अभिकल्पना

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अभिकल्पना किसी पूर्वनिश्चित ध्येय की उपलब्धि के लिए तत्संबंधी विचारों एवं अन्य सभी सहायक वस्तुओं को क्रमबद्ध रूप से सुव्यवस्थित कर देना ही 'अभिकल्पना' (डिज़ाइन) है। वास्तुविद (आर्किटेक्ट) किसी भवन के निर्माण की योजना बनाते हुए रेखाओं का विभिन्न रूपों में अंकन किसी एक लक्ष्य की पूर्ति को सोचकर करता है। कलाकार भी रेखाओं के संयोजन से चित्र में एक विशेष प्रभाव या विचार उपस्थित करने का प्रयत्न करता है। इसी प्रकार इमारती इंजीनियर किसी इमारत में सुनिश्चित टिकाऊपन और दृढ़ता लाने के लिए उसकी विविध मापों को नियत करता है। सभी बातें अभिकल्पना के अंतर्गत हैं।

वास्तुविद का कर्तव्य है कि वह ऐसा व्यवहार्य अभिकल्पना प्रस्तुत करे जो भवननिर्माण की लक्ष्यपूर्ति में सुविधाजनक एवं मितव्ययी हो। साथ ही उसे यह भी ध्यान रखना चाहिए कि इमारत का आकार उस क्षेत्र के पड़ोस के अनुकूल हो और अपने ईद-गिर्द खड़ी पुरानी इमारतों के साथ भी उसका मेल बैठ सके। मान लीजिए, ईद-गिर्द के सभी मकान मेहराबदार दरवाजेवाले हैं, तो उनके बीच एक सपाट डाट के दरों का, सादे ढंग के सामनेवाला मकान शोभा नहीं देगा। इसी तरह और भी कई बातें हैं जिनका विचार पार्श्ववर्ती वातावरण को दृष्टि में रखते हुए किया जाना चाहिए। दूसरी विशेष बात जो वास्तुविद के लिए विचारणीय है, वह है भवन के बाहरी आकार के विषय में एक स्थिर मत का निर्णय। वह ऐसा होना चाहिए कि एक राह चलता व्यक्ति भी भवन को देखकर पूछे बिना यह समझ ले कि वह भवन किसलिए बना है। जैसे, एक कालेज को अस्पताल सरीखा नहीं लगना चाहिए और न ही अस्पताल की आकृति कालेज सरीखी होनी चाहिए। बंक का भवन देखने में पुष्ट और सुरक्षित लगना चाहिए और नाटकघर या सिनेमाघर का बाहरी दृश्य शोभनीय होना चाहिए। वास्तुविद को यह सुनिश्चित होना चाहिए कि उसने उस पूरे क्षेत्र का भरपूर उपयोग किया है जिसपर उसे भवन निर्मित करना है।

कलापूर्ण अभिकल्पनाओं के अंतर्गत मनोरंजन अथवा रंगमंच के लिए पर्दे रँगना, अलंकरण के लिए विभिन्न प्रकार के चित्रांकन, किसी विशेष विचार को अभिव्यक्त करने के लिए भित्तिचित्र बनाना आदि कार्य भी आते हैं। कलाकार की खूबी इसी में है कि वह अपनी अभिकल्पना को यथार्थ आकार दे। चित्र को कलाकार के विचारों की सजीव अभिव्यक्ति का प्रतीक होना चाहिए। चित्र की आवश्यकता के अनुसार कलाकार पेंसिल के रेखाचित्र, तैलचित्र, पानी के रंगों के चित्र आदि बनाए।

इमारतों के इंजीनियर को वास्तुविद की अभिकल्पना के अनुसार ही अपनी अभिकल्पना ऐसी बनानी होती है कि इमारत अपने पर पड़नेवाले सब भारों को सँभालने के लिए यथेष्ट पुष्ट हो। इस दृष्टि से वह निर्माण के लिए विशिष्ट उपकरणों का चुनाव करता है और ऐसे निर्माण पदार्थ लगाने का आदेश देता है जिससे इमारत सस्ती तथा टिकाऊ बन सके। इसके लिए इस बात का भी ध्यान रखना आवश्यक है कि निर्माण के लिए सुझाए गए विशिष्ट पदार्थ बाजार में उपलब्ध हैं या नहीं, अथवा सुझाई गई विशिष्ट कार्यशैली को कार्यान्वित करने के लिए अभीष्ट दक्षता का अभाव तो नहीं है। भार का अनुमान करने में स्वयं इमारत का भार, बनते समय या उसके उपयोग में आने पर उसका चल भार, चल भारों के आघात का प्रभाव, हवा की दाब, भूकंप के धक्कों का परिणाम, ताप, संकोच, नींव के बैठने आदि अनेक बातों को ध्यान में रखना पड़ता है।

इनमें से कुछ भारों की गणना तो सूक्ष्मता से की जाए सकती है, किंतु कई ऐसे भी हैं जिन्हें विगत अनुभवों के आधार पर केवल अनुमानित किया जा सकता है। जैसे भूकंप के बल को लें---इसका अनुमान बड़ा कठिन है और इस बात की कोई पूर्वकल्पना नहीं हो सकती कि भूकंप कितने बल का और कहाँ पर होगा। तथापि सौभाग्यवश अधिकतर चल और अचल भारों के प्रभाव की गणना बहुत कुछ ठीक-ठीक की जा सकती है।

ताप एवं संकोचजनित दाबों का भी पर्याप्त सही अनुमान पूरे ऋतुचक्र के तापों में होने वाले व्यतिक्रमों के अध्ययन तथा कंक्रीट के ज्ञात गुणों द्वारा किया जा सकता है। हवा एवं भूकंप के कारण पड़नेवाले बल अंततोगत्वा अनिश्चित ही होते हैं, परंतु उनकी मात्रा के अनुमान में थोड़ी त्रुटि रहने से प्राय: हानि नहीं होती। निर्माणसामग्री साधारणत: इतनी पुष्ट लगाई जाती है कि दाब आदि बलों में 33 प्रतिशत वृद्धि होने पर भी किसी प्रकार की हानि की आशंका न रहे। नींव के धँसने का अच्छा अनुमान नीचे की भूमि की उपयुक्त जाँच से हो जाता है। प्रत्येक अभिकल्पक को कुछ अज्ञात तथ्यों को भी ध्यान में रखना होता है, यथा कारीगरें की अक्षमता, किसी समय लोगों की अकल्पित भीड़ का भार, इस्तेमाल में लाए गए पदार्थों की छिपी संभाव्य कमजोरियाँ इत्यादि। इन तथ्यों को 'सुरक्षागुणक' (फ़ैक्टर ऑव सेफ़्टी) के अंतर्गत रखा जाता है, जो इस्पात के लिए 2 से 1/2 और कंक्रीट, शहतीर तथा अन्य उपकरणों के लिए 3 से 4 तक माना जाता है। सुरक्षागुणक को भवन पर अतिरिक्त भार लादने का बहाना नहीं बनाना चाहिए। यह केवल अज्ञात कारणों (फ़ैक्टर्स) के लिए है और एक सीमा तक ह्रास के लिए भी, जो भविष्य में भवन को धक्के, जर्जरता एवं मौसम की अनिश्चितताएँ सहन करने के लिए सहायक सिद्ध हो सकता है।[1]


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टीका टिप्पणी और संदर्भ

  1. हिन्दी विश्वकोश, खण्ड 1 |प्रकाशक: नागरी प्रचारिणी सभा, वाराणसी |संकलन: भारत डिस्कवरी पुस्तकालय |पृष्ठ संख्या: 174 |

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