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इलाहाबाद का धार्मिक महत्त्व

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इलाहाबाद का धार्मिक महत्त्व
Kumbh mela.jpg
विवरण इलाहाबाद शहर, दक्षिणी उत्तर प्रदेश राज्य के उत्तरी भारत में स्थित है। इलाहाबाद गंगा नदी के किनारे बसा हुआ है।
राज्य उत्तर प्रदेश
ज़िला इलाहाबाद ज़िला
निर्माता अकबर
स्थापना सन 1583 ई.
भौगोलिक स्थिति उत्तर- 25.45°, पूर्व- 81.85°
मार्ग स्थिति राष्ट्रीय राजमार्ग 2 और 27 से इलाहाबाद पहुँचा जा सकता है।
कब जाएँ अक्टूबर से मार्च
कैसे पहुँचें विमान, रेल, बस, टैक्सी
हवाई अड्डा इलाहाबाद विमानक्षेत्र, नज़दीकी वाराणसी हवाई अड्डा
रेलवे स्टेशन प्रयाग रेलवे स्टेशन, इलाहाबाद सिटी रेलवे स्टेशन, दारागंज रेलवे स्टेशन, इलाहाबाद जंक्शन रेलवे स्टेशन, नैनी जंक्शन रेलवे स्टेशन, सूबेदारगंज रेलवे स्टेशन, बमरौली रेलवे स्टेशन
बस अड्डा लीडर रोड एवं सिविल लाइंस से बसें उपलब्ध
यातायात ऑटो रिक्शा, बस, टैम्पो, साइकिल रिक्शा
क्या देखें इलाहाबाद पर्यटन
कहाँ ठहरें होटल, धर्मशाला, अतिथि ग्रह
Map-icon.gif गूगल मानचित्र, इलाहाबाद विमानक्षेत्र
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इलाहाबाद गंगा-यमुना और सरस्वती नदी के संगम पर स्थित है। चूकि यहाँ तीन नदियाँ आकर मिलती हैं, अत: इस स्थान को त्रिवेणी के नाम से भी संबोधित किया जाता है। संगम का दृश्य अत्यन्त मनोरम है। श्वेत गंगा और हरित यमुना अपने मिलने के स्थान पर स्पष्ट भेद बनाए रखती हैं अर्थात मात्र दृष्टिपात करने से ही यह बताया जा सकता है कि यह गंगा नदी है और यह यमुना।

धार्मिक महत्ता

इलाहाबाद की अपनी एक धार्मिक ऐतिहासिकता भी रही है। छठवें जैन तीर्थंकर भगवान पद्मप्रभ की जन्मस्थली कौशाम्बी रही है तो भक्ति आंदोलन के प्रमुख स्तम्भ रामानन्द का जन्म भी यहीं हुआ। रामायण काल का चर्चित श्रृंगवेरपुर, जहाँ पर केवट ने राम के चरण धोये थे, यहीं पर है। यहाँ गंगातट पर श्रृंगी ऋषि का आश्रम व समाधि है।

भारद्वाज मुनि का प्रसिद्ध आश्रम भी यहीं आनन्द भवन के पास है, जहाँ भगवान राम श्रृंगवेरपुर से चित्रकूट जाते समय मुनि से आशीर्वाद लेने आए थे। अलोपी देवी के मंदिर के रूप में प्रसिद्ध सिद्धिपीठ यहीं पर है तो सीता-समाहित स्थल के रूप में प्रसिद्ध सीतामढ़ी भी यहीं पर है। गंगातट पर अवस्थित दशाश्वमेध मंदिर जहाँ ब्रह्मा ने सृष्टि का प्रथम अश्वमेध यज्ञ किया था, भी इलाहाबाद में ही अवस्थित है। धौम्य ऋषि ने अपने तीर्थयात्रा प्रसंग में वर्णन किया है कि प्रयाग में सभी तीर्थों, देवों और ऋषि-मुनियों का सदैव से निवास रहा है तथा सोम, वरुण व प्रजापति का जन्मस्थान भी प्रयाग ही है।

कुम्भ मेला

संगम तट पर लगने वाले कुम्भ मेले के बिना इलाहाबाद का इतिहास अधूरा है। प्रत्येक बारह वर्ष में यहाँ पर महाकुम्भ मेले का आयोजन होता है, जो कि अपने में एक लघु भारत का दर्शन करने के समान है। इसके अलावा प्रत्येक वर्ष लगने वाले माघ स्नान और कल्पवास का भी आध्यात्मिक महत्व है। महाभारत के अनुशासन पर्व के अनुसार माघ मास में तीन करोड़ दस हज़ार तीर्थयात्री इलाहाबाद में एकत्र होते हैं। विधि-विधान से यहाँ ध्यान और कल्पवास करने से मनुष्य स्वर्गलोक का अधिकारी बनता है। 'पद्मपुराण' के अनुसार इलाहाबाद में माघ मास के समय तीन दिन पर्यन्त संगम स्नान करने से प्राप्त फल पृथ्वी पर एक हज़ार अश्वमेध यज्ञ करने से भी नहीं प्राप्त होता-

प्रयागे माघमासे तु त्र्यहं स्नानस्य यत्फलम्।
नाश्वमेधसस्त्रेण तत्फलं लभते भुवि।।

मानचित्र में गंगा और यमुना का संगम, इलाहाबाद (1885)

संगम स्थल

इलाहाबाद में गंगा और यमुना नदियों का संगम भी बहुत महत्त्व रखता है। यह माना जाता है कि प्रसिद्ध पौराणिक नदी सरस्वती अदृश्य रूप में संगम में आकर मिलती है। गंगा-यमुना के संगम स्थल को पुराणों[1] में 'तीर्थराज' अर्थात् "तीर्थों का राजा" नाम से अभिहित किया गया है। इस संगम के सम्बन्ध में ॠग्वेद[2] में कहा गया है कि जहाँ 'कृष्ण' (काले) और 'श्वेत' (स्वच्छ) जल वाली दो सरिताओं का संगम है, वहाँ स्नान करने से मनुष्य स्वर्गारोहण करता है। पुराणोक्ति यह है कि प्रजापति ने आहुति की तीन वेदियाँ बनायी थीं-

  1. कुरुक्षेत्र
  2. प्रयाग
  3. गया

उपर्युक्त तीनों वेदियों में प्रयाग मध्यम वेदी है। माना जाता है कि यहाँ गंगा, यमुना और सरस्वती (पाताल से आने वाली) तीन सरिताओं का संगम हुआ है। पर सरस्वती का कोई बाह्य अस्तित्व दृष्टिगत नहीं होता। पुराणों[3] के अनुसार जो प्रयाग का दर्शन करके उसका नामोच्चारण करता है तथा वहाँ की मिट्टी का अपने शरीर पर आलेप करता है, वह पापमुक्त हो जाता है। वहाँ स्नान करने वाला स्वर्ग को प्राप्त होता है तथा देह त्याग करने वाला पुन: संसार में उत्पन्न नहीं होता। यह केशव को प्रिय (इष्ट) है। इसे 'त्रिवेणी' कहकर भी सम्बोधित किया जाता हैं।



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टीका टिप्पणी और संदर्भ

  1. मत्स्य 109.15; स्कन्द, काशी0 7.45; पद्म 6.23.27-34 तथा अन्य
  2. ऋग्वेद खिल सूक्त (10.75
  3. मत्स्य (104.12), कूर्म (1.36.27) तथा अग्नि (111.6-7) आदि

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