ख़्वाजा खुर्शीद अनवर का कॅरियर

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ख़्वाजा खुर्शीद अनवर का कॅरियर
ख़्वाजा खुर्शीद अनवर
पूरा नाम ख़्वाजा खुर्शीद अनवर
जन्म 21 मार्च, 1912
जन्म भूमि पंजाब, (अब पाकिस्तान)
मृत्यु 30 अक्टूबर, 1984
मृत्यु स्थान लाहौर
अभिभावक ख़्वाजा फ़िरोज़ुद्दीन अहमद
कर्म भूमि मुम्बई
कर्म-क्षेत्र संगीतकार
मुख्य फ़िल्में कुड़माई, इशारा, सिंगार, परख, यतीम
विषय दर्शनशास्त्र
शिक्षा एम.ए
विद्यालय पंजाब विश्वविद्यालय
अन्य जानकारी खुर्शीद अनवर दर्शनशास्त्र में प्रथम श्रेणी आने के बाद प्रतिष्ठित ICS परीक्षा के लिखित चरण में शामिल हुए और सफल भी हुए। परंतु उसके साक्षात्कार चरण में शामिल न होकर संगीत के क्षेत्र को उन्होंने अपना कॅरियर चुना।
अद्यतन‎

ए. आर. कारदार की पंजाबी फ़िल्म 'कुड़माई' (1941) से शुरुआत करने के बाद खुर्शीद अनवर ने 'इशारा' (1943), 'परख' (1944), 'यतीम' (1945), 'आज और कल' (1947), 'पगडंडी' (1947) और 'परवाना' (1947) जैसी फ़िल्मों में संगीत दिया। स्वाधीनता मिलने के बाद 1949 में फिर उनके संगीत से सजी एक फ़िल्म आई 'सिंगार'। पाकिस्तान में खुर्शीद अनवर की जो फ़िल्में मशहूर हुईं थीं उनमें शामिल हैं- 'ज़हरे-इश्क़', 'घूंघट', 'चिंगारी', 'इंतज़ार', 'कोयल', 'शौहर', 'चमेली', 'हीर रांझा' इत्यादि।

कॅरियर

खुर्शीद अनवर ने अपने संगीत जीवन की शुरुआत आल इण्डिया रेडियो के संगीत विभाग में प्रोड्यूसर-इन-चार्ज की हैसियत से की थी। फ़िल्मों में संगीत निर्देशक के रूप में पहली बार उन्हें पंजाबी फ़िल्म 'कुड़माई' में सन 1941 में संगीत देने का अवसर मिला जिसमें वास्ती, जगदीश, राधारानी, जीवन आदि कलाकारों ने अभिनय किया था और इसके निर्देशक थे जे. के. नन्दा। उनके मधुर संगीत से सजी पहली हिंदी फ़िल्म थी 'इशारा' जो सन 1943 में प्रदर्शित हुई थी। फ़िल्म के डी. एन. मधोक लिखित सभी 9 गीतों को सुरैया के गाए 'पनघट पे मुरलियाँ बाजे' तथा गौहर सुल्ताना के गाए 'शबनम क्यों नीर बहाए' विशेष लोकप्रिय हुए थे। अभिनेत्री वत्सला कुमठेकर ने भी फ़िल्म में दो गीत गाए थे - 'दिल लेके दगा नहीं देना' तथा 'इश्क़ का दर्द सुहाना'।[1]

खुर्शीद अनवर देश-विभाजन के बाद पाकिस्तान चले गए थे, जहाँ जनवरी 1948 में उनका विवाह हुआ। अपने घनिष्ठ मित्र व फ़िल्म निर्माता जे. के. नन्दा के बुलावे पर उन्होंने 1948 में पुन: बम्बई आकर फ़िल्म 'सिंगार' में संगीत दिया, जो 1949 में जाकर प्रदर्शित हुई। 'सिंगार' के मुख्य कलाकार थे- जयराज, मधुबाला और सुरैया। जहाँ एक तरफ़ सुरैया ने अपने ऊपर फ़िल्माए गानें ख़ुद ही गाए, वहीं दूसरी तरफ़ मधुबाला के पार्श्वगायन के लिए गायिका सुरिन्दर कौर को चुना गया। खुर्शीद अनवर ने सुरिन्दर कौर से इस फ़िल्म में कुल पाँच गानें गवाए।

पहली फ़िल्म

खुर्शीद अनवर की पहली हिन्दी फ़िल्म 'इशारा' और 'सिंगार' में यह समानता थी कि दोनों फ़िल्मों में उन्होंने हरियाणा के लोक संगीत का शुद्ध रूप से प्रयोग किया है। 'इशारा' में 'पनघट पे मुरलियाँ बाजे' और 'सजनवा आजा रे खेलें दिल के खेल' जैसे गीत थे, तो 'सिंगार' में 'चंदा रे मैं तेरी गवाही लेने आई' और 'नया नैनों में रंग' जैसी मधुर रचनाएँ थीं। इस फ़िल्म के संगीत के लिए खुर्शीद अनवर को पुरस्कृत भी किया गया था। फ़िल्म 'सिंगार' में रोशन ने बतौर सहायक काम किया था। फ़िल्म का सर्वाधिक लोकप्रिय गीत था सुरिन्दर कौर का गाया 'दिल आने के ढंग निराले हैं'। खुर्शीद अनवर के बारे में सुरिन्दर कौर ने एक बार बताया था कि इस फ़िल्म के गीतों के रेकॉर्डिंग के समय खुर्शीद अनवर यह चाहते थे कि सुरिन्दर कौर गाने के साथ-साथ हाव-भाव भी प्रदर्शित करें, पर उन्होंने असमर्थता दिखाई कि वे भाव आवाज़ में ला सकती हैं, एक्शन में नहीं। यह काम मधुबाला ने कर दिखाया जिन पर यह गीत फ़िल्माया गया था।


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टीका टिप्पणी और संदर्भ

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