दशम ग्रंथ

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दशम ग्रंथ
दशम ग्रंथ
लेखक गुरु गोविन्द सिंह
प्रकाशक भुवन वाणी ट्रस्ट
प्रकाशन तिथि 2002
ISBN 81-7951-005-0
देश भारत
पृष्ठ: 778
भाषा ब्रजभाषा, हिन्दी, फ़ारसी और पंजाबी
प्रकार ग्रन्थ
मुखपृष्ठ रचना सजिल्द

दशम ग्रंथ सिक्ख धर्म के अनुयायियों का धार्मिक ग्रंथ है। इसकी रचना गुरु गोविन्द सिंह द्वारा की गई थी। यह पूर्ण रूप में दसवें पादशाह का ग्रंथ हैं।

यह ग्रंथ पंजाबी में 10वें 'शहंशाह' यानी 'आध्यात्मिक नेता' की पुस्तक है। दसम ग्रंथ सिक्खों के 10वें आध्यात्मिक नेता गुरु गोविन्द सिंह की कृतियों का संकलन है। यह प्रसिद्ध ग्रंथ ब्रजभाषा, हिन्दी, फ़ारसी और पंजाबी में लिखे भजनों, दार्शनिक लेखों, हिन्दू कथाओं, जीवनियों और कहानियों का संकलप है। विद्वान इस समूचे लेखन की प्रामाणिकता को स्वीकार नहीं करते और मानते हैं कि यह गुरु गोविन्द सिंह की रचनाओं के अतिरिक्त उनके समकालीन अन्य कवियों की रचनाओं को एकत्रित करके बनाया गया है। हालांकि कुछ पदों का प्रयोग सिक्ख पूजा और अनुष्ठानों में किया जाता है।

दसम ग्रंथ को सिख धर्म के “दसवें बादशाह का ग्रंथ” कहकर भी पुकारते हैं। इस ग्रंथ में सिखों के दसवें गुरू गोबिन्द सिंह जी के शब्दों (गुरु वचनों) को संग्रहित किया गया है। गुरू गोबिन्द सिंह जी के शब्दों को गुरू ग्रंथ साहिब में संकलित ना करके अलग से इस ग्रंथ में संकलित किया गया है। वीर रस से भरी इस पुस्तक को खालसा पंथ के विषय में जानकारी पाने का सर्वोत्तम स्त्रोत माना जाता है।

दसम ग्रंथ की भूमिका

जाप साहिब, बेन्ती चौपाई जैसी दसम ग्रंथ की रचनाएं सिखों के नितनेम यानी उनकी रोजाना की प्रार्थनाओं में शामिल हैं। रोजाना होने वाले अरदास का शुरूआती भाग भी दसम ग्रंथ के भीतर की ही एक रचना है। इस ग्रंथ में खालसा पंथ की रचना की भूमिका भी शामिल है। यह पुस्तक खालसा पंथ की विशेषताओं का वर्णन करती है।

दसम ग्रंथ का संकलन

कहा जाता है कि भाई मनी सिंह जो कि दसवें गुरू के साथी और शिष्य भी थे, इन्होंने दूसरे खालसा भाईयों की मदद से गुरु के शब्दों को दसम ग्रंथ में संग्रहित किया। यह शब्द या गुरु वचन पुस्तिकाओं, लेख और प्रार्थनाओं के रूप में लोगों के बीच में मौजूद थीं। इस ग्रंथ को संकलित करने में भाई मनी सिंह को लगभग नौ वर्ष लग गए थे।[1]

दसम ग्रंथ के पृष्ठ

दसम ग्रंथ में कुल 1428 पृष्ठ हैं और इसमें गुरू गोबिन्द सिंह जी के शब्द, जाप साहिब, अकाल उस्तत, विचित्र नाटक, चंडी चरित्र के दो पाठ, ब्रह्म अवतार, रूद्र अवतार, चंडी का वार, ज्ञान परबोध, चौबीस अवतार, शब्द हजारे, खालसा महिमा, शस्तर नाम माला, ज़फरनामा, हिकारत आदि के पाठ हैं। दसम ग्रंथ भारतीय संस्कृति के समेकित गहन अध्ययन एवं अनुशीलन करने करवाने वाली अनुपम कृति माना जाता है।

  1. जापु - 199 पदों वाली यह रचना दस प्रकार के विभिन्न छंदों में रची गई है। इस रचना में परमात्मा के विभिन्न नामों का ब्योरा प्रस्तुत किया गया है। सबसे बड़ा सफल प्रयोग, जो इस रचना में किया गया है। वह संस्कृत शब्दावली को अरबी-फारसी की शब्दावली के साथ-साथ संयुक्त रूप से रखा है।
  2. अकाल उसतति- 271½ पदों की यह रचना अधिकतर वार्णिक छंद, सवैया और कवित्त में लिखी गई है। यह परमात्मा के नामों के जाप से अगला कदम है। इसमें जगह-जगह पर एकांतवास करने वालों, मौन रहने वालों, व्रत रखने वालों और शरीर को अनेकों प्रकार से कष्ट देने वालों से विभिन्न प्रकार के जीव जंतुओं की तुलना करते हुए ढोंगों और पांखडों की भत्र्सना की गई है। यह बताया गया है कि प्रेम के माध्यम से परमात्मा को प्राप्त किया जा सकता है।[2]
  1. बचित्र नाटक- इस ग्रंथ में मूल रूप से चौदह अध्याय हैं और इन अध्यायों में गुरु गोबिंद सिंह जी ने स्वजीवन वृतांत लिखा है। ब्रज भाषा में लिखी गई यह पहली आत्मकथा है, जिसमें गुरु गोबिंद सिंह जी ने जीवन के पहले 25-26 वर्षों का विवरण दिया है और बताया है कि कैसे उनके जीने का उद्देश्य पहले नौ गुरु साहिबान के साथ पूर्ण रूप से एक तारतम्य में जुड़ा हुआ है।
  2. चंडी चरित्र - मार्कण्डेय पुराण पर आधारित दुर्गा की कथा का अनुवाद दो बार ब्रजभाषा में और एक बार ठेठ पंजाबी में ‘वार श्री भगउती जी’ के शीर्षक के अन्तर्गत किया गया है।
  3. गिआन प्रबोध - इस रचना के माध्यम से भारतीय दर्शन के चार पुरुषार्थों का वर्णन किया है। प्रस्तुत रचना में केवल दान धर्म की बात कही गई है। इस रचना के उपलब्ध 336 पद दसम ग्रंथ में संगृहित है।
  4. चउबीस अउतार- यह एक ऐसी रचना है, जिसमें विष्णु के चौबीस अवतार ब्रह्मा के अवतार, शिव के अवतार, दुर्गा आदि का एक स्थान पर वर्णन किया गया है। कृष्ण अवतार के कवित्त सवैया छंदों में 2492 पद हैं। रामावतार में सम्पूर्ण रामायण की कथा 864 पदों में कही गई है।
  5. तैंतीस सवैये- ‘तैंतीस सवैये’ ईश्वर भक्ति एवं व्यक्तिगत आचरण को समर्पित हैं और पहले ही सवैये में यह बताया गया है कि सिक्ख अथवा खालसा कौन है।
  6. खालसा महिमा- खालसा महिमा के तीन सवैये हैं जिनमें जाट, कहार, नाई, धोबी आदि से खालसा बने सिक्खों के प्रति गुरु जी का अपना समर्पण भाव है और वे अपनी युद्धकला, अपनी विद्या एवं अपने बड़प्पन का सारा श्रेय खालसा को ही देते हैं।
  7. ससत्र माला- इस रचना में श्री गुरु गोबिंद सिंह जी शास्त्रों को ही, सर्वातिशायी परमात्मा का रूप मानते हैं और 1318 पदों में कृपाण, चक्र, तीर, पाश एवं बंदूक के विभिन्न नामों के वर्णन दृष्टकूट शैली में करते हैं। सैनिक दृष्टि ये एक उपयोगी रचना है।
  8. चरित्रोपाख्यान- इससे अगली रचना है, जिसे शुद्ध उपयोगितावाद को ध्यान में रखकर लिखा गया है। इस रचना के 405 भागों में पंचतंत्र कथा सरित सागर अथवा लोकयान में प्रचलित कहानियों को आधार बनाकर लिखी गई अलग-अलग रचनाएं हैं।
  9. जफरनामह- दसम ग्रंथ की अंतिम रचना है जिसे श्री गुरु गोबिंद सिंह जी ने विजय पत्र के रूप औरंगजेब को लिखा है। आनंदपुर को 1706 में छोडने और ‘दीन कांगड’ नामक स्थान पर पहुंचने पर गुरु जी ने यह पत्र औरंगजेब को फारसी में लिखा था। इस पत्र में गुरु जी ने सम्राट को कुकृत्यों के लिए फटकारा है।

इन्हें भी देखें: सिक्ख, सिक्ख धर्म, गुरु नानक एवं ज़फ़रनामा


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टीका टिप्पणी और संदर्भ

  1. दसम ग्रंथ (हिंदी) एस. के. शिक्षा। अभिगमन तिथि: 26 जुलाई, 2017।
  2. दशम ग्रंथ कृति श्री गुरु गोबिंद सिंह जी (हिंदी) भास्कर डॉट कॉम। अभिगमन तिथि: 26 जुलाई, 2017।

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