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*अंधेर नगरी [[भारतेन्दु हरिश्चन्द्र]] कृत प्रहसन है।  
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'''अंधेर नगरी''' [[भारतेन्दु हरिश्चन्द्र]] कृत व्यंग्यात्मक और रोचक प्रहसन है। 
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*इसका नायक 'अन्धेरनगरी' का राजा 'चौपट राजा' है।
 
*यह प्रहसन अत्यंत प्रसिद्ध और लोक-प्रचलित है।  
 
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*उसमें छ: अंक हैं।  
 
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पहले अंक में एक महंत अपने दो शिष्यों, नारायणदास और गोबरधनदास में से दूसरे को भिक्षा माँगने के सम्बन्ध में अधिक लोभ न करने का उपदेश देता है।  
 
पहले अंक में एक महंत अपने दो शिष्यों, नारायणदास और गोबरधनदास में से दूसरे को भिक्षा माँगने के सम्बन्ध में अधिक लोभ न करने का उपदेश देता है।  
 
;दूसरा अंक  
 
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दूसरे अंक में बाज़ार के विभिन्न व्यापारियों के दृश्य हैं, जिनकी माल बेचने के लिए लगायी गयी आवाज़ों में व्यंग्य की तीव्रता है। शिष्य बाज़ार में हर एक चीज टके सेर पाता है और नगरी और राजा का नाम, '''अन्धेर नगरी - चौपट राजा''', ज्ञातकर और मिठाई लेकर महंत के पास वापस आता है।  
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दूसरे अंक में बाज़ार के विभिन्न व्यापारियों के दृश्य हैं, जिनकी माल बेचने के लिए लगायी गयी आवाज़ों में व्यंग्य की तीव्रता है। शिष्य बाज़ार में हर एक चीज़ टके सेर पाता है और नगरी और राजा का नाम, '''अन्धेर नगरी - चौपट राजा''', ज्ञातकर और मिठाई लेकर महंत के पास वापस आता है।  
 
;तीसरा अंक  
 
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गोबरधनदास से नगरी का हाल मालूम कर वह ऐसी नगरी में रहना उचित न समझ तीसरे अंक में वहाँ चलने के लिए अपने शिष्यों से कहता है। किंतु गोबरधनदास लोभ के वशीभूत हो वहीं रह जाता है और महंत तथा नारायणदास वहाँ से चले जाते हैं।  
 
गोबरधनदास से नगरी का हाल मालूम कर वह ऐसी नगरी में रहना उचित न समझ तीसरे अंक में वहाँ चलने के लिए अपने शिष्यों से कहता है। किंतु गोबरधनदास लोभ के वशीभूत हो वहीं रह जाता है और महंत तथा नारायणदास वहाँ से चले जाते हैं।  
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जिस राज्य में विवेक - अभिवेक का भेद न किया जाय वहाँ की प्रजा सुखी नहीं रह सकती, यह व्यक्त करना ही इस प्रहसन का उद्देश्य है।
 
जिस राज्य में विवेक - अभिवेक का भेद न किया जाय वहाँ की प्रजा सुखी नहीं रह सकती, यह व्यक्त करना ही इस प्रहसन का उद्देश्य है।
 
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13:36, 1 अक्टूबर 2012 के समय का अवतरण

अंधेर नगरी भारतेन्दु हरिश्चन्द्र कृत व्यंग्यात्मक और रोचक प्रहसन है।

  • इसका नायक 'अन्धेरनगरी' का राजा 'चौपट राजा' है।
  • यह प्रहसन अत्यंत प्रसिद्ध और लोक-प्रचलित है।
  • उसमें छ: अंक हैं।
पहला अंक

पहले अंक में एक महंत अपने दो शिष्यों, नारायणदास और गोबरधनदास में से दूसरे को भिक्षा माँगने के सम्बन्ध में अधिक लोभ न करने का उपदेश देता है।

दूसरा अंक

दूसरे अंक में बाज़ार के विभिन्न व्यापारियों के दृश्य हैं, जिनकी माल बेचने के लिए लगायी गयी आवाज़ों में व्यंग्य की तीव्रता है। शिष्य बाज़ार में हर एक चीज़ टके सेर पाता है और नगरी और राजा का नाम, अन्धेर नगरी - चौपट राजा, ज्ञातकर और मिठाई लेकर महंत के पास वापस आता है।

तीसरा अंक

गोबरधनदास से नगरी का हाल मालूम कर वह ऐसी नगरी में रहना उचित न समझ तीसरे अंक में वहाँ चलने के लिए अपने शिष्यों से कहता है। किंतु गोबरधनदास लोभ के वशीभूत हो वहीं रह जाता है और महंत तथा नारायणदास वहाँ से चले जाते हैं।

चौथा अंक

चौथे अंक में पीनक में बैठा राजा एक फरियादी की बकरी मर जाने पर कल्लू बनिया, कारीगर, चूनेवाले, भिश्ती, कसाई और गड़रिया को छोड़कर अंत में अपने कोतवाल को ही फाँसी का दण्ड देता है, क्योंकि अंततोगत्वा उसकी सवारी निकलने से ही बकरी दबकर मर गयी।

पाँचवा अंक

पाँचवें अंक में कोतवाल गर्दन पतली होने के कारण गोबरधनदास पकड़ा जाता है, ताकि उसकी मोटी गर्दन फाँसी के फन्दे में ठीक बैठे। अब उसे अपने गुरु की बात याद आती है।

छटा अंक

छठे अंक में जब वह फाँसी पर चढाया जाने को है, गुरु जी और नारायणदास आ जाते हैं। गुरु जी गोबरधनदास के कान में कुछ कहते हैं और उसके बाद दोनों में फाँसी पर चढ़ने के लिए होड़ लग जाती है। इसी समय राजा, मंत्री और कोतवाल आते हैं। गुरु जी के यह कहने पर कि इस साइत में जो मरेगा सीधा बैकुण्ठ को जाएगा, मंत्री और कोतवाल में फाँसी पर चढ़ने के लिए प्रतिद्वंतिता उत्पन्न हो जाती है, किंतु राजा के रहते बैकुण्ठ कौन जा सकता है, ऐसा कह राजा स्वयं फाँसी पर चढ़ जाता है।

प्रहसन का उद्देश्य

जिस राज्य में विवेक - अभिवेक का भेद न किया जाय वहाँ की प्रजा सुखी नहीं रह सकती, यह व्यक्त करना ही इस प्रहसन का उद्देश्य है।

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