पितृयज्ञ

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पितृयज्ञ का अर्थ है कि, तर्पण, पिण्डदान और श्राद्ध। प्रतिदिन माता-पिता, गुरु अन्य आश्रित सम्बन्धियों की सेवा एवं उनकी संतुष्टी का ठीक-ठीक प्रबन्ध करना 'पितृयज्ञ' कहलाता है। जो अपने माता-पिता और गुरु की अवहेलना करके अन्य किसी की पूजा करते हैं, अथवा प्रसन्न करते हैं, वे घोर दु:खों को प्राप्त होते हैं।

  • याज्ञवलक्य द्वारा रचित 'याज्ञवलक्यस्मृति'[1] में कहा गया है कि, पुत्रों द्वारा दिए गए अन्न, जल आदि श्राद्धीय द्रव्य से पितर तृप्त होकर अत्यंत प्रसन्न हो जाते हैं।
  • इसीलिए पितरों का स्मरण करना, तर्पण करना, पिंडदान करना आदि आवश्यक माना गया है।


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टीका टिप्पणी और संदर्भ

  1. 'याज्ञवलक्यस्मृति' 1/269-70

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