रॉस द्वीप

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रॉस द्वीप अंडमान एवं निकोबार द्वीपसमूह में स्थित एक ऐतिहासिक धरोहर है। इतिहास में दिलचस्पी रखने वाले पर्यटकों के लिए रॉस द्वीप बेहतरीन जगह है। किसी जमाने में यह ब्रिटिश शासन की गद्दी और इन द्वीपों की राजधानी हुआ करता था। अब यहाँ अधिकतर टूटे-फूटे पुराने ढाँचों के साथ बीते दिनों के खंडहर हैं। यहॉं पर 'स्मृतिका' नामक छोटा संग्रहालय है, जिसमें इन द्वीपों से सम्बंधित फोटो ग्राफ और अंग्रेज़ों की अन्य दुर्लभ चीज़ें रखी गई हैं।

इतिहास

रॉस द्वीप 200 एकड़ में फैला हुआ है। फीनिक्स उपसागर से नाव के द्वारा रॉस द्वीप पहुंचा जा सकता है। कभी यह द्वीप ग्रेट अंडमानी आदिवासियों का अधिवास था। अंग्रेज़ी शासन काल के दौरान अंडमान एवं निकोबार द्वीप समूह का मुख्यालय रॉस द्वीप में था। अंग्रेज़ी शासन काल के दौरान इसे 'पूरब का पेरिस' कहते थे, लेकिन 1941 में आए भूकंप ने इसे बुरी तरह उजाड़ दिया। अब यहाँ कुछ अवशेष ही बचे हैं, लेकिन पर्यटकों की दिलचस्पी इनमें भी रहती है।

जापानी आधिपत्य

यह द्वीप 1858-1941 तक अंडमान एवं निकोबार द्वीपसमूह की राजधानी भी रहा, पर जापानियों ने इस पर कब्ज़ा करने के बाद इसे ग्रेट अंडमानीज की स्थली होने के कारण इसे 'पीपुल ऑफ़ वारष् साइट' में तब्दील कर दिया। द्वीप अब ब्रिटिश वास्तुशिल्प के खंडहरों के लिए प्रसिद्ध है। यहाँ अभी भी चर्च और चीफ कमिश्नर के बंगले के अवशेष देखे जा सकते हैं। सुबह के समय रॉस द्वीप पक्षी प्रेमियों के लिए स्वर्ग के समान है। द्वीप में समुद्रिका म्यूजियम का भी ख़ासा प्रभाव है। भारतीय नौसेना द्वारा संचालित यह म्यूजियम अंडमान के हर पहलू को क़रीब से दिखाता है।


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