शंकर राव देव

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शंकर राव देव (जन्म- 1871, मृत्यु- 1958) संत रामदास के भक्त और अपने समय के राष्ट्रवादी थे। संन्यासी जैसा जीवन जीने वाले शंकर राव ने महापुरुषों के सम्पर्क में आकर अपना पूरा जीवन सार्वजनिक कार्यों को समर्पित कर दिया था।

परिचय

संत रामदास के भक्त और अपने समय के राष्ट्रवादी शंकर हरि कृष्ण देव अथवा शंकर राव देव का जन्म 1871 ईसवी में ख़ानदेश के धूलिया नामक स्थान में हुआ था। उनकी उच्च शिक्षा पुणे में हुई जहां से उन्होंने 1898 में कानून की शिक्षा पूरी की और फिर धूलिया में वकालत करने लगे। शंकर राव देव पर भारत के प्राचीन ग्रंथों और मराठी संतो का बड़ा प्रभाव पड़ा। उन्हें तिलक, गोखले, आगरकर, महर्षि कर्वे जैसे महापुरुषों के संपर्क का लाभ मिला।[1]

सार्वजनिक कार्य

शंकर राव देव ने सार्वजनिक कार्यों में बढ़-चढ़कर भाग लिया। उन्होंने युवकों को राष्ट्र सेवा के लिए प्रशिक्षित करने के उद्देश्य से 'सत्कार्योत्तेजक सभा' नामक एक संस्था बनाई थी। स्वदेशी के प्रचार के लिए वे प्रयत्नशील थे। जब लोकमान्य तिलक ने 'होमरूल लीग' की स्थापना की तो शंकर राव देव उसके प्रमुख कार्यकर्ता बन गए। उन्होंने जगह-जगह इस संस्था की शाखाएं खोलीं। 1913 से 1918 तक उन्होंने नगर पालिका के विभिन्न पदों पर काम किया। 1918 में उनको मुंबई लेजिस्लेटिव कौंसिल का सदस्य चुना गया। वे 1927 तक इस पद पर रहे।

संत रामदास के जीवन पर शोध

1928 में शंकर राव देव ने सार्वजनिक कार्यों से स्वयं को अलग कर लिया। अब उनके जीवन का एकमात्र लक्ष्य संत रामदास के जीवन और कार्यों के संबंध में शोध करना था। वास्तव में इस काम में वे 1904 से ही लगे हुए थे। हैदराबाद और महाराष्ट्र में घूम-घूमकर उन्होंने ऐतिहासिक महत्त्व की हजारों पांडुलिपियों और पत्रों को खोज निकाला। उनके संपादित और रचित 54 ग्रंथ 'रामदास अनि रामदासी ग्रंथमाला' के नाम से प्रकाशित हुए हैं। उन्होंने संन्यासी का सा सादा जीवन जीया।

मृत्यु

संत रामदास के भक्त शंकरराव देव का 1958 ई. में निधन हो गया।


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टीका टिप्पणी और संदर्भ

  1. भारतीय चरित कोश |लेखक: लीलाधर शर्मा 'पर्वतीय' |प्रकाशक: शिक्षा भारती, मदरसा रोड, कश्मीरी गेट, दिल्ली |पृष्ठ संख्या: 824 |

बाहरी कड़ियाँ

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