बरवै (छन्द)

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बरवै अर्द्धसम मात्रिक छन्द है। इसके प्रथम एवं तृतीय चरण में 12-12 मात्राएँ तथा द्वितीय एवं चतुर्थ चरण में 7-7 मात्राएँ हाती हैं। सम चरणों के अन्त में 'जगण' (। S ।) होता है।[1] गोस्वामी तुलसीदास की प्रसिद्ध रचनाओं में से एक 'बरवै रामायण' बरवै छन्दों में ही रची गई है, जिसमें भगवान श्रीराम की कथा है।


उदाहरण-

चम्पक हरवा अँग मिलि, अधिक सुहाय ।
जानि परै सिय हियरे, जब कुंभिलाय ।।[2]


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टीका टिप्पणी और संदर्भ

  1. हिन्दी व्याकरण (हिन्दी)। । अभिगमन तिथि: 18 दिसम्बर, 2013।
  2. तुलसी : बरवै रामायण।

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