गुहार करते हैं भले ही आप सुनें न सुनें। | ||
+ | |||
+ | श्रीमंत! हमारे देश में प्रजातंत्र है आप प्रजापति हैं तो इसके बारे में अच्छी तरह से जानते ही होंगे, अब आपके सामने हम क्या ज्ञानी बनें। प्रजातंत्र में जनता को स्वतंत्रता मिली हुई है, विशेषकर अभिव्यक्ति की स्वतंत्रता। इस स्वतंत्रता के लाभ क्या हैं हम साधारण जन समझ नहीं पाते लेकिन इसके नुक़सान भी हैं जो हमें बहुत दु:खी करते हैं। यह अभिव्यक्ति बच्चियों से बलात्कार करने में ज़्यादा की जा रही है। बलात्कार की घटनाएँ इतनी सामान्य हो चली हैं कि लोग अपनी दुश्मनी निकालने के लिए झूठे बलात्कार के आरोप लगाने लगे हैं। अभी पिछले दिनों दो पड़ोसियों में ज़मीन को लेकर विवाद हो गया दोनों ने एक दूसरे पर अपनी नाबालिग बेटियों पर यौनशोषण होने का झूठा आरोप पुलिस की उपस्थिति में लगाने की कोशिश की… बाक़ी सब सकुशल है, ठीक-ठाक चल रहा है। | ||
+ | |||
+ | हमारे प्रदेश में अब चुनाव आने वाले हैं ब्रह्मा जी! तीन-चार पार्टियाँ हैं जो यहाँ दंगल में हिस्सा लेंगी। एक सामाजिक न्याय का बहाना बनाएगी तो दूसरी समाजवाद का, तीसरी अच्छे दिनों का और चौथी के पास तो पता नहीं क्या मुद्दा है। इस चुनाव में जीते कोई भी लेकिन हारेगी हमेशा की तरह जनता ही। चेहरों के अलावा कुछ भी नहीं बदलेगा (अाजकल तो सरकार बदलने पर बहुत से चेहरे भी नहीं बदलते)। विकास कार्यों में कमीशन, पोखर-तालाबों पर क़ब्ज़े, झूठे वादे, व्यक्तिगत लाभ देने की पेशकश, पैसा लेकर नौकरी, नेताओं, ब्यूरोक्रेसी और पुलिस का निरंकुश राज… | ||
+ | |||
+ | आपके ब्रह्मलोक में प्रजातंत्र नहीं है इसलिए आपको यह सब नहीं भुगतना पड़ता है परमपिता! ऐसा नहीं है कि प्रजातंत्र कोई बुरी पद्धति है बल्कि बहुत से देशों में यह सचमुच में है और अपने सर्वजनहिताय स्वरूप में ही मौजूद है। ज़रा ये बताइये कि हमारा प्रजातंत्र ऐसा क्यों है ? हर गली-मुहल्ले में पार्टियाँ बन रही हैं कुछ ही परिवार राज किए जा रहे हैं। किसी को धर्म, किसी को जाति और किसी को क्षेत्र या भाषा का ही मुद्दा मिलता है। जनहितकारी मुद्दे ग़ायब हैं। व्यक्तिगत हित सर्वोपरि हैं। हमारे देश में तो कुछ ऐसा लगता है कि जैसे प्रजातंत्र वह द्रौपदी है जिसे दु:शासन (कुशासन) से ही ब्याह दिया गया है। बाक़ी सब कुशल है, सब आपकी ‘किरपा’ है। | ||
+ | |||
+ | आपसे करबद्ध निवेदन है कि थोड़ा सा हमारा दर्द समझने और बाँटने की ‘किरपा’ कीजिए। ज़रा झांककर देखिए बुन्देलखन्ड में कितने किसान भूखे मरे और कितने आत्महत्या करके। हमारे पड़ोस की उस औरत के घर में जिसका पति कुछ कमाता नहीं और फिर भी जुअा खेलता है और शराब पीकर अपनी बीवी-बच्चों की पिटाई करता है। बीवी अपने पति से पिट-पिट कर भी घरों में चौका-बर्तन करके अपने बच्चों को पाल रही है। अपने बच्चों को पानी पिलाने के लिए भी उसे किसी धनाड्य के घर से आर.ओ. का पानी ले जाना पड़ता है। शेष सब कुशल मंगल है। आपकी किरपा बनी हुई है। | ||
+ | |||
+ | कभी-कभी हम सोचते हैं ब्रह्मा जी! कि धरती का सारा धुँआ उड़कर असमान की तरफ़ जाता है। आपको अखरता तो होगा। पर्यावरण की हालत का अन्दाज़ा आपको ज़रूर होगा। हमारे खेतों से होकर जो नहर गुज़र रही हैं उनमें पानी का रंग काला होने लगा है। बाग़ों को काटकर दुक़ाने बनाई जा रही हैं। जब कोई बड़ा पेड़ काटा जाता है तो हमें लगता है कि किसी बज़ुर्ग की हत्या हो गई। क्या आपको भी ऐसा लगता है? हमारे घर में भी एक नीम का पेड़ है वो बूढ़ा हो गया है और हमारे घर की ओर बहुत ज़्यादा झुक गया है। डर है कि कहीं घर पर न गिर पड़े। कई बार सोचा कि इसे कटवादें लेकिन हिम्मत नहीं पड़ती। जब हमारा एक पेड़ के पीछे ये हाल है तो दुनियाँ में न जाने कितने पेड़ रोज़ाना काटे जा रहे हैं। किसी का दिल नहीं पसीजता? आपका भी नहीं? | ||
+ | |||
+ | हमने तो जो मन में आया लिख दिया है अब आप जानें कि क्या ‘एक्सन’ लेंगे। कोई भूल-चूक हुई हो तो ‘छिमा’ कीजिएगा। | ||
+ | |||
+ | सबको यथायोग्य | ||
+ | आपका अाज्ञाकारी | ||
+ | आदित्य चौधरी | ||
+ | </poem> | ||
+ | |- | ||
+ | | | ||
+ | ;दिनांक- 4 जुलाई, 2016 | ||
+ | [[चित्र:Aditya-Chaudhary-Facebook-Post-04.jpg|right|200px]] | ||
+ | <poem> | ||
+ | महत्वपूर्ण यह नहीं कि आप अपने ज्ञान के प्रति कितने सतर्क हैं ! महत्वपूर्ण तो यह कि आप अपने अज्ञान के प्रति कितने सतर्क हैं। | ||
+ | अपनी अज्ञानता का सही रूप में ज्ञान होना और निरंतर बने रहना ही किसी भी ज्ञानी की सही पहचान है। | ||
+ | अक्सर हमारा ज्ञान ही हमें विचारवान होने से रोकने लगता है। स्वयं को ज्ञानी मानकर जीते जाना, हमारे भीतर न जाने कितनी अज्ञानता पैदा करता है और नए विचारों से वंचित कर देता है। | ||
+ | </poem> | ||
|} | |} | ||
|} | |} |
09:53, 11 फ़रवरी 2021 के समय का अवतरण
|