अभिवृत्ति

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अभिवृत्ति(एप्टिट्युड)मनुष्य की वह सामान्य प्रतिक्रिया है जिसके द्वारा वस्तु का मनोवैज्ञानिक ज्ञान होता है। इसी आधार पर व्यक्ति वस्तुओं का मूल्यांकन करता है। कुछ पाश्चात्य वैज्ञानिकों ने अभिवृत्ति को मनुष्य की वह अवस्था माना है जिसके द्वारा मानसिक तथा नाड़ी-व्यापार-संबंधी अनुभवों का ज्ञान होता है। इस विचारधारा के प्रमुख प्रवर्त्तक औलपार्ट हैं। उनके सिद्धांतों के अनुसार अभिवृत्ति जीवन में वस्तुबोधन का मुख्य कारण है। इस परिभाषा के द्वारा अभिवृत्ति वह सामान्य प्रत्यक्ष है जिसके द्वारा मनुष्य भिन्न-भिन्न अनुभवों का समन्वय करता है। यह वह मापदंड है जिसके द्वारा व्यक्तित्व के निर्माण में सामाजिक तथा बौद्धिक गुणों का समावेश होता है। मनोवैज्ञानिकों ने अभिवृत्तियों का विभाजन, उनके वस्तु आधार, उनकी गहनता तथा उनकी प्रतिक्रिया के आधार पर किया है।

इसका घनिष्ठ संबंध व्यक्ति के अमूर्त विचार तथा कल्पना से ही है। अभिवृत्ति का जन्म प्राय: चार साधनों से होता हुआ देखा गया है--प्रथम समन्वय द्वारा, द्वितीय आघात द्वारा, तृतीय भेद द्वारा तथा चतुर्थ स्वीकरण द्वारा। यह आवश्यक नहीं है कि ये यंत्र स्वतंत्र रूप से ही कार्य करे; ऐसा भी देखा गया है कि इनमें एक या दो कारण् भी मिलकर अभिवृति को जन्म देते हैं। इस दिशा में अमेरिका के दो मनोवैज्ञानिकों-जे.डेविस तथा आर.बी. ब्लेक ने विशेष रूप से अनुसंधान किया है। प्रयोगों द्वारा यह भी देखा गया है कि अभिवृति के निर्माण में माता पिता, समुदाय, शिक्षा प्रणाली, सिनेमा, संवेगात्मक परिस्थितियों तथा सूच्यता (सजेस्टिबिटी) का विशेष हाथ होता है। अभिवृति को नापने का प्रश्न सदा से मनोवैज्ञानिकों के लिए कठिन रहा है, लेकिन आज के युग में इस दिशा में भी पर्याप्त कार्य हुआ है। एल.थर्स्टन ने इस क्षेत्र में सराहनीय कार्य किया है। उनके विचारों द्वारा अभिवृति को नापने को प्रयत्न किया गया है। उन्होंने 'ओपीनियन स्केल' विधि को ही प्रधानता दी है। प्राक्षेपिक विधि (प्रोजेक्शन टेकनीक) आजकल विशेष रूप से प्रयोग में लाई जा रही है। ई.एस. बोगारउस ने अपने अनुसंधानों द्वारा 'सोशल डिस्टैन्स टेकनीक' के द्वारा व्यक्तियों के विचारों को नापने का प्रयत्न किया है। इस दिशा में अभी विशेष कार्य होने की आवश्यकता है। भारतीय मनोविज्ञान शालाएँ भी इस दिशा में कार्य कर रही हैं। मनोविज्ञान शाला, इलाहाबाद, ने कुछ विधियों का भारतीयकरण किया है।[1]


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टीका टिप्पणी और संदर्भ

  1. हिन्दी विश्वकोश, खण्ड 1 |प्रकाशक: नागरी प्रचारिणी सभा, वाराणसी |संकलन: भारत डिस्कवरी पुस्तकालय |पृष्ठ संख्या: 184 |

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