बाल काण्ड वा. रा.

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बाल काण्ड वा. रा.
वाल्मीकि रामायण
विवरण 'रामायण' लगभग चौबीस हज़ार श्लोकों का एक अनुपम महाकाव्य है, जिसके माध्यम से रघु वंश के राजा राम की गाथा कही गयी है।
रचनाकार महर्षि वाल्मीकि
रचनाकाल त्रेता युग
भाषा संस्कृत
मुख्य पात्र राम, लक्ष्मण, सीता, हनुमान, सुग्रीव, अंगद, मेघनाद, विभीषण, कुम्भकर्ण और रावण
सात काण्ड बालकाण्ड, अयोध्याकाण्ड, अरण्यकाण्ड, किष्किन्धाकाण्ड, सुन्दरकाण्ड, युद्धकाण्ड (लंकाकाण्ड), उत्तराकाण्ड
संबंधित लेख रामचरितमानस, रामलीला, पउम चरिउ, रामायण सामान्य ज्ञान, भरत मिलाप
अन्य जानकारी रामायण के सात काण्डों में कथित सर्गों की गणना करने पर सम्पूर्ण रामायण में 645 सर्ग मिलते हैं। सर्गानुसार श्लोकों की संख्या 23,440 आती है, जो 24,000 से 560 श्लोक कम है।

बालकाण्ड वाल्मीकि द्वारा रचित प्रसिद्ध हिन्दू ग्रंथ 'रामायण' और गोस्वामी तुलसीदास कृत 'श्रीरामचरितमानस' का एक भाग (काण्ड या सोपान) है।

सर्ग तथा श्लोक

वाल्मीकि रामायण के बालकाण्ड में प्रथम सर्ग 'मूलरामायण' के नाम से प्रख्यात है। इसमें नारद से वाल्मीकि संक्षेप में सम्पूर्ण रामकथा का श्रवण करते हैं। द्वितीय सर्ग में क्रौञ्चमिथुन का प्रसंग और प्रथम आदिकाव्य की पक्तियाँ 'मा निषाद' का वर्णन है। तृतीय सर्ग में रामायण के विषय तथा चतुर्थ में रामायण की रचना तथा लव कुश के गान हेतु आज्ञापित करने का प्रसंग वर्णित है। इसके पश्चात् रामायण की मुख्य विषयवस्तु का प्रारम्भ अयोध्या के वर्णन से होता है। दशरथ का यज्ञ, तीन रानियों से चार पुत्रों का जन्म, विश्वामित्र का राम-लक्ष्मण को ले जाकर बला तथा अतिबला विद्याएँ प्रदान करना, राक्षसों का वध, जनक के धनुष यज्ञ में जाकर सीता का विवाह आदि वृत्तांत वर्णित हैं। बालकाण्ड में 77 सर्ग तथा 2280 श्लोक प्राप्त होते हैं-

बालकाण्डे तु सर्गाणां कथिता सप्तसप्तति:।
श्लोकानां द्वे सहस्त्रे च साशीति शतकद्वयम्॥[1]

रामायण के बालकाण्ड का महत्त्व धार्मिक दृष्टि से भी है। 'बृहद्धर्मपुराण' में लिखा है कि अनावृष्टि, महापीड़ा और ग्रहपीड़ा से दु:खित व्यक्ति इस काण्ड के पाठ से मुक्त हो सकते हैं।[2] अत: उक्त कार्यों हेतु इस काण्ड का पारायण भी प्रचलित है।

संक्षिप्त कथा

श्रीरामवतार-वर्णन के प्रसंग में रामायण बालकाण्ड की संक्षिप्त कथा

अग्निदेव कहते हैं- वसिष्ठ! अब मैं ठीक उसी प्रकार रामायण का वर्णन करूँगा, जैसे पूर्वकाल में नारद जी ने महर्षि वाल्मीकि जी को सुनाया था। इसका पाठ भोग और मोक्ष-दोनों को देने वाला है।

देवर्षि नारद कहते हैं- वाल्मीकि जी! भगवान विष्णु के नाभि कमल से ब्रह्मा जी उत्पन्न हुए हैं। ब्रह्मा जी के पुत्र हैं मरीचि। मरीचि से कश्यप, कश्यप से सूर्य और सूर्य से वैवस्वत मनु का जन्म हुआ। उसके बाद वैवस्वत मनु से इक्ष्वाकु की उत्पत्ति हुई। इक्ष्वाकु के वंश में ककुत्स्थ नामक राजा हुए। ककुत्स्थ के रघु, रघु के अज और अज के पुत्र दशरथ हुए। उन राजा दशरथ से रावण आदि राक्षसों का वध करने के लिये साक्षात भगवान विष्णु चार रूपों में प्रकट हुए। उनकी बड़ी रानी कौशल्या के गर्भ से श्री रामचन्द्र जी का प्रादुर्भाव हुआ। कैकेयी से भरत और सुमित्रा से लक्ष्मण एवं शत्रुघ्न का जन्म हुआ। महर्षि ऋष्यश्रृंग ने उन तीनों रानियों को यज्ञ सिद्ध चरू दिये थे, जिन्हें खाने से इन चारों कुमारों का आविर्भाव हुआ।

श्रीराम आदि सभी भाई अपने पिता के ही समान पराक्रमी थे। एक समय मुनिवर विश्वामित्र ने अपने यज्ञ में विघ्न डालने वाले निशाचरों का नाश करने के लिये राजा दशरथ से प्रार्थना की कि आप अपने पुत्र श्रीराम को मेरे साथ भेज दें। तब राजा ने मुनि के साथ श्रीराम और लक्ष्मण को भेज दिया। श्री रामचन्द्रजी ने वहाँ जाकर मुनि से अस्त्र-शस्त्रों की शिक्षा पायी और ताड़का नाम वाली निशाचरी का वध किया। फिर उन बलवान वीर ने मारीच नामक राक्षस को मानवास्त्र से मोहित करके दूर फेंक दिया और यज्ञ विघातक राक्षस सुबाहु को दल-बल सहित मार डाला। इसके बाद वे कुछ काल तक मुनि के सिद्धाश्रम में ही रहे। तत्पश्चात् विश्वामित्र आदि महर्षियों के साथ लक्ष्मण सहित श्रीराम मिथिला नरेश का धनुष-यज्ञ देखने के लिये गये।

अपनी माता अहिल्या के उद्धार की वार्ता सुनकर संतुष्ट हुए शतानन्द जी ने निमित्त-कारण बनकर श्रीराम से विश्वामित्र मुनि के प्रभाव का[3] वर्णन किया। राजा जनक ने अपने यज्ञ में मुनियों सहित श्री रामचन्द्र जी का पूजन किया। श्रीराम ने धनुष को चढ़ा दिया और उसे अनायास ही तोड़ डाला। तदनन्तर महाराज जनक ने अपनी अयोनिजा कन्या सीता को, जिसके विवाह के लिये पराक्रम ही शुल्क निश्चित किया गया था, श्री रामचन्द्र जी को समर्पित किया। श्रीराम ने भी अपने पिता राजा दशरथ आदि गुरुजनों के मिथिला में पधारने पर सबके सामने सीता का विधिपूर्वक पाणि ग्रहण किया। उस समय लक्ष्मण ने भी मिथिलेश-कन्या उर्मिला को अपनी पत्नी बनाया।

राजा जनक के छोटे भाई कुशध्वज थे। उनकी दो कन्याएँ थीं- श्रुतकीर्ति और माण्डवी। इनमें माण्डवी के साथ भरत ने और श्रुतकीर्ति के साथ शत्रुघ्न ने विवाह किया। तदनन्तर राजा जनक से भलीभाँति पूजित हो श्री रामचन्द्र जी ने वसिष्ठ आदि महर्षियों के साथ वहाँ से प्रस्थान किया। मार्ग में जमदग्निनन्दन परशुराम को जीत कर वे अयोध्या पहुँचे। वहाँ जाने पर भरत और शत्रुघ्न अपने मामा राजा युधाजित की राजधानी को चले गये।


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टीका टिप्पणी और संदर्भ

  1. वाल्मीकि रामायण- बालकाण्ड 77 सर्गान्त में अमृतकतकटीका, पृ. 527
  2. अनावृष्टिर्महापीडाग्रहपीडाप्रपीडिता:।
    आदिकाण्डं पठेयुर्ये ते मुच्यन्ते ततो भयात्॥ बृहद्धर्मपुराण-पूर्वखण्ड 26.9
  3. यहाँ मूल में, 'प्रभावत:' पद 'प्रभाव:' के अर्थ में है। यहाँ 'तसि' प्रत्यय पञ्चम्यन्त का बोधक नहीं है। सार्वविभक्तिक 'तसि' के नियमानुसार प्रथमान्त पद से यहाँ 'तसि' प्रत्यय हुआ है, ऐसा मानना चाहिये।

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