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आचरण (सूक्तियाँ)

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क्रमांक सूक्तियाँ सूक्ति कर्ता
(1) जैसा देश तैसा भेष। कहावत
(2) माता, पिता, गुरु, स्वामी, भ्राता, पुत्र और मित्र का कभी क्षण भर के लिए विरोध या अपकार नहीं करना चाहिए। शुक्रनीति
(3) मनुष्य जिस समय पशु तुल्य आचरण करता है, उस समय वह पशुओं से भी नीचे गिर जाता है। टैगोर
(4) शास्त्र पढ़कर भी लोग मूर्ख होते हैं किन्तु जो उसके अनुसार आचरण करता है वोही वस्तुतः विद्वान् है। अज्ञात
(5) रोगियों के लिए भली भांति सोचकर निश्चित की गयी औषधि नाम उच्चारण करने मात्र से किसी को निरोगी नहीं कर सकती। हितोपदेश
(6) जिसने ज्ञान को आचरण में उतार लिया, उसने ईश्वर को मूर्तिमान कर लिया। विनोबा
(7) ज्ञानं भार: क्रियां बिना। आचरण के बिना ज्ञान केवल भार होता है। हितोपदेश
(8) केवल ज्ञान की कथनी से क्‍या होता है, आचरण में, स्थिरता नहीं है, जैसे काग़ज़ का महल देखते ही गिर पड़ता है, वैसे आचरण रहित मनुष्‍य शीघ्र पतित होता है। कबीर
(9) अच्छे विचार और अच्छी सोच से आचरण भी अच्छा बनता है। हंसराज सुज्ञ
(10) मनुष्य धन अथवा कुल से नहीं, दिव्य स्वभाव और भव्य आचरण से महान् बनता है। आविद
(11) ज्ञानी वह है, जो वर्तमान को ठीक प्रकार समझे और परिस्थिति के अनुसार आचरण करे। विनोबा भावे
(13) आचरण अच्छा हो तो मन में अच्छे विचार ही आते हैं।
(14) सुन्दर आचरण, सुन्दर देह से अच्छा है। इमर्सन
(15) जैसे आचरण की तुम दूसरों से अपेक्षा रखते हो, वैसा ही आचरण तुम दूसरों के प्रति करो। ल्यूक
(16) ग़लती करना मनुष्य का स्वाभाव है, की हुई ग़लती को मान लेना और इस प्रकार आचरण करना कि फिर ग़लती न हो, मर्दानगी है। महात्मा गाँधी
(17) हम स्‍वभाव के मुताबिक़ सोचते हैं, कायदे के मुताबिक़ बोलते हैं, रिवाज के मुताबिक़ आचरण करते हैं। फ्रांसिस बेकन
(18) श्रेष्ठ आचरण का जनक परिपूर्ण उदासीनता ही हो सकती है। काउन्ट
(19) बालक माता-पिता की विरासत लेकर चलता है, सिर्फ आर्थिक की नहीं, उनका रवैया, चरित्र और आचरण भी। यानी उसकी सबसे पहली नींव माता-पिता रचते हैं। चीनी कहावत
(20) जिनके भीतर आचरण की दृढ़ता रहती है, वे ही विचार में निर्भीक और स्पष्ट हुआ करते हैं। हजारीप्रसाद द्विवेदी
(21) जितना दिखाते हो जिनके भीतर आचरण की दृढ़ता रहती है, वे ही विचार में निर्भीक और स्पष्ट हुआ करते हैं। हजारीप्रसाद द्विवेदी
(22) यदि मनुष्य रामनाम स्मरण करता है परंतु उसके आचरण सदोष हैं तो उसकी भक्ति, श्रवण व मनन वृथा हैं। एकनाथ
(23) शत्रु को उपहार देने योग्य सर्वोत्तम वस्तु है- क्षमा, विरोधी को सहनशीलता, मित्र को अपना हृदय, शिशु को उत्तम दृष्टांत, पिता को आदर और माता को ऐसा आचरण जिससे वह तुम पर गर्व करे, अपने को प्रतिष्ठा और सभी मनुष्य को उपकार। वालफोर
(24) जिसने विद्या पढ़ी और आचरण नहीं किया वह उसके समान है जिसने बैल जोता है और बीज नहीं बिखेरा। शेख सादी
(25) आचरण के अभाव में ज्ञान नष्ट हो जाता है। अज्ञात
(26) आचरण रहित विचार कितने अच्छे क्यों न हों, उन्हें खोटे मोती की तरह समझना चाहिए। महात्मा गांधी
(27) जिसने विद्या पढ़ी और आचरण नहीं किया- वह उसके समान है, जिसने बैल जोता है और बीज नहीं बिखेरा है। शेख सादी
(28) राजा जैसा आचरण करता है, प्रजा वैसा ही आचरण करने लगती है। वाल्मीकि
(29) पापी की परिभाषा व्यक्ति के आचरण पर निर्भर करती है। अत्याचार करने वाले से सहने वाला अधिक पापी है। कंचनलता सब्बरवाल
(30) जल से सींचने पर पेड़ बढ़ते हैं, पत्थरों का ढेर नहीं। योग्य ही अपने अनुकूल आचरण पाकर पदार्थ बन जाता है। सुभाषितावलि
(31) संसार में धनियों के प्रति गैर मनुष्य भी स्वजन जैसा आचरण करते हैं। विष्णु शर्मा
(32) परोपकार का आचरण मत त्यागो। संसार क्षणिक है। जब चंद्रमा और सूर्य भी अस्त हो जाते हैं, तब अन्य कौन स्थिर है? सुप्रभाचार्य
(33) अपनी निंदा और प्रशंसा, पराई निंदा और पराई स्तुति- यह चार प्रकार का आचरण श्रेष्ठ पुरुषों ने कभी नहीं किया। वेदव्यास
(34) पराजय, अपयश, कुटिल आचरण और द्वेष हमारे पास कभी न आएं। अथर्ववेद
(35) विद्वान् तो बहुत होते हैं, पर विद्या के साथ जीवन का आचरण करने वाले बहुत कम होते हैं। सरदार वल्लभ भाई पटेल
(36) जो निषिद्ध कर्म का आचरण करते हैं, वे हीनतर होते जाते हैं। तांड्य महाब्राह्मण
(37) संपत्ति और विपत्ति में एक समान आचरण करनेवाले ही महान् कहलाते हैं। विष्णु शर्मा
(38) कोई असत्य से सत्य नहीं पा सकता। सत्य को पाने के लिए हमेशा सत्य का आचरण करना ही होगा। महात्मा गांधी
(39) अलमारियों में बंद वेदान्त की पुस्तकों से काम न चलेगा, तुम्हें उसको आचरण में लाना होगा। रामतीर्थ
(40) जिनका शम-दम आदि गुणों के विषय में संतोष नहीं है, जिनका ज्ञान के प्रति अनुराग है तथा जिनको सत्य के आचरण का ही व्यसन है, वे ही वास्तव में मनुष्य हैं, दूसरे पशु हैं। योगवासिष्ठ
(41) अध्ययन, विचार, मनन, विश्वास एवं आचरण द्वार जब एक मार्ग को मज़बूति से पकड़ लिया जाता है, तो अभीष्ट उद्देश्य को प्राप्त करना बहुत सरल हो जाता है।
(42) जो व्यक्ति आचरण की पोथी को नहीं पढता, उसके पृष्ठों को नहीं पलटता, वह भला दूसरों का क्या भला कर पायेगा।
(43) सत्य, प्रेम और न्याय को आचरण में प्रमुख स्थान देने वाला नर ही नारायण को अति प्रिय है।
(44) पढ़ना एक गुण, चिंतन दो गुना, आचरण चौगुना करना चाहिए।
(45) परोपकारी, निष्कामी और सत्यवादी यानी निर्भय होकर मन, वचन व कर्म से सत्य का आचरण करने वाला देव है।
(46) वास्तविक सौन्दर्य के आधर हैं - स्वस्थ शरीर, निर्विकार मन और पवित्र आचरण।
(47) वाणी नहीं, आचरण एवं व्यक्तित्व ही प्रभावशाली उपदेश है
(48) ज्ञान और आचरण में बोध और विवेक में जो सामञ्जस्य पैदा कर सके उसे ही विद्या कहते हैं।
(49) ज्ञान की सार्थकता तभी है, जब वह आचरण में आए।
(50) हम मात्र प्रवचन से नहीं अपितु आचरण से परिवर्तन करने की संस्कृति में विश्वास रखते हैं।

टीका टिप्पणी और संदर्भ

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