चलो छिया-छी हो अन्तर में -माखन लाल चतुर्वेदी

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चलो छिया-छी हो अन्तर में -माखन लाल चतुर्वेदी
माखन लाल चतुर्वेदी
कवि माखन लाल चतुर्वेदी
जन्म 4 अप्रैल, 1889 ई.
जन्म स्थान बावई, मध्य प्रदेश
मृत्यु 30 जनवरी, 1968 ई.
मुख्य रचनाएँ कृष्णार्जुन युद्ध, हिमकिरीटिनी, साहित्य देवता, हिमतरंगिनी, माता, युगचरण, समर्पण, वेणु लो गूँजे धरा, अमीर इरादे, ग़रीब इरादे
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माखन लाल चतुर्वेदी की रचनाएँ

चलो छिया-छी हो अन्तर में!
तुम चन्दा,
मैं रात सुहागन।

चमक-चमक उट्ठें आँगन में,
चलो छिया-छी हो अन्तर में!

बिखर-बिखर उट्ठो, मेरे धन,
भर काले अन्तस पर कन-कन,
श्याम-गौर का अर्थ समझ लें!

जगत पुतलियाँ शून्य प्रहर में,
चलो छिया-छी हो अन्तर में!

किरनों के भुज, ओ अनगिन कर
मेलो, मेरे काले जी पर
उमग-उमग उट्ठे रहस्य,

गोरी बाँहों का श्याम सुन्दर में,
चलो छिया-छी हो अन्तर में!

मत देखो, चमकीली किरनों
जग को, ओ चाँदी के साजन!
कहीं चाँदनी मत मिल जावे!

जग-यौवन की लहर-लहर में,
चलो छिया-छी हो अन्तर में!

चाहों-सी, आहों-सी, मनु-
हारों-सी, मैं हूँ श्यामल-श्यामल
बिना हाथ आये छुप जाते

हो, क्यों! प्रिय किसके मंदिर में
चलो छिया-छी हो अन्तर में!

कोटि कोटि दृग! मैं जगमग जो-
हूँ काले स्वर, काले क्षण गिन,
ओ उज्ज्वल श्रम कुछ छू दो,

पटरानी को तुम अमर उभर में,
चलो छिया-छी हो अन्तर में!

चमकीले किरनीले शस्त्रों,
काट रहे तम श्यामल तिल-तिल,
ऊषा का मरघट साजोगे?

यही लिख सके चार पहर में?
चलो छिया-छी हो अन्तर में!

ये अंगारे, कहते आये
ये जी के टुकडे, ये तारे
`आज मिलोगे’, `आज मिलोगे',

पर हम मिलें न दुनिया-भर में
चलो छिया-छी हो अन्तर में!

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