"अलाउद्दीन बहमन शाह प्रथम" के अवतरणों में अंतर

भारत डिस्कवरी प्रस्तुति
यहाँ जाएँ:भ्रमण, खोजें
छो (Adding category Category:भारतीय चरित कोश (को हटा दिया गया हैं।))
 
(6 सदस्यों द्वारा किये गये बीच के 15 अवतरण नहीं दर्शाए गए)
पंक्ति 1: पंक्ति 1:
अलाउद्दीन बहमन शाह प्रथम दक्षिण के बहमनी वंश का प्रथम सुल्तान था। उसका पूरा ख़िताब था—'सुल्तान अलाउद्दीन हसन शाह अल-बली-अलबहमनी'। इसके पहले वह हसन के नाम से विख्यात था। वह दिल्ली के सुल्तान मुहम्मद बिन तुग़लक के दरबार में एक अफ़ग़ान अथवा तुर्क सरदार था। उसे 'ज़फ़र ख़ाँ' का ख़िताब मिला था। सुल्तान [[मुहम्मद बिन तुग़लक]] की सैनकों से तंग आकर दक्षिण के मुसलमान अमीरों ने विद्रोह करके [[दौलताबाद]] के क़िले पर अधिकार कर लिया और हसन उर्फ ज़फ़र ख़ाँ को अपना सुल्तान बनाया। उसने सुल्तान अलाउद्दीन बहमन शाह की उपाधि धारण की और 1347 ई0 में कुलवर्ग ([[गुलबर्गा]]) को अपनी राजधानी बनाकर नये राजवंश की नींव डाली। इतिहासकार फ़रिश्ता ने हसन के सम्बन्ध में लिखा है कि वह [[दिल्ली]] के ब्राह्मण ज्योतिषी गंगू के यहाँ नौकर था। जिसे मुहम्मद बिन तुग़लक बहुत मानता था। अपने ब्रह्मण मालिक का कृपापात्र होने के कारण वह तुग़लक की नज़र में चढ़ा। इसलिए अपने संरक्षक गंगू ब्राह्मण के प्रति आदर भाव से उसने बहमनी उपाधि धारण की। फ़रिश्ता की यह कहानी सही नहीं है। क्योंकि इसका समर्थन सिक्कों अथवा अन्य लेखों से नहीं होता। उसके पहले की मुसलमानी तवीराख़ 'बुरहान-ए-मासिर' के अनुसार हसन बहमन वंश का था। इसीलिए, उसका वंश बहमनी कहलाया। वास्तव में हसन अपने को फ़ारस के प्रसिद्ध वीर योद्धा बहमन का वंशज मानता था। हसन भी एक सफल योद्धा था। उसने अपनी मृत्यु (फरवरी 1358 ई0) से पूर्व अपना राज्य उत्तर में बैन-[[गंगा नदी ]]से लेकर दक्षिण में [[कृष्णा नदी]] तक फैला लिया था। उसने अपने राज्य को चार सूबों—कुलबर्ग, दौलताबाद, [[बराड़]] और [[बीदर]] में बाँट दिया था और शासन का उत्तम प्रबंध किया था। 'बुरहान-ए-मासिर' के अनुसार वह इंसाफ पसंद सुल्तान था। जिसने इस्लाम के प्रचार के लिए बहुत कार्य किया।
+
'''अलाउद्दीन बहमन शाह प्रथम''' दक्षिण के [[बहमनी वंश]] का प्रथम सुल्तान था। उसका पूरा ख़िताब "सुल्तान अलाउद्दीन हसन शाह अल-बली-अलबहमनी" था। इसके पहले वह हसन के नाम से विख्यात था।
[[Category:बहमनी साम्राज्य]][[Category:इतिहास कोश]]__INDEX__
+
*वह [[दिल्ली]] के सुल्तान [[मुहम्मद बिन तुग़लक़]] के दरबार में एक [[अफ़ग़ान]] अथवा तुर्क सरदार था, जहाँ उसे 'ज़फ़र ख़ाँ' का ख़िताब मिला था।<ref>{{पुस्तक संदर्भ |पुस्तक का नाम=भारतीय चरित कोश|लेखक=लीलाधर शर्मा 'पर्वतीय'|अनुवादक=|आलोचक=|प्रकाशक=शिक्षा भारती, मदरसा रोड, कश्मीरी गेट, दिल्ली|संकलन= |संपादन=|पृष्ठ संख्या=51|url=}}</ref>
 +
 
 +
*सुल्तान मुहम्मद बिन तुग़लक़ की सनकों से तंग आकर दक्षिण के [[मुसलमान]] अमीरों ने विद्रोह करके [[दौलताबाद]] के क़िले पर अधिकार कर लिया और हसन उर्फ ज़फ़र ख़ाँ को अपना सुल्तान बनाया।
 +
*उसने सुल्तान अलाउद्दीन बहमन शाह की उपाधि धारण की और 1347 ई. में कुलवर्ग ([[गुलबर्गा]]) को अपनी राजधानी बनाकर बहमनी राजवंश की नींव डाली।
 +
*इतिहासकार [[फ़रिश्ता]] ने हसन के सम्बन्ध में लिखा है कि, "वह दिल्ली के [[ब्राह्मण]] ज्योतिषी गंगू के यहाँ नौकर था, जिसे मुहम्मद बिन तुग़लक़ बहुत मानता था। अपने ब्रह्मण मालिक का कृपापात्र होने के कारण वह तुग़लक़ की नज़र में चढ़ा। इसलिए अपने संरक्षक गंगू ब्राह्मण के प्रति आदर भाव से उसने बहमनी उपाधि धारण की।
 +
*फ़रिश्ता की यह कहानी सही प्रतीत नहीं होती है, क्योंकि इसका समर्थन सिक्कों अथवा अन्य लेखों से नहीं होता।
 +
*उसके पहले की मुसलमानी तवारिख़ 'बुरहान-ए-मासिर' के अनुसार, 'हसन बहमन वंश का था'। इसीलिए उसका वंश बहमनी कहलाया।
 +
*वास्तव में हसन अपने को [[फ़ारस]] के प्रसिद्ध वीर योद्धा 'इस्कान्दियार' के पुत्र 'बहमन' का वंशज मानता था।
 +
*ज़फ़र ख़ाँ एक सफल योद्धा था, उसने अपनी मृत्यु (फ़रवरी 1358 ई.) से पूर्व अपना राज्य उत्तर में बैन-[[गंगा नदी]] से लेकर दक्षिण में [[कृष्णा नदी]] तक फैला लिया था।
 +
*उसने अपने राज्य को चार सूबों—कुलबर्ग, [[दौलताबाद]], [[बरार]] और [[बीदर]] में बाँट दिया था और शासन का उत्तम प्रबंध किया था।
 +
*'बुरहान-ए-मासिर' के अनुसार वह इंसाफ पसंद सुल्तान था। जिसने [[इस्लाम धर्म]] के प्रचार के लिए बहुत कार्य किया।
 +
*जफ़र ख़ाँ की इतिहासकारों द्वारा तथा एक अच्छे न्यायकारी सुल्तान के रूप में प्रशंसा की गई है, जो एक प्रजापालक व्यक्ति था।
 +
*उसने अपने पड़ोसी राज्यों से अनेक युद्ध किये, विशेषरूप से [[हिन्दू]] राज्य [[विजयनगर साम्राज्य|विजयनगर]] से, जो कि उसी के समय में स्थापित हुआ था।
 +
*जफ़र ख़ाँ जब मृत्यु शैया पर था, तभी उसने अपने सबसे बड़े पुत्र मुहम्मदशाह को अपना उत्तराधिकारी नियुक्त कर दिया था।
 +
 
 +
{{शासन क्रम |शीर्षक=[[बहमनी वंश]] |पूर्वाधिकारी= |उत्तराधिकारी=[[मुहम्मद बहमनी शाह प्रथम|बहमनी शाह प्रथम]]}}
 +
 
 +
 
 +
{{लेख प्रगति|आधार=|प्रारम्भिक=प्रारम्भिक1|माध्यमिक=|पूर्णता=|शोध=}}
 +
==संबंधित लेख==
 +
{{बहमनी साम्राज्य}}
 +
[[Category:बहमनी_साम्राज्य]]
 +
[[Category:दक्कन_सल्तनत]]
 +
[[Category:मध्य_काल]]
 +
[[Category:इतिहास_कोश]]
 +
[[Category:भारतीय चरित कोश]]
 +
__INDEX__

06:40, 7 जनवरी 2020 के समय का अवतरण

अलाउद्दीन बहमन शाह प्रथम दक्षिण के बहमनी वंश का प्रथम सुल्तान था। उसका पूरा ख़िताब "सुल्तान अलाउद्दीन हसन शाह अल-बली-अलबहमनी" था। इसके पहले वह हसन के नाम से विख्यात था।

  • सुल्तान मुहम्मद बिन तुग़लक़ की सनकों से तंग आकर दक्षिण के मुसलमान अमीरों ने विद्रोह करके दौलताबाद के क़िले पर अधिकार कर लिया और हसन उर्फ ज़फ़र ख़ाँ को अपना सुल्तान बनाया।
  • उसने सुल्तान अलाउद्दीन बहमन शाह की उपाधि धारण की और 1347 ई. में कुलवर्ग (गुलबर्गा) को अपनी राजधानी बनाकर बहमनी राजवंश की नींव डाली।
  • इतिहासकार फ़रिश्ता ने हसन के सम्बन्ध में लिखा है कि, "वह दिल्ली के ब्राह्मण ज्योतिषी गंगू के यहाँ नौकर था, जिसे मुहम्मद बिन तुग़लक़ बहुत मानता था। अपने ब्रह्मण मालिक का कृपापात्र होने के कारण वह तुग़लक़ की नज़र में चढ़ा। इसलिए अपने संरक्षक गंगू ब्राह्मण के प्रति आदर भाव से उसने बहमनी उपाधि धारण की।
  • फ़रिश्ता की यह कहानी सही प्रतीत नहीं होती है, क्योंकि इसका समर्थन सिक्कों अथवा अन्य लेखों से नहीं होता।
  • उसके पहले की मुसलमानी तवारिख़ 'बुरहान-ए-मासिर' के अनुसार, 'हसन बहमन वंश का था'। इसीलिए उसका वंश बहमनी कहलाया।
  • वास्तव में हसन अपने को फ़ारस के प्रसिद्ध वीर योद्धा 'इस्कान्दियार' के पुत्र 'बहमन' का वंशज मानता था।
  • ज़फ़र ख़ाँ एक सफल योद्धा था, उसने अपनी मृत्यु (फ़रवरी 1358 ई.) से पूर्व अपना राज्य उत्तर में बैन-गंगा नदी से लेकर दक्षिण में कृष्णा नदी तक फैला लिया था।
  • उसने अपने राज्य को चार सूबों—कुलबर्ग, दौलताबाद, बरार और बीदर में बाँट दिया था और शासन का उत्तम प्रबंध किया था।
  • 'बुरहान-ए-मासिर' के अनुसार वह इंसाफ पसंद सुल्तान था। जिसने इस्लाम धर्म के प्रचार के लिए बहुत कार्य किया।
  • जफ़र ख़ाँ की इतिहासकारों द्वारा तथा एक अच्छे न्यायकारी सुल्तान के रूप में प्रशंसा की गई है, जो एक प्रजापालक व्यक्ति था।
  • उसने अपने पड़ोसी राज्यों से अनेक युद्ध किये, विशेषरूप से हिन्दू राज्य विजयनगर से, जो कि उसी के समय में स्थापित हुआ था।
  • जफ़र ख़ाँ जब मृत्यु शैया पर था, तभी उसने अपने सबसे बड़े पुत्र मुहम्मदशाह को अपना उत्तराधिकारी नियुक्त कर दिया था।



बहमनी वंश
Arrow-left.png पूर्वाधिकारी
अलाउद्दीन बहमन शाह प्रथम उत्तराधिकारी
बहमनी शाह प्रथम
Arrow-right.png


पन्ने की प्रगति अवस्था
आधार
प्रारम्भिक
माध्यमिक
पूर्णता
शोध

संबंधित लेख

  1. भारतीय चरित कोश |लेखक: लीलाधर शर्मा 'पर्वतीय' |प्रकाशक: शिक्षा भारती, मदरसा रोड, कश्मीरी गेट, दिल्ली |पृष्ठ संख्या: 51 |