हल्दी

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हल्दी
हल्दी का पौधा
हल्दी का पौधा
हल्दी का कच्ची, सूखी गांठ और पाउडर रूप
हल्दी की कच्ची, सूखी गांठ और पाउडर
लम्बा और गोल प्रकार की सूखी हल्दी
लम्बा और गोल प्रकार की सूखी हल्दी
लम्बे प्रकार की कच्ची हल्दी
लम्बे प्रकार की कच्ची हल्दी
गोल कच्ची हल्दी
गोल कच्ची हल्दी

हल्दी (अंग्रेज़ी:Turmeric) भारतीय वनस्पति है। दक्षिण एशिया के इस पौधे का वानस्पतिक नाम कुरकुमा लौंगा (Curcuma longa) है तथा यह जिंजीबरेसी कुल का सदस्य है। हल्दी के पौधे ज़मीन के ऊपर हरे-हरे दिखाई देते हैं। हल्दी के पत्ते केले के पत्ते के समान बड़े-बड़े और लंबे होते हैं, इसमें से सुगन्ध आती है। यह अदरक की प्रजाति का 5 - 6 फुट तक बढ़ने वाला बारहमासी पौधा है जिसके जड़ की गाठों में फल पैदा होता है और उसी को हल्दी कहते हैं। कच्ची हल्दी, अदरक जैसी दिखती है। हल्दी की गांठ छोटी और लालिमा लिए हुए पीले रंग की होती है। यह खेतों में बोई जाती है, लेकिन कई स्‍थानों में यह स्वयमेव उत्पन्न हो जाती है। ज़मीन के नीचे कन्‍द के रूप में इसकी जड़ें होती है। ये कन्‍द रूपी जड़ें हरी अथवा ताजी अथवा कच्‍ची हल्‍दी होती है। कच्‍ची हल्‍दी की सब्‍जी बनाकर खाते हैं। कच्‍ची हल्‍दी को उबालकर सुखा लेते हैं, ऐसी हल्‍दी सूखने के बाद रंग परिवर्तन होकर पीला रंग ग्रहण कर लेती है। हल्‍दी स्‍वाद में कड़वी व तेज होता है। स्वभाव में रूखी और गर्म होती है। भोजन में इस्तेमाल के लिए हल्दी को पीसा जाता है।

हल्‍दी के प्रकार

आकार के आधार पर हल्‍दी दो प्रकार की होती है, एक लम्‍बी तथा दूसरी गोल। लेकिन सख्त और नर्म के आधार पर हल्दी 2 प्रकार की होती है। एक लौहे जैसी सख्त दूसरी नर्म व सुगन्धित जो कि मसाले में काम आती है। एक ऐसी भी हल्दी होती है जो कि सिर्फ जंगलों में पाई जाती है जिसे हम आंबा हल्दी भी कहते हैं। इसका उपयोग हम मसालों में नहीं करते लेकिन यह ख़ून की ख़राबी और खुजली को मिटाता है।

भोजन में उपयोग

हल्दी को प्राचीन एवं पवित्र मसालों में शुमार किया जाता है। प्राचीन समय से ही हल्दी का प्रयोग घरों में होता आ रहा है। हल्दी की छोटी सी गांठ में बड़े गुण होते हैं। शायद ही कोई ऐसा घर हो जहां हल्दी का उपयोग न होता हो। हल्दी का भारतीय रसोई में महत्त्वपूर्ण स्थान है और सामान्यत: मसाले के रुप में दैनिक भोजन में प्रयोग की जाती है। भोजन के स्वाद को बढ़ाने, सुगंध और रंगत देने के लिए हल्दी का बहुतायत में इस्तेमाल होता है। हल्दी का सबसे ज़्यादा उपयोग दाल व सब्जी में किया जाता है क्योंकि यह दालसब्जी का रंग पीला करता है। हल्दी का हज़ारों साल से भारतीय परंपरा में प्रयोग किया जा रहा है। भारतीय स्वादिष्ट व्यंजनों के रंग और स्वाद का एक राज हल्दी ही है। यही नहीं डिब्बा बंद पेय, डेयरी उत्पाद, आइसक्रीम, दही, केक, ऑरेंज जूस, बिस्कुट, पॉपकार्न, मिठाइयों के साथ-साथ सॉस आदि में भी हल्दी का प्रयोग होने लगा है। हल्दी के रंग और सुगंध के क्या कहना। जापान के ओकीनावा शहर में हल्दी की चाय सबसे अधिक लोकप्रिय मानी जाती है।

हल्दी के पोषक तत्व

हल्‍दी में कई प्रकार के रासाय‍निक तत्‍व पाये जाते हैं --
  • एक प्रकार का सुगंधित उडनशील तेल 5.8 %, गोंद जैसा पदार्थ, कुर्कुमिन नामक पीले रंग का रंजक द्रव्य, गाढा तेल पाये गये हैं।
  • इसके मुख्य कार्यशील घटक टर्मरिक ऑयल तथा टर्पीनाइड पदार्थ होते हैं।
हल्‍दी में पाये गये आवश्‍यक तत्‍व निम्‍न प्रकार हैं-

जल 13.1 % ग्राम, प्रोटीन 6.3 % ग्राम, वसा 5.1 % ग्राम, खनिज पदार्थ (लवण) 3.5 % ग्राम, रेशा 2.6 % ग्राम, कारबोहा‍‍इड्रेट 69.4 % ग्राम, कैल्शियम 150 मिलीग्राम प्रतिशत, फास्फोरस 282 मिलीग्राम प्रतिशत, लौह 18.6 मिलीग्राम प्रतिशत, फाइबर, मैग्नीशियम, पोटेशियम, विटामिन ए 50 मिलीग्राम प्रतिशत, विटामिन-ए 50.U./100 ग्राम, विटामिन बी 3 मिलीग्राम प्रतिशत, विटामिन बी 6 व सी, नियासिन, ओमेगा 3 और ओमेगा 6 फैटी एसिड हैं।

हल्‍दी के विभिन्‍न भाषाओं में नाम

  1. हिन्दी - हल्दी
  2. संस्कृत - हरिद्रा , कांचनीं
  3. बंगला - हलुद, हरिद्रा, होल्दी
  4. मराठी - हलद
  5. गुजराती - हलदर
  6. पंजाबी - हरदल
  7. कन्‍नड़ - असिना, अरसिना
  8. मलयालम - मंजल
  9. तमिल - मंचल
  10. तेलुगू - पासुपु
  11. फ़ारसी - जरदपोप
  12. अरबी - डरूफुस्‍सुकुर / उरूकुस्सुफ
  13. अंग्रेज़ी - Turmeric / टरमरि‍क
  14. वानस्पतिक नाम - Curcuma Longa / करकुमा लौंगा
  15. कुल अथवा फ़ैमिली - जिंजीबरेसी
  16. अन्य नाम - वरवर्णिनीं, पीता, गौरी, क्रिमिघ्ना योशितप्रीया, हट्टविलासनी, कुमकुम

हल्दी का भारतीय संस्कृति में उपयोग

भारतीय संस्कृति में हल्दी का बहुत महत्व है शायद ही कोई ऐसा घर हो जहाँ हल्दी का उपयोग न होता हो। हिन्दू धर्म में हल्दी को पवित्र और शुभता का प्रतीक माना जाता है। पूजा-अर्चना से लेकर पारिवारिक संबंधों की पवित्रता तक में हल्दी का उपयोग होता है।

  • पूजा-अर्चना में हल्दी को तिलकचावल के साथ इस्तेमाल किया जाता है।
  • हल्दी को शुभता का संदेश देने वाला भी माना गया है। आज भी जब काग़ज़ पर विवाह का निमंत्रण छपवाकर भेजा जाता है, तब निमंत्रण पत्र के किनारों को हल्दी के रंग से स्पर्श करा दिया जाता है। कहते हैं कि इससे रिश्तों में प्रगाढ़ता आती है।
  • वैवाहिक कार्यक्रमों में हल्दी का उपयोग का अपना एक विशेष महत्व है। भारतीय संस्कृति में प्राचीन काल से ही विवाह के निमंत्रण पत्र को हल्दी के रंग से स्पर्श कराया जाता है तथा दूल्हे व दुल्हन को हल्दी का उबटन लगाकर वैवाहिक कार्यक्रम पूरे करवाए जाते हैं। इससे सुंदरता में निखार आता है। ऐसे ही अनेक अवसरों पर हल्दी को उपयोग में लाया जाता है।
  • हिन्दू धर्म दर्शन में भी हल्दी को पवित्र माना जाता है। ब्राह्मणों में पहना जाने वाला जनेऊ तो बिना हल्दी के रंगे पहना ही नहीं जाता है। जब भी जनेऊ बदला जाता है तो हल्दी से रंगे जनेऊ को ही पहनने की प्रथा है। इसमें सब प्रकार के कल्याण की भावना निहित होती है। ग्रामीण अंचलों में आज भी साड़ी को रंगने में हल्दी का प्रयोग किया जाता है। हल्दी और चूने को आपस में मिलाकर कुंकुम बनाया जाता है।
  • तंत्र-ज्योतिष में भी हल्दी का महत्त्वपूर्ण स्थान होता है। तंत्रशास्त्र के अनुसार, बगुलामुखी पीतिमा की देवी हैं। उनके मंत्र का जप पीले वस्त्रों में तथा हल्दी की माला से होता है।

हल्दी के औषधीय गुण

  • हल्दी में अनेक औषधीय गुण पाये जाते है। स्वास्थ्य के लिए हल्दी रामबाण ही है। एंटीसेप्टिक (संक्रमणरोधी) गुणों के कारण इसका प्रयोग प्राचीनकाल से ही रूप-सौन्दर्य के निखार के साथ-साथ अनेक कष्टप्रद असाध्य बीमारियों के निदान हेतु भी किया जाता रहा है। इसका प्रयोग कफ विकार, यकृत विकार, अतिसार आदि रोगों को दूर करने में होता है। हल्दी से भूख बढ़ती है। एक चुटकी हल्दी के सेवन से शरीरगत विषों को निकाला जा सकता है।
  • हल्दी को आयुर्वेद में प्राचीन काल से ही एक चमत्कारिक द्रव्य के रूप में मान्यता प्राप्त है। आयुर्वेद में हल्‍दी के गुणों का वर्णन कई ग्रंथों में मिलता है। औषधि ग्रंथों में इसे हल्दी के अतिरिक्त हरिद्रा, कुरकुमा लौंगा, वरवर्णिनी, गौरी, क्रिमिघ्ना योशितप्रीया, हट्टविलासनी, हरदल, कुमकुम, टर्मरिक नाम दिए गए हैं। आयुर्वेद में हल्‍दी को एक महत्‍वपूर्ण औषधि कहा गया है। यह वात, कफ तथा पित्‍त दोषों को दूर करती है। यहां तक कि पुराने जमाने के गुरु, आचार्य और वैद्य तो इसे `मेहहनी´ के नाम से विभूषित करते थे।
  • आचार्य चरक ने हल्दी को लेखनीय कुष्ठध्न (कुष्ठ मिटाने वाले), कण्डूध्न (खुजली दूर करने वाली), विषध्न (विष नष्ट करने वाली) गुणों से युक्त माना है। आचार्य सुश्रुत ने हल्दी को श्वास रोग, कास (खांसी), अरोचक, रक्तपित्त, अपस्मार, नेत्रारोग, कुष्ठ और प्रमेह आदि रोगों पर लाभकारी माना है।
  • प्राचीन काल से ही हल्दी का उपयोग घर के चिकित्सक के रूप में किया जाता रहा है। कहीं जल गया हो या कट गया हो या कहीं घाव हो गया हो तो घर का हकीम, वैद्य या डाक्टर यानी हल्दी है न। आहार अनुपूरक यानी हेल्थ सप्लीमेंट के रूप में भी हल्दी का उपयोग होता है।
  • हल्दी की हीलिंग पावर को देखकर विदेशी भी दंग हैं। वैज्ञानिक शोध के अनुसार हल्दी शरीर में घातक कोशिकाओं की वृद्धि को रोकने में सहायक होती है। अमरीका में अग्नाश्य कैंसर, अल्ज़ाइमर, मल्टीपल मीलोमा और कोलोरेक्टल कैंसर आदि में हल्दी के एक्टिव एजेंट करक्युमिन द्वारा उपचार का प्रयोग भी चल रहा है।
  • बाज़ार में उपलब्ध सौंदर्य-प्रसाधनों में हल्दी का प्रयोग किया जाता रहा है। हल्दी का कोई साइड इफेक्ट नहीं होता है। अभी हाल ही में कई सनस्क्रीन उत्पादों में भी हल्दी के प्रयोग की बात सामने आई है। हल्दी में मौजूद टेटराहाइड्रोकरक्यूमिनाइड यानी टीएचसी की प्रभावशाली एंटीऑक्सीडेंट पर थाइलैंड की सरकार शोध करना चाहती है। उनका कहना है कि हल्दी का प्राकृतिक रंग चेहरे के रंग को चमकाने और त्वचा संबंधी रोगों में रामबाण है।
  • यदि आप अपनी डाइट में हल्दी लेते हैं, तो यह आपके मेटाबॉलिज्म को मज़बूत बनाता है और आपके वजन को भी कंट्रोल करता है। यह ख़ून को साफ़ / ब्लड प्यूरीफायर भी है। हल्दी कॉलेस्ट्रोल को कम करता है, जिससे आप कई प्रकार की बीमारियों से भी बच सकते हैं। यह इम्यून सिस्टम को स्ट्रॉन्ग बनाता है। इससे आपकी अंदरूनी चोटों में भी फ़ायदेमंद है, जिसमें लिवर व किडनी ख़ास है। पर्याप्त मात्रा में आयरन पाए जाने के कारण हल्दी शरीर में ख़ून का निर्माण करने में मदद करती है।
  • हल्‍दी के बारे में आयुर्वेद विचार -- हल्‍दी तिक्‍त , कटु , उष्‍णवीर्य , रूक्ष , वर्ण्‍य , लेखन , कुष्‍टघ्‍न , विषघ्‍न , शोधन गुण युक्‍त है। इसके प्रयोग से कफ , पित्‍त , पीनस , अरुचि , कुष्‍ठ , कन्‍डू , विष , प्रमेह , व्रण , कृमि , पान्‍डु रोग , अपची आदि रोंग दूर होते हैं।
  • हल्दी एक फ़ायदेमंद औषधि है। हल्दी किसी भी उम्र के व्यक्ति को दी जा सकती है चाहे वह बच्चा हो, जवान हो, बूढ़ा हो चाहे वह गर्भवती महिला ही क्यों न हो।
हल्‍दी की औषधीय मात्रा-

यह वयस्‍क व्‍यक्ति के लिये निश्चित की गयी मात्रा है-

  1. कच्‍ची हल्‍दी का रस = 1 से 3 चाय चम्‍मच तक
  2. सूखी हल्‍दी का चूर्ण = 1 ग्राम से 4 ग्राम तक।
  3. किशोरों के लिये 500 मिलीग्राम से 1 ग्राम तक।
  4. बच्‍चों के लिये 50 मिलीग्राम से 100 मिली ग्राम तक।
  • इसके कोई साइड इफेक्‍ट नहीं हैं और हल्‍दी पूर्ण रूप से सुरक्षित औषधि है। इसे आवश्‍यकतानुसार गुनगुने पानी, गरम चाय अथवा दूध के साथ दिन में, तकलीफ के हिसाब से, एक बार से लेकर चार या पांच बार तक ले सकते हैं। हालांकि, हल्दी की अधिक मात्रा अपच, दस्त, कब्ज का कारण और हृदय के लिए हानिकारक हो सकता है। पित्त की ख़राबी और पेप्टिक अल्सर में भी हल्दी का इस्तेमाल हानिकारक माना जाता है।

हल्दी का रोगों में उपयोग

  • हल्दी शरीर में रक्त शोधक का काम करती है, यह ख़ून को साफ़ चर्म रोगों को दूर करती है। हल्दी के नियमित उपयोग से त्वचा में निखार आता है। नहाने से पहले शरीर पर हल्दी का उबटन लगाने से शरीर की कांति बढ़ती है और मांसपेशियों में कसाव आता है। हल्दी चेहरे के दाग-धब्बे और झाइयों को दूर करती है। बेसन में पिसी हुई थोड़ी सी हल्दी, दूध या मलाई मिला कर चेहरे पर लगाने से दाग़ और झाइयां दूर होती हैं, चहरे पर निखार आता है।
त्‍वचा के रोगों में

हल्‍दी का चूर्ण 1 ग्राम और आवश्‍कतानुसार दूध मिलाकर बनाया हुआ पेस्‍ट मुहासों, युवान पीडिका, सफेद दागों या काले दागों, रूखी त्‍वचा, काले रंग के त्‍वचा के धब्‍बे, खुजली, खारिश आदि तकलीफों में लगानें से आरोग्‍य प्राप्‍त होता है। झांइयां दूर करने के लिए हल्दी पाउडर में खीरे या नीबू का रस मिलाकर 15 मिनट तक चेहरे पर लगाएं। फिर साफ़ पानी से धो लें। ऐसा प्रतिदिन करने से त्वचा साफ-सुथरी हो जाएगी।

  • एलर्जी, शीतपित्‍ती, जलन का अनुभव, ददोरे आदि पड़ जाने की तकलीफ में हल्‍दी को पानी के साथ पेस्‍ट जैसा बनाकर लगाने से आराम मिलता है।
  • घाव, कटे एवं पके हुये, पीब से भरे घावों में हल्‍दी का चूर्ण छिड़कने से घाव शीघ्र भरते हैं। मोच या हड्डी टूट जाने पर हल्दी का लेप लगाएं।
  • हल्दी में एक एंटीसेप्टिक वाले सभी गुण मौजूद हैं। ऐसे में इसे आप चोट लगने या कटने की स्थिति में स्किन पर लगा सकते हैं। इससे संक्रमण को रोका जा सकता है।
  • घाव होने पर नीम के पत्तों को उबाल कर ठंडा कर के घाव को अच्छी तरह पानी से धोकर उस पर हल्दी की गांठ को घिस कर लेप करने से घाव का संक्रमण कम हो जाता है। पिसी हुई हल्दी को सरसों के तेल में मिलाकर अच्छी तरह गर्म करें। कुछ ठंडा होने पर रूई के फाहे से जख्म पर लगाने से जख्म शीघ्र भरता है। उस पर पट्टी अवश्य बांध दें।
चोट की सूजन में

पत्थर, लाठी, डण्डे आदि की चोटों के कारण उत्पन्न सूजन को दूर करने के लिए हल्दी चूर्ण को पानी के साथ मिलाकर सुसुम करके लगाना चाहिए। अगर चोट पर ख़ून निकल जाने के बाद सूजन आ गई हो तो हल्दी को खाने वाले चूने के साथ मिलाकर लेप लगा देने से पकने की नौबत नहीं आती तथा सूजन दूर हो जाती है।

  • शरीर के किसी भी स्‍थान की सूजन के साथ दर्द और जलन हो तो हल्‍दी के पेस्‍ट का बाहरी प्रयोग करने से इन तकलीफों में आराम मिल जाती है।
  • फोड़ा फुन्‍सी पकाने के लिये हल्‍दी की पुल्टिस रखने से फोड़ा फुंसी शीघ्र पक जाते हैं।
  • बिच्छू, मक्खी जैसे किसी विषैले कीड़े के काटने पर हल्दी का लेप लगाना चाहिए।
  • बवासीर के मस्‍सों का दर्द अथवा जलन ठीक करने के लिये हल्‍दी का चूर्ण मस्‍सों पर छिड़कना चाहिये।
  • हल्दी डिजेनरटिव डिजीज जैसे अल्जाइमर्स में भी कारगर है। इससे रक्त कोशिकाओं में ख़ून का प्रवाह सही बना रहता है।
  • रोज रात में हल्दी का जूस पिएं। इसके लिए आधा ग्लास दूध में 1/2 इंच टुकडा सूखी हल्दी मिलाकर अच्छी तरह उबालें। जब दूध का रंग एकदम पीला हो जाए तो उसे हलका गुनगुना करके पिएं। यह बहुत बीमारियों में लाभकारी होता है। ख़ास तौर पर स्त्रियों को इसका जूस रोज रात में पीना चाहिए, क्योंकि इससे आपकी हड्डियां मज़बूत होती हैं और यह आस्टियोपोरोसिस के खतरों को कम करता है।
  • हल्दी एक एंटी - इनफ्लैमटॉरी है। ऐसे में यह गठिया / आर्थराइटिस को कम भी करता है। इससे स्किन संबंधी समस्याओं को भी काफ़ी हद तक रोका जा सकता है।
  • जीभ में छाले होने पर पिसी हुई हल्दी एक छोटा चाय का चम्मच आधा लिटर पानी में उबाल कर ठंडा होने पर सुबह शाम कुल्ला करने से जीभ के छालों में राहत मिलती है।
  • दांतों के फ्लोराइड में हल्दी के एंटीबायोटिक एजेंट के रूप में प्रयोग पुराना है। दांत दर्द होने पर हल्दी को भून कर पीस लें। जिस दांत में दर्द हो उस पर अच्छी तरह मल लें। इस प्रकार यह दांत दर्द दूर भगाने में सहायक है। दांतों से पीलापन दूर करने के हल्दी में सेंधा नमक व सरसों का तेल मिलाकर दांतों को साफ़ करें।
  • जुखाम, खांसी, बुखार -- नया हो अथवा पुराना, सभी प्रकार के बुखार, जुखामों और खांसियों में गरम पानी / दूध में हल्दी का चूर्ण 1 से 3 ग्राम तक मिलाकर उबाल लें, फिर सुसुम रहते उसमें थोड़ा सा गुड़ मिलाकर प्रातः तथा रात को सोते समय पी लें। नाक से अधिक स्राव हो रहा हो तो हल्दी को जलाकर उसका धुआं नाक से ग्रहण करें। अगर जुकाम पुराना हो गया हो तथा पीला, गाढ़ा कफ निकल रहा हो तो दूध में हल्दी मिलाकर थोड़ा सा घी डालकर उबाल लें। हल्का गरम- गरम पी लेने से जुकाम दूर हो जाता है। इसके दो घंटे बाद तक पानी नहीं पीना चाहिए।
  • बीड़ी, सिगरेट की अधिकता के कारण कफ जब छाती में जम जाता है तो हल्दी के चूर्ण को घी में पकाकर छाती पर मलने से कफ निकलना शुरू हो जाता है। इसके साथ ही हल्दी का धुआं भी सूंघना लाभकारी होता है।
  • हल्दी एक बहुत ही बेहतरीन एंटीऑक्सिडेंट है, जो कैंसर को भी कंट्रोल करता है। तथा जो अस्थिर ऑक्सीजन को संतुलित करने में मदद करती है। इन्हें फ्री रेडिकल्स कहते हैं, जो हमारी त्वचा के सेल्स को नुकसान पहंचाते हैं। इनके कारण त्वचा संबंधी बीमारियां होती हैं।
दर्दों को नष्ट करने के लिए

हल्दी एक प्रभावशाली दर्द नाशक है। सर्दी से उत्पन्न दर्द, दस्तों की वजह से उत्पन्न होने वाला जोड़ों का दर्द, मस्तिष्क शूल, संभोग से उत्पन्न योनिगत दर्दों में एक चुटकी हल्दी चूर्ण खाकर ऊपर से गरम-गरम दूध पी लेने से दर्द खत्म हो जाता है। कान के बहने पर हल्दी और फिटकरी को मिलाकर कान में डालने से कान बहना ठीक हो जाता है। इसके लिए इस चूर्ण को गुलाब जल में डालकर छान लें। इस छने हुए रस की कुछ बूंदों को कान में टपका दें।

  • अगर आपके पेट में दर्द है, तो उसे दूर करने के लिए भी आप हल्दी ले सकते हैं। इससे आपके पेट दर्द को आराम मिलेगा। बाउअल सिंड्रोम की स्थिति में खाना ठीक से डाइजेस्ट नहीं हो पाता है। ऐसे में आप थोड़ी - सी हल्दी लेकर इस दर्द से राहत पा सकते हैं।
डायरिया से बचाती है

हल्दी डायरिया के बैक्टीरिया से हमें बचाती है। जर्मन हेल्थ एथॉरिटीज के मुताबिक़ अतिसार और दस्त की समस्या हो तो टरमरिक हर्बल टी का सेवन करना चाहिए। हल्दी और गुड़ को मिलाकर खाने से पेट के कीड़े मर जाते हैं।

नेत्र रोगों के लिए

चोट लगने से आंखों में आई सूजन, दर्द, लाली, नेत्रास्राव आदि की स्थिति में हल्दी का प्रयोग काफ़ी लाभदायक होता है। हल्दी, दारूहल्दी, नागरमोथा, हरड़, बहेड़ा, आंवला, और शक्कर, इन सभी को बराबर मात्रा में मिलाकर कूट-पीसकर महीन चूर्ण बना लें। इस चूर्ण को बकरी के दूध में बारह घण्टे तक खरल करके बत्ती बना लें। इस बत्ती को स्त्री के दूध में घिसकर आंखों में लगाने से उपरोक्त सभी नेत्र रोग दूर हो जाते हैं।

दुर्गन्ध दूर करने के लिए

हल्दी, दारूहल्दी, रक्स, सिरस की छाल, नागरमोथा, लोध्र, सफेद चंदन, और नागकेसर को पानी के साथ पीसकर तैयार कर लें। इस लेप को लगाने से पसीने के कारण दुर्गन्ध आना, देह में जलन, दांतों एवं मुंह की दुर्गन्ध, योनिगत विकारों की दुर्गन्ध आना, बन्द हो जाती है।

साइनुसाइटिस

नाक से संबंधित सभी तरह की तकलीफों, पुराना जुकाम, पीनस, नाक का गोश्‍त बढ़ जानें, साइनुसाइटिस में हल्‍दी का चूर्ण 1 से 2 ग्राम की मात्रा में दिन में दो बार खाने से आरोग्‍य प्राप्‍त होता है। उक्‍त तकलीफों से होनें वाले सिर दर्द, बुखार, बदन दर्द आदि लक्षण ठीक हो जाते हैं।

एलर्जी

एलर्जी, शीतपित्‍ती या इसी तरह के लक्षणों और तकलीफों से परेशान रोगी हल्‍दी का चूर्ण, 1 से 2 ग्राम, सुबह और शाम, दिन में दो बार, आधा कप दूध और आधा कप पानी मिलाकर, इस प्रकार से पकाये। दूध के साथ खाने से आरोग्‍य प्राप्‍त होता है। दूध में यदि चाहें तो थोड़ी शक्‍कर स्‍वाद के लिये मिला सकते हैं।

इस्‍नोफीलिया (नज़ला)-

इस्‍नोफीलिया में हल्‍दी का प्रयोग बहुत सटीक है। 2 से 3 ग्राम हल्‍दी चूर्ण गुनगुने पानी से, दिन में तीन बार, खाने से, इस रोग में आराम मिलती है। कुछ दिनों तक लगातार खाने से रोग समूल नष्‍ट हो जाते हैं। जैसे जैसे इसनोफीलिया का काउन्‍ट कम होता जाये, वैसे हल्‍दी की मात्रा अनुपात में घटाते जाना चाहिये।

हृदय संबंधी रोग में लाभदायी

हल्दी रक्त संचार को बढाने में मदद करती है। साथ ही साथ रक्त कणिकाओं को मज़बूत बनाती है। हल्दी एल.डी.एल कोलेस्ट्रॉल को कम करती है। शोध से पता चलता है कि एल.डी.एल कोलेस्ट्रॉल धमनियों को बंद कर देता है, जिससे हृदय संबंधी रोग होने का ख़तरा बढ जाता है। कनाडा में हुए एक शोध के मुताबिक़ हल्दी न सिर्फ हार्टअटैक के खतरे से बचाती है बल्कि क्षतिग्रस्त हृदय की मरम्मत भी करती है।

दमा में

इस रोग में हल्‍दी का चूर्ण 2 से 3 ग्राम तक अदरक के एक या दो चम्‍मच रस और शहद मिलाकर दिन में चार बार खानें से आरोग्‍य प्राप्‍त होता है। कुछ दिनों तक यह प्रयोग लगातार करना चाहिये। अगर रोगी एलापैथी की दवायें खा रहा है, तो भी यह प्रयोग कर सकते हैं। जैसे जैसे आराम मिलता जाय, एलापैथी दवाओं की मात्रा कम करते जाएँ।

यकृत प्‍लीहा की बीमारियों में

यकृत की बीमारियों में हल्‍दी का उपयोग आदि काल से किया जा रहा है। यकृत के सभी विकारों में, पीलिया, पान्‍डु रोग इत्‍यादि में हल्‍दी का चूर्ण 1 ग्राम, कुटकी का चूर्ण 500 मिलीग्राम मिलाकर दिन में तीन बार सादे पानीं के साथ खाना चाहिये। प्‍लीहा की सभी बीमारियों में उक्‍त चूर्ण मिश्रण खाना चाहिये।

मधुमेह

हल्‍दी 2 ग्राम, जामुन की गुठली का चूर्ण 2 ग्राम, कुटकी 500 मिलीग्राम मिलाकर दिन में चार बार सादे पानीं से खायें। पथ्‍य, परहेज करें, कई हफ्तों तक औषधि प्रयोग करें। मधुमेह के साथ जिनको पैंक्रियाटाइटिस, यकृत प्‍लीहा विकार, गुर्दे के विकार, आंतों से संबंधित विकार हों, ये सभी तकलीफें दूर होंगी।

प्रमेह

प्रमेह रोग से संबंधित सभी विकारों में हल्‍दी का उपयोग बहुत सटीक है। बहुमूत्र, गंदा पेशाब, पेशाब में जलन, पेशाब की कड़क, पेशाब में एल्‍बूमिन जाना, पेशाब में रक्‍त, पीब के कण आदि आदि रोगों में हल्‍दी चूर्ण 1 ग्राम दिन में चार बार सादे पानी से सेवन करें। अगर इन बीमारियों में कोई एलोपैथी की दवा खा रहे हों, तो उनके साथ हल्‍दी का उपयोग करें, शीघ्र लाभ होगा।

सुजाक रोग के लिए

सुजाक होने पर जब पेशाब गाढ़ा तथा दर्द के साथ आने लगता है और बूंद-बूंद करके पेशाब निकलता रहता है तो हल्दी और आंवला के मिश्रण से तैयार काढ़ा पीने से बहुत लाभ होता है। इसके काढ़े के सेवन से दस्त साफ़ होता है तथा पेशाब की जलन कम हो जाती है।

दूध शुद्ध करने के लिए

प्रसूता काल में जब बच्चा माँ के दूध पर ही निर्भर रहता है उस समय प्रसूता अगर नियमित रूप से एक चुटकी हल्दी दूध के साथ लेती रहे तो दूध शुद्ध हो जाता है तथा शिशु को पीलिया की शिकायत नहीं हो पाती है। इससे गर्भाशय को भी उत्तेजना प्रदान होती है और गर्भाशय में स्थित सभी विकार निकल जाते हैं।

स्तन सूजन निवारण हेतु

कभी-कभी दुग्धपान कराते समय या सहवास के समय स्तनों पर दबाव पड़ने से या अत्यधिक तंग चोली पहनने के कारणों से स्तनों में सूजन हो जाया करती है। इस स्थिति में गवारपाठे के रस के साथ हल्दी चूर्ण को मिलाकर गुनगुना गर्म करके स्तन पर लेप करते रहने से स्तन-सूजन दूर हो जाती है। अगर पकाव पैदा हो गया हो तो वह भी इस प्रयोग से फूट कर बह जाता है।

यौन दुर्बलता पर

शीघ्रपतन, लिंग शिथिलता, स्वप्नदोष, आदि यौन रोगों में हल्दी का चूर्ण, गूलर फल का रस व मेथाचीप्स के पत्तों के स्वरस को मिलाकर आग पर पका लें तथा इससे नियमित रूप से लिंग की मालिश करते रहने से उपरोक्त दोष दूर हो जाते हैं। गाय के दस तोले मूत्र के साथ तीन माशा हल्दी चूर्ण मिलाकर उपदंश (गर्मी) जन्य विकारों पर लगाने से विकार दूर हो जाते हैं। इस लेप से खुजली भी मिट जाती है। हरिद्रादि धूप के सेवन से भी यौनगत विकारों का शमन होता है।

शास्‍त्रोक्‍त प्रयोग

हल्‍दी के शास्‍त्रोक्‍त प्रयोग बड़ी संख्‍या में आयुर्वेद के चिकित्‍सा ग्रंथों में मिलते हैं। इनमें से बहुत से प्रयोग तमाम प्रकार की बीमारियों के उपचार में इस्‍तेमाल किये जाते हैं।

सलाह

अगर आप कोई एलोपैथी की दवा खा रहे हैं या होम्‍योपैथिक या कोई अन्‍य उपचार कर रहे हैं, तो भी आप हल्‍दी का प्रयोग कर सकते हैं। हल्‍दी के प्रयोग करने से, उपचार पर कोई असर नहीं पड़ता है। हल्‍दी के प्रयोग से, किये जा रहे उपचार अधिक प्रभावकारी हो जाते हैं।

हल्दी की खेती

भारत विश्व में हल्दी का सबसे बड़ा उत्पादक देश है, हल्दी की खेती श्रीलंका, बंगला देश, पाकिस्तान, थाईलैंड, चीन, पेरू तथा ताइवान में भी बड़े पैमाने पर होती है। विश्व में हल्दी के कुल उत्पादन का 90 प्रतिशत भाग केवल भारत में उत्पादित होता है। उत्तर प्रदेश में हल्दी की खेती मुख्यतः झांसी, देवरिया, सिद्धार्थनगर, बाराबंकी, पीलीभीत आदि ज़िलों में की जाती है। सांगली और महाराष्ट्र में उगाई जाने वाली हल्दी दुनिया भर में सबसे अच्छी मानी जाती है। महाराष्ट्र और सांगली ही सबसे अधिक हल्दी का निर्यात भी करते हैं।

खेती का तरीका

हल्दी की खेती करना बहुत आसान है। इसे वर्ष में एक बारिश और 20 से 30 डिग्री तापमान की आवश्यकता होती है। हल्दी की खेती के लिए केवल एक कंद ही लगाना काफ़ी होता है। यह अदरक की तुलना में चौड़े पत्तों वाला पौधा होता है। एक पौधे से ही बीजों का निर्माण होता है और यह स्वयं कई पौधों का निर्माण करता है।

कटाई उपरान्त क्रिया
  • हल्दी की फसल लगभग 8 माह में तैयार होती है। खुदाई के समय पत्तियों को ज़मीन की सतह में काटकर अलग कर लेते हैं, और यदि नमी की कमी हो तो हल्की सिंचाई देते हैं। हल्दी को कभी भी पकने से पहले नहीं खोदना चाहिए, अन्यथा इसकी गुणवता के साथ-साथ उपज पर भी बुरा प्रभाव पड़ता है।
  • हल्दी की गांठों को ज़मीन से खुदाई के बाद प्रकन्दों को धोकर साफकर लेते हैं और मातृ प्रकन्दों को अलग करके 2-3 दिनों तक सुखाते हैं। हल्दी की कटाई उपरान्त क्रियाओं को मुख्यतः चार चरणों में विभाजित करते हैं :-
1. पकाना

हल्दी के प्रकन्दों को पकाने का लाभ निम्नवत है-

  • ताजे प्रकन्दों के जीवन क्षमता को नष्ट करना।
  • कच्चे प्रकन्दों की विशेष गध को समाप्त करना।
  • हल्दी में उपस्थिति मण्ड (स्टार्च) जिलेटिनाइज करना ताकि सुखाने पर हल्दी ठोस हो जाये।
  • प्रकन्दों को एक समान रंग प्रदान करना।

प्रकन्दों को साफ़ तांबा या लोहे के छिद्रयुक्त बर्तन, जिसका लम्बा समान्य सिल हो, में रखकर पानी में डुबो दिया जाता है। प्रकन्दों को 40-60 मिनट तक पानी में उबालते हैं। प्रकन्दों के उबल जाने पर हल्दी की एक विशेष गंध आने लगती है तथा पानी की सतह पर झाग भी दिखने लगता है। इससे हल्दी का कम रंग और अच्छा हो जाता है। हल्दी को तब तक उबालना चाहिए जब तक कि वह मुलायम न पड़ जाये। कम उबालने से हल्दी बहुत अच्छी नहीं होती और अधिक उबाल देने पर हल्दी का रंग बिगड़ जाता है। पके हुए प्रकन्दों को पानी भरे बर्तन में निकाल लिया जाता है, बचा हुआ पानी कच्चे प्रकदों को पकाने में दोबारा प्रयुक्त किया जा सकता है। प्रकन्दों के पकाने की प्रक्रिया कटाई के 2-4 दिनों के अंदर कर लेनी चाहिए।

2. सुखाना

पके हुए प्रकन्दों को 5-7 सेमी. मोटी परत के रूप में बांस की चटाई या सूखे फर्श पर सूर्य की रोशनी में सुखाया जाता है। प्रकन्दों को पतली परत के रूप में सुखाने से उसके रंग पर बुरा प्रभाव पड़ता है। प्रकन्दों को पूर्णतः सुखाने में 1015 दिन का समय लगता है। रात्रि के समय प्रकंदों को ढेर में रखते हैं या किसी चादर या पॉलीथीन में ढक देते हैं। सूखे प्रकन्दों की प्राप्ति हल्दी की प्रजाति एवं खेती के स्थान पर निर्भर करती है, औसतन सूखे प्रकन्दों की प्राप्ति 20-30 प्रतिशत तक होती है।

3. प्रकन्दों की पॉलिश

सूखे हुए प्रकन्द दिखने में ख़राब एवं हल्के रंग के होते हैं, साथ-साथ प्रकन्दों में शल्कें एवं जड़ के टुकड़े लगे रहते हैं। प्रकन्दों को पैरों के द्वारा या यांत्रिक विधि द्वारा पॉलिश करके सतह को चिकना बनाया जा सकता है, जिससे प्रकन्द देखने में अच्छे लगते हैं।

4. हल्दी का पाउडर

प्रकन्दों को चक्की में पीसकर उसका पाउडर निकाला जाता है। हल्दी को पाउडर के रूप में या फिर पेस्ट के रूप में प्रयोग किया जाता है।


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टीका टिप्पणी और संदर्भ

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