शनिवार व्रत की आरती
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चार भुजा तहि छाजै, गदा हस्त प्यारी | जय ०
रवि नंदन गज वंदन,यम अग्रज देवा |
कष्ट न सो नर पाते, करते तब सेना | जय ०
तेज अपार तुम्हारा, स्वामी सहा नहीं जावे |
तुम से विमुख जगत में,सुख नहीं पावे | जय ०
नमो नमः रविनंदन सब ग्रह सिरताजा |
बंशीधर यश गावे रखियो प्रभु लाज | जय ०
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टीका टिप्पणी और संदर्भ