भूदान आन्दोलन

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भूदान आन्दोलन के दौरान विनोबा भावे

भूदान आन्दोलन आचार्य विनोबा भावे द्वारा सन् 1951 में आरम्भ किया गया स्वैच्छिक भूमि सुधार आन्दोलन था। विनोबा भावे की कोशिश थी कि भूमि का पुनर्वितरण सिर्फ सरकारी क़ानूनों के जरिए नहीं हो, बल्कि एक आंदोलन के माध्यम से इसकी सफल कोशिश की जाए। 20वीं सदी के पचासवें दशक में भूदान आंदोलन को सफल बनाने के लिए विनोबा भावे ने गांधीवादी विचारों पर चलते हुए रचनात्मक कार्यों और ट्रस्टीशिप जैसे विचारों को प्रयोग में लाया। उन्होंने सर्वोदय समाज की स्थापना की। यह रचनात्मक कार्यकर्ताओं का अखिल भारतीय संघ था। इसका उद्देश्य अहिंसात्मक तरीके से देश में सामाजिक परिवर्तन लाना था।

आंदोलन का विचार

विनोबा भावे का 'भूदान आन्दोलन' का विचार 1951 में जन्मा। जब वह आन्ध्र प्रदेश के गाँवों में भ्रमण कर रहे थे, भूमिहीन अस्पृश्य लोगों या हरिजनों के एक समूह के लिए ज़मीन मुहैया कराने की अपील के जवाब में एक ज़मींदार ने उन्हें एक एकड़ ज़मीन देने का प्रस्ताव किया। इसके बाद वह गाँव-गाँव घूमकर भूमिहीन लोगों के लिए भूमि का दान करने की अपील करने लगे और उन्होंने इस दान को गांधीजी के अहिंसा के सिद्धान्त से संबंधित कार्य बताया। भावे के अनुसार, यह भूमि सुधार कार्यक्रम हृदय परिवर्तन के तहत होना चाहिए न कि इस ज़मीन के बँटवारे से बड़े स्तर पर होने वाली कृषि के तार्किक कार्यक्रमों में अवरोध आएगा, लेकिन भावे ने घोषणा की कि वह हृदय के बँटवारे की तुलना में ज़मीन के बँटवारे को ज़्यादा पसंद करते हैं। हालांकि बाद में उन्होंने लोगों को 'ग्रामदान' के लिए प्रोत्साहित किया, जिसमें ग्रामीण लोग अपनी भूमि को एक साथ मिलाने के बाद उसे सहकारी प्रणाली के अंतर्गत पुनर्गठित करते। आपके भूदान आन्दोलन से प्रेरित होकर हरदोई जनपद के सर्वोदय आश्रम टडियांवा द्वारा उत्तर प्रदेश के 25 जनपदों में श्री रमेश भाई के नेतृत्व में उसर भूमि सुधार कार्यक्रम सफलता पूर्वक चलाया गया।


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