वाल्मीकि आश्रम
'रामायण' के रचियता आदि कवि वाल्मीकि का आश्रम चित्रकूट (बाँदा ज़िला, उत्तर प्रदेश) के निकट कामतानाथ से पंद्रह-सोलह मील की दूरी पर लालपुर पहाड़ी पर स्थित बछोई ग्राम में बताया जाता है।[1]
- संभवतः गोस्वामी तुलसीदास ने 'रामचरित मानस', अयोध्या कांड में इसी स्थान को वाल्मीकि का आश्रम कहा है-
'देखत वन सर शैल सुहाए, वाल्मीकि आश्रम प्रभु आए, रामदीख मुनिवास सुहावन, सुंदर गिरि कानन जलपावन। सरनि सरोज (विटप वन) फूले, गुंजत मंजुमधुप रस भूले। खगमृग विपुल कोलाहल करहीं, विरहित वैर मुदित मन चरहीं।'
- वाल्मीकि रामायण, उत्तर कांड[2] के अनुसार वाल्मीकि का आश्रम गंगा के तट पर स्थित था-
'तदेतज्जाह्नवीतीरे ब्रह्यर्षीणां तपोवनम्।'
'गंगा संतारयामास लक्ष्मणस्तां समाहितः।[3]
- वाल्मीकि रामायण, बाल कांड[4] से ज्ञात होता है कि वाल्मीकि का आश्रम तमसा नदी के तट पर और गंगा के निकट स्थित था-
'सं मूहूर्तंगते तस्मिन् देवलोकं मुनिस्तदा जगाम तमसातीरं जाह्नव्यास्त्वविदूरतः।'
- उपरोक्त तथ्य से यह स्पष्ट है कि यह आश्रम तमसा और गंगा के संगम पर स्थित था।
- 'रघुवंश'[5] में भी कालिदास ने इस आश्रम को तमसा नदी के तट पर स्थित बताया है-
'अशून्यतीरां मुनिसंनिवेशैस्वमोपहन्त्रीं तमसां वगाह्य्।'
'रथात्सयंत्रा निगृहीतवाहातां भ्रातृयायां पुलिनेऽवतार्य गंगां निषादाहृतनौ विशेषस्ततार संधामिवसत्यसंधः।
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टीका टिप्पणी और संदर्भ
- ↑ ऐतिहासिक स्थानावली |लेखक: विजयेन्द्र कुमार माथुर |प्रकाशक: राजस्थान हिन्दी ग्रंथ अकादमी, जयपुर |संकलन: भारतकोश पुस्तकालय |पृष्ठ संख्या: 846 |
- ↑ उत्तर कांड, 47 15
- ↑ वाल्मीकि रामायण, उत्तर कांड 46, 33
- ↑ बाल कांड 2, 3
- ↑ रघुवंश 14, 76
- ↑ रघुवंश 14, 52
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