सप्तक

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सप्तक क्रमानुसार सात शुद्ध स्वरों के समूह को कहते हैं। सातों स्वरों के नाम क्रमश: सा, रे, , , , और नि हैं। इसमें प्रत्येक स्वर की आन्दोलन संख्या अपने पिछले स्वर से अधिक होती है। दूसरे शब्दों में सा से जैसे-जैसे आगे बढ़ते जाते हैं, स्वरों की आन्दोलन संख्या बढ़ती जाती है। रे की आन्दोलन संख्या सा से, ग, की, रे, से, व, म, की, ग, से अधिक होती है। इसी प्रकार प, ध और नी की आन्दोलन संख्या अपने पिछले स्वरों से ज़्यादा होती है। पंचम स्वर की आन्दोलन संख्या सा से डेढ़ गुनी अर्थात् 3/2 गुनी होती है। उदाहरण के लिए अगर सा की आन्दोलन संख्या 240 है तो प की आन्दोलन संख्या 240 की 3/2 गुनी 360 होगी। प्रत्येक सप्तक में सा के बाद रे, ग, म, प, ध नि, स्वर होते हैं। नि के बाद पुन: सा आता है और इसी स्वर से दूसरा सप्तक शुरू होता है। यह सा अथवा तार सा पिछली सा से दुगुनी ऊँचाई पर रहता है और इसकी आन्दोलन संख्या भी अपने पिछले सा से दुगुनी होती है। उदाहरण के लिए मध्य सा की आन्दोलन संख्या 240 है तो तार सा की आन्दोलन संख्या 240 की दुगुनी 480 होगी। इसलिए सा, प और सां को एक साथ बजाने से उत्पन्न ध्वनि कानों को अच्छी लगती है।

से से नि तक एक सप्तक होता है। नि के बाद दूसरा स, (तार सा) आता है और इसी स्थान से दूसरा सप्तक भी शुरू होता है। दूसरा सप्तक भी नि तक रहता है और पुन: नि के बाद अति तार सा आता है, जहाँ से तीसरा सप्तक प्रारम्भ होता है। इसी प्रकार बहुत से सप्तक हो सकते हैं, किन्तु क्रियात्मक संगीत में अधिक से अधिक तीन सप्तक प्रयोग में लाये जाते हैं। प्रत्येक सप्तक में 7 शुद्ध और 5 विकृत स्वर होते हैं। गायन-वादन में 3 सप्तक से अधिक स्वरों की आवश्यकता नहीं होती। अधिकांश व्यक्तियों का कण्ठ तीन सप्तक से भी कम होता है।

सप्तक के प्रकार

शास्त्रकारों ने तीनों सप्तकों के निम्नलिखित नाम रखे हैं–

  1. मन्द्र सप्तक
  2. मध्य सप्तक
  3. तार सप्तक


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टीका टिप्पणी और संदर्भ

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