नौवीं लोकसभा (1989)

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वर्ष 1989 के लोकसभा चुनाव कई दृष्टियों से महत्त्वपूर्ण रहे। लोकसभा में 525 सीटों के लिए यह चुनाव 22 नवम्बर और 26 नवम्बर, 1989 को दो चरणों में आयोजित हुए। नेशनल फ़्रंट को लोकसभा में बहुमत प्राप्त हुआ। उसने वाम मोर्चा और भारतीय जनता पार्टी के बाहरी समर्थन से सरकार बनाई। यद्यपि कांग्रेस अभी भी 197 सांसदों के साथ लोकसभा में अकेली सबसे बड़ी पार्टी थी।

कांग्रेस की लोकप्रियता में कमी

नौवें लोकसभा चुनावों ने राजनेताओं के वोट मांगने के तरीके को बदल दिया। अब जाति और धर्म के आधार पर वोट मांगना केंद्र बिंदु बन गया था। इंदिरा गांधी की हत्या के बाद आयोजित पिछले आम चुनावों में कांग्रेस ने राजीव गांधी के नेतृत्व में भारी बहुमत के साथ लोकसभा में 400 से अधिक सीटों पर जीत हासिल की थी। यद्यपि 1989 के आम चुनाव कई संकटों से जूझ रहे युवा राजीव गांधी के साथ लड़े गए। इस समय कांग्रेस सरकार अपनी विश्वसनीयता और लोकप्रियता खो रही थी। बोफोर्स कांड, पंजाब में बढ़ता आतंकवाद, एलटीटीई और श्रीलंका की सरकार के बीच गृह युद्ध, ये उन समस्याओं में से कुछ थे, जो राजीव गांधी की सरकार के सामने मौजूद थे।

जन मोर्चा का गठन

राजीव गांधी के सबसे बड़े आलोचक विश्वनाथ प्रताप सिंह थे। उन्होंने सरकार में वित्त मंत्रालय और रक्षा मंत्रालय का कामकाज संभाला रखा था। किंतु कुछ मनमुटाव के कारण वी. पी. सिंह को शीघ्र ही मंत्रिमंडल से बर्खास्त कर दिया गया। बाद में उन्होंने कांग्रेस और लोकसभा में अपनी सदस्यता से भी इस्तीफा दे दिया। उन्होंने अरुण नेहरू और आरिफ़ मोहम्मद ख़ान के साथ 'जन मोर्चा' का गठन किया और इलाहाबाद से फिर लोकसभा में प्रवेश किया। 11 अक्टूबर, 1988 को जन मोर्चा, जनता पार्टी, लोकदल और कांग्रेस (एस) के विलय से जनता दल की स्थापना हुई, जिससे सभी दल एक साथ मिलकर कांग्रेस सरकार का विरोध कर सकें। जल्द ही द्रमुक, तेदेपा और अगप सहित कई क्षेत्रीय दल जनता दल से मिल गए और नेशनल फ्रंट की स्थापना की। पाँच पार्टियों वाला नेशनल फ्रंट, भारतीय जनता पार्टी और दो कम्यूनिस्ट पार्टियों- भारतीय कम्यूनिस्ट पार्टी, मार्क्सवादी (सीपीआई-एम) और भारतीय कम्यूनिस्ट पार्टी (सीपीआई) के साथ मिलकर 1989 के चुनाव में उतरा।

मिलीजुली सरकार

525 सीटों के लिए वर्ष 1989 का लोकसभा चुनाव 22 नवम्बर और 26 नवम्बर को दो चरणों में हुआ। नेशनल फ्रंट को लोकसभा में आसान बहुमत प्राप्त हुआ और उसने वाम मोर्चा तथा भारतीय जनता पार्टी के बाहरी समर्थन से सरकार बनाई। राष्ट्रीय मोर्चे की सबसे बड़े घटक जनता दल ने 143 सीटें जीती, इसके अतिरिक्त माकपा और भाकपा ने 33 और 12 सीटें हासिल कीं। इस चुनाव में निर्दलीय और अन्य छोटे दल 59 सीटें जीतने में कामयाब रहे। यद्यपि इस समय भी कांग्रेस 197 सांसदों के साथ लोकसभा में सबसे बड़ी पार्टी के रूप में उपस्थित थी। भाजपा सन 1984 के चुनावों में दो सीटों के मुकाबले इस बार के चुनावों में 85 सांसदों के साथ सबसे अधिक लाभ में थी। वी. पी. सिंह को भारत का दसवाँ प्रधानमंत्री बनने का गौरव प्राप्त हुआ तथा देवीलाल उप प्रधानमंत्री बनाये गए। इस सरकार ने 2 दिसम्बर, 1989 से 10 नवम्बर, 1990 तक कार्यालय संभाला।

वी. पी. सिंह द्वारा पद से त्यागपत्र

'भारतीय जनता पार्टी' के नेता लालकृष्ण आडवाणी द्वारा राम जन्मभूमि और बाबरी मस्जिद के मुद्दे पर रथ यात्रा शुरू किए जाने और मुख्यमंत्री लालू प्रसाद यादव द्वारा बिहार में गिरफ्तार किए जाने के बाद पार्टी ने वी. पी. सिंह सरकार से समर्थन वापस ले लिया। विश्वास मत हारने के बाद वी. पी. सिंह ने अपने पद से इस्तीफा दे दिया। उधर चंद्रशेखर 64 सांसदों के साथ जनता दल से अलग हो गए और उन्होंने 'समाजवादी जनता पार्टी' नाम से संगठन बनाया। उन्हें बाहर से कांग्रेस का समर्थन मिला और इस प्रकार वे भारत के ग्यारहवें प्रधानमंत्री बने। लेकिन जब कांग्रेस ने उन पर आरोप लगाया कि सरकार राजीव गांधी की जासूसी करा रही है, तब उन्होंने भी 6 मार्च, 1991 को इस्तीफा दे दिया।


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टीका टिप्पणी और संदर्भ

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