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फ़िल्मी दुनिया में क़दम रखने के बाद उनका नाम सिमट कर हो गया देवानंद। देव आनंद को अभिनेता के रूप में पहला ब्रेक 1946 में प्रभात स्टूडियो की फिल्म ‘हम एक हैं’ से मिला। लेकिन इस फिल्म के असफल होने से वह दर्शकों के बीच अपनी पहचान नहीं बना सके। इस फिल्म के निर्माण के दौरान प्रभात स्टूडियो में उनकी मुलाकात बाद के मशहूर फिल्म निर्माता-निर्देशक गुरूदत्त से हुई जो उन दिनों फिल्मी दुनिया में कोरियोग्राफर के रूप में स्थान बनाने के लिए संघर्षरत थे। वहाँ दोनों की दोस्ती हुई और एक साथ सपने देखते इन दोनों दोस्तों ने आपस में एक वादा किया कि अगर गुरूदत्त फ़िल्म निर्देशक बनेंगे तो वे देव को अभिनेता के रूप में लेंगे और अगर देव निर्माता बनेंगे तो गुरुदत्त को निर्देशक के रूप में लेंगे।  
 
फ़िल्मी दुनिया में क़दम रखने के बाद उनका नाम सिमट कर हो गया देवानंद। देव आनंद को अभिनेता के रूप में पहला ब्रेक 1946 में प्रभात स्टूडियो की फिल्म ‘हम एक हैं’ से मिला। लेकिन इस फिल्म के असफल होने से वह दर्शकों के बीच अपनी पहचान नहीं बना सके। इस फिल्म के निर्माण के दौरान प्रभात स्टूडियो में उनकी मुलाकात बाद के मशहूर फिल्म निर्माता-निर्देशक गुरूदत्त से हुई जो उन दिनों फिल्मी दुनिया में कोरियोग्राफर के रूप में स्थान बनाने के लिए संघर्षरत थे। वहाँ दोनों की दोस्ती हुई और एक साथ सपने देखते इन दोनों दोस्तों ने आपस में एक वादा किया कि अगर गुरूदत्त फ़िल्म निर्देशक बनेंगे तो वे देव को अभिनेता के रूप में लेंगे और अगर देव निर्माता बनेंगे तो गुरुदत्त को निर्देशक के रूप में लेंगे।  
  
वर्ष 1948 में प्रदर्शित फिल्म 'जिद्दी' (1948) में अभिऩेत्री कामिनी कौशल के साथ देव आनंद के फिल्मी कॅरियर की पहली हिट फिल्म साबित हुई। जिद्दी ने देव आनंद को नई ऊंचाइयां दिलायी। इस फिल्म की कामयाबी के बाद उन्होंने फिल्म निर्माण के क्षेत्र में कदम रख दिया। सन् 1949 में उन्होंने 'नवकेतन' बैनर नाम से स्वयं की फिल्म निर्माण संस्था खोल ली और उसके अंतर्गत साल दर साल फिल्में बनाने में सफल हुये। नवकेतन के बैनर तले उन्होंने वर्ष 1950 में अपनी पहली फिल्म अफसर का निर्माण किया जिसके निर्देशन की जिम्मेदारी उन्होंने अपने बड़े भाई चेतन आनंद को सौंपी। इस फिल्म के लिए उन्होंने उस जमाने की जानी मानी अभिनेत्री सुरैया का चयन किया जबकि अभिनेता के रूप में देव आनंद खुद ही थे। हालाँकि फ़िल्म बॉक्स ऑफ़िस पर कोई करिश्मा नहीं दिखा पाई। इसके बाद उनका ध्यान गुरूदत्त को किए गए वायदे की तरफ गया। और सन् 1951 में उन्होंने अपनी अगली फिल्म 'बाजी' के निर्देशन की जिम्मेदारी गुरूदत्त को सौंप दी। फिल्म सुपरहिट हुई और दोनों दोस्तों की किस्मत चमक गई। फ़िल्म बाज़ी की कहानी बलराज साहनी ने लिखी थी। बाजी फिल्म की सफलता के बाद देव आनंद फिल्म इंडस्ट्री में एक अच्छे अभिनेता के रूप में शुमार होने लगे। देव यहीं से दिलीप कुमार और राजकुमार की क़तार में जा खड़े हुए और इस त्रिमूर्ति ने लंबे समय तक हिंदी फ़िल्मी दुनिया पर राज किया। जाल, राही, आंधियां, (1952), पतिता (1953), व अन्य फिल्मों के साथ स्‌न 1954 में अभिनेत्री कल्पना कार्तिक के साथ आई फिल्म "टैक्सी ड्राईव्हर" बड़ी हीट फिल्म थी। इस बीच देव आनंद ने मुनीम जी (1955), दुश्मन, काला बाजार, सी.आई.डी. (1956), पेइंग गेस्ट (1957), गैम्बलर, तेरे घर के सामने, काला पानी, लव एट टाइम्स स्क्वैर, हम नौजवान, देश परदेस, तेरे मेरे सपने, हरे रामा हरे कृष्णा, जॉनी मेरा नाम, ज्वैलथीफ़, हम दोनों (1961), बात एक रात की, असली नकली, माया, रूप की रानी चोरों का राजा, बम्बई का बाबू, लव मैरिज, दुश्मन, टैक्सी ड्राइवर, नौ दो ग्यारह, फंटूश, बाज़ी बेमिसाल, पॉकेटमार, जब प्यार किसी से होता है, तीन देविंया और गाइड जैसी कई सफल फिल्मों में अपनी अदाकारी का जौहर प्रस्तुत किया।
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वर्ष 1948 में प्रदर्शित फिल्म 'जिद्दी' (1948) में अभिऩेत्री कामिनी कौशल के साथ देव आनंद के फिल्मी कॅरियर की पहली हिट फिल्म साबित हुई। जिद्दी ने देव आनंद को नई ऊंचाइयां दिलायी। इस फिल्म की कामयाबी के बाद उन्होंने फिल्म निर्माण के क्षेत्र में कदम रख दिया। सन् 1949 में उन्होंने 'नवकेतन' बैनर नाम से स्वयं की फिल्म निर्माण संस्था खोल ली और उसके अंतर्गत साल दर साल फिल्में बनाने में सफल हुये। नवकेतन के बैनर तले उन्होंने वर्ष 1950 में अपनी पहली फिल्म अफसर का निर्माण किया जिसके निर्देशन की जिम्मेदारी उन्होंने अपने बड़े भाई चेतन आनंद को सौंपी। इस फिल्म के लिए उन्होंने उस जमाने की जानी मानी अभिनेत्री सुरैया का चयन किया जबकि अभिनेता के रूप में देव आनंद खुद ही थे। हालाँकि फ़िल्म बॉक्स ऑफ़िस पर कोई करिश्मा नहीं दिखा पाई। इसके बाद उनका ध्यान गुरूदत्त को किए गए वायदे की तरफ गया। और सन् 1951 में उन्होंने अपनी अगली फिल्म 'बाजी' के निर्देशन की जिम्मेदारी गुरूदत्त को सौंप दी। फिल्म सुपरहिट हुई और दोनों दोस्तों की किस्मत चमक गई। फ़िल्म बाज़ी की कहानी बलराज साहनी ने लिखी थी। बाजी फिल्म की सफलता के बाद देव आनंद फिल्म इंडस्ट्री में एक अच्छे अभिनेता के रूप में शुमार होने लगे। देव यहीं से दिलीप कुमार और राजकुमार की क़तार में जा खड़े हुए और इस त्रिमूर्ति ने लंबे समय तक हिंदी फ़िल्मी दुनिया पर राज किया। जाल, राही, आंधियां, (1952), पतिता (1953), व अन्य फिल्मों के साथ स्‌न 1954 में अभिनेत्री कल्पना कार्तिक के साथ आई फिल्म "टैक्सी ड्राईव्हर" बड़ी हीट फिल्म थी। देव आनंद की मुनीम जी (1955), दुश्मन, काला बाजार, सी.आई.डी. (1956), पेइंग गेस्ट (1957), गैम्बलर, तेरे घर के सामने, काला पानी, लव एट टाइम्स स्क्वैर, हम नौजवान, देश परदेस, तेरे मेरे सपने, हरे रामा हरे कृष्णा, जॉनी मेरा नाम, ज्वैलथीफ़, हम दोनों (1961), बात एक रात की, असली नकली, माया, रूप की रानी चोरों का राजा, बम्बई का बाबू, लव मैरिज, दुश्मन, टैक्सी ड्राइवर, नौ दो ग्यारह, फंटूश, बाज़ी बेमिसाल, पॉकेटमार, जब प्यार किसी से होता है, हीरा पन्ना, बनारसी बाबू, जोशीला छूपा रुस्तम, शरीफ बदमाश, इश्क इश्क, अमीर गरीब, वारंट, साहेब बहादूर, देश-परदेश, लूटमार, तीन देविंया और गाइड इत्यादि प्रसिध्द फिल्में रही हैं। इसके अलावा भी उन्होने अनेंकों फिल्मों में काम किया और अभी भी वे फिल्म बना रहे हैं।
  
 
==देव आनंद और गुरुदत्त==
 
==देव आनंद और गुरुदत्त==
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देव आनंद ने कई फिल्मों की पटकथा भी लिखी। जिसमें वर्ष 1952 में प्रदर्शित फिल्म आंधियां के अलावा हरे रामा हरे कृष्णा, हम नौजवान, अव्वल नंबर, प्यार का तराना (1993 में), गैंगेस्टर, मैं सोलह बरस की, सेन्सर आदि फिल्में शामिल हैं। इस के अलावा बतौर निर्माता 1998 में मैं सोलह बरस की और 1993 में प्यार का तराना लेकर सामने आऐ।  
 
देव आनंद ने कई फिल्मों की पटकथा भी लिखी। जिसमें वर्ष 1952 में प्रदर्शित फिल्म आंधियां के अलावा हरे रामा हरे कृष्णा, हम नौजवान, अव्वल नंबर, प्यार का तराना (1993 में), गैंगेस्टर, मैं सोलह बरस की, सेन्सर आदि फिल्में शामिल हैं। इस के अलावा बतौर निर्माता 1998 में मैं सोलह बरस की और 1993 में प्यार का तराना लेकर सामने आऐ।  
  
देवानंद एक समय बाद नई अभिनेत्रियों को पर्दे पर उतारने के लिए मशहूर हो गए। हरे रामा हरे कृष्णा के ज़रिए उन्होंने ज़ीनत अमान की खोज की और टीना मुनीम, नताशा सिन्हा व एकता जैसी अभिनेत्रियों को मैदान में उतारने का श्रेय भी देव साहब को ही जाता है। आज भी वह नई अभिनेत्रियों की तलाश में हैं और फ़िल्म बनाने का उनका शौक़ जारी है।
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देवानंद एक समय बाद नई अभिनेत्रियों को पर्दे पर उतारने के लिए मशहूर हो गए। हरे रामा हरे कृष्णा के ज़रिए उन्होंने ज़ीनत अमान की खोज की और टीना मुनीम, नताशा सिन्हा व एकता जैसी अभिनेत्रियों को मैदान में उतारने का श्रेय भी देव साहब को ही जाता है। आज भी वह नई अभिनेत्रियों की तलाश में हैं और फ़िल्म बनाने का उनका शौक़ जारी है। अभिनेत्री हेमा मालिनी के साथ कई फिल्में की।
  
 
हाल के सालों में देवानंद अपनी प्रोडक्शन कंपनी 'नवकेतन' के तले कई फिल्में बनाने में व्यस्त हैं। वह लगातार अपने बैनर के तले फिल्में बना रहे हैं जिसके लीड हीरो वह खुद ही होते हैं। नवकेतन बैनर तले उन्होंने हाल के सालों में 'हरे रामा हरे कृष्णा', 'अव्वल नंबर' जैसी सुपरहिट फिल्में दी हैं।
 
हाल के सालों में देवानंद अपनी प्रोडक्शन कंपनी 'नवकेतन' के तले कई फिल्में बनाने में व्यस्त हैं। वह लगातार अपने बैनर के तले फिल्में बना रहे हैं जिसके लीड हीरो वह खुद ही होते हैं। नवकेतन बैनर तले उन्होंने हाल के सालों में 'हरे रामा हरे कृष्णा', 'अव्वल नंबर' जैसी सुपरहिट फिल्में दी हैं।

04:14, 29 सितम्बर 2011 का अवतरण

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बॉलीवुड में कितने ही नायकों का दौर आया और गया। दिलीप कुमार हों या राजेश खन्ना सबका एक दौर था। यहां तक कि अब अमिताभ बच्चन का दौर भी लोगों को ढलता नजर आता है लेकिन बॉलिवुड की दुनिया में एक ऐसा अभिनेता भी है जिसने खुद को कभी उम्र के बंधन में बंधने नहीं दिया और वह है सदाबहार अभिनेता देव आनंद (देव आनन्द / देवानंद)। लोग उन्हें एवरग्रीन देव साहब कह कर पुकारते हैं। सदाबहार देवानंद का जलवा अब भी बरकरार है। वक्त की करवटें उनकी हस्ती पर अपनी सिलवटें नहीं छोड़ पाईं। छह दशक से अधिक समय तक रुपहले परदे पर राज करने वाले देवानंद साहब का 26 सितंबर को जन्मदिन पङता है।

भारतीय सिनेमा में दो पीढ़ियों तक लगातार हीरो बने रहने वाले कलाकार के विषय में यदि विचार करें तो केवल एक ही नामे उभरता है और वह है देव आनंद। कभी अपनी एक फिल्म में उन्होंने एक गीत गुनगुनाया था 'मैं जिंदगी का साथ निभाता चला गया हर फिक्र को धुंए में उड़ाता चला गया' और शायद यही गीत उनके जीवन को सबसे अच्छी तरह परिभाषित भी करता है। देव आनंद के नाम हिंदी सिने जगत के आकाश में स्टाइल गुरु बनकर जगमगाता है।

देवानंद का जीवन

देव आनंद का पूरा नाम धर्मदेव पिशौरीमल आनंद है। देव आनंद जो कि भारतीय सिनेमा के महान कलाकार, निर्माता व निर्देशक हैं का जन्म अविभाजित पंजाब के गुरदासपुर ज़िले में 26 सितंबर, 1923 को एक मध्यम वर्गीय परिवार में और प्रसिध्द वकील देवदत्त पिशोरीमल आनंद नामक एक संपन्न अधिवक्ता के घर हुआ था। उनका बचपन का नाम धर्मदेव पिशौरीमल आनंद था। उनका बचपन परेशानियों से घिरा रहा। बचपन से ही उनका झुकाव अपने पिता के पेशे वकालत की ओर न होकर अभिनय की ओर था। एक वकील और आजादी के लिए लड़ने वाले पिशोरीमल के घर पैदा होने वाले देव ने रद्दी की दुकान से जब बाबूराव पटेल द्वारा सम्पादित फिल्म इंडिया के पुराने अंक पढ़े तो उन की आंखों ने फिल्मों में काम करने का सपना देख डाला और वह माया नगरी मुम्बई के सफर पर निकल पङे। उन्होंने अंग्रेजी साहित्य में अपनी स्नातक की शिक्षा 1942 में लाहौर (कि अब पाकिस्तान में है) के मशहूर गवर्नमेंट कॉलेज से पूरी की। इस कॉलेज ने फिल्म और साहित्य जगत को बलराज साहनी, चेतन आनंद, बी. आर. चोपड़ा और खुशवंत सिंह जैसे शख्सियतें दी हैं। देव आनंद को अपनी पहली नौकरी मिलिट्री सेन्सर ऑफिस (आर्मी करेस्पांडेंस सेंसर डिपार्टमेंट) में एक लिपिक के तौर पर मिली जहां उन्हें सैनिकों द्वारा लिखी चिट्ठियों को उनके परिवार के लोगों को पढ़ कर सुनाना पड़ता था। इस काम के लिए देव आनंद को 165 रूपये मासिक वेतन के रूप में मिला करता था जिसमें से 45 रूपये वह अपने परिवार के खर्च के लिए भेज दिया करते थे। लगभग एक वर्ष तक मिलिट्री सेन्सर में नौकरी करने के बाद वह 30 रूपए जेब में ले कर पिता के मुंबई जाकर काम न करने की सलाह के विपरीत देव अपने भाई चेतन आनंद के साथ फ्रंटियर मेल से 1943 में मुंबई पहुँच गये। चेतन आनंद उस समय भारतीय जन नाटय संघ इप्टा से जुड़े हुए थे। उन्होंने देव आनंद को भी अपने साथ इप्टा में शामिल कर लिया। देव आनंद (और उनके छोटे भाई विजय आनंद) को फिल्मों में लाने का श्रेय उनके बड़े भाई चेतन आनंद को जाता है। देव ने ये सपने में भी न सोचा होगा की कामियाबी इतनी जल्दी उनके कदम चूमेगी मगर ये तीस रुपए रंग लाए और जाएँ तो जाएँ कहाँ का राग अलापने वाले देव आनंद को माया नगरी मुम्बई में आशियाना मिल गया।

देवानंद का कॅरियर

फ़िल्मी दुनिया में क़दम रखने के बाद उनका नाम सिमट कर हो गया देवानंद। देव आनंद को अभिनेता के रूप में पहला ब्रेक 1946 में प्रभात स्टूडियो की फिल्म ‘हम एक हैं’ से मिला। लेकिन इस फिल्म के असफल होने से वह दर्शकों के बीच अपनी पहचान नहीं बना सके। इस फिल्म के निर्माण के दौरान प्रभात स्टूडियो में उनकी मुलाकात बाद के मशहूर फिल्म निर्माता-निर्देशक गुरूदत्त से हुई जो उन दिनों फिल्मी दुनिया में कोरियोग्राफर के रूप में स्थान बनाने के लिए संघर्षरत थे। वहाँ दोनों की दोस्ती हुई और एक साथ सपने देखते इन दोनों दोस्तों ने आपस में एक वादा किया कि अगर गुरूदत्त फ़िल्म निर्देशक बनेंगे तो वे देव को अभिनेता के रूप में लेंगे और अगर देव निर्माता बनेंगे तो गुरुदत्त को निर्देशक के रूप में लेंगे।

वर्ष 1948 में प्रदर्शित फिल्म 'जिद्दी' (1948) में अभिऩेत्री कामिनी कौशल के साथ देव आनंद के फिल्मी कॅरियर की पहली हिट फिल्म साबित हुई। जिद्दी ने देव आनंद को नई ऊंचाइयां दिलायी। इस फिल्म की कामयाबी के बाद उन्होंने फिल्म निर्माण के क्षेत्र में कदम रख दिया। सन् 1949 में उन्होंने 'नवकेतन' बैनर नाम से स्वयं की फिल्म निर्माण संस्था खोल ली और उसके अंतर्गत साल दर साल फिल्में बनाने में सफल हुये। नवकेतन के बैनर तले उन्होंने वर्ष 1950 में अपनी पहली फिल्म अफसर का निर्माण किया जिसके निर्देशन की जिम्मेदारी उन्होंने अपने बड़े भाई चेतन आनंद को सौंपी। इस फिल्म के लिए उन्होंने उस जमाने की जानी मानी अभिनेत्री सुरैया का चयन किया जबकि अभिनेता के रूप में देव आनंद खुद ही थे। हालाँकि फ़िल्म बॉक्स ऑफ़िस पर कोई करिश्मा नहीं दिखा पाई। इसके बाद उनका ध्यान गुरूदत्त को किए गए वायदे की तरफ गया। और सन् 1951 में उन्होंने अपनी अगली फिल्म 'बाजी' के निर्देशन की जिम्मेदारी गुरूदत्त को सौंप दी। फिल्म सुपरहिट हुई और दोनों दोस्तों की किस्मत चमक गई। फ़िल्म बाज़ी की कहानी बलराज साहनी ने लिखी थी। बाजी फिल्म की सफलता के बाद देव आनंद फिल्म इंडस्ट्री में एक अच्छे अभिनेता के रूप में शुमार होने लगे। देव यहीं से दिलीप कुमार और राजकुमार की क़तार में जा खड़े हुए और इस त्रिमूर्ति ने लंबे समय तक हिंदी फ़िल्मी दुनिया पर राज किया। जाल, राही, आंधियां, (1952), पतिता (1953), व अन्य फिल्मों के साथ स्‌न 1954 में अभिनेत्री कल्पना कार्तिक के साथ आई फिल्म "टैक्सी ड्राईव्हर" बड़ी हीट फिल्म थी। देव आनंद की मुनीम जी (1955), दुश्मन, काला बाजार, सी.आई.डी. (1956), पेइंग गेस्ट (1957), गैम्बलर, तेरे घर के सामने, काला पानी, लव एट टाइम्स स्क्वैर, हम नौजवान, देश परदेस, तेरे मेरे सपने, हरे रामा हरे कृष्णा, जॉनी मेरा नाम, ज्वैलथीफ़, हम दोनों (1961), बात एक रात की, असली नकली, माया, रूप की रानी चोरों का राजा, बम्बई का बाबू, लव मैरिज, दुश्मन, टैक्सी ड्राइवर, नौ दो ग्यारह, फंटूश, बाज़ी बेमिसाल, पॉकेटमार, जब प्यार किसी से होता है, हीरा पन्ना, बनारसी बाबू, जोशीला छूपा रुस्तम, शरीफ बदमाश, इश्क इश्क, अमीर गरीब, वारंट, साहेब बहादूर, देश-परदेश, लूटमार, तीन देविंया और गाइड इत्यादि प्रसिध्द फिल्में रही हैं। इसके अलावा भी उन्होने अनेंकों फिल्मों में काम किया और अभी भी वे फिल्म बना रहे हैं।

देव आनंद और गुरुदत्त

इसके बाद देव आनंद ने गुरूदत्त के निर्देशन में वर्ष 1952 में फिल्म जाल में भी अभिनय किया। इस फिल्म के निर्देशन के बाद गुरूदत्त ने यह फैसला किया कि वह केवल अपनी निर्मित फिल्मों का निर्देशन करेंगे। बाद में देव आनंद ने अपनी निर्मित फिल्मों के निर्देशन की जिम्मेदारी अपने छोटे भाई विजय आनंद को सौंप दी। विजय आनंद ने देव आनंद की कई फिल्मों का निर्देशन किया। इन फिल्मों में कालाबाजार, तेरे घर के सामने, गाइड, तेरे मेरे सपने, छुपा रूस्तम प्रमुख हैं।

देव आनंद प्रख्यात उपन्यासकार आर. के. नारायण से काफी प्रभावित रहा करते थे और उनके उपन्यास गाइड पर फिल्म बनाना चाहते थे। आर. के. नारायणन की स्वीकृति के बाद देव आनंद ने हॉलीवुड के सहयोग से इसी नाम से एक फिल्म बनाई जिसका निर्देशन किया था उनके छोटे भाई विजय आनंद ने किया तथा हिरोईन वहीदा रहमान थी। हिन्दी और अंग्रेजी दोनों भाषाओं में फिल्म गाइड का निर्माण किया जो देव आनंद के सिने कॅरियर की पहली रंगीन फिल्म थी। इस फिल्म ने आलोचकों को बहुत प्रभावित किया। गाइड का प्रदर्शन सन् 1965 में होने के बाद उनका नाम ही पड़ गया राजू गाइड जो युवाओं में बहुत लोकप्रिय हुआ। इस फिल्म के लिए देव आनंद को उनके जबर्दस्त अभिनय के लिए सर्वश्रेष्ठ अभिनेता का फिल्म फेयर पुरस्कार भी दिया गया। यह फिल्म अभी भी हिन्दी सिनेमा की सर्वश्रेष्ठ निर्देशित व सम्पादित फिल्मों में से एक मानी जाती है। वर्ष 1970 में फिल्म प्रेम पुजारी के साथ देव आनंद ने निर्देशन के क्षेत्र में भी कदम रख दिया। हालांकि यह फिल्म बॉक्स ऑफिस पर बुरी तरह से नकार दी गई बावजूद इसके उन्होंने हिम्मत नहीं हारी। इसके बाद वर्ष 1971 में फिल्म 'हरे रामा हरे कृष्णा' का भी निर्देशन किया जिसमें 'दम मारो दम' गीत ने धूम मचाई। इस फ़िल्म के कामयाबी के बाद देवानंद को एक बेहतरीन निर्देशक के रूप में स्थापित कर दिया और उन्होंने अपनी कई फिल्मों का निर्देशन भी किया। इस फ़िल्म के ज़रिए उन्होंने युवा पीढ़ी को राष्ट्रप्रेम के लिए पुकारा। इन फिल्मों में हीरा पन्ना, देश परदेस, लूटमार, स्वामी दादा, सच्चे का बोलबाला, अव्वल नंबर, लव एट टाइम्स स्क्वैर, मैं सोलह बरस की, गैंगस्टर और हम नौजवान जैसी फिल्में शामिल हैं।

देव आनंद ने कई फिल्मों की पटकथा भी लिखी। जिसमें वर्ष 1952 में प्रदर्शित फिल्म आंधियां के अलावा हरे रामा हरे कृष्णा, हम नौजवान, अव्वल नंबर, प्यार का तराना (1993 में), गैंगेस्टर, मैं सोलह बरस की, सेन्सर आदि फिल्में शामिल हैं। इस के अलावा बतौर निर्माता 1998 में मैं सोलह बरस की और 1993 में प्यार का तराना लेकर सामने आऐ।

देवानंद एक समय बाद नई अभिनेत्रियों को पर्दे पर उतारने के लिए मशहूर हो गए। हरे रामा हरे कृष्णा के ज़रिए उन्होंने ज़ीनत अमान की खोज की और टीना मुनीम, नताशा सिन्हा व एकता जैसी अभिनेत्रियों को मैदान में उतारने का श्रेय भी देव साहब को ही जाता है। आज भी वह नई अभिनेत्रियों की तलाश में हैं और फ़िल्म बनाने का उनका शौक़ जारी है। अभिनेत्री हेमा मालिनी के साथ कई फिल्में की।

हाल के सालों में देवानंद अपनी प्रोडक्शन कंपनी 'नवकेतन' के तले कई फिल्में बनाने में व्यस्त हैं। वह लगातार अपने बैनर के तले फिल्में बना रहे हैं जिसके लीड हीरो वह खुद ही होते हैं। नवकेतन बैनर तले उन्होंने हाल के सालों में 'हरे रामा हरे कृष्णा', 'अव्वल नंबर' जैसी सुपरहिट फिल्में दी हैं।

ग्रेगरी पेक से समानता

ग्रैगरी पैक के अभिनय से प्रेरित होकर देवानंद फिल्मों में काम करने के उद्देश्य से अपना नगर छोड़कर फिल्म नगरी में आये थे। देवानंद को कई लोग हॉलीवुड के मशहूर अभिनेता ग्रेगरी पेक से भी जोड़ कर देखते हैं। भारतीय दर्शकों को अपने चहेते अभिनेता देवानंद में ग्रेगरी पेक की झलक नज़र आई और वे उनके दीवाने हो गए। देवानंद के बालों का स्टाइल, चलने, बोलने का तरीक़ा सब में ग्रेगरी पेक की झलक मिलती थी। मुंबई फ़िल्म जगत में एक क़िस्सा मशहूर है। अभिनेत्री सुरैया ग्रेगरी पेक की अनन्य प्रशंसक थीं. यहाँ तक कि उनका नाम देवानंद के साथ भी जुड़ने लगा था और लोग कहते थे कि इसकी वजह यही थी कि वह उनमें ग्रेगरी पेक को ढूँढती थीं।

देवानंद और रोमांस

देव आनंद अपनी खास स्टाइल के लिए जाने जाते हैं। उन्होंने अपने किरदारों में नौजवानों की उमंगों, तरंगों और चंचलता को बहुत ही खूबसूरत अंदाज से पेश किया है। देव आनंद आदर्शवाद और व्यवहारवाद में नहीं उलझते और न ही उन का किरदार प्रेम की नाकामियों से दो-चार होता है। अपनी अदाकाराओं के साथ छेड़खानी, शरारत और फ्लर्ट करने वाला आम नौजवान देव का नायक रहा। देव ने अपने किरदारों में जवानी के हर मौसम का लुत्फ लिया। जवानी के तमाम दबे-कुचले अरमानों को पूरे रस के साथ जिया और नौजवानों के चहेते बन गए।

कहते हैं बॉलिवुड में अगर कोई असली रोमांटिक हीरो है तो वह हैं सिर्फ देवानंद। ना सिर्फ पर्दे पर बल्कि असल जिंदगी में भी देवानंद की दिल्लगी का कोई सानी नहीं है। नौजवानों के जज़्बात को परदे पर पेश करने वाले खूबसूरत देव हमेशा ही खूबसूरत लडकियों से घिरे रहे। हज़ारों दिलों की धड़कन रहे देव हसीनाओं का सपना बन चुके थे। अभिनेत्रियों के साथ अपने रोमांस को लेकर भी वे चर्चा में रहे। चाहे सुरैया हो या जीनत अमान दोनों के साथ उनके प्रेम के चर्चे खूब आम हुए। खुद देवानंद भी मानते हैं कि सुरैया उनका पहला प्रेम थीं और जीनत को भी वह पसंद करते थे। यही नहीं सुरैया भी देव की दीवानी थी। 1948 में बनी ‘विद्या’ फिल्म की नायिका सुरैया थी। फिल्म अफसर के निर्माण के दौरान देव आनंद का झुकाव फिल्म गायिका-अभिनेत्री सुरैया की ओर हो गया था। इसके सेट पर ही दोनों में प्यार हुआ। एक गाने की शूटिंग के दौरान देव आनंद और सुरैया की नाव पानी में पलट गई जिसमें उन्होंने सुरैया को डूबने से बचाया। इसके बाद सुरैया देव आनंद से बेइंतहा मोहब्बत करने लगीं लेकिन सुरैया की दादी की इजाजत न मिलने पर यह जोड़ी परवान नहीं चढ़ सकी। 1951 तक दोनों ने सात फिल्मों में साथ काम किया। मगर अफसोस दोनों के साथ रहने का ख्वाब पूरा ना हो सका। देव ने अपने टूटे प्यार का इजहार कई बार किया है। बाद के वर्ष 1954 में ‘टैक्सी ड्राइवर’ की हीरोइन मोना याने कल्पना कार्तिक से फिल्म के सेट पर देव आनंद का शादी हो गई। मगर सुरैया ने देव के अलावा किसी और को गवारा ना किया और उनकी याद में आजीवन विवाह नहीं किया। 50 साल बाद देव आनंद ने स्वीकार किया कि उनका दिल हमेशा सुरैया के लिए धड़कता रहता था। वर्ष 2005 में जब सुरैया का निधन हुआ तो देवानंद उन लोगों में से एक थे जो उनके जनाजे के साथ थे।

देवानंद के जानदार और शानदार अभिनय की बदौलत परदे पर जीवंत आकार लेने वाली प्रेम कहानियों ने लाखों युवाओं के दिलों में प्रेम की लहरें पैदा कीं लेकिन खुद देवानंद इस लिहाज से जिंदगी में काफी परेशानियों से गुजरे। उन्हें सदाबहार अभिनेता कह कर पुकारा गया तो वह भी यों ही नहीं था। उन्होंने जिन अभिनेत्रियों के साथ नायक के रूप में काम किया था कुछ वर्षों पहले तक वे उनकी पोतियों के साथ भी उसी भूमिका में देखे गए।

देव आनंद का राजनीतिक और सामाजिक रूप

देव आनंद फिल्म जगत के उन गिने चुने लोगों में शामिल हैं जो राजनीतिक और सामाजिक रूप से भी सक्रिय हैं। सन् 1977 के संसदीय चुनावों के दौरान उन्होंने अपने समर्थकों के साथ मिलकर इंदिरा गांधी का जमकर विरोध किया। उल्लेखनीय है कि उस समय सिने जगत की अधिकांश हस्तियों ने चुप्पी साध रखी थी।

देवानंद का निजी जीवन

देवानंद ने कल्पना कार्तिक के साथ शादी की थी लेकिन उनकी शादी अधिक समय तक सफल नहीं हो सकी। दोनों साथ रहे लेकिन बाद में कल्पना ने एकाकी जीवन को गले लगा लिया। अन्य फिल्मी अभिनेताओं की तरह देवानंद ने भी अपने बेटे सुनील आनंद को फिल्मों में स्थापित करने के लिए बहुत प्रयास किए लेकिन सफल नहीं हो सके।

कुछ वर्ष पहले अपने जन्मदिन के अवसर पर ही उन्होंने 'रोमांसिंग विद लाइफ' नाम से अपनी जीवनी बाजार में उतारी थी। आमतौर पर मशहूर हस्तियों की जीवनियों के प्रसंग विवादों का विषय बनते हैं लेकिन उनकी जीवनी हर अर्थ में बेदाग रही बिल्कुल उनके जीवन की तरह।

देव आनंद ने एक बार अपनी निरंतर सक्रियता के बारे में कहा था कि वे सपने देखते हैं और फिर उन्हें पर्दे पर उकेरते हैं बिना हिट या फ्लॉप की परवाह किए। इन अर्थों में वे सच्चे कर्मयोगी हैं। देव आनंद शतायु हों और जिंदादिली बिखेरते रहें यही उनके प्रशंसकों की कामना है।

देवानंद का स्टाइल

देव आनंद को राजेश खन्ना से भी पहले सिनेमा का पहला चॉकलेटी नायक होने का गौरव मिला। देव आनंद की लोकप्रियता का आलम ये था कि उन्होंने जो भी पहना, जो भी किया वो एक स्टाइल में तब्दील हो गया। फिर चाहे वो उनका बालों पर हाथ फेरने का अंदाज हो या काली कमीज की पहनने का या फिर अपनी अनूठी शैली में जल्दी-जल्दी संवाद बोलने का। मुनीम जी (1955), फंटुश, सीआईडी (1956), पेइंगगेस्ट (1957) ने उन्हे सफलतम स्टायलीस स्टार बना दिया। इनकी झूक कर चलने की अदा, एक स्वांस मे लम्बे डायलाँग बोलना और तिरछे होकर सिर हिलाना उनका ट्रेडमार्क बन गया।

अपने दौर के सबसे सफल अभिनेता देवानंद अपने काले कोट की वजह से बहुत सुर्खियों में आए थे। बात उस समय की है जब देवानंद अपने अलग अंदाज और बोलने के तरीके के लिए काफी मशहूर थे। उनके सफेद कमीज और काले कोट के फैशन को तो जनता ने जैसे अपना ही बना लिया था और इसी समय एक ऐसा वाकया भी देखने को मिला जब न्यायालय ने उनके काले कोट को पहन कर घूमने पर पाबंदी लगा दी। वजह थी कुछ लडकियों का उनके काले कोट के प्रति आसक्ति के कारण आत्महत्या कर लेना। दीवानगी में दो-चार लडकियों ने जान दे दी। इससे एक बात साफ थी कि देवानंद का किरदार हो या उनका पहनावा हमेशा सदाबहार ही रहा।

देव आनंद को मिले पुरस्कार

देव आनंद, दिलीप कुमार और राज कपूर के 1950 दशक के बड़े स्टार रहे हैं। देव आनंद को अपने अभिनय के लिए दो बार फ़िल्म फ़ेयर पुरस्कार से सम्मानित किया जा चुका है। देव आनंद को सबसे पहला फ़िल्म फ़ेयर पुरस्कार वर्ष 1958 में प्रदर्शित फिल्म काला पानी के लिए दिया गया। इसके बाद वर्ष 1965 में भी देव आनंद फिल्म गाइड के लिए सर्वश्रेष्ठ अभिनेता के फ़िल्म फ़ेयर पुरस्कार से सम्मानित किए गए। सन् 1991 में देव आनंद को फिल्मफेयर पुरष्कार मिला। वर्ष 2001 में देव आनंद को भारत सरकार की ओर से कला क्षेत्र में पद्म भूषण सम्मान प्राप्त हुआ। वर्ष 2002 में उनके द्वारा हिन्दी सिनेमा में महत्वपूर्ण योगदान को देखते हुए उन्हें दादा साहब फाल्के पुरस्कार से सम्मानित किया गया।



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