अलाउद्दीन ख़िलजी

भारत डिस्कवरी प्रस्तुति
रेणु (चर्चा | योगदान) द्वारा परिवर्तित 11:48, 17 मई 2010 का अवतरण ('अलाउद्दीन ख़िलजी दिल्ली का सुल्तान (1296-1316 ई0 तक) था। व...' के साथ नया पन्ना बनाया)
(अंतर) ← पुराना अवतरण | वर्तमान अवतरण (अंतर) | नया अवतरण → (अंतर)
यहाँ जाएँ:भ्रमण, खोजें

अलाउद्दीन ख़िलजी दिल्ली का सुल्तान (1296-1316 ई0 तक) था। वह ख़िलजी वंश के संस्थापक जलालुद्दीन ख़िलजी का भतीजा और दामाद था। सुल्तान बनने के पहले उसे इलाहाबाद के निकट कड़ाकी जागीर दी गयी थी। तभी उसने बिना सुल्तान को बताये 1295 ई0 में दक्षिण पर पहला मुसलमानी हमला किया।

आक्रमण

उसने देवगिरि के यादववंशी राजा रामचन्द्र देव पर चढ़ाई बोल दी। रामचन्द्र देव ने दक्षिण के अन्य हिन्दू राजाओं से सहायता माँगी जो उसे नहीं मिली। अन्त में उसने सोना, चाँदी और जवाहारात देकर अलाउद्दीन के सामने आत्मसमर्पण कर दिया। बहुत सा धन लेकर वह 1296 ई0 में दिल्ली लौटा जहाँ उसने सुल्तान जलालुद्दीन ख़िलजी की हत्या कर दी और स्वयं सुल्तान बन बैठा। उसने सुल्तान जलालुद्दीन के बेटों को भी मौत के घाट उतार दिया और उसके समर्थक अमीरों को घूँस देकर चुप कर दिया। इसके बावजूद अलाउद्दीन को कठिनाइयों का सामना करना पड़ा।

मंगोलों द्वारा हमले

मंगोलों ने उसके राज्य पर बार-बार हमले किये और 1299 ई0 में तो दिल्ली के नज़दीक तक पहुँच गये। अलाउद्दीन ने उनको हर बार खदेड़ दिया और 1308 ई0 में उनको ऐसा हराया कि उसके बाद उन्होंने हमला करना बंद कर दिया।

मुग़लों द्वारा हमले

अलाउद्दीन ख़िलजी के समय में जिन मुग़लों ने हमला किया था, उनमें जो मुसलमान बन गये थे, उनको दिल्ली के पास के इलाकों में बस जाने दिया। उनको नौमुस्लिम कहा जाता था, किन्तु उन्होंने सुल्तान के ख़िलाफ़ षड़यंत्र रचा जिसकी जानकारी मिलने पर सुल्तान ने एक दिन में उनका क़त्लेआम करवा दिया। इसके बाद सुल्तान के कुछ रिश्तेदारों ने विद्रोह करने की कोशिश की। उनका निर्दयता से दमन करके मौत के घाट उतार दिया गया।

दिल्ली की सल्तनत का प्रसार

यह माना जाता है कि अलाउद्दीन ख़िलजी के गद्दी पर बैठने के बाद दिल्ली की सल्तनत का प्रसार आरम्भ हुआ। उसके गद्दी पर बैठने के साल भर बाद उसके भाई उलूगख़ाँ और वज़ीर नसरतख़ाँ के नेतृत्व में उसकी सेना ने गुजरात के हिन्दू राजा कर्णदेव पर हमला कया। कर्णदेव ने अपनी लड़की देवल देवी के साथ भागकर देवगिरि के यादव राजा रामचन्द्रदेव के दरबार में शरण ली। मुसलमानी सेना गुजरात से बेशुमार दौलत लूटकर लायी। साथ में दो कैदियों को भी लायी। उनमें से एक रानी कमलादेवी थी, जिससे अलाउद्दीन ने विवाह करके उसे अपनी मलिका बनाया और दूसरा काफ़ूर नामक ग़ुलाम था जो शीघ्र ही सुल्तान की निगाह में चढ़ गया। उसको मलिक नायब का पद दिया गया।

राज्यों पर जीत

इसके बाद अलाउद्दीन ने अनेक राज्यों को जीता। रणथंभौर 1303 ई0 में, मालवा 1305 ई0 में और उसके बाद क्रमिक रीति से उज्जैन, धार, मांडू और चन्देरी को भी जीत लिया। मलिक काफ़ूर और ख्वाजा हाज़ी के नेतृत्व में मुसलमानी सेना ने पुनः दक्षिण की ओर अभियान किया। 1307 ई0 में देवगिरि को दुबारा जीता गया और 1310 ई0 में ओरंगल के काकतीय राज्य को ध्वस्त कर दिया गया। इसके बाद द्वार समुद्र के होमशल राज्य को भी नष्ट कर दिया गया और मुसलमानी राज्य कन्याकुमारी तक दोनों और के समुद्र तटों तक पहुँच गया। मुसलमानी सेना 1311 ई0 में बहुत सी लूट की दौलत के साथ दिल्ली लौटी। उस समय उसके पास 612 हाथी, 20000 घोड़े, और 96000 सोना और जवाहारात की अनेक पेटियाँ थीं। इसके पहले दिल्ली का कोई सुल्तान इतना अमीर और शक्तिशाली नहीं हुआ। इन विजयों के बाद अलाउद्दीन हिमालय से कन्याकुमारी तक पूरे हिन्दुस्तान का शासक बन गया।

विद्रोहों के कारण

अलाउद्दीन केवल एक सैनिक ही नहीं था। वह सम्भवतः पढ़ा-लिखा नहीं था, लेकिन बुद्धि पैनी थी। वह जानता था कि उसका लक्ष्य क्या है और उसे कैसे पाया जा सकता है। मुसलमान इतिहासकार बरनी के अनुसार सुल्तान ने अनुभव किया कि उसके शासन के आरम्भ में कई विद्रोह हुए जिनसे उसके राज्य की शान्ति भंग हो गयी। उसने इन विद्रोहों के चार कारण ढूँढ निकाले:-

  • सुल्तान का राजकाज में दिलचस्पी न लेना,
  • शराबखोरी,
  • अमीरों के आपसी गठबंधन जिसके कारण वे षड़यंत्र करने लगते थे और,
  • बेशुमार धन-दौलत, जिसके कारण लोगों में घमंण्ड और राजद्रोह पैदा होता था।

प्रशासन

उसने गुप्तचर संगठन बनाया और सुल्तान की इजाज़त के बग़ैर अमीरों में परस्पर शादी-विवाह की मुमानियत कर दी। शराब पीना, बेचना और बनाना बंद कर दिया गया। अंत में उसने सभी निजी सम्पत्तियाँ अपने अधिकार में कर लीं। दान और वक्फ, सभी सम्पत्ति पर राज्य का अधिकार हो गया। लोगों पर भारी कर लगाये गए और करों को इतनी सख्ती से वसूल किया जाने लगा कि कर वसूलने वाले अधिकारियों से लोग घृणा करने लगे। उनके साथ कोई अपनी बेटी ब्याहना पसंद नहीं करता था। लेकिन अलाउद्दीन का लक्ष्य पूरा हो गया। षड़यंत्र और विद्रोह दबा दिये गए। अलाउद्दीन ने तलवार के बल पर अपना राज्य चलाया। उसने मुसलमानों अथवा मुल्लाओं को प्रशासन में हस्तक्षेप करने से रोक दिया और उसे अपनी इच्छानुसार चलाया। उसके पास एक बड़ी भारी सेना थी। जिसकी तनख्वाह सरकारी ख़जाने से दी जाती थी। उसकी सेना के पैदल सिपाही को 234 रुपये वार्षिक तनख्वाह मिलती थी। अपने दो घोड़े रखने पर उसे 78 रुपये वार्षिक और दिये जाते थे। सिपाही अपनी छोटी तनख्वाह पर गुज़र-बसर कर सकें, इसलिए उसने अनाज जैसी आवश्यक वस्तुओं से लेकर ऐश के साधनों—ग़ुलामों और रखैल औरतों के निर्खी भी निश्चित कर दिये थे। सरकार की ओर से निश्चित मूल्यों पर सामान बिकवाने का इतंजाम किया जाता था और किसी की हिम्मत सरकारी हुक्म को तोड़ने की नहीं पड़ती थी। अलाउद्दीन ने कवियों को आश्रय दिया। अमीर ख़ुसरो और हसन को उसका संरक्षण प्राप्त था।

क़िले और मस्जिदें

वह इमारतें बनवाने का भी शौकीन था। उसने अनेक क़िले और मस्जिदें बनवायीं।

मृत्यु

उसका बुढ़ापा दुःख में बीता। 1312 ई0 के बाद उसे कोई सफलता नहीं मिली। उसकी तन्दुरुस्ती खराब हो गयी और उसे जलोदर हो गया। उसकी बुद्धि और निर्णय लेने की क्षमता नष्ट हो गयी। उसे अपने बीबियों और लड़कों पर भरोसा नहीं रह गया था। मलिक काफ़ूर जिसे उसने ग़ुलाम से सेनापति बनाया था, सुल्तान के नाम पर शासन चलाता रहा। 2 जनवरी 1316 ई0 को अलाउद्दीन की मृत्यु के साथ ही उसका शासन भी समाप्त हो गया।