एडवर्ड हाइड क्लेयरेंडन

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एडवर्ड हाइड क्लेयरेंडन (1609-1674)। इंग्लैंड का राजनीतिज्ञ और इतिहासकार। विल्टरशायर स्थित डिंटन नगर में 18 फरवरी, 1609 को एक साधारण गृहस्थ एडवर्ड हाइड के घर जन्म। 1622 से 1625 तक आक्सफर्ड के मेडेलेन हाल में अध्ययन किया और स्नातक की उपाधि प्राप्त की। लंदन के मिडिल टेंपल में कानून का अध्ययन करने के बाद वकालत आरंभ की। कुछ ही वर्षों में वह सफल वकील माना जाने लगा। लोकप्रिय वकील के रूप में 1640 में वह वूटन बैसे से अल्पकालीन पार्लमेंट का सदस्य निर्वाचित हुआ। उसी वर्ष आयोजित दीर्घकालीन पार्लमेंट में वह सेल्टाश का प्रतिनिधि चुना गया।

यह वह काल था जब स्टुअर्ट वंशीय नरेश चार्ल्स (प्रथम) और पार्लामेंट के बीच संघर्ष चल रहा था जो अब चरम सीमा पर पहुँच रहा था। चार्ल्स पहले दो बार पार्लमेंट को विघटित कर चुका था। मार्च, 1628 में जो तीसरी पार्लामेंट बनी उसने पेटिशन ऑव राइट्स पारित किया। उसपर नरेश ने हस्ताक्षर तो कर दिया था पर उसका वह पालन नहीं कर रहा था। चौथी बार चार्ल्स ने पार्लामेंट का फिर से निर्वाचन कराया। इस पार्लामेंट का अधिवेशन 3 नवंबर, 1640 को आरंभ हुआ और उसकी बैठक दस मास तक होती रही। इस कारण यह दीर्घ पार्लामेंट के नाम से प्रख्यात है। इस पार्लमेंट ने आरंभ में ही राजा के 12 वर्षों के व्यक्तिगत शासन में कानूनों की उपेक्षा, असाधारण न्यायालयों का राजा के स्वार्थ-साधन में उपयोग, न्यायाधीशों द्वारा दुर्व्यवहार, जहाजी कर संबंधी निर्णय आदि अवैध कार्यों का विरोध किया। क्लेयरेंडन ने विरोध पक्ष का समर्थन तो किया किंतु वह धर्मव्यवस्था में परिवर्तन के प्रश्न पर विरोधियों से सहमत न था। इस मामले में उसने राजा का समर्थन किया। फलत: 1641 से वह उसका प्रच्छन्न परामर्शदाता बन गया। पार्लमेंट की माँगों और प्रस्तावों के संबंध में राजा के उत्तर वही तैयार करता था। राजा ने जब कामन्स सभा के पाँच सदस्यों को गिरफ्तार कर लिया तब उसने उसका विरोध किया किंतु जब पार्लमेंट से संघर्ष छिड़ा तो वह प्रत्यक्ष रूप से राजा के साथ हो गया। उसने राजा को अवैध कार्यों के त्याग का परामर्श दिया। वह जानता था कि राजा के कार्यों का आधार कानून होना चाहिए। उसने राजा की नीति निश्चित की और कामन्स सभा में राजा के पक्ष में दल संगठित किया।

1643 में राजा ने उसको नाइट की पदवी दी, प्रिवी कौंसिल का सदस्य और कोष विभाग का प्रमुख अधिकारी (चांसलर ऑव ऐक्सचेकर) नियुक्त किया। उस वर्ष की आक्सफर्ड की पार्लमेंट में विवादग्रस्त मामलों में पार्लमेंट से बात करने के लिये राजा ने उसे अपना प्रतिनिधि नियुक्त किया था।

क्लेयरेंडन के सारे प्रयास के बावजूद जब गृहयुद्ध छिड़ गया और राजा के पक्ष की हार हुई तो वह राजा के ज्येष्ठ पुत्र चार्ल्स के साथ इंग्लैंड के पश्चिमी प्रदेश में चला गया। स्किली और जैरेसी द्वीपों में राजकुमार के प्रवासकाल में भी यह उसके साथ रहा। 1648 में दूसरी बार गृहयुद्ध आरंभ होने के बाद क्लेयरेंडन राजकुमार के साथ हॉलैंड चला गया। राजपक्ष के समर्थन में सहायताप्राप्ति के लिए 1649 में वह स्पेन गया और राजदूत के रूप में दो वर्ष वहाँ रहा, किंतु अपने उद्देश्य की पूर्ति में सफल न हुआ। 1652 में वह फिर राजकुमार के पास हॉलैंड लौट आया और इंग्लैंड के राजतंत्र की पुन:स्थापना तक वह उसका प्रधानमंत्री रहा। इन आठ वर्षों में वह राजकुमार की अर्थव्यवस्था और विदेशों के राजदरबारों तथा शासनव्यवस्था से असंतुष्ट स्वदेश के व्यक्तियों से संपर्क स्थापित करता रहा। 1658 में राजकुमार ने उसको अपना लॉर्ड चांसलर नियुक्त किया। 1660 की ब्रेडा की घोषणा, जिसमें राजकुमार ने विवाद के सभी मामले पार्लमेंट के निर्णय पर छोड़ दिए थे, क्लेयरेंडन ने ही तैयार की थी।

1660 ई. में पुन: राजतंत्र की प्रतिष्ठा होने पर राजकुमार चार्ल्स द्वितीय के नाम से इंग्लैंड का राजा बना। उसने क्लेयरेंडन को लार्ड चांसलर बनाए रखा और उसे प्रधान मंत्री के पद पर प्रतिष्ठित किया। राजा ने उसको आक्सफर्ड विश्वविद्यालय का चांसलर भी नियुक्त किया। 1661 में राजा ने उसका क्लेयरेंडन के अर्ल की पदवी और बीस हजार पौंड का अनुदान किया। इसके अतिरिक्त भी उसे समय समय पर अनेक जागीरें और आयरलैंड का खिराज प्राप्त हुआ। राजा के छोटे भाई यार्क के ड्यूक जेम्स के साथ उसने 1660 में अपनी पुत्री का विवाह किया और इस प्रकार वह राजा का संबंधी बना। उसे पीछे इंग्लैंड की दो शासिकाओं - क्वीन मेरी और क्वीन ऐन का पितामह होने का सौभाग्य प्राप्त हुआ। क्लेंयरडन के प्रधान मंत्री बनने के बाद मई, 1661 ई. में पार्लमेंट का नया निर्वाचन हुआ। यह पार्लमेंट इतिहास में केवेलियर पार्लमेंट के नाम से प्रख्यात है। केवेलियर शब्द राजपक्ष का वाची था और पार्लमेंट में इसी पक्ष का बहुमत था।

क्लेयरेंडन इंग्लैंड की राजमान्य ऐंग्लिकर संप्रदास का कट्टर समर्थक था। धर्मव्यवस्था की पुष्टि और रक्षा के लिए उसकी प्रेरणा से 1661 से 1665 के बीच इस पार्लमेंट ने ईसाई मत के प्यूरिटन संप्रदाय को दबाने के लिये चार विधि स्वीकृत किए जो क्लेयरेंडन कोड के नाम से प्रसिद्ध हैं। ये विधि थे- (1) कार्पोरेशन ऐक्ट जिनके अनुसार केवल ऐंग्किलन संप्रदाय के व्यक्ति ही शासन सभा के सदस्य हो सकते थे; (2) ऐक्ट ऑव यूनिफ़ार्मिटी, जिसके अनुसार सभी पादरियों घोषित किया गया। इसे न माननेवाले लगभग 2,000 पादरी निष्कासित किए गए; (3) कान्वेंटिकल ऐक्ट, जिसके अनुसार ऐंग्लिकन संप्रदायेतर ईसाईयों के पाँच से अधिक एकत्र होकर प्रार्थना करने पर रोक लगाई गई; (4) फाइव माइल ऐक्ट, इसके अनुसार निष्कासित पादरी किसी स्कूल में अध्यापन नहीं कर सकते थे और न प्रत्येक बड़े नगर की पाँच मील की परिधि के भीतर आ सकते थे। क्लेयरेंडन राजा के संवैधानिक अधिकार विदेशों के साथ मैत्री संबंध का समर्थक था। फ्रांस के साथ उसने क्रामवेल के समय की मैत्री नीति निभाई और डंकर्क का बंदरगाह फ्रांस के हाथ बेचा। पुर्तगाल की राजकुमारी का राजा के साथ विवाह कराने में उसकी प्रेरणा थी। हालैंड के विरुद्ध युद्ध का समर्थक न होते हुए भी जब 22 फरवरी, 1665 को युद्ध छिड़ गया तो उसने उसका समर्थन किया। साथ ही उसने युद्ध समाप्त कराने और स्वीडन और स्पेन से संधि कराने का प्रयास किया; किंतु उसकी ्व्रौदेशिक नीति सफल न हो सकी।

क्लेयरेंडन धीरे धीरे अप्रिय होने लगा। पार्लमेंट के भीतर और देश में उसके कार्यों के प्रति असंतोष व्यक्त किया जाने लगा। निदान, राजा ने 1667 में उसको चांसलर के पद से हटा दिया; वह प्रधान मंत्री भी नहीं रहा। उसी वर्ष भ्रष्टाचार, स्वेच्छाचारी शासन और युद्ध में विश्वाघात के लिये कामन्स सभा ने उसपर महाभियोग लगाया। तब वह फ्रांस चला गया। लार्ड सभा ने तत्काल उसे देश निकाला का प्रस्ताव स्वीकार किया। उसने अपना यह निर्वासन काल फ्रांस में ही बिताया। इस निर्वासन काल में उसे नाना प्रकार के कष्ट उठाने पड़े। उसने अपना ध्यान धर्म की ओर लगाया और नित्य वह कुछ समय कंटेम्लेशॅस आन द साम्स तथा अपने सदाचार संबंधी लेखों के लिखने में बिताता। इसके साथ ही उसने इस अवधि में हिस्ट्री ऑव रिबेलियन, जिसने उसे 1646-48 के बीच राजकुमार के साथ प्रवास के समय लिखना आरंभ किया था, पूरा किया और अपनी एक आत्मकथा भी लिखी।[1]

राजनीतिज्ञ के रूप में उसकी अपनी सीमाएँ और दुर्बलताएँ थीं फिर भी उसने कितने ही महत्वपूर्ण राजनीतिक प्रश्नों को उभारा। लेखक और इतिहासकार के रूप में अंगरेजी में उसका उच्च स्थान माना जाता है।[2]


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टीका टिप्पणी और संदर्भ

  1. हिन्दी विश्वकोश, खण्ड 3 |प्रकाशक: नागरी प्रचारिणी सभा, वाराणसी |संकलन: भारत डिस्कवरी पुस्तकालय |पृष्ठ संख्या: 241 |
  2. त्रलोचन र्पेत

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