गीता 11:3

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गीता अध्याय-11 श्लोक-3 / Gita Chapter-11 Verse-3


एवमेतद्यथात्थ त्वमात्मानं परमेश्वर ।
द्रष्टुमिच्छामि ते रूपमैश्वरं पुरुषोत्तम ।।3।।



हे परमेश्वर ! आप अपने को जैसा कहते हैं, यह ठीक ऐसा ही है; परंतु हे पुरुषोत्तम[1] ! आपके ज्ञान, ऐश्वर्य, शक्ति, बल, वीर्य और तेज़ से युक्त ऐश्वर-रूप को मैं प्रत्यक्ष देखना चाहता हूँ ।।3।।

Your divine form possessed of wisdom, glory, energy, strength, valour and effulgence, O best of persons ! (3)


परमेश्वर = हे परमेश्वर; त्वम् = आप; आत्मानम् = अपने को; यथा =जैसा; आत्थ = कहते हो; एतत् = यह(ठीक); (एव) = ही है(परन्तु); पुरुषोत्तम = हे पुरुषोत्तम; ऐश्वरम् = ज्ञान ऐश्वर्य शक्ति बल वीर्य और तेजयुक्त; रूपम् = रूपको(प्रत्यक्ष); द्रष्टुम् = देखना; इच्छामि = चाहता हूं



अध्याय ग्यारह श्लोक संख्या
Verses- Chapter-11

1 | 2 | 3 | 4 | 5 | 6 | 7 | 8 | 9 | 10, 11 | 12 | 13 | 14 | 15 | 16 | 17 | 18 | 19 | 20 | 21 | 22 | 23 | 24 | 25 | 26, 27 | 28 | 29 | 30 | 31 | 32 | 33 | 34 | 35 | 36 | 37 | 38 | 39 | 40 | 41, 42 | 43 | 44 | 45 | 46 | 47 | 48 | 49 | 50 | 51 | 52 | 53 | 54 | 55

अध्याय / Chapter:
एक (1) | दो (2) | तीन (3) | चार (4) | पाँच (5) | छ: (6) | सात (7) | आठ (8) | नौ (9) | दस (10) | ग्यारह (11) | बारह (12) | तेरह (13) | चौदह (14) | पन्द्रह (15) | सोलह (16) | सत्रह (17) | अठारह (18)

टीका टिप्पणी और संदर्भ

  1. मधुसूदन, केशव, पुरुषोत्तम, वासुदेव, माधव, जनार्दन और वार्ष्णेय सभी भगवान् कृष्ण का ही सम्बोधन है।

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