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विवरण देवनागरी वर्णमाला में अंत:स्थ वर्ग का पहला व्यंजन है। यह तालव्य, घोष और अल्पप्राण है।
भाषाविज्ञान की दृष्टि से यह तालव्य, घोष और अल्पप्राण है। यह 'अंत:स्थ वर्ण' है क्योंकि स्पर्शवर्ण और ऊष्मवर्ण के बीच का वर्ण है।
व्याकरण [ संस्कृत (धातु) या + ड ] पुल्लिंग- यश, कीर्ति, योग, यान, गाड़ी, यम, संयम, यव, जौ, त्याग, सारथि, प्रकाश।
विशेष यह अर्धस्वर है और इ/ई की अ/आ से संधि होने पर इ/ई के स्थान पर 'य्' हो जाता है। जैसे- यदि+अपि = यद्यपि; प्रति+आक्रमण = प्रत्याक्रमण।
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अन्य जानकारी 'यि' और 'यी' को क्रमश: 'इ' और 'ई' लिखने की प्रवृत्ति इधर कुछ दशकों में बढ़ी है- अब 'नयी दिल्ली' को 'नई दिल्ली' लिखना सामान्य प्रवृत्ति है। परंतु, इस प्रवृत्ति के परिणामस्वरूप 'स्थायी, स्थायित्व, उत्तरदायी, उत्तरदायित्व' इत्यादि के स्थान पर क्रमश: 'स्थाई, स्थाइत्व, उत्तरदाई, उत्तरदाइत्व' इत्यादि लिखा जाना अज्ञानजन्य और हास्यास्पद है।

देवनागरी वर्णमाला में अंत:स्थ वर्ग का पहला व्यंजन है। भाषाविज्ञान की दृष्टि से यह तालव्य, घोष और अल्पप्राण है। यह 'अंत:स्थ वर्ण' है क्योंकि स्पर्शवर्ण और ऊष्मवर्ण के बीच का वर्ण है। यह अर्धस्वर है और इ/ई की अ/आ से संधि होने पर इ/ई के स्थान पर 'य्' हो जाता है। जैसे- यदि+अपि = यद्यपि; प्रति+आक्रमण = प्रत्याक्रमण।

विशेष-
  • 'य', 'या', 'यि' इत्यादि के अनुसासिक रूप यँ, याँ, यिँ इत्यादि होते हैं परंतु शिरोरेखा के ऊपर 'चंद्रबिंदु' के स्थान पर ‘बिंदु’ लगाने की रीति (सुविधार्थ) प्रचलित है परंतु केवल वहाँ जहाँ मात्रा शिरोरेखा के ऊपर लगती हो। (याँ-यों)।
  • व्यंजन-गुच्छों में 'य' पहले आकर अन्य व्यंजनों से प्राय: नहीं मिलता, केवल 'य' से मिलता है और तब अपनी खड़ी रेखा छोड़ देता है- 'य्' के रूप में (जैसे- साहाय् य / साहाय् य)।
  • पहले आकर 'य' से मिलने वाले अनेक व्यंजन हैं परंतु छ, ख, स, ह, इत्यादि व्यंजनों के 'य' से मिलने पर 'य' में कोई परिवर्तन नहीं होता परंतु उन व्यंजनों का प्राय: खड़ी रेखा छोड़कर योग होता है। जैसे- वाक्य, राज्य, पुण्य, सत्य, तथ्य, ध्यान, न्याय, प्यास, मूल्य, श्याम, भाष्य, हास्य।
  • द् पहले आने पर 'द्य' या 'द+य' रूप बनता है। जैसे- गद्य, पद्य, विद्या अधवा गद्+य, पद्+य, विद्+य और र् पहले आने पर शिरोरेखा के ऊपर लगता है। जैसे- अनिवार्य, कार्य।
  • पुरानी रीति में ट्, ठ्, ड्, ढ्, पहले आकर य् से विशेष प्रकार से मिलते हैं। जैसे- नाट्य, शाठ्य, जाड्य, धनाढ्य; परंतु आज कल प्राय: हलंत का प्रयोग करके ही लिखे जाते हैं जैसे- नाट्+य, शाठ्+य, जाड्+य, धनाढ्+य।
  • शब्दों के 'य' का 'ज' में परिवर्तन लोकभाषा में प्राय: हो जाता है। जैसे- यमुना > जमुना, यव > जौ, कार्य > कारज/काज, यज्ञ > जग्य।
  • 'यि' और 'यी' को क्रमश: 'इ' और 'ई' लिखने की प्रवृत्ति इधर कुछ दशकों में बढ़ी है- अब 'नयी दिल्ली' को 'नई दिल्ली' लिखना सामान्य प्रवृत्ति है। परंतु, इस प्रवृत्ति के परिणामस्वरूप 'स्थायी, स्थायित्व, उत्तरदायी, उत्तरदायित्व' इत्यादि के स्थान पर क्रमश: 'स्थाई, स्थाइत्व, उत्तरदाई, उत्तरदाइत्व' इत्यादि लिखा जाना अज्ञानजन्य और हास्यास्पद है।
  • [ संस्कृत (धातु) या + ड ] पुल्लिंग- यश, कीर्ति, योग, यान, गाड़ी, यम, संयम, यव, जौ, त्याग, सारथि, प्रकाश।[1]

य की बारहखड़ी

या यि यी यु यू ये यै यो यौ यं यः

य अक्षर वाले शब्द


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टीका टिप्पणी और संदर्भ

  1. पुस्तक- हिन्दी शब्द कोश खण्ड-2 | पृष्ठ संख्या- 2043

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