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अभिनव बिन्द्रा

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अभिनव बिन्द्रा
अभिनव बिन्द्रा
पूरा नाम अभिनव बिन्द्रा
अन्य नाम अभि
जन्म 28 सितम्बर, 1982
जन्म भूमि देहरादून, उत्तराखण्ड
कर्म भूमि भारत
खेल-क्षेत्र निशानेबाज़ (शूटिंग)
शिक्षा एम.बी.ए.
पुरस्कार-उपाधि 'राजीव गाँधी खेल रत्न पुरस्कार' (2002), 'अर्जुन पुरस्कार'
प्रसिद्धि भारतीय निशानेबाज़
नागरिकता भारतीय
विशेष अभिनव लगातार चार स्वर्ण पदक जीतने वाले पहले शूटर बने थे, जब उन्होंने म्यूनिख लेग के 2001 यूरोपियन रायफल सर्किट चैंपियनशिप में ये पदक जीते थे।
अन्य जानकारी 11 अगस्त, 2008 को बीजिंग में आयोजित 29वें ओलंपिक खेलों में 10 मीटर एयर राइफल निशानेबाज़ी प्रतियोगिता में अभिनव बिन्द्रा ने स्वर्ण पदक जीतकर इतिहास रच डाला था। ओलंपिक में वैयक्तिक स्पर्धा में स्वर्ण जीतने वाले वे भारत के पहले निशानेबाज बन गए।
अद्यतन‎ 03:30, 05 नवम्बर-2016 (IST)

अभिनव बिन्द्रा (अंग्रेज़ी: Abhinav Bindra, जन्म- 28 सितम्बर, 1982, देहरादून, उत्तराखण्ड) प्रसिद्ध भारतीय निशानेबाज़ हैं। वह ‘अर्जुन पुरस्कार’ और ‘राजीव गाँधी खेल रत्न पुरस्कार’ पाने वाले सबसे कम आयु के खिलाड़ी हैंं। अभिनव बिन्द्रा ने 11 अगस्त, 2008 को बीजिगं में आयोजित 29वें, ओलंपिक खेलों में 10 मीटर एयर राइफल निशानेबाज़ी प्रतियोगिता में स्वर्ण पदक जीतकर इतिहास रच डाला था। ओलंपिक में वैयक्तिक स्पर्धा में स्वर्ण जीतने वाले वे भारत के पहले निशानेबाज बन गए। भारत को 28 साल बाद ओलंपिक में स्वर्ण पदक मिला था। 2004 के एथेंस ओलंपिक में अभिनव बिन्द्रा ने सातवां स्थान प्राप्त किया था।

परिचय

अभिनव बिन्द्रा का जन्म 28 सितम्बर, 1982 को देहरादून, उत्तराखण्ड में हुआ था। एम.बी.ए. कर चुके अभिनव फ्यूचरिस्टिक कम्पनी के सीईओ हैं। अभिनव बिन्द्रा, जिन्हें घर वाले प्यार से 'अभि' कहते हैं, 1996 में अपने परिवार के साथ अटलांटा ओलंपिक देखने गए थे। तब उन्होंने पहली बार शूटिग रेंज देखी और उन्हें उसके प्रति आकर्षण महसूस हुआ। उनके परिवार ने उन्हें इस खेल के प्रति आगे बढ़ने के लिए पूरा सहयोग दिया। उन्होंने अच्छी तरह सोच समझ कर एयर राइफल प्रतियोगिता को चुना और उसमें भाग लेने लगे। इस प्रकार वह 15 वर्ष की आयु में निशानेबाज़ी प्रतियोगिता में भाग लेने लगे थे।[1]

निशानेबाज़ी में सफलता

अभिनव बिन्द्रा पहली बार उस समय दुनिया के खेल परिदृश्य पर चर्चा में आए थे, जब 2001 में म्यूनिख विश्व कप में उन्होंने 700.5 अंक लेकर 10 मी. राइफल प्रतियोगिता में कांस्य पदक जीता था। अभिनव ने 60 शॉट लगाने के लिए निर्धारित एक घंटा 45 मिनटों की जगह मात्र 44 मिनट में ही सभी शॉट लगाकर सबको अचरज में डाल दिया था। इस प्रतियोगिता में उनका मुकाबला 67 देशों के 105 धुरंधर खिलाड़ियों के साथ था। उन्होंने अन्तिम आठ खिलाड़ियों में जगह बनाई। यद्यपि वह तब सातवें स्थान पर थे, परन्तु फाइनल में उन्होंने अविश्वसनीय रूप से 103.9 अंक बनाकर तीसरा स्थान बनाया। इसी जीत के कारण वह ओलंपिक में पुरुष वर्ग की एकल प्रतियोगिता में भाग लेने योग्य प्रथम भारतीय खिलाड़ी बने। वह निशानेबाज़ी के खेल की ओर इस कारण भी आकर्षित हुए, क्योंकि उनके कोच ने शूटिंग खेलों में प्रसिद्धि पाने की सुन्दर तस्वीर उन के मन-मस्तिष्क में बिठा दी थी, जिससे उनके मन में ऐसी अमिट तस्वीर बनी कि उन्होंने इन खेलों का खिलाड़ी बनने का ही सपना देखा।

नियमित अभ्यास

अभिनव बिन्द्रा

अपने प्रशिक्षण के बारे में अभिनव बिन्द्रा बताते हैं कि- ”मैं लगभग 9 घंटे रोज अभ्यास करता हूँ, जिसमें से 7 घंटे नियमित रूप से शूटिंग का अभ्यास करता हूं और दो घंटे खिंचाव वाले तथा जॉगिंग जैसे व्यायाम करता हूँ। यह सब करने के बाद मैं पूरी तरह थक चुका होता हूँ; परन्तु यह सब करना बहुत महत्त्वपूर्ण है। एक शूटर की योग्यता उसकी ध्यान केन्द्रित करने की क्षमता पर निर्भर करती है।” अभिनव ने बहुत कम उम्र में प्रसिद्धि पाई है और बहुत कम उम्र में बड़े-बड़े पुरस्कार जीते हैं। उनके पिता ने उनके लिए निशानेबाज़ी के सभी उपकरण जुटा रखे हैं ताकि वह घर पर ही पूर्ण अभ्यास कर सकें। उन्होंने बताया- ”मेरे पास एयर कन्डीशंड रेंज है जो पूर्णतया अन्तरराष्ट्रीय मानदण्डों के अनुसार कम्प्यूटर आधारित ‘टार्गेट ट्रांसपोर्ट सिस्टम’ पर आधारित है। मेरे पास सात बन्दूकें, गोलियाँ, जैकेट व अन्य शूटिंग का सामान है। अत: सुविधा व सामान के हिसाब से मैं बहुत संतुष्ट हूँ।’ अभिनव के जीवन पर उनके माता पिता का सर्वाधिक प्रभाव है। उनके राष्ट्रीय कोच गैबी ब्यूलमान और सन्नी थामस हैं।

अभिनव बिन्द्रा ने राइफल 3 पोजीशन मुकाबले में आई.एस.एस.एफ. वर्ल्ड कप, फोर्ट बेनिंग यू.एस. प्रतियोगिता में 1161 का स्कोर बना कर भारतीय सेना के सूबेदार सुभाया के कई वर्ष पुराने 1999 के रिकार्ड की बराबरी की। अभिनव ने राइफल मुकाबले में 2 माह पूर्व ही भाग लेना शुरू किया था और यह उनकी इस वर्ग की विश्व स्तर की पहली प्रतियोगिता थी। इस मुकाम में अभिनव के कोच स्टेनीस्लैव लैपीडस (कजाकिस्तान) थे, जो पहले भारतीय सेना के कोच थे। लैपीडस ने कहा- ”मैंने अपने 25 वर्षों के कोचिंग अनुभव में बिन्द्रा जैसा शूटर नहीं देखा है, जिसने दो महीने के अभ्यास में इतना अच्छा प्रदर्शन किया हो।"[1]

उपलब्धियाँ

  1. अभिनव बिंद्रा ने 11 अगस्त, 2008 को बीजिंग ओलंपिक में 10 मीटर एयर राइफल निशानेबाज़ी प्रतियोगिता में मैडल जीतकर इतिहास रच डाला।
  2. अभिनव लगातार चार स्वर्ण पदक जीतने वाले पहले शूटर बने थे, जब उन्होंने म्यूनिख लेग के 2001 यूरोपियन रायफल सर्किट चैंपियनशिप में ये पदक जीते। उसके बाद भी उस प्रतियोगिता में वह पदक जीतते गए और कुल मिलाकर लगातार 6 स्वर्ण, 4 रजत व 2 कांस्य पदक जीत लिए।
  3. वर्ष 2000 में इन्टरनेशनल स्पोर्ट्स शूटिंग फेडरेशन (आई. एस.एस.एफ.) ने उन्हें ‘डिप्लोमा ऑफ ऑनर’ प्रदान किया।
  4. 2002 के राष्ट्रसंघ खेलों में मानचेस्टर में अभिनव ने छह राउंड में 1184 अंक बना कर राष्ट्रसंघ खेल रिकार्ड कायम कर दिया।
  5. जुलाई, 2002 से उन्हें ‘ओलंपिक सलिडेरिटी प्रोग्राम’ के अन्तर्गत स्कालरशिप दी जाती है।
  6. वर्ष 2002 में उनको वर्ष 2001 की उपलब्धियों के लिए ‘राजीव गाँधी खेल रत्न’ से सम्मानित किया गया। 29 अगस्त, 2002 को उन्हें यह सर्वोच्च पुरस्कार राष्ट्रपति ए.पी.जे. अब्दुल कलाम द्वारा प्रदान किया गया। अभिनव बिन्द्रा को खेलों में देश के सबसे बड़े सम्मान ‘राजीव गांधी खेल रत्न पुरस्कार’ के लिए वर्ष 2001 की म्यूनिख उपलब्धियों के कारण चुना गया।
  7. मार्च, 2006 में मेलबर्न में होने वाले राष्ट्रमंडल खेलों में बिंद्रा ने पुनः सफलता प्राप्त की। उन्होंने 10 मीटर एयर राइफल पेयर्स स्पर्धा में पिछले मानचेस्टर खेलों का रिकार्ड पांच अंकों के बड़े अंतर से तोड़ दिया। 1189 अंक बना कर उन्होंने स्पर्धा का स्वर्ण पदक जीता। इसके अतिरिक्त इन्हीं खेलों में 50 मीटर राइफल थ्रो पोजीशन में अभिनव बिंद्रा ने रजत पदक प्राप्त किया।
  8. जुलाई, 2006 में विश्व निशानेबाज़ी चैंपियनशिप में (क्रोएशिया के शहर जागरेब) में 10 मीटर एयर राइफल स्पर्धा में स्वर्ण पदक हासिल किया। बिन्द्रा देश के पहले निशानेबाज हैं, जिन्होंने विश्व चैंपियनशिप में स्वर्ण पदक जीता। यह पदक जीतने पर पंजाब सरकार ने अभिनव बिन्द्रा को 21 लाख रूपए का पुरस्कार प्रदान करने की घोषणा की थी। अभिनव बिन्द्रा का मानना है कि निशानेबाज़ी को देश में नबंर एक खेल का दर्जा मिलना चाहिए, क्योंकि इसी खेल से भारत में सबसे ज्यादा पदक आते हैं। बिन्द्रा का कहना है कि भारतीय निशानेबाजों ने जो सफलता अर्जित की है, उसकी बराबरी कोई खेल नहीं कर सकता।[1]


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टीका टिप्पणी और संदर्भ

  1. 1.0 1.1 1.2 अभिनव बिन्द्रा का जीवन परिचय (हिंदी) कैसे और क्या। अभिगमन तिथि: 10 सितम्बर, 2016।

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