कुश्ती का इतिहास

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कुश्ती का इतिहास
सूमो कुश्ती
विवरण 'कुश्ती' एक प्रकार का द्वंद्वयुद्ध है, जो बिना किसी शस्र की सहायता के केवल शारीरिक बल के सहारे लड़ा जाता है।
शुरुआत कुश्ती का आरंभ संभवत: उस युग में हुआ, जब मनुष्य ने शस्त्रों का उपयोग नहीं जाना था। उस समय इस प्रकार के युद्ध में पशु बल ही प्रधान था। पशु बल पर विजय पाने के लिए मनुष्य ने विविध प्रकार के दाँव पेंचों का प्रयोग सीखा होगा और उससे मल्ल युद्ध अथवा कुश्ती का विकास हुआ होगा।
सदस्य दो (2)
स्थल बड़ा मैदान
श्रेणियाँ फ्लाई वेट, बैंटेम वेट, फेदर वेट, लाइट वेट, वेल्टर वेट, मिडिल वेट, लाइट हेवी वेट, हेवी वेट।
भारतीय पहलवान गामा पहलवान, दारा सिंह, गुरु हनुमान, सतपाल सिंह, सुशील कुमार पहलवान, धीरज ठाकरान
संबंधित लेख 'भीमसेनी', 'हनुमंती', 'जांबवंती', 'जरासंधी, 'फ्री स्टाइल कुश्ती', 'सूमो कुश्ती', 'अमरीकन फ्री स्टाइल मल्लयुद्ध', 'श्विंजेन मल्लयुद्ध' आदि।
अन्य जानकारी पुराणों में कुश्ती का उल्लेख मल्लक्रीड़ा के रूप में मिलता है। इन उल्लेखों से ज्ञात होता है कि इसके प्रति उन दिनों विशेष आकर्षण और आदर था। विशिष्ट उत्सव प्रसंगों पर राजा लोग मल्लयुद्ध का आयोजन किया करते थे और प्रसिद्ध मल्लों को आमंत्रित करते थे।

कुश्ती पूरे विश्व में खेले जाने वाले प्रमुख खेलों में से एक है। यह खेल इंसानी दमखम को प्रदर्शित करता है। कुश्ती का आरंभ संभवत: उस युग में हुआ होगा, जब मनुष्य ने शस्त्रों का उपयोग जाना न था। उस समय इस प्रकार के युद्ध में पशु बल ही प्रधान था। पशु बल पर विजय पाने के लिए मनुष्य ने विविध प्रकार के दाँव-पेंचों का प्रयोग सीखा होगा और उससे 'मल्ल युद्ध' अथवा 'कुश्ती' का विकास हुआ होगा।

विकास

मिस्र में नील नदी के तट पर स्थित बेंने-हसन की शव-समाधि की दीवारों पर मल्लयुद्ध के अनेक दृश्य अंकित हैं। उनसे अनुमान होता है कि लगभग 3000 वर्ष ईसा पूर्व मिस्र में मल्लयुद्ध का पूर्ण विकास हो चुका था। कुछ लोगों की धारणा है कि इसका विकास भारतवर्ष में वैदिक काल में हुआ होगा, किंतु वैदिक साहित्य में स्वास्थ्य वर्धन और शक्तिसंचय के निमित्त, आसन, प्राणायम आदि यौगिक क्रियाओं के साथ घुड़सवारी, रथों की दौड़, शस्त्रास्त्रों के अभ्यास के उल्लेख तो मिलते है; किंतु उसमें मल्लयुद्ध की कहीं कोई चर्चा नहीं है। अत: इस देश में इसका आरंभ वैदिक काल के बाद ही किसी समय हुआ होगा।[1]

पौराणिक उल्लेख

'रामायण' और 'महाभारत' में कुश्ती की पर्याप्त चर्चा हुई है। रामायण से बाली-सुग्रीव का युद्ध और महाभारत से भीम-दुर्योधन के युद्ध का उल्लेख उदाहरण स्वरूप दिया जा सकता है। इस प्रकार के द्वंद्वयुद्ध की अपनी एक नैतिक संहिता थी, ऐसा इन युद्धों के वर्णन से प्रकट होता है। उसके विरुद्ध आचरण करने वाला निंदनीय माना जाता था। श्रीकृष्ण के संकेत पर भीम द्वारा जरासंध की संधियों के चीरे जाने और दुर्योधन की जाँघ पर प्रहार करने की निंदा लोगों ने की है।

मल्लयुद्ध का आयोजन

पुराणों में इसका उल्लेख मल्लक्रीड़ा के रूप में मिलता है। इन उल्लेखों से ज्ञात होता है कि इसके प्रति उन दिनों विशेष आकर्षण और आदर था। विशिष्ट उत्सव प्रसंगों पर राजा लोग मल्लयुद्ध का आयोजन किया करते थे और प्रसिद्ध मल्लों को आमंत्रित करते थे। मल्लक्रीड़ा आरंभ होने से पूर्व धनुर्यज्ञ होता था, जिसमें मल्ल लोगों को अपनी शक्ति का परिचय देने के लिए एक भारी धनुष की प्रत्यंचा खींचकर चढ़ानी होती थी। ऐसे ही एक उत्सव प्रसंग पर मथुरा के राजा कंस ने कृष्ण और बलराम को आमंत्रित कर उनकी हत्या का षड़यंत्र किया था, किंतु कृष्ण-बलराम ने कंस के मल्ल चाणूर और मुष्टिक को अपने मल्ल कौशल से पराजित कर दिया था। इसी प्रकार जिन दिनों पांडव छद्मवेश में विराट नगरी में रह रहे थे, उन दिनों वहाँ ब्रह्मोत्सव का आयोजन हुआ था। उसमें भीम ने जीमूत नामक मल्ल को परास्त किया था।

भारतीय मल्लयुद्ध पद्धति का समन्वय

मध्य काल में मुस्लिम साम्राज्य और संस्कृति के प्रसार के साथ भारतीय मल्लयुद्ध पद्धति का मुस्लिम देशों की युद्ध पद्धति के साथ समन्वय हुआ। यह समन्वय विशेष रूप से मुग़ल काल में हुआ। बाबर मध्य एशिया में प्रचलित कुश्ती पद्धति का कुशल और बलशाली पहलवान था। अकबर भी इस कला का अच्छा जानकार था। उसने उच्चकोटि के मल्लों को राजाश्रय प्रदान कर कुश्ती कला को प्रोत्साहित किया। वह समन्वयवादी सम्राट था। उसने सभी क्षेत्रों में हिन्दू तथा मुस्लिम संस्कृतियों में सामंजस्य लाने का प्रयत्न किया। फलत: कुश्ती कला भी उसकी उदार नीति से वंचित नहीं रही। उसी समय से कुश्ती को राज्य संरक्षण प्राप्त होता रहा। मुग़ल सेनाओं में कुश्ती लड़ने वाले पहलवानों का विशेष सम्मान था।

विजयनगर नरेश कृष्णदेव राय के राजदरबार में नित्य मल्लयुद्ध का प्रदर्शन होता था। पेशवा परिवार के लोग मल्लयुद्ध प्रवीण थे, ऐसा तत्कालीन आलेखों से ज्ञात होता है। थामस ब्राउटन नामक अंग्रेज़ सैनिक अधिकारी ने दौलताराव सिंधिया के सैनिकों के बीच मल्लविद्या के प्रचार का विस्तृत वर्णन किया है। पेशवा काल में स्रियाँ भी मल्लयुद्ध में भाग लेती थीं और वे इस कला में इतनी प्रवीण होती थीं कि वे पुरुषों को चुनौती देती थीं और पुरुष पराजित होने की आशंका से उनकी चुनौती स्वीकार करने में संकोच करते थे।[1]

जातक कथाओं में उल्लेख

जातक कथाओं में भी कुश्ती के उल्लेख प्राप्त होते हैं। उनमें अखाड़े, अखाड़े के सामने प्रक्षकों के बैठने की जगह, उसकी सजावट, मल्लयुद्ध आदि के संबंध में विस्तृत जानकारी प्राप्त होती है। 'विनयपिटक' में उल्लिखित एक प्रसंग से ज्ञात होता है कि स्त्रियाँ भी मल्लयुद्ध में भाग लेती थीं। उसमें शेवती नामक एक मल्ली के भिक्षुणी हो जाने का उल्लेख है। जैनियों के प्रसिद्ध ग्रंथ 'कल्पसूत्र' से ज्ञात होता है कि राजा लोग भी कुश्ती में भाग लेते थे।

विशुद्ध व्यायाम और खेल

शत्रुता निवारण के इस द्वन्द्व युद्ध ने विशुद्ध व्यायाम और खेल का रूप ले लिया है। इस खेल अथवा व्यायाम से शरीर के सभी स्नायु एवं इंद्रियाँ सबल और कार्यक्षम होती हैं। इस खेल की कला से परिचित व्यक्ति कम शक्ति वाला होकर भी अधिक शक्तिशाली व्यक्ति पर विजय प्राप्त कर सकता है। कुश्ती से न केवल शरीर बनता है, वरन् मानसिक विकास भी होता है और आत्मविश्वास बढ़ता है। धैर्य, अनुभवशीलता, चपलता आदि अनेक बातें पैदा होती हैं।


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टीका टिप्पणी और संदर्भ

  1. 1.0 1.1 कुश्ती (हिन्दी) भारतखोज। अभिगमन तिथि: 10अगस्त, 2015।

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