विश्व मधुमेह दिवस

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विश्व मधुमेह दिवस
विश्व मधुमेह दिवस का प्रतीक चिह्न
विवरण फ्रेडरिक बेटिंग के योगदान को याद रखने के लिए इंटरनेशनल डायबेटिक फेडरेशन द्वारा 14 नवंबर को दुनिया के 140 देशों में मधुमेह दिवस मनाया जाता है।
तिथि 14 नवंबर
शुरुआत 1991
अन्य जानकारी भारत को 'मधुमेह की राजधानी' कहा जाता है। खानपान की ख़राबी और शारीरिक श्रम की कमी के कारण पिछले दशक में मधुमेह होने की दर दुनिया के हर देश में बढ़ी है।

विश्व मधुमेह दिवस (अंग्रेज़ी: World Diabetes Day) प्रत्येक वर्ष 14 नवंबर को मनाया जाता है। निरन्तर मधुमेह रोगियों की संख्या में हो रही वृद्धि को देखते हुए 1991 में अंतर्राष्ट्रीय मधुमेह संघ एवं विश्व स्वास्थ्य संगठन ने संयुक्त रूप से इस बीमारी के प्रति लोगों को जागरूक करने हेतु प्रति वर्ष विश्व मधुमेह दिवस आयोजित करने का विचार किया। इस हेतु उन्होंने 14 नवंबर का दिन चयनित किया। 14 नवंबर विश्व मधुमेह दिवस के रूप में वर्ष 1991 से मनाया जा रहा है। प्रति वर्ष विश्व मधुमे‍ह दिवस का अलग ध्येय होता है।[1] इस वर्ष मधुमे‍ह दिवस का ध्येय है 'मधुमे‍ह के विषय में लोगों को शिक्षित करना' व 'बच्चों एवं किशोरावस्था में मधुमेह'।

खोज

मधुमेह रोग के कारण एवं इसके विभिन्न पहलुओं को समझने हेतु कई लोग प्रयासरत थे। इनमें से एक जोड़ी फ्रेडरिक बैटिंग एवं चार्ल्स बेस्ट की भी थी, जो पैनक्रियाज ग्रन्थि द्वारा स्त्रावित तत्त्व के रसायनिक संरचना की खोज में लगे हुए थे। इस तत्त्व को अलग कर उन्होंने अक्टूबर, 1921 में प्रदर्शित किया कि यह तत्त्व शरीर में ग्लूकोज़ का निस्तारण करने में अहम भूमिका निभाता है और इसकी कमी होने से मधुमेह रोग हो जाता है। इस तत्त्व को इंसुलिन का नाम दिया गया। इसकी खोज मधुमेह के इतिहास में एक मील का पत्थर है। इस कार्य हेतु इन्हें नोबेल पुरस्कार से सम्मानित किया गया।

इतिहास

14 नवंबर को फ्रेडरिक बैटिंग का जन्म दिवस है। अतः विश्व मधुमेह दिवस हेतु इस तिथि का चयन किया गया। फ्रेडरिक बेटिंग के योगदान को याद रखने के लिए इंटरनेशनल डायबेटिक फेडरेशन द्वारा 14 नवंबर को दुनिया के 140 देशों में मधुमेह दिवस मनाया जाता है। प्रारम्भ में “विश्व मधुमेह दिवस” हेतु “यिन और याँग” को प्रतीक चिह्न के लिये चुना गया था।

एक्वा चेक
Aqua cheque

चीनी संस्कृति में “यिन और याँग” को द्वैतवात के अनुसार प्रकृति में संतुलन का प्रतीक माना जाता है। यह पहचान चिह्न इस बात की ओर इंगित करता है कि इस बीमारी पर समुचित लगाम कसने हेतु रोगी, चिकित्सक, सामाजिक जागरूकता आदि विभिन्न तत्वों के बीच संतुलन होना आवश्यक है।

अंतर्राष्ट्रीय मधुमेह संघ के सतत प्रयास के फलस्वरूप संयुक्त राष्ट्र संघ ने अन्ततः मधुमेह की चुनौती को स्वीकारा और दिसम्बर, 2006 में इसे अपने स्वास्थ कार्यक्रमों की सूची में शामिल किया। सन् 2007 से अब यह संयुक्त राष्ट्र के कार्यक्रम के रूप में मनाया जाता है। संयुक्त राष्ट्र के सूची में शामिल होने का सबसे बड़ा लाभ यह हुआ कि अब संयुक्त राष्ट संघ के सदस्य देश अपनी स्वास्थ्य संबंधी नीति-निर्धारण में इसे महत्त्व दे रहें हैं।

प्रतीक चिह्न

सन 2007 में संयुक्त राष्ट्र द्वारा इस दिवस को अंगीकार करने के बाद इस का प्रतीक चिह्न नीला छल्ला चुना गया है। छल्ला या वृत्त, निरंतरता का प्रतीक है। वृत्त इस बात का प्रतीक है विश्व के सभी लोग इस पर काबू पाने के लिये एकजुट हों। नीला रंग आकाश, सहयोग और व्यापकता का प्रतीक है। इस प्रतीक चिह्न के साथ जो सूत्र वाक्य दिया गया है वह है- मधुमेह के लिए एकजुटता।

केन्द्रीय विचार

प्रत्येक वर्ष, 'विश्व-मधुमेह दिवस' किसी एक केन्द्रीय विचार पर बल देता है। वर्ष 2008 का विचार मधुमेह एवं बच्चे था। बच्चों में मधुमेह प्रकार-1 एवं प्रकार-2 दोनों प्रकार के हो सकते हैं।

बच्चों में मधुमेह

मोटापा और मधुमेह का औसत
Obesity and Diabetes

बच्चों में मुख्यतः प्रकार-1 मधुमेह होता है, जिसके चिकित्सा के लिए जीवन पर्यन्त इंसुलिन लेना होता है। कई बार इससे पीड़ित बच्चें के लक्षणों को न पहचान पाने के कारण उनकी मौत, डायाबिटीक कोमा में हो जाती है। बीमारी के निदान होने के बाद भी आर्थिक और अन्य कारणों से इन बच्चों को समुचित चिकित्सा नहीं मिल पाती। बदलते जीवन शैली और ठोस, उच्च ऊर्जा युक्त भोजन की प्रचुरता के कारण बच्चों में मोटापे की प्रवृत्ति इधर बहुत तेज़ीसे बढ़ रही है। अमेरिकी आंकड़े बताते हैं कि 7 से 15 वर्ष की आयु वर्ग के बीच मोटापे की दर में 1985 से 1997 के बीच दो से चार गुनी वृद्धि हुई है। भारत में तमिलनाडु में डॉ. रामचन्द्रन द्वारा किये गये एक सर्वेक्षण में 13 से 18 वर्ष के बच्चो में 18% में मोटापा पाया गया। बच्चों में बढ़ते मोटापे की प्रवृत्ति एवं शारीरिक श्रम में कमी के कारण अब प्रकर-2 मधुमेही बच्चे भी बड़ी संख्या में देखने को मिल रहें हैं। इन्हीं बातों को ध्यान में लेते हुए वर्ष 2008 विश्व मधुमेह दिवस का केन्द्रीय विचार 'बच्चे और मधुमेह' दिया गया। वर्ष 2008 से 2009 में मधुमेह आत्म देखभाल संस्था ने बच्चों को केन्द्रित कर वर्ष भर के लिये एक अभियान शुरू किया था जिसका नाम मधुमेह विजय दिया गया। इस अभियान के तहत प्रति माह विभिन्न स्कूलों में बच्चों एवं अध्यापकों को इस बीमारी के प्रति जागरूक करने, स्वस्थ भोजन, जीवन शैली एवं व्यायाम की महत्ता समझाने के लिये व्याख्यान किये गये और विज्ञापन एवं नारा प्रतियोगिता के माध्यम से बच्चों के सृजनात्मक सोच को विकसित किया गया।[2]

भारत में महत्त्व

भारत में मधुमेह

भारत को मधुमेह की राजधानी कहा जाता है। खानपान की ख़राबी और शारीरिक श्रम की कमी के कारण पिछले दशक में मधुमेह होने की दर दुनिया के हर देश में बढ़ी है। भारत में इसका सबसे विकृत स्वरूप उभरा है जो बहुत भयावह है। जीवनशैली में अनियमितता मधुमेह का बड़ा कारण है। एक दशक पहले भारत में मधुमेह होने की औसत उम्र चालीस साल की थी जो अब घट कर 25 से 30 साल हो चुकी है। 15 साल के बाद ही बड़ी संख्या में लोगों को मधुमेह का रोग होने लगा है। कम उम्र में इस बीमारी के होने का सीधा मतलब है कि चालीस की उम्र आते-आते ही बीमारी के दुष्परिणामों को झेलना पड़ता है।

विश्व मधुमेह दिवस कार्यक्रम 1991 से 2008 तक
वर्ष शीर्षक
2009 से 2012 मधुमेह के विषय में लोगों को शिक्षित करना
2008 अब कुछ अलग कर दिखाने का समय है।
बच्चों एवं किशोरों को मधुमेह से बचाइए।
2007 264 क़दम चलें।
2006 बच्चों को मधुमेह से बचाइए।
2005 मधुमेह में पैरों की देखभाल ज़रूरी है।
2004 मोटापा छुड़ाएँ, मधुमेह से बचें।
2003 मधुमेह रोगियों को गुर्दे की ख़राबी पर जागरुक करें।
2002 मधुमेह में करें आँखों की देखभाल।
2001 मधुमेह में करें ह्र्दय की देखभाल।
2000 सही जीवन शैली से रोकें मधुमेह को।
1999 मधुमेह के कारण राष्ट्रीय बजट पर ख़तरा है।
1998 मधुमेह मरीज़़ों के अधिकार सुरक्षित हैं।
1997 विश्वव्यापी जागरुकता ज़रुरी है।
1996 इंसुलीन ही जीवन का अमॄत है।
1995 बिना जानकारी मधुमेह के रोगी का भविष्य खतरे में होगा।
1994 बढ़ती उम्र मधुमेह का जोखिम कारक है इसे कम कर सकते हैं।
1993 किशोरावस्था में मधुमेह की देखभाल।
1992 मधुमेह विश्वव्यापी एवं सभी उम्र की समस्या है।
1991 मधुमेह पर जनता को जागरुक करें।

भारत में 1995 में मधुमेह रोगियों की संख्या 1 करोड़ 90 लाख थी, जो 2008 में बढ़कर चार करोड़ हो गई है। अनुमान है कि 2030 में मधुमेह रोगियों की संख्या आठ करोड़ के आसपास हो जाएगी। भारत सरीखे देशों में क़रीब 340 से 350 लाख व्यक्ति इस व्याधि का शिकार हैं, जो एक विश्व रिकार्ड है। 17% नगरवासी एवं 2.5% ग्रामवासी इस बीमारी से पीड़ित हैं। दिल्ली मधुमेह अनुसंधान केन्द्र के अध्यक्ष डॉ. ए. के. झिंगन के अनुसार सभी तरह के निचले अंग विच्छेदन के मामले में 45 से 75 फ़ीसदी मधुमेह रोगी होते हैं। 2030 में मधुमेह रोगियों की अनुमानित संख्या क़रीब आठ करोड़ है, जिसमें एक करोड़ लोगों को डायबिटिक पैरों का ख़तरा होगा। यह मधुमेह रोगियों में सर्वाधिक गम्भीर, जटिल व खर्चीली बीमारी है। इस रोग के परिणामस्वरूप शरीर के निचले हिस्से के अंगों में विच्छेदन की संख्या बढ़ी है। मधुमेह (डायबिटीज) के कारण ही किडनी की ख़राबी, हृदय आघात, पैरों का गैन्ग्रीन और आंखों का अन्धापन अब भारत की मुख्य स्वास्थ्य समस्या बन चुकी है।

ग़लत ख़ानपान एवं आलसी जीवन शैली के कारण दिन-प्रतिदिन कम उम्र के लोगों में यह बीमारी हो रही है। अतः भारत में ज़ोर-शोर से विश्व मधुमेह दिवस मनाने की ज़रूरत है। इस लक्ष्य को लेकर कुछ कार्यक्रम प्रस्तुत किये गये हैं जो इस प्रकार हैं।[3]

बचाव

खानपान की ख़राबी और शारीरिक श्रम की कमी के कारण पिछले दशक में मधुमेह होने की दर दुनिया के हर देश में बढ़ी है। भारत में इसका सबसे विकृत स्वरूप उभरा है जो बहुत भयावह है। एक दशक पहले भारत में प्रकार-2 मधुमेह होने की औसत उम्र चालीस साल की थी जो अब घट कर 25 से 30 साल हो चुकी है। 15 साल के बाद ही बड़ी संख्या में लोगों को मधुमेह का रोग होने लगा है। कम उम्र में इस बीमारी के होने का सीधा मतलब है कि चालीस की उम्र आते-आते ही बीमारी के दुष्परिणामों को झेलना पड़ता है। मधुमेह के कारण ही किडनी की ख़राबी, हृदय आघात, पैरों का गैन्ग्रीन और आँखों का अन्धापन अब भारत की मुख्य स्वास्थ्य समस्या बन चुकी है। इससे यह स्पष्ट होता है कि मधुमेह से बचाव हमारी प्रमुख प्राथमिकता हो गयी है।

सलाह

मधुमेह के मरीज़़ों को आहार की विशिष्ट सलाह दी जाती है। यह विकार आजीवन रहने वाला है। अतः-

  • समय-समय पर रक्त जाँच कराते रहें।
  • नियमित शुगर स्तर की जाँच करायें।
  • अगर आपको किसी भी प्रकार का घाव हुआ हो, तो उसे खुला ना छोड़ें।
  • फलों का रस लेने के बजाय, फल खायें।
  • व्यायाम करें और अपना वज़न नियंत्रित रखें।
  • ग्लूकोज़, चीनी, जैम, गुड़, मिठाईयाँ, तले हुए आहार, अल्कोहल का सेवन, सूखे मेवे, बादाम, मूँगफली, आलू, शकरकंद, मटर, सेम जैसी सब्जियाँ, केला, शरीफा, चीकू, अन्जीर, खजूर जैसे फल से परहेज करें।
  • सलाद, कच्ची सब्जि़याँ, सब्जि़यों के सूप, चाय, काफ़ी या नीबू पानी आदि पर्याप्त मात्रा में ले सकते हैं।


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टीका टिप्पणी और संदर्भ

  1. विश्‍व मधुमेह़ दिवस (हिन्दी) ऑनली माई हेल्थ। अभिगमन तिथि: 14 नवंबर, 2010
  2. विश्व मधुमेह दिवस 14 नवंबर (हिन्दी) (एच.टी.एम) मधुमेह और आप। अभिगमन तिथि: 14 नवंबर, 2010
  3. विश्व मधुमेह दिवस (हिन्दी) (एच.टी.एम.एल) डी. एच. आर. सी. इंडिया। अभिगमन तिथि: 14 नवंबर, 2010

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