इंदिरा गाँधी का विद्यार्थी जीवन

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इंदिरा गाँधी विषय सूची

इंदिरा गाँधी भारत की प्रथम महिला प्रधानमंत्री के रूप में अपनी प्रतिभा और राजनीतिक दृढ़ता के लिए 'विश्वराजनीति' के इतिहास में जानी जाती हैं। इंदिरा जी को जन्म के कुछ वर्षों बाद भी शिक्षा का अनुकूल माहौल नहीं उपलब्ध हो पाया था। पाँच वर्ष की अवस्था हो जाने तक बालिका इंदिरा ने विद्यालय का मुख नहीं देखा था। पिता जवाहरलाल नेहरू देश की आज़ादी के आंदोलन में व्यस्त थे और माता कमला नेहरू उस समय बीमार रहती थीं। घर का वातावरण भी पढ़ाई के अनुकूल नहीं था। कांग्रेस के कार्यकर्ताओं का रात-दिन आनंद भवन में आना जाना लगा रहता था। तथापि पंडित नेहरू ने पुत्री की शिक्षा के लिए घर पर ही शिक्षकों का इंतज़ाम कर दिया था। बालिका इंदु को आनंद भवन में ही शिक्षकों द्वारा पढ़ाया जाता था।

शिक्षा का महत्त्व

पंडित जवाहरलाल नेहरू शिक्षा का महत्त्व काफ़ी अच्छी तरह समझते थे। यही कारण है कि उन्होंने पुत्री इंदिरा की प्राथमिक शिक्षा का प्रबंध घर पर ही कर दिया था। लेकिन अंग्रेज़ी के अतिरिक्त अन्य विषयों में बालिका इंदिरा कोई विशेष दक्षता नहीं प्राप्त कर सकी। तब इंदिरा को शांति निकेतन स्कूल में पढ़ने का अवसर प्राप्त हुआ उसके बाद उन्होंने बैडमिंटन स्कूल तथा ऑक्सफोर्ड यूनिवर्सिटी में अध्ययन किया। लेकिन इंदिरा ने पढ़ाई में कोई विशेष प्रवीणता नहीं दिखाई। वह औसत दर्जे की छात्रा रहीं।

पंडित नेहरू अंग्रेज़ी भाषा के इतने अच्छे ज्ञाता थे कि लॉर्ड माउंटबेटन की अंग्रेज़ी भी उनके सामने फीकी लगती थी। इस प्रकार पिता द्वारा अंग्रेज़ी में लिखे गए पत्रों के कारण पुत्री इंदिरा की अंग्रेज़ी भाषा काफ़ी समृद्ध हो गई थी। इंदिरा का प्राथमिक बचपन एकाकी था। अंत: यह स्वीकार करना होगा कि बेहद संपन और शिक्षित परिवार में जन्म लेने के बावज़ूद इंदिरा को माता-पिता का स्वभाविक प्रेम और संरक्षण नहीं प्राप्त हो सका जो साधारण परिवार के बच्चों को सामान्य प्राप्त होता है। यही कारण है कि इंदिरा ने बचपन में अंग्रेज़ी साहित्य की उत्कृष्ट पुस्तकों का भी अध्ययन किया उन पुस्तकों से उन्हें जीवन की गहराई और यथार्थ का बोध हुआ। स्वतंत्रता संग्राम में भाग लेने के कारण पंडित नेहरू को अकसर अंग्रेज़ों द्वारा जेल की सज़ाएँ प्रदान की जाती थीं। तब वह अपनी पुत्री इंदिरा को काफ़ी लंबे-लंबे पत्र लिखते थे। उन पत्रों का महत्त्व इस बात से भी समझा जा सकता है कि बाद में इन्हें पिता के पत्र पुत्री के नाम' पुस्तक के रूप में हिन्दी तथा अंग्रेज़ी दोनों भाषाओं में प्रकाशित किया गया।

बोर्डिंग स्कूल

नेहरू परिवार स्वाधीनता संग्राम में जुटा हुआ था, इस प्रकार इंदु की पढ़ाई उस प्रकार आरंभ नहीं हो सकी जिस प्रकार एक साधारण परिवार में होती है शिक्षा का प्रबंध घर पर ही किया गया था। 1931 में इनके दादा पंडित मोतीलाल नेहरू की मृत्यु हो जाने के बाद यह आवश्यक समझा गया कि इंदिरा को किसी विद्यालय में दाखिल कराना चाहिए। इस समय इंदु की उम्र 14 वर्ष हो चुकी थी। अब तक इंदु को घर पर ही अध्ययन का अवसर प्राप्त हुआ था और पंडित नेहरू उससे संतुष्ट नहीं थे। वह यह भी समझ रहे थे कि इलाहाबाद में रहते हुए उनकी पुत्री की पढ़ाई हो पाना संभव नहीं है। अत: उन्होंने इंदु को बोर्डिंग स्कूल में डालने का फैसला कर लिया।

इंदिरा गाँधी की प्रतिमा
Statue Of Indira Gandhi

अभिव्यक्ति की कला

इनके बाद इंदिरा को पूना के 'पीपुल्स ऑन स्कूल' में दाखिला दिलवा दिया गया। उन्हें कक्षा सात में प्रवेश मिला था। इनकी सहपाठियों की उम्र इनसे काफ़ी कम थी। अत: कक्षा की छात्राओं को लगता था कि एक बड़ी उम्र की छात्रा उनके बीच है। लेकिन उन छात्राओं को यह ज्ञात नहीं था कि उस बालिका ने जीवन की जिस पाठशाला में अब तक अधययन किया है, उसी के कारण उसकी विद्यालयी शिक्षा प्रभावित हुई है। इंदु ने शीघ्र ही अपनी बौद्धिक क्षमता का परिचय दिया और स्कूल में पढ़ाए जा रहे सभी विषयों को आत्मसात करने का प्रयास भी किया। इंदिरा को घर में रहते हुए भी पत्र पत्रिकाएं तथा पुस्तकें पढ़ने का शौक़ था जो यहाँ भी जारी रहा इसका एक फ़ायदा इंदु को यह मिला कि उसका सामान्य ज्ञान पाठ्य पुस्तकों तक सीमित नहीं रहा। उसे देश दुनिया का काफ़ी ज्ञान था और वह अभिव्यक्ति की कला में भी निपुण हो गई थी। विद्यालय द्वारा आयोजित होने वाली वाद विवाद प्रतियोगिता में उसका कोई सानी नहीं था।

शांति निकेतन

1934 में इंदिरा ने 10वीं कक्षा की परीक्षा उत्तीर्ण कर ली अब आगे की पढ़ाई करने के लिए उसे ऐसे विद्यालय में जाना पड़ सकता था जहाँ भारतीय संस्कृति से संबंधित पढ़ाई नहीं होती थी और सभी कॉलेज अंग्रेज़ों द्वारा संचालित होते थे। काफ़ी सोच-विचार के बाद पंडित नेहरू ने निश्चय किया कि वह अपनी बेटी इंदिरा को शांति निकेतन में पढ़ने के लिए भेजेंगे। गुरुदेव रवींद्रनाथ टैगोर उन दिनों कोलकाता से कुछ दूरी पर प्राकृतिक वातावरण में 'शांति निकेतन' नामक एक शिक्षण संस्थान चला रहे थे। शांति निकेतन का संचालन गुरुदेव एवं प्राचीन आश्रम व्यवस्था के अनुकूल था। वहाँ का रहन-सहन एवं सामान्य जीवन सादगी से परिपूर्ण था। इंदिरा का स्वास्थ्य भी इन दिनों बहुत अच्छा नहीं था। अत: पंडित जवाहरलाल नेहरू ने अपनी बेटी का दाखिला शांति निकेतन में करवा दिया। यहाँ इंदु ने स्वयं को पूर्णतया आश्रम की व्यवस्था के अनुसार ढाल लिया।

इंदिरा प्रतिभाशाली थीं। और उनका सहज ज्ञान भी अन्य बच्चों से काफ़ी बेहतर था। इस कारण वह शीघ्र ही शांति निकेतन में सभी की प्रिय बन गई। शिक्षार्थी भी उनका सम्मान करने लगे। शांति निकेतन में रहते हुए इंदिरा को खादी की साड़ी पहननी पड़ती थी और वर्जित स्थलों पर नंगे पैर ही जाना होता था। शांति निकेतन का अनुशासन काफ़ी कड़ा था। सामान्य: अमीरी में पले बच्चों के लिए वहाँ टिक पाना कठिन था। लेकिन इंदिरा जी ने सख्त अनुशासन तथा अन्य नियमों का पूर्णतया पालन किया यहाँ आने के बाद उनके स्वास्थ्य में भी अपेक्षित सुधार के संकेत दिखने लगे। पंडित जवाहरलाल नेहरू की बेटी इंदिरा जी को गुरुदेव रवींद्रनाथ टैगौर भली-भाँति जानते थे। इसी कारण इंदिरा पर उनको विशेष कृपा दृष्टि रहती थी। गुरुदेव ने शीघ्र ही जान लिया कि इंदिरा नामक यह किशोरी बेहद प्रतिभावान है। यही कारण है कि वह गुरुदेव के प्रिय विद्यार्थियों में से एक बन गई। इंदिरा में अध्ययन से इतर लोक कला और भारतीय संस्कृति में भी रुचि जाग्रत की गई। इंदु ने शीघ्र ही मणिपुरी शास्त्रीय नृत्य में दक्षता हासिल कर ली। उसका नृत्य काफ़ी मनमोहक होता था।

शांति निकेतन की एक अतिरिक्त विशेषता यह थी कि वहाँ के सभी अध्यापक अपने विषयों के धुरंधर ज्ञाता थे। यह उनकी विद्वत्ता का ही परिमाण था कि इंदिरा ने ज्ञानार्जन करने में अच्छी गति दिखाई। लेकिन शांति निकेतन में रहते हुए इंदिरा अपनी पढ़ाई पूरी न कर सकीं जबकि वह वहाँ के वातावरण से काफ़ी प्रसन्न थीं। लेकिन इंसान का भाग्य भी काफ़ी प्रबल होता है और उसके आदेशों को स्वीकार करना ही पड़ता है।

ऑक्सफ़ोर्ड यूनिवर्सिटी में प्रवेश

पंडित नेहरू अपनी प्रिय बेटी की शिक्षा को लेकर बहुत चिंतित थे। काफ़ी सोचने के पश्चात् उन्होंने इंदिरा का दाखिला ऑक्सफ़ोर्ड यूनिवर्सिटी (इंग्लैंड) में करवा दिया। इंदिरा ने अपना ध्यान पढ़ाई की ओर लगा दिया। लेकिन इंग्लैंड में रहते हुए भी वह वहाँ रह रहे भारतीयों के संपर्क में थीं। उन दिनों इंग्लैंड में 'इंडिया लीग' नामक एक संस्था थी जो भारत की आज़ादी के लिए निरंतर प्रयासरत थी। इंदिरा जी में देशसेवा का प्रस्फुटन बरसों पूर्व ही हो चुका था, इस कारण वह भी इंडिया लीग की सदस्या बन गईं और उनके कार्यकलापों में अपना योगदान देने लगीं। वहाँ इंदिरा जी का परिचय पंडित नेहरू के मित्र कृष्ण मेनन (जो बाद में भारत के रक्षा मंत्री भी बने) के साथ हुआ। कृष्ण मेनन एक विद्वान् व्यक्ति थे। उनका संबंध विश्व के अनेक ख्यातनाम व्यक्तियों से था। श्री मेनन के सान्निध्य से इंदिरा जी को यह लाभ हुआ कि वह विश्व के महान् राजनीतिज्ञों और उनकी विचारधाराओं को समझने में सक्षम हो गईं लेकिन ऑक्सफ़ोर्ड यूनिवर्सिटी से इंदिरा गाँधी को कोई भी उपाधि नहीं प्राप्त हो सकी। प्रथम विश्व युद्ध छिड़ चुका था। जर्मनी ने इंग्लैंड के विरुद्ध युद्ध छेड़ दिया था। मित्र देशों की सेनाएँ इंग्लैंड के साथ थीं लेकिन हिटलर का पलड़ा भारी था। ऐसे में इंदिरा का इंग्लैंड में रहना उचित नहीं था। समुद्री मार्ग पर भी ख़तरा था मगर समय पर भारत लौटना ज़रूरी था। अतः 1941 में इंदिरा भारत लौट आईं जबकि समुद्री मार्ग पर काफ़ी ख़तरा बना हुआ था।


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