वाजपेयी

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वाजपेयी ब्राह्मणों के चिर-परिचित उपनामों या कुल गोत्रों में एक है। इसे 'बाजपेई', 'बाजपायी' भी लिखा जाता है, किन्तु सही रूप 'वाजपेयी' ही है। 'वाजपेयी' उपनाम भी ज्ञान परम्परा से जुड़ा है और इसका रिश्ता वैदिक संस्कृति के एक प्रमुख अनुष्ठान 'वाजपेय यज्ञ' से है, जो पूर्ववैदिक काल की कृषि संस्कृति की देन है। ब्राह्मण ग्रंथों के अनुसार वाजपेय अनुष्ठान कराने का अधिकार सिर्फ ब्राह्मण और क्षत्रिय वर्णों को ही था। यह तो स्पष्ट है कि आर्यों में यज्ञ की परिपाटी जनमंगल और जनकल्याण की भावना से थी, बाद में इसने रूढ़ अनुष्ठानों का रूप लिया।

पुरोहित और ब्राह्मण वर्ग के लगातार ताकतवर होते जाने और महत्वाकांक्षा बढ़ने के परिणामस्वरूप वाजपेयी वर्ग में भी कई वर्ग-उपवर्ग पैदा हो गए, जो अपने स्तर पर वैदिक संहिताओं और संचित ज्ञान की व्याख्या करने लगे। उद्धेश्य सामंत और श्रेष्ठी वर्ग में अपना वर्चस्व कायम करना था। पुराणोपनिषद काल में यह झमेला शुरू हुआ और फिर इतना बढ़ा कि उसकी प्रतिक्रियास्वरूप हिन्दुत्व के भीतर से ही बौद्ध धर्म जन्मा जो मूलतः ब्राह्मणवाद के विरुद्ध था।[1]

वाजपेय यज्ञ

शतपथ ब्राह्मण में वाजपेय यज्ञ के बारे में विस्तार से विवरण मिलता है। इस यज्ञ का महत्व 'राजसूय यज्ञ' से भी अधिक था। इस यज्ञ का एक ख़ास हिस्सा रथ दौड़ था। रथ दौड़ का विजेता विजय भोज प्राप्त करता था। हालांकि प्रतीत होता है कि प्रभावशाली वर्ग का रथ पहले ही सबसे आगे रहता था और अंत में उसे ही विजयी घोषित किया जाता था। प्राचीन काल में यह मान्यता थी कि राज्य का अधिकारी वही व्यक्ति हो सकता था, जिसने राजसूय यज्ञ किया हो अर्थात राज्याभिषेक के लिए राजसूय यज्ञ आवश्यक था और सम्राट बनने के लिए वाजपेय यज्ञ ज़रूरी था। पौराणिक संदर्भों के अनुसार इन्द्र वाजपेय यज्ञ करने के कारण सम्राट कहलाते हैं, जबकि वरुण राजसूय यज्ञ करने के कारण राजा कहलाते हैं। वाजपेय यज्ञ को स्वर्गाधिपत्य के बराबर बताया गया है। हालांकि यह अतिशयोक्ति है और पुरोहितों द्वारा अपना प्रभाव बढ़ाने और राजाओं को खुश करने के लिए ऐसी बातें प्रचारित हुई होंगी।

अर्थ

वाजपेय यज्ञ कृषि संस्कृति से उपजा एक लोकोत्सव था। संस्कृत में 'वाज' शब्द की अर्थवत्ता बहुत व्यापक है, किन्तु अंततः इससे उपजने वाले सभी अर्थ पूर्ववैदिक काल की जन और ग्राम संस्कृति से उभरे हुए नजर आते हैं। 'वाज' का अर्थ है खाद्य, उपज, अनाज, भोजन आदि। जब यह शब्द यज्ञ की परिधि में आया तो इसका अर्थ 'समिधा' भी हो गया। 'वाज' (पेय) में समृ्द्धि का जो भाव है, वह उपज, अनाज से ही आ रहा है। अन्न से ही शरीर को स्वास्थ्य समृद्धि मिलती है। कृषि उपज के रूप में इससे भौतिक समृद्धि आती है। वाज का अर्थ क्षमता, उत्साह, जोश, गति, वेग भी है। डॉ. वासुदेवशरण अग्रवाल 'मेघदूत मीमांसा' में 'वाज' की दार्शनिक व्याख्या करते हुए लिखते हैं कि- "वाज जीवन रस है।" वाज के अर्थ अन्न-वीर्य आदि हैं। वर्षा ऋतु में वनस्पतियाँ, ओषधियाँ वीर्यवती होती हैं। यहाँ तात्पर्य उनके प्रभावी होने, क्षमतावान होने से है।[1]

वाज को शरीर में ही पचा लेने या आत्मवीर्य को शरीर के कोशों में सम्भृत करने का नाम ही वाजपेय है। जिसने इस वाज को विज्ञानपूर्वक खुद में समों लिया है, वही भरद्वाज (भरद्+वाज) है। तात्पर्य है कि अन्न से प्राप्त शक्ति अथवा जीवन रस का सशक्त संकेत वाज में निहित है। जिस तरह से वर्षा ऋतु में प्रकृति को वाज प्राप्त होता है ताकि प्राणि जगत को शक्ति मिले, उसी तरह अन्न के रूप में मनुष्य को भी वाज अर्थात शक्ति प्राप्त होती है, जिसका उपयोग वह जनकल्याण के लिए कर सके। गौरतलब है कि वैदिक साहित्य में यजुर्वेद में ही विभिन्न अनुष्ठानों, विधानों का उल्लेख है। प्रकृति के भीतर सभी ऋतुएँ वाजवती हैं। अग्नि, सूर्य, वायु सभी पूर्ण वाजपेयी हैं अर्थात ये अपने भीतर के तेज से ही शक्तिवान हैं।

पाण्डुरंग वामन काणे का उल्लेख

डॉ. पाण्डुरंग वामन काणे 'धर्मशास्त्र का इतिहास' (खण्ड एक) में वाजपेय के बारे में लिखते हैं- “भोजन एवं पेय या शक्ति का पीना या भोजन का पीना या दौड़ का पीना। यह भी एक प्रकार का सोमयज्ञ है, अर्थात् इसमें भी सोम रस का पान होता है, अतः इस इस यज्ञ के सम्पादन से भोजन (अन्न), शक्ति आदि की प्राप्ति होती है।” ऋग्वैदिक काल में सात तरह के सोमयज्ञ प्रचलित थे, जिनमें एक 'वाजपेय' भी था। यहाँ गौरतलब है कि सोम के विषय में आज तक कुछ भी ठोस और प्रामाणिक जानकारी नहीं है, बस कल्पना की उड़ानें खूब भरी गई हैं। सोम से संबंधित परम्पराएँ पूर्व वैदिक काल से चली आ रही हैं, जिनसे इतना ही पता चलता है कि इसे एक पवित्र पौधा माना जाता था। इसके रस का पान करना आनुष्ठानिक कर्म माना जाता था और इसका संबंध शक्ति और अन्न समृद्धि से था। इस पौधे में चंद्रमा का प्रतीक जोड़ा गया।[1]


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टीका टिप्पणी और संदर्भ

  1. 1.0 1.1 1.2 वाजपेयी (हिन्दी)। । अभिगमन तिथि: 15 सितम्बर, 2013।

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