दूर से दूर तलक एक भी दरख्त न था -गोपालदास नीरज

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दूर से दूर तलक एक भी दरख्त न था -गोपालदास नीरज
गोपालदास नीरज
कवि गोपालदास नीरज
जन्म 4 जनवरी, 1925
मुख्य रचनाएँ दर्द दिया है, प्राण गीत, आसावरी, गीत जो गाए नहीं, बादर बरस गयो, दो गीत, नदी किनारे, नीरज की पाती, लहर पुकारे, मुक्तकी, गीत-अगीत, विभावरी, संघर्ष, अंतरध्वनी, बादलों से सलाम लेता हूँ, कुछ दोहे नीरज के
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गोपालदास नीरज की रचनाएँ

दूर से दूर तलक एक भी दरख्त न था।
तुम्हारे घर का सफ़र इस क़दर सख्त न था।

इतने मसरूफ़ थे हम जाने के तैयारी में,
खड़े थे तुम और तुम्हें देखने का वक्त न था।

मैं जिस की खोज में ख़ुद खो गया था मेले में,
कहीं वो मेरा ही एहसास तो कमबख्त न था।

जो ज़ुल्म सह के भी चुप रह गया न ख़ौल उठा,
वो और कुछ हो मगर आदमी का रक्त न था।

उन्हीं फ़क़ीरों ने इतिहास बनाया है यहाँ,
जिन पे इतिहास को लिखने के लिए वक्त न था।

शराब कर के पिया उस ने ज़हर जीवन भर,
हमारे शहर में 'नीरज' सा कोई मस्त न था।



टीका टिप्पणी और संदर्भ

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