ब्रह्म विवाह

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ब्रह्म विवाह हिन्दू धर्म मेंं प्रचलित सबसे महत्त्वपूर्ण विवाह संस्कार है। इस विवाह मेंं पहले योग्य गुणवान, ज्ञानवान और शारीरिक रूप से बलवान वर की तलाश की जाती है। इसके बाद कन्या पक्ष के परिजन वर पक्ष से विवाह का अनुग्रह करते हैं। दोनों पक्ष मेंं परस्पर सहमति के पश्चात् कन्या को वस्त्र, आभूषण से सजाकर विधि-विधान से कन्यादान कर पति के साथ विदा किया जाता है।

  • हिन्दुओं मेंं विवाह के कई रूप प्रचलित हैं, जिसमेंं ब्रह्म विवाह को हिन्दू धर्म मेंं सर्वोच और सर्वश्रेष्ठ माना गया है।
  • इस विवाह में सभी संस्कारों को पूरा करने के बाद लड़का-लड़की विवाह के पवित्र बंधन में बंधकर पति-पत्नी के रूप मेंं जीवन व्यतीत करते हैं।
  • ब्रह्म विवाह संस्कार हिन्दुओं में सामाजिक दायित्वों के पूर्णता की कसौटी है।
  • हिन्दू समाज में इस विवाह को पूर्ण मान्यता प्राप्त है। अन्य विवाह, जैसे- आर्य समाजी विवाह, प्रेम विवाह भी हिन्दुओं में प्रचलित है, लेकिन ब्रह्म विवाह को सर्व-सम्मति प्राप्त है।
  • इस विवाह में बारात, मंडप, बैंड-बाजे, विवाह स्थल की सजावट, दूल्हा-दुल्हन की विशेष पोशाक और विवाह के मंत्रोचारण इस विवाह को विशेष बनाते हैं।
  • मंडप में लिए गये सात फेरे इस विवाह को मजबूत आधार प्रदान करते हैं।
  • ब्रह्म विवाह में कई बारीकियां भी होती हैं, जिनका ज्ञान होना भी आवश्यक होता है। अज्ञानता के कारण कभी-कभी विवाह की कुछ चीज़ें छूट जाती हैं।
  • आधुनिक युग में ब्रह्म विवाह को भव्य रूप दिया जा चुका है। लोग लाखों, करोड़ों रुपये विवाह पर खर्च करते हैं।
  • ब्रह्म विवाह की क्रियाविधि को आधुनिक रूप ज़रूर दिया गया है, लेकिन इस विवाह के संस्कार और रिवाज सदैव ऐसे ही कायम रहेंगे।


इन्हें भी देखें: विवाह, सप्तपदी एवं हिंदू विवाह में सात फेरे और सात वचन


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टीका टिप्पणी और संदर्भ

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