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आर्रेनियस

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आर्रेनियस स्वांटे आगस्ट आर्रेनियस (1859-1927) प्रसिद्ध रसायनज्ञ थे। इनकी शिक्षा अपसाला, स्टाकहोम तथा रीगा में हुई थी। इनकी बुद्धि बहुत ही प्रखर तथा कल्पनाशक्ति तीक्ष्ण थी। केवल 24 वर्ष की आयु में ही इन्होंने वैद्युत्‌ विच्छंदन (इलेक्ट्रोलिटिक डिसोसिएशन) का सिद्धांत उपस्थित किया। अपसाला विश्वविद्यालय में इनकी डाक्टरेट की थीसिस का यही विषय था। इस नवीन सिद्धांत की कड़ी आलोचना हुई तथा उस समय के बड़े-बड़े वैज्ञानिकों ने, जैसे लार्ड केल्विन इत्यादि ने, इसका बहुत विरोध किया। इसी समय एक दूसरे वैज्ञानिक वांट हॉफ ने पतले घोल के नियमों का अध्ययन कर गैस के नियमों से उसकी समानता पर जोर दिया। इस खोज से तथा ओस्टवाल्ट के समर्थन से अपनी निकली हुई पत्रिका 'साइट्श्रिफ्ट फूर फिज़िकलीशे केमी' में आर्रेनियस का लेख प्रकाशित किया और अपने भाषणों तथा लेखों में भी इस सिद्धांत का समर्थन किया। अंत में इस सिद्धांत को वैज्ञानिक मान्यता प्राप्त हुई।[1]

सन्‌ 1891 में लेक्चरर तथा 1895 में प्रोफेसर के पद पर, स्टाकहोम में, आर्रेनियस की नियुक्ति हुई। 1902 में उन्हें डेवी मेडल तथा 1903 में नोबेल पुरस्कार मिला। 1905 से मृत्यु पर्यंत वे स्टाकहोम में नोबेल इंस्टिट्यूट के डाइरेक्टर रहे। बाद में उन्होंने दूसरे विषयों पर भी अपने विचार प्रकट किए। ये विचार उनकी पुस्तक 'वर्ल्ड्‌स इन द मेकिंग तथा 'लाइफ ऑन द यूनिवर्स' में व्यक्त हैं।[2]


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टीका टिप्पणी और संदर्भ

  1. हिन्दी विश्वकोश, खण्ड 1 |प्रकाशक: नागरी प्रचारिणी सभा, वाराणसी |संकलन: भारत डिस्कवरी पुस्तकालय |पृष्ठ संख्या: 443 |
  2. सं.ग्रं.-एच.एम. स्मिथ : टॉर्च बेयरर्स ऑव केमिस्ट्री; जे.आर. पारटिंगटन : ए शॉर्ट हिस्ट्री ऑव केमिस्ट्री

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