नारी -गोपालदास नीरज

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नारी -गोपालदास नीरज
गोपालदास नीरज
कवि गोपालदास नीरज
जन्म 4 जनवरी, 1925
मुख्य रचनाएँ दर्द दिया है, प्राण गीत, आसावरी, गीत जो गाए नहीं, बादर बरस गयो, दो गीत, नदी किनारे, नीरज की पाती, लहर पुकारे, मुक्तकी, गीत-अगीत, विभावरी, संघर्ष, अंतरध्वनी, बादलों से सलाम लेता हूँ, कुछ दोहे नीरज के
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गोपालदास नीरज की रचनाएँ

अर्ध सत्य तुम, अर्ध स्वप्न तुम, अर्ध निराशा-आशा
अर्ध अजित-जित, अर्ध तृप्ति तुम, अर्ध अतृप्ति-पिपासा,
आधी काया आग तुम्हारी, आधी काया पानी,
अर्धांगिनी नारी! तुम जीवन की आधी परिभाषा।
इस पार कभी, उस पार कभी.....

तुम बिछुड़े-मिले हज़ार बार,
इस पार कभी, उस पार कभी।
तुम कभी अश्रु बनकर आँखों से टूट पड़े,
तुम कभी गीत बनकर साँसों से फूट पड़े,
तुम टूटे-जुड़े हज़ार बार
इस पार कभी, उस पार कभी।
तम के पथ पर तुम दीप जला धर गए कभी,
किरनों की गलियों में काजल भर गए कभी,
तुम जले-बुझे प्रिय! बार-बार,
इस पार कभी, उस पार कभी।
फूलों की टोली में मुस्काते कभी मिले,
शूलों की बांहों में अकुलाते कभी मिले,
तुम खिले-झरे प्रिय! बार-बार,
इस पार कभी, उस पार कभी।
तुम बनकर स्वप्न थके, सुधि बनकर चले साथ,
धड़कन बन जीवन भर तुम बांधे रहे गात,
तुम रुके-चले प्रिय! बार-बार,
इस पार कभी, उस पार कभी।
तुम पास रहे तन के, तब दूर लगे मन से,
जब पास हुए मन के, तब दूर लगे तन से,
तुम बिछुड़े-मिले हज़ार बार,
इस पार कभी, उस पार कभी।

टीका टिप्पणी और संदर्भ

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