गीता 10:4-5

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गीता अध्याय-10 श्लोक-4, 5 / Gita Chapter-10 Verse-4, 5


बुद्धिर्ज्ञानमसंमोह: क्षमा सत्यं दम: शम: ।
सुखं दु:खं भवोऽभावो भयं चाभयमेव च ।।4।।
अहिंसा समता तुष्टिस्तपो दानं यशोऽयश: ।
भवन्ति भावा भूतानां मत्त एव पृथग्विधा: ।।5।।



निश्चय करने की शक्ति, यथार्थ ज्ञान, असम्मूढता, क्षमा, सत्य, इन्द्रियों का वश में करना, मन का निग्रह तथा सुख-दु:ख, उत्पत्ति-प्रलय और भय-अभय तथा नाना प्रकार के भाव मुझसे होते हैं ।।4-5।।

Reason, right knowledge, unclouded understanding, forbearance, veracity, control over the senses and mind,joy and sorrow, evolution and dissolution,fear and fearlessness, non-violence, equanimity, contentment, austerity, charity fame and obloqusy,-these diverse traits of creatures emanate from me alone. (4,5)


बुद्धि: = निश्चय करने की शक्ति(एवं); ज्ञानम् = तत्त्वज्ञान(और)श असंमोह: = अमूढ़ता; दम: = इन्द्रियों को वश में करना (और); शम: = मन का निग्रह(तथा); सुखम् = सुख; भव: = उत्पत्ति; अभाव: = प्रलय(एवं); भयम् = भय; च = और;अभयम् = अभय; एव = भी; तुष्टि: = संतोष; दानम् = दान; यश: = कीर्ति(और); अयश: = अपकीर्ति; (एवम् ) = ऐसे(यह); भूतानाम् = प्राणियोंके; पृथ्ग्विघा: = नाना प्रकार के; मत्त: = मेरे से; भवन्ति = होते हैं



अध्याय दस श्लोक संख्या
Verses- Chapter-10

1 | 2 | 3 | 4, 5 | 6 | 7 | 8 | 9 | 10 | 11 | 12, 13 | 14 | 15 | 16 | 17 | 18 | 19 | 20 | 21 | 22 | 23 | 24 | 25 | 26 | 27 | 28 | 29 | 30 | 31 | 32 | 33 | 34 | 35 | 36 | 37 | 38 | 39 | 40 | 41 | 42

अध्याय / Chapter:
एक (1) | दो (2) | तीन (3) | चार (4) | पाँच (5) | छ: (6) | सात (7) | आठ (8) | नौ (9) | दस (10) | ग्यारह (11) | बारह (12) | तेरह (13) | चौदह (14) | पन्द्रह (15) | सोलह (16) | सत्रह (17) | अठारह (18)

टीका टिप्पणी और संदर्भ

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