गीता 10:8

भारत डिस्कवरी प्रस्तुति
यहाँ जाएँ:भ्रमण, खोजें

गीता अध्याय-10 श्लोक-8 / Gita Chapter-10 Verse-8

प्रसंग-


भगवान् के प्रभाव और विभूतियों के ज्ञान का फल अविचल भक्ति योग की प्राप्ति बतलायी गयी, अब दो श्लोकों में उस भक्ति योग की प्राप्ति का क्रम बतलाते हैं-


अहं सर्वस्य प्रभवो मत्त: सर्वं प्रवर्तते ।
इति मत्वा भजन्ते मां बुधा भावसमन्विता: ।।8।।



मैं वासुदेव[1] ही सम्पूर्ण जगत् की उत्पत्ति का कारण हूँ और मुझसे ही सब जगत् चेष्टा करता है- इस प्रकार समझकर श्रद्धा और भक्ति से युक्त बुद्धिमान् भक्तजन मुझ परमेश्वर को ही निरन्तर भजते हैं ।।8।।

I am the source of all creation and everything in the world moves because of Me; knowing thus the wise, full of devotion, constantly worship Me. (8)


अहम् = मैं वासुदेव ही; सर्वस्य = संपूर्ण जगत् की; प्रभव: उत्पत्ति का कारण हूं(और); मत्त: = मेरेसे ही; सर्वम् = सब जगत् ; प्रवर्तते = चेष्टा करता है; इति = इस प्रकार; मत्वा = तत्त्व से समझकर; भावसमन्विता: = श्रद्धा और भक्ति से युक्त हुए; बुधा: = बुद्धिमान् भक्तजन; माम् = मुझ परमेश्वरको; भजन्ते = निरन्तर भजते हैं



अध्याय दस श्लोक संख्या
Verses- Chapter-10

1 | 2 | 3 | 4, 5 | 6 | 7 | 8 | 9 | 10 | 11 | 12, 13 | 14 | 15 | 16 | 17 | 18 | 19 | 20 | 21 | 22 | 23 | 24 | 25 | 26 | 27 | 28 | 29 | 30 | 31 | 32 | 33 | 34 | 35 | 36 | 37 | 38 | 39 | 40 | 41 | 42

अध्याय / Chapter:
एक (1) | दो (2) | तीन (3) | चार (4) | पाँच (5) | छ: (6) | सात (7) | आठ (8) | नौ (9) | दस (10) | ग्यारह (11) | बारह (12) | तेरह (13) | चौदह (14) | पन्द्रह (15) | सोलह (16) | सत्रह (17) | अठारह (18)

टीका टिप्पणी और संदर्भ

  1. मधुसूदन, केशव, पुरुषोत्तम, वासुदेव, माधव, जनार्दन और वार्ष्णेय सभी भगवान् कृष्ण का ही सम्बोधन है।

संबंधित लेख