आसन

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आसन स्थिर होकर सुविधापूर्वक, एक चित होकर बैठने को कहा जाता है। 'आसन' एक संस्कृत शब्द है, जिसका अर्थ है- 'बैठने की मुद्रा' या 'वह वस्तु, जिस पर बैठा जाए'।

  • भारतीय दर्शन की योग प्रणाली में आसन मात्र बैठने से ही संबंधित नहीं है, बल्कि मनुष्य की कोई भी स्थिर शरीरिक मुद्रा, जो वह ऐच्छिक शरीरिक क्रियाओं पर ध्यान द्वारा मन को मुक्त करने के प्रयास में ग्रहण करता है, आसन कही जाती है। ऐसी मुद्राएं शरीर को स्वस्थ रखने और अच्छे होने या स्वस्ति का एहसास दिलाती हैं, इसीलिए इन्हें आध्यात्मिक प्रगाति में भी सहायक माना जाता है।[1]
  • किसी व्यक्ति को समाधि, यानी पूर्ण ध्यान की आत्मविस्मृति की स्थिति में ले जाने वाली आठ प्रदिष्ट प्रक्रियाओं में आसन का तीसरा स्थान है। एक बार जब व्यक्ति ऐसी स्थिर मुद्रा को बनाए रखने में सक्षम हो जाता है, जो वह अपने दैनिक जीवन में आमतौर पर नहीं कर पाता, तो एक प्रकार से वह अपने शरीर को 'केंद्रित' कर लेता है।[2]
  • 32 से अधिक प्रकार के आसनों की गिनती की गई है, जिनमें से 'पद्मासन' सबसे लोकप्रिय है, जो अपने विभिन्न स्वरूपों में बुद्ध, जिन और अन्य संतों की मूर्तियों में दिखाई देता है।
  • इस प्रकार, भारत की दृश्य कलाओं में 'आसन' का अर्थ 'बैठी हुई मूर्ति' या 'देवता की मुद्रा' से है।
  • व्युत्पत्तिमूलक अर्थ में आसन का अर्थ 'बैठने का स्थान' या 'बैठने की वस्तु' या 'सिंहासन' भी है।


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टीका टिप्पणी और संदर्भ

  1. भारत ज्ञानकोश, खण्ड-2 |लेखक: इंदु रामचंदानी |प्रकाशक: एंसाइक्लोपीडिया ब्रिटैनिका प्राइवेट लिमिटेड, नई दिल्ली और पॉप्युलर प्रकाशन, मुम्बई |संकलन: भारतकोश पुस्तकालय |पृष्ठ संख्या: 144 |
  2. अनियत और अनंत संचालन की सामान्य बिखरी हुई स्थिति के विपरीत।

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